Chanting And Recitation Of Jain & Hindu Mantras And Prayers. Please subscribe to my youtube channel : https://youtube.com/channel/UCmmeT83dQo1WxHyELqwx7Qw
Ganesh Suktam गणेश सूक्तम् ★
आ तू न इन्द्र क्षुमन्तं चित्रं ग्राभं सं गृभाय ।
महाहस्ती दक्षिणेन ॥ १ ॥
विद्मा हि त्वा तुविकूर्मिन्तुविदेष्णं तुवीमघम्।
तुविमात्रमवोभिः ॥ २ ॥
न हि त्वा शूर देवा न मर्तासो दित्स॑न्तम् ।
भीमं न गां वारयन्ते ॥ ३ ॥
एतोन्विन्द्रं स्तवामेशानं वस्वः स्वराजम् ।
न राधसा मर्धिषन्नः ॥ ४ ॥
प्र स्तोषदुपं गासिषच्छ्रवत्सामं गीयमानम् । अभिराधसाजुगुरत् ॥ ५ ॥
आ नो भर दक्षिणेनाभि सुव्येन प्र मृश ।
इन्द्र मानो वोर्निर्भाक् ॥ ६ ॥
उपक्रमस्वा भर धृषता धृष्णो जनानाम् ।
अदाशुष्टरस्य वेदः ॥ ७ ॥
1/16/2024 • 2 minutes, 16 seconds
GanaNayak Ashtakam गणनायकाष्टकम्
Gan Nayak Ashtakam गणनायक अष्टकम् ★
एकदन्तं महाकायं तप्तकांचनसन्निभम् ।
लंबोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ १ ॥
मौञ्जीकृष्णाजिनधरं नागयज्ञोपवीतिनम् ।
बालेन्दुविलसन्मौलिं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ २ ॥
अम्बिकाहृदयानन्दं मातृभिः परिपालितम् ।
भक्तप्रियं मदोन्मत्तं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ३ ॥
चित्ररत्नविचित्रांगं चित्रमालाविभूषितम् ।
चित्ररूपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ४ ॥
गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम् ।
पाशांकुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ५ ॥
मूषिकोत्तममारुह्य देवासुरमहाहवे ।
योद्धुकामं महावीर्यं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ६ ॥
यक्षकिन्नरगन्धर्व सिद्धविद्याधरैस्सदा ।
स्तूयमानं महात्मानं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ७ ॥
सर्वविघ्नकरं देवं सर्वविघ्नविवर्जितम् ।
सर्वसिद्धिप्रदातारं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ८ ॥
गणाष्टकमिदं पुण्यं भक्तितो यः पठेन्नरः ।
विमुक्तस्सर्वपापेभ्यो रुद्रलोकं स गच्छति ॥ ९ ॥
इति श्री गणनायकाष्टकं सम्पूर्णम् । ★
1/10/2024 • 3 minutes, 38 seconds
Rudra Suktam रुद्र सूक्तम्
Rudra Suktam रुद्र सूक्तम् ★
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतोतऽ इषवे नमः ।
बाहुभ्याम् उत ते नमः ॥1 ॥
या ते रुद्र शिवा तनूर-घोरा ऽपाप-काशिनी ।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशंताभि चाकशीहि ॥2॥
यामिषं गिरिशंत हस्ते बिभर्म्यस्तवे ।
शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिन्सीः पुरुषं जगत् ॥3॥
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि ।
यथा नः सर्वमिज् जगद-यक्ष्मम् सुमनाऽ असत् ॥4॥
अध्य वोचद-धिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।
अहींश्च सर्वान जम्भयन्त् सर्वांश्च यातु-धान्यो ऽधराचीः परा सुव ॥5॥
असौ यस्ताम्रोऽ अरुणऽ उत बभ्रुः सुमंगलः ।
ये चैनम् रुद्राऽ अभितो दिक्षु श्रिताः ऽवैषाम् हेड ऽईमहे ॥6॥
असौ यो ऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहितः ।
उतैनं गोपाऽ अदृश्रन् दृश्रन्नु- दहारयः स दृष्टो मृडयाति नः ॥7॥
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे ।
अथो येऽ अस्य सत्वानो ऽहं तेभ्यो ऽकरम् नमः ॥8॥
प्रमुंच धन्वनः त्वम् उभयोर आरत्न्योर ज्याम् ।
याश्च ते हस्तऽ इषवः परा ता भगवो वप ॥9॥
विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो बाणवान्ऽ उत ।
अनेशन्नस्य याऽ इषवऽ आभुरस्य निषंगधिः ॥10॥
या ते हेतिर मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः ।
तया अस्मान् विश्वतः त्वम् अयक्ष्मया परि भुज ॥11॥
परि ते धन्वनो हेतिर अस्मान् वृणक्तु विश्वतः ।
अथो यऽ इषुधिः तवारेऽ अस्मन् नि-धेहि तम् ॥12॥
अवतत्य धनुष्ट्वम् सहस्राक्ष शतेषुधे ।
निशीर्य्य शल्यानां मुखा शिवो नः सुमना भव ॥13॥
नमस्तऽ आयुधाय अनातताय धृष्णवे ।
उभाभ्याम् उत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने ॥14॥
मा नो महान्तम् उत मा नोऽ अर्भकं
मा नऽ उक्षन्तम् उत मा नऽ उक्षितम्।
मा नो वधीः पितरं मोत मातरं
मा नः प्रियास् तन्वो रूद्र रीरिषः ॥15॥
मा नस्तोके तनये मा नऽ आयुषि
मा नो गोषु मा नोऽ अश्वेषु रीरिषः।
मा नो वीरान् रूद्र भामिनो
वधिर हविष्मन्तः त्वा हवामहे ॥16॥
1/9/2024 • 6 minutes, 44 seconds
Praan Suktam प्राण सूक्तम्
Praan Suktam प्राण सूक्तम् ★
ॐ
प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे।
यो भूतः सर्वस्येश्वरो यस्मिन्त्सर्वं प्रतिष्ठितम्।१॥
नमस्ते प्राण क्रन्दाय नमस्ते स्तनयित्नवे।
नमस्ते प्राण विद्युते नमस्ते प्राण वर्षते।२॥
यत्प्राण स्तनयित्नुनाअभिक्रन्दत्योषधीः।
प्र वीयन्ते गर्भान्दधतेअथो बहिर्वि जायन्ते।३॥
यत प्राण ऋतवागन्तेअभिक्रन्दत्योषधीः।
सर्व तदा पर मोड़ते यत्किं च भूम्यामधिम्।४॥
यदा प्राणो अभ्यवर्षीद्वर्षेनम पृथ्वीं महीम।
पशवस्तत्प्र मोदन्ते महो वै नो भविष्यति।५॥
अभिवृष्टा ओषधयः प्राणेन संवादिरन।
आयुर्वै नः प्रातीतरः सर्वा नः सुरभीरकः।६॥
नमस्ते अस्त्वायते नमो अस्तु परायते।
नमस्ते प्राण तिष्ठत आसीनायोत ते नमः।७॥
नमस्ते प्राण प्राणते नमो अस्तवपानते।
पराचीनाय ते नमः प्रतीचीनाय ते नमः सर्वस्मै त इदं नमः।८॥
या ते प्राण प्रिया तनूर्यो ते प्राण प्रेयसि।
अथो याद भेषजम् तव तस्यं नो धेहि जीवसे।९॥
प्राणाः प्रजा अनु वस्ते पिता पुत्रमिव प्रियं।
प्राणो ह सर्वस्येश्वरो यच्चं प्राणति यच्च न।१०॥
प्राणो मृत्युः प्राणस्तक्मा प्राणं देवा उपासते।
प्राणो हं सत्यवादिनमुत्तमे लोक आ दंधत।११॥
प्राणो विराट प्राणो देष्ट्री प्राणं सर्वे उपासते।
प्राणो ह सूर्यश्चन्द्रमां प्राणमाहुः प्रजापतिं।१२॥
प्राणापानौ व्रीहियवावनडवान प्राण उच्यते।
यवें ह प्राण आहितोअपानो व्रीहिरुच्यते।१३॥
अपानति प्राणति पुरुषो गभे अंतरा।
यदा त्वं प्राण जिन्वस्यथ स जायते पुनः।१४॥
प्राणमाहुर्मातरिश्वानं वातो ह प्राण उच्यते।
प्राणे हं भूतं भव्यम् च प्राणे सर्वं प्रतिष्ठितम्।१५॥
आथर्वणीरांगिरसीदैवीमनुष्यजा उत।
ओषधयः प्र जायन्ते यदा त्वं प्राण जिन्वसि।१६॥
यदा प्राणो अभ्यवर्षीद्वर्षेणं पृथ्वीमं महीम।
ओषधयः प्र जायन्तेअथो याः काश्चं विरुधः।१७॥
यस्ते प्राणेदं वेद यस्मिश्चासि प्रतिष्ठितः।
सर्वे तस्मै बलिं हरानमुष्मिल्लोक उत्तमे।१८॥
यथां प्राण बलिहृतस्तुभ्यं सर्वाः प्रजा इमाः।
एवा तस्मै बलिं हरान्यस्त्वां शृणवत सुश्रवः।१९॥
अंतर्गर्भश्चरति देवतास्वाभूतो भूतः स उं जायते पुनः।
स भूतो भव्यम् भविष्यत्पिता पुत्रं पर विवेशा शचीभिः।२०॥
एकं पादं नोटखिदति सलिलाध्दंस उच्चरन्।
स भूतो भव्यम् भविष्यतिपिता पुत्रं प्र विवेशा शचीभिः।२१॥
अष्टाचक्रं वर्तत एकनेमी सहस्त्राक्षरं प्र पुरो नि पश्चा।
अर्धेन विश्वं भुवनं जजान यदस्यार्धं कतमः स केतुः।२२॥
यो अस्य विश्वजन्मन ईशे विश्वस्य चेष्टतः।
अन्येषु क्षिप्रधन्वने तस्मै प्राण नमोस्तु ते।२३॥
यो अस्य सर्वजन्मन ईशे सर्वस्य चेष्टतः।
अतन्द्रो ब्रह्मणा धीराः प्राणो मानुम तिष्ठतु।२४॥
ऊर्धवः सुप्तेषुम जागार ननु तिर्यङ्क नि पद्यते।
न सुप्तमस्य सुप्तेष्वनुम शुश्राव कश्चन।२५॥
प्राण माँ मत्पर्यावृतो न मदन्यो भविष्यसि।
अपाम् गर्भमिव जीव से प्राण बन्धनामि त्वा मयि।२६॥
Hanuman Sathika हनुमान साठिका ★
हनुमान चालीसा की तरह 'हनुमान साठिका' भी प्रमाणित स्तोत्र है। इसका नित्य पाठ करने से जीवन भर संकटों का सामना नहीं करना पड़ता। सभी विपत्तियां बाधाएं दूर हो जाती है।
हनुमान साठिका
।।चौपाइयां।।
जय जय जय हनुमान अडंगी। महावीर विक्रम बजरंगी।।
जय कपीश जय पवन कुमारा। जय जगबन्दन सील अगारा।।
जय आदित्य अमर अबिकारी। अरि मरदन जय-जय गिरधारी।।
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा। जय-जयकार देवतन कीन्हा।।
बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा। सुर मन हर्ष असुर मन पीरा।।
कपि के डर गढ़ लंक सकानी। छूटे बंध देवतन जानी।।
ऋषि समूह निकट चलि आये। पवन तनय के पद सिर नाये।।
बार-बार अस्तुति करि नाना। निर्मल नाम धरा हनुमाना।।
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना। दीन्ह बताय लाल फल खाना।।
सुनत बचन कपि मन हर्षाना। रवि रथ उदय लाल फल जाना।।
रथ समेत कपि कीन्ह अहारा। सूर्य बिना भए अति अंधियारा।।
विनय तुम्हार करै अकुलाना। तब कपीस की अस्तुति ठाना।।
सकल लोक वृतान्त सुनावा। चतुरानन तब रवि उगिलावा।।
कहा बहोरि सुनहु बलसीला। रामचन्द्र करिहैं बहु लीला।।
तब तुम उन्हकर करेहू सहाई। अबहिं बसहु कानन में जाई।।
असकहि विधि निजलोक सिधारा। मिले सखा संग पवन कुमारा।।
खेलैं खेल महा तरु तोरैं। ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं।।
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई। गिरि समेत पातालहिं जाई।।
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा। निरखति रहे राम मगु आसा।।
मिले राम तहं पवन कुमारा। अति आनन्द सप्रेम दुलारा।।
मनि मुंदरी रघुपति सों पाई। सीता खोज चले सिरु नाई।।
सतयोजन जलनिधि विस्तारा। अगम अपार देवतन हारा।।
जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा। लांघि गये कपि कहि जगदीशा।।
सीता चरण सीस तिन्ह नाये। अजर अमर के आसिस पाये।।
रहे दनुज उपवन रखवारी। एक से एक महाभट भारी।।
तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा। दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा।।
सिया बोध दै पुनि फिर आये। रामचन्द्र के पद सिर नाये।
मेरु उपारि आप छिन माहीं। बांधे सेतु निमिष इक मांहीं।।
लछमन शक्ति लागी उर जबहीं। राम बुलाय कहा पुनि तबहीं।।
भवन समेत सुषेन लै आये। तुरत सजीवन को पुनि धाये।।
मग महं कालनेमि कहं मारा। अमित सुभट निसिचर संहारा।।
आनि संजीवन गिरि समेता। धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता।।
फनपति केर सोक हरि लीन्हा। वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा।।
अहिरावण हरि अनुज समेता। लै गयो तहां पाताल निकेता।।
जहां रहे देवि अस्थाना। दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना।।
पवनतनय प्रभु कीन गुहारी। कटक समेत निसाचर मारी।।
रीछ कीसपति सबै बहोरी। राम लषन कीने यक ठोरी।।
सब देवतन की बन्दि छुड़ाये। सो कीरति मुनि नारद गाये।।
अछयकुमार दनुज बलवाना। कालकेतु कहं सब जग जाना।।
कुम्भकरण रावण का भाई। ताहि निपात कीन्ह कपिराई।।
मेघनाद पर शक्ति मारा। पवन तनय तब सो बरियारा।।
रहा तनय नारान्तक जाना। पल में हते ताहि हनुमाना।।
जहं लगि भान दनुज कर पावा। पवन तनय सब मारि नसावा।
जय मारुत सुत जय अनुकूला। नाम कृसानु सोक सम तूला।।
जहं जीवन के संकट होई। रवि तम सम सो संकट खोई।।
बन्दि परै सुमिरै हनुमाना। संकट कटै धरै जो ध्याना।।
जाको बांध बामपद दीन्हा। मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा।।
सो भुजबल का कीन कृपाला। अच्छत तुम्हें मोर यह हाला।।
आरत हरन नाम हनुमाना। सादर सुरपति कीन बखाना।।
संकट रहै न एक रती को। ध्यान धरै हनुमान जती को।।
धावहु देखि दीनता मोरी। कहौं पवनसुत जुगकर जोरी।।
कपिपति बेगि अनुग्रह करहु। आतुर आइ दुसइ दुख हरहु।।
राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया। जवन गुहार लाग सिय जाया।।
यश तुम्हार सकल जग जाना। भव बन्धन भंजन हनुमाना।।
यह बन्धन कर केतिक बाता। नाम तुम्हार जगत सुखदाता।।
करौ कृपा जय जय जग स्वामी। बार अनेक नमामि नमामी।।
भौमवार कर होम विधाना। धूप दीप नैवेद्य सुजाना।।
मंगल दायक को लौ लावे। सुन नर मुनि वांछित फल पावे।।
जयति जयति जय जय जग स्वामी। समरथ पुरुष सुअन्तरजामी।।
अंजनि तनय नाम हनुमाना। सो तुलसी के प्राण समाना।।
।।दोहा।।
जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान।।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण।।
बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान।।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण।।
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि।।
।।सवैया।।
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।
9/9/2023 • 13 minutes, 37 seconds
Sankatmochak Manglik Jain Mantra संकटमोचक मांगलिक जैन मन्त्र 108 times
Sankatmochak Manglik Jain Mantra संकटमोचक मांगलिक जैन मन्त्र
★ ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
ॐ हं णमो आयरियाणं
ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं
ॐ ह्र: णमो लोए सव्व-साहूणं ★
सुख-शांति दायक संकट मोचक मांगलिक (विशिष्ट मंगल मंत्र) 48 दिनों तक लगातार सुनने से सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
9/9/2023 • 35 minutes, 37 seconds
Sankatmochan Hanumanashtak संकटमोचन हनुमानाष्टक
संकटमोचन हनुमानाष्टक ◆
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों I
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो I
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो I को - १
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो I
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो I को - २
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I को - ३
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो I
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I को - ४
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो I
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो I को - ५
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो I
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो I को - ६
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो I
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को - ७
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो I
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो I को - ८
दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर I
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर II
9/6/2023 • 5 minutes, 37 seconds
Shri Mahavir Panch Kalyanak Puja श्री महावीर पंचकल्याणक पूजा
Shri Mahavir Panch Kalyanak Puja श्री महावीर पंचकल्याणक पूजा ★
मोहि राखो हो सरना, श्रीवर्धमान जिनरायजी , मोहि राखो हो सरना
गरभ साढ़ सिट छटलियो थिति, त्रिशला उर अघ-हरना |
सुर सुरपति तित सेव करें नित, मैं पूजों भव-तरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लषष्ठयां गर्भकल्याणप्रप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जनम चैत सित तेरस के दिन, कुंडलपुर कन-वरना |
सुरगिरी सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भव हरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्मकल्याणप्रप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आरचना|
नृप-कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तप:कल्याणप्रप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुकल दशैं वैशाख दिवस अरि, घाति चतुक छय करना |
केवल लहि भवि भव-सर तारे, जजों चरन सुख भरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
कार्तिक श्याम अमावस शिव-तिय, पावापुर तैं वरना |
गण-फनि-वृन्द जजैं तति बहुविधि, मैं पूजौं भय-हरना ||
मोहि राखो हो सरना
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षकल्याणप्राप्ताय जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
Tilak (Teeka) Application Mantra तिलक (टीका) लगाने का मन्त्र
Tilak (Teeka) Application Mantra तिलक (टीका) लगाने का मन्त्र ◆
भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा शायद ही कहीं प्रचलित हो। तिलक का अर्थ है पूजा के बाद माथे पर लगाया जानेवाला निशान । यह हिन्दू रीति रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है। उत्तर भारत में आज भी तिलक आरती के साथ आदर सत्कार स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।
तिलक करते समय इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है
★ केशवानन्त गोविन्द बाराह पुरूषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्।।
यस्मिन्निदं जगद्शेषमशेष मूर्ती ।
रज्जवां भुजंगमइव प्रतिभासितं वै ।।
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं लोकत्रयविभूषणम् ।
प्रातः काले पठेद्यस्तु स गच्छेत्परमं पदम् ।। ★
तिलक हमेशा भौंहो के बीच 'आज्ञाचक्र' भ्रुकुटी पर किया जाता है जो कि चेतना केंद्र भी कहलाता है एवं हमारे चिंतन-मनन का स्थान है , यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। आम तौर पर चंदन, कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाने का विधान है।
सनातन धर्म में तिलक धारण करने का बड़ा महत्व है। तिलक मस्तक, कंठ, भुजाओं, हृदय और नाभि पर लगाने का नियम है, लेकिन अन्य अंगों पर भले ही न लगाएं पर मस्तक के मध्य में अवश्य लगाना चाहिए।
आमतौर से तिलक अनामिका द्वारा लगाया जाता है। तिलक संग चावल लगाने से लक्ष्मी को आकर्षित करने का और ठंडक व सात्विकता प्रदान करने का निमित छुपा हुआ होता हैं। अतः जानकारों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को तिलक ज़रूर लगाना चाहिए।
तिलक लगवाते समय सिर पर हाथ इसलिए रखते हैं कि सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्रित हो, साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो । तिलक में हाथ की चारों अंगूलियों और अंगूठे का एक विशेष महत्व है , अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है, मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है ।
अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है जबकि तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है । ज्योतिषों के अनुसार अनामिका व अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं । अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है । यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है । अंगूठा हाथ में शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है।
9/4/2023 • 4 minutes, 7 seconds
Ashtadash Shakti Peetha Stotram अष्टादश शक्ति पीठ स्तोत्र
Kalava Bandhan Mantra कलावा बन्धन मन्त्र ◆
हिंदू धर्म के ग्रंथों में पूजा से जुड़ी ऐसे कई नियमों का वर्णन है, जिनका हर तरह की पूजा व धार्मिक कार्य में ध्यान रखना अनिवार्य माना जाता है। इन्हीं में से एक नियम कलावे यानि मौली से संबंधित है, जिसे हम रक्षा सूत्र भी कहते हैं। पूजा में जितना महत्व तिलक का होता है उतना ही कलावे का भी होता है। किसी भी पूजा को बिना कलावा बांधे संपूर्ण नहीं माना जाता। इसके अलावा घर आदि में किसी भी प्रकार के अनुष्ठान में भी रक्षा सूत्र को बांधना बहुत शुभ माना जाता है।
रक्षा सूत्र या मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ आदि के दौरान इसे बांधने की परंपरा तो पहले से ही रही है, पंरतु इसे संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में बांधने की वजह भी है और पौराणिक संबंध भी है।
पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को हमेशा दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए।
तो वहीं शादीशुदा महिलाओं को बाएं हाथ में कलावा बांधने चाहिए।
जब हम मंदिर आदि में पुजारी से कलावा बंधवाते हैं तो वो साथ में मंत्रोच्चारण करते हैं। परंतु हम उस समय इस मंत्र को समझ नहीं पाते। वह मंत्र है
★ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।। ★ इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं।
9/4/2023 • 2 minutes, 11 seconds
Tara Namashtak Stotra तारा नामाष्टक स्तोत्र
Tara Namashtak Stotra तारा नामाष्टक स्तोत्र ★ तारा च तारिणी देवी नागमुण्डविभूषिता ।
ललज्जिह्वा नीलवर्णा ब्रह्मरूपधरा तथा ॥
नागांचितकटी देवी नीलाम्बरधरा परा ॥ नामाष्टकमिदं स्तोत्रं य शृणुयादपि ।
तस्य सर्व्वार्थसिद्धिः स्यात् सत्यं सत्यं महेश्वरि ॥ ★
9/4/2023 • 1 minute, 1 second
Shri Bhaktamar Stotra (Fast recitation) श्री भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत)
Shri Bhaktamar Stotra (Fast recitation) श्री भक्तामर स्तोत्र
9/3/2023 • 7 minutes, 52 seconds
51 Shakti Peetha Stotram 51 शक्ति पीठ स्तोत्रम
मातः परात्परे देवि सर्वज्ञानमयीश्वरि ।
कथ्यतां मे सर्वपीठशक्तिभैरवदेवताः ॥१॥
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि दयाल भक्तवत्सल ।
याभिर्विना न सिध्यन्ति जपसाधनसत्क्रियाः ॥२॥
पञ्चादशेकपीठानि एवं भैरवदेवताः ।
अङ्गप्रत्यङ्गपातेन विष्णुचक्रक्षतेन च
ममाद्यवपुषो देव हिताय त्वयि कथ्यते ॥३॥
ब्रह्मरन्ध्रं हिङ्गुलायां भैरवो भीमलोचनः ।
कोट्टरी सा महादेव त्रिगुणा या दिगम्बरी ॥४॥
करवीरे त्रिनेत्रं मे देवी महिषमर्दिनी ।
क्रोधीशो भैरवस्तत्र सुगन्धायाञ्च नासिका ॥५॥
देवस्त्र्यम्बकनामा च सुनन्दा तत्र देवता ॥६॥ काश्मीरे कण्ठदेशञ्च त्रिसन्ध्येश्वरभैरवः ।
महामाया भगवती गुणातीता वरप्रदा ॥७॥ ज्वालामुख्यां तथा जिह्वा देव उन्मत्तभैरवः ।
अम्बिका सिद्धिदा नाम्नी स्तनं जालन्धरे मम ॥८॥ भीषणो भैरवस्तत्र देवी त्रिपुरमालिनी ॥९॥ हार्दपीठं वैद्यनाथे वैद्यनाथस्तु भैरवः ।
देवता जयदुर्गाख्या नेपाले जानु मे शिव ॥१०॥ कपाली भैरवः श्रीमान् महामाया च देवता ॥११॥ मानसे दक्षहस्तो मे देवी दाक्षायणी हर ।
अमरो भैरवस्तत्र सर्वसिद्धिप्रदायकः ॥१२॥ उत्कले नाभिदेशञ्च विरजाक्षेत्रमुच्यते ।
विमला सा महादेवी जगन्नाथस्तु भैरवः ॥१३॥ गण्डक्यां गण्डपातञ्च तत्र सिद्धिर्न संशयः ।
तत्र सा गण्डकी चण्डी चक्रपाणिस्तु भैरवः ॥१४॥ बहुलायां वामबाहुर्बहुलाख्या च देवता ।
भीरुको भैरवस्तत्र सर्वसिद्धिप्रदायकः ॥१५॥ उज्जयिन्यां कूर्परञ्च माङ्गल्य कपिलाम्बरः
भैरवः सिद्धिदः साक्षाद्देवी मङ्गलचण्डिका ॥१६॥ चट्टले दक्षबाहुर्मे भैरवञ्चन्द्रशेखरः ।
व्यक्तरूपा भगवती भवानी यत्र देवता ।
विशेषतः कलियुगे वसामि चन्द्रशेखरे ॥१७॥ त्रिपुरायां दक्षपादो देवी त्रिपुरसुन्दरी ।
भैरवस्त्रिपुरेशञ्च सर्वाभीष्टप्रदायकः ॥१८॥ त्रिस्रोतायां वामपादो भ्रामरी भैरवेश्वरः ॥१९॥ योनिपीठं कामगिरौ कामाख्या तत्र देवता ।
यत्रास्ते त्रिगुणातीता रक्तपाषाणरूपिणी ॥२०॥ यत्रास्ते माधवः साक्षादुमानन्दोऽथ भैरवः ।
सर्वदा विहरेद्देवी तत्र मुक्तिर्न संशयः ॥२१॥ तत्र श्रीभैरवी देवी तत्र च क्षेत्रदेवता ।
प्रचण्डचण्डिका तत्र मातङ्गी त्रिपुराम्बिका ।
वगला कमला तत्र भुवनेशी सधूमिनी ॥२२॥ एतानि परपीठानि शंसन्ति वरभैरवाः ।
एवं तु देवताः सर्वा एवं तु दश भैरवाः ॥२३॥ सर्वत्र विरला चाहं कामरूपे गृहे गृहे ।
गौरि शिखरमारुह्य पुनर्जन्म न विद्यते ॥२४॥ करतोयां समारम्य यावद्दिक्करवासिनीम् ।
शतयोजनविस्तीर्णं त्रिकोणं सर्वसिद्धिदम् ।
देवा मरणमिच्छन्ति किं पुनर्मानवादयः ॥२५॥ क्षीरग्रामे महामाया भैरवः क्षीरखण्डकः ।
युगद्या सा महामाया दक्षाङ्गुष्ठं पदो मम ॥२६॥ नकुलीशः कालीपीठे दक्षपादाङ्गुली च मे ।
सर्वसिद्धिकरी देवी कालिका तत्र देवता ॥२७॥ अङ्गुलीवृन्दं हस्तस्य प्रयागे ललिता भवः ।
जयन्त्यां वामजङ्घा च जयन्ती क्रमदीश्वरः ॥२८॥ भुवनेशी सिद्धिरूपा किरीटस्था किरीटतः
देवता विमला नाम्नी संवर्त्तो भैरवस्तथा ॥२९॥ वाराणस्यां विशालाक्षी देवता कालभैरवः ।
मणिकर्णीति विख्याता कुण्डलं च मम श्रुतेः ॥३०॥ कन्याश्रमे च पृष्ठं मे निमिषो भैरवस्तथा ।
सर्वाणी देवता तत्र कुरुक्षेत्रे च गुल्फतः ॥३१॥ स्थाणुर्नाम्ना च सावित्री देवता मणिवेदके ।
मणिबन्धे च गायत्री सर्वानन्दस्तु भैरवः ॥३२॥श्रीशैले च मम ग्रीवा महालक्ष्मीस्तु देवता।
भैरवः सम्बरानन्दो देशो देशो व्यवस्थितः ॥३३॥काञ्चीदेशो च कङ्कालो भैरवो रुरुनामकः।
देवता देवगर्भाख्या नितम्बः कालमाधवे ॥३४॥भैरवश्चासिताङ्गश्च देवी काली सुसिद्धिदा।
दृष्टा दृष्टा नमस्कृत्य मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ॥३५॥ कुजवारे भूततिथौ निशार्द्धे यस्तु साधकः।
नत्वा प्रदक्षिणीकृत्य मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ॥३६॥शोणाख्या भद्रसेनस्तु नर्मदाख्ये नितम्बकः।
रामगिरौ स्तनान्यञ्च शिवानी चण्डभैरवः ॥३७॥ वृन्दावने केशजालमुमा नाम्नी च देवता।
भूतेशो भैरवस्तत्र सर्वसिद्धिप्रदायकः ॥३८॥ संहाराख्य ऊर्द्धदन्तो देवीऽनले नारायणी श्रुचौ।
अधोदन्तो महारुद्रो वाराही पञ्चसागरे ॥३९॥ करतोयातटे कर्णे वामे वामनभैरवः। अपर्णा देवता यत्र ब्रह्मरूपाकरोद्भवा ॥४०॥ श्रीपर्वते दक्षगुल्फस्तत्र श्रीसुन्दरी परा।
सर्वसिद्धीश्वरी सर्वा सुन्दरानन्दभैरवः ॥४१॥ कपालिनी भीमरूपा वामगुल्फो विभाषके।
भैरवश्च महादेव सर्वानन्दः शुभप्रदः ॥४२॥ उदरञ्च प्रभासे मे चन्द्रभागा यशस्विनी।
वक्रतुण्डो भैरव ऊर्ध्वोष्ठो भैरवपर्वते ॥४३॥ अवन्ती च महादेवी लम्बकर्णस्तु भैरवः ॥४४॥चिवुके भ्रामरी देवी विकृताक्षो जनस्थाने।
गण्डो गोदावरीतीरे विश्वेशी विश्वमातृका ॥४५॥दण्डपाणिभैरवस्तु वामगण्डे तु राकिणी।
भैरवो वत्सनाभस्तु तत्र सिद्धिर्न संशयः ॥४६॥ रत्नावल्यां दक्षस्कन्धः कुमारी भैरवः शिवः।
मिथिलायामुमा देवी वामस्कन्धो महोदरः ॥४७॥ नलाहाट्यां नलापातो योगीशो भैरवस्तथा।
तत्र सा कालिका देवी सर्वसिद्धिप्रदायिका ॥४८॥कालीघाटे मुण्डपातः क्रोधीशो भैरवस्तथा ।
देवता जयदुर्गाख
9/3/2023 • 19 minutes, 40 seconds
Shatru Uchchatan Mantra शत्रु उच्चाटन मंत्र 24 times
Shatru Uchchatan Mantra शत्रु उच्चाटन मंत्र •
शत्रु के घर से शनिवार या रविवार के दिन एक बोरी ले आये. इस बोरी पर बैठकर दोपहर में
• ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं फट गुरुडाय जापय स्वाहा • इस मंत्र को 24 बार जपकर झाड दे.
ऐसा रोज 3 दिन तक करें. धीरे धीरे शत्रु के घर उच्चाटन होना शुरू हो जाता है. •
8/31/2023 • 4 minutes, 22 seconds
Radha Krishna Stotra राधा कृष्ण स्तोत्र
Radha Krishna Stotra राधा कृष्ण स्तोत्र •
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम्
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥ १ ॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥ २ ॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥ ३ ॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम्
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥ ४ ॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्चयम् । तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥ ५ ॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥ ६ ॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम्
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥ ७ ॥
नानावताराणां सर्वकारणकारणम्
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥ ८ ॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥ ९ ॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम्
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥ १० ॥ •
Samayik Paath सामायिक पाठ ◆
प्रेम भाव हो सब जीवों से, गुणी जनों में हर्ष प्रभो |
करुणा स्तोत्र बहे दुखियों पर, दुर्जन में मध्यस्थ विभो ||1||
यह अनंत बल शील आत्मा, हो शरीर से भिन्न प्रभो | ज्यों होती तलवार म्यान से, वह अनंत बल दो मुझको ||2||
सुख दुःख बैरी बन्धु वर्ग में, कांच कनक में समता हो | वन उपवन प्रासाद कुटी में, नहीं खेद नहीं ममता हो ||3||
जिस सुन्दरतम पथ पर चलकर, जीते मोह मान मन्मथ | वह सुंदर पथ ही प्रभु मेरा, बना रहे अनुशीलन पथ ||4||
एकेंद्रिय आदिक प्राणी की, यदि मैंने हिंसा की हो|
शुद्ध हृदय से कहता हूँ वह, निष्फल हो दुष्कृत्य प्रभो ||5||
मोक्ष मार्ग प्रतिकूल प्रवर्तन, जो कुछ किया कषायों से |
विपथ गमन सब कालुष मेरे, मिट जावे सद्भावों से ||6||
चतुर वैद्य विष विक्षत करता, त्यों प्रभु! मैं भी आदि उपांत |
अपनी निंदा आलोचन से, करता हूँ पापों को शांत ||7||
सत्य अहिंसा अदिक व्रत में भी, मैंने हृदय मलीन किया | व्रत विपरीत प्रवर्तन करके, शीलाचरण विलीन किया ||8||
कभी वासना की सरिता का, गहन सलिल मुझ पर छाया | पी-पीकर विषयों की मदिरा, मुझमें पागलपन आया ||9||
मैंने छली और मायावी, हो असत्य आचरण किया | परनिंदा गाली चुगली जो, मुंह पर आया वमन किया ||10||
निरभिमान उज्ज्वल मानस हो, सदा सत्य का ध्यान रहे | निर्मल जल की सरिता सदृश, हिय में निर्मल ज्ञान बहे ||11||
मुनि चक्री शक्री में हिय में, जिस अनंत का ध्यान रहे |
गाते वेद पुराण जिसे वह, परम देव मम हृदय रहे ||12||
दर्शन ज्ञान स्वभावी जिसने, सब विकार ही वमन किये |
परम ध्यान गोचर परमातम, परम देव मम हृदय रहे ||13||
जो भव दुःख का विध्वंसक है, विश्व विलोकी जिसका ज्ञान | योगी जन के ध्यान गम्य वह, बसे हृदय में देव महान ||14||
मुक्ति मार्ग का दिग्दर्शक है, जनम मरण से परम अतीत|
निष्कलंक त्रैलोक्यदर्शी वह, देव मम हृदय समीप ||15||
निखिल विश्व के वशीकरण वे, राग रहे न द्वेष रहे | शुद्ध अतीन्द्रिय ज्ञानस्वरूपी, परम देव मम हृदय रहे ||16||
देख रहा जो निखिल विश्व को, कर्म कलंक विहीन विचित्र | स्वच्छ विनिर्मल निर्विकार वह, देव करे मम हृदय पवित्र ||17||
कर्म कलंक अछूत न जिसका, कभी छु सके दिव्य प्रकाश |
मोह तिमिर का भेद चला जो, परम शरण मुझको वह आप्त ||18||
जिसकी दिव्य ज्योति के आगे, फीका पड़ता सूर्य प्रकाश |
स्वयं ज्ञानमय स्व-पर प्रकाशी, परम शरण मुझको वह आप्त ||19||
जिसके ज्ञान रूप दर्पण में, स्पष्ट झलकते सभी पदार्थ | आदि अंत से रहित शांत शिव, परम शरण मुझको वह आप्त ||20||
जैसे अग्नि जलाती तरु को, तैसे नष्ट हुए स्वयमेव | भय विषाद चिंता नहीं जिनको, परम शरण मुझको वह देव ||21||
तृण चौकी शिल शैल शिखर नहीं, आत्म समाधि के आसन |
संस्तर, पूजा, संघ-सम्मिलन, नहीं समाधि के आसन ||22||
इष्ट वियोग अनिष्ट योग में, विश्व मनाता है मातम |
हेय सभी हैं विषय वासना, उपादेय निर्मल आतम ||23||
बाह्य जगत कुछ भी नहीं मेरा, और न बाह्य जगत का मैं |
यह निश्चय कर छोड़ बाह्य को, मुक्ति हेतु नित स्वस्थ रमें ||24||
अपनी निधि तो अपने में है, बाह्य वस्तु में व्यर्थ प्रयास | जग का सुख तो मृग तृष्णा है, झूठे हैं उसके पुरुषार्थ ||25||
अक्षय है शाश्वत है आत्मा, निर्मल ज्ञान स्वभावी है |
जो कुछ बाहर है, सब पर है, कर्माधीन विनाशी है ||26||
तन से जिसका ऐक्य नहीं है, सुत तिय मित्रों से कैसे | चर्म दूर होने पर तन से, रोम समूह कैसे रहे ||27||
महाकष्ट पाता जो करता, पर पदार्थ जड़ देह संयोग |
मोक्ष महल का पथ है सीधा, जड़-चेतन का पूर्ण वियोग ||28||
जो संसार पतन के कारण, उन विकल्प जालों को छोड़ |
निर्विकल्प निर्द्वन्द आत्मा, फिर-फिर लीन उसी में हो ||29||
स्वयं किये जो कर्म शुभाशुभ, फल निश्चय ही वे देते |
करे आप, फल देय अन्य तो स्वयं किये निष्फल होते ||30||
अपने कर्म सिवाय जीव को, कोई न फल देता कुछ भी |
“पर देता है” यह विचार तज स्थिर हो, छोड़ प्रमादी बुद्धि ||31||
निर्मल, सत्य, शिवं सुंदर है, अमित गति वह देव महान | शाश्वत निज में अनुभव करते, पाते निर्मल पद निर्वाण ||32||
इन बत्तीस पदों से कोई, परमातम को ध्याते हैं | साँची सामायिक को पाकर, भवोदधि तर जाते हैं ||33||
8/31/2023 • 11 minutes, 57 seconds
Bhakt Manorath Siddhipradam Ganesh Stotram भक्त मनोरथ सिद्धिप्रदं गणेश स्तोत्रम्
Bhakt Manorath Siddhipradam Ganesh Stotram भक्त मनोरथ सिद्धिप्रदं गणेश स्तोत्रम् ★
enu
भक्त मनोरथ सिद्धिप्रदं गणेश स्तोत्र
Table of Contents
॥ भक्तमनोरथसिद्धिप्रदं गणेशस्तोत्रम् ॥
श्री गणेशाय नमः
। स्कन्द उवाच ।
नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे ।
असम्प्रज्ञातमूर्ध्ने ते तयोर्योगमयाय च ॥ १॥
वामाङ्गभ्रान्तिरूपा ते सिद्धिः सर्वप्रदा प्रभो ।
भ्रान्तिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके ॥ २॥
मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञितः ।
तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितोऽसि नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचकः ।
तयोर्योगे हि गणपो नाम तुभ्यं नमो नमः ॥ ४॥
चतुर्विधं जगत्सर्वं ब्रह्म तत्र तदात्मकम् ।
हस्ताश्चत्वार एवं ते चतुर्भुज नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
स्वसंवेद्यं च यद्ब्रह्म तत्र खेलकरो भवान् ।
तेन स्वानन्दवासी त्वं स्वानन्दपतये नमः ॥ ६॥
द्वंद्वं चरसि भक्तानां तेषां हृदि समास्थितः ।
चौरवत्तेन तेऽभूद्वै मूषको वाहनं प्रभो ॥ ७॥
जगति ब्रह्मणि स्थित्वा भोगान्भुंक्षि स्वयोगगः ।
जगद्भिर्ब्रह्मभिस्तेन चेष्टितं ज्ञायते न च ॥ ८॥
चौरवद्भोगकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम् ।
मूषको मूषकारूढो हेरम्बाय नमो नमः ॥ ९॥
किं स्तौमि त्वां गणाधीश योगशान्तिधरं परम् ।
वेदादयो ययुः शान्तिमतो देवं नमाम्यहम् ॥ १०॥
इति स्तोत्रं समाकर्ण्य गणेशस्तमुवाच ह ।
वरं वृणु महाभाग दास्यामि दुर्लभं ह्यपि ॥ ११॥
त्वया कृतमिदं स्तोत्रं योगशान्तिप्रदं भवेत् ।
मयि भक्तिकरं स्कंद सर्वसिद्धिप्रदं तथा ॥ १२॥
यं यमिच्छसि तं तं वै दास्यामि स्तोत्रयंत्रितः ।
पठते शृण्वते नित्यं कार्तिकेय विशेषतः ॥ १३॥
। इति श्रीमुद्गलपुराणन्तर्वर्ति भक्त मनोरथ सिद्धिप्रदं गणेश स्तोत्र समाप्तम् ।
8/30/2023 • 5 minutes, 42 seconds
Chitra Devi Mantra चित्रा देवी मंत्र
Chitra Devi Mantra चित्रा देवी मंत्र
• चित्राम संतत कमलवदना, अम्बर अलंकृतां ।
चितृपाम परदेवताम, स्मित मुखीम चिन्ताकुलध्वंशिनी । अद्वैताम अमृतवर्षिणीम, हरिहर ब्रह्मादि देव वन्दिताम ।
सत्याम सामज राजमंतगमनाम, सर्वेश्वरी भावगे ।
ॐ चीत्रागै नमः, सर्व शुभ करत्त्यै नमः ।।
•
चित्रा देवी मंत्र को ग्यारस अर्थात् एकादशी के दिन सुनना चाहिए |
8/30/2023 • 1 minute, 9 seconds
Haridra Ganesh Kavacham हरिद्रा गणेश कवचम्
Haridra Ganesh Kavacham हरिद्रा गणेश कवचम् •
माता के दशों महाविद्याओं रूपों के अलग-अलग भैरव तथा गणेश हैं। श्री बगलामुखी माता के गणेश श्री हरिद्रा गणेश हैं। हरिद्रा गणेश की पूजा, अपने शत्रु को परवर्तित कर उसे वशीभूत करने हेतु प्रसन्न किया जाता है। तथा श्री हरिद्रा गणेश की पूजा माता बगलामुखी की साधना के साथ ही की जाती है। •
॥ अथ हरिद्रा गणेश कवच ॥
• ईश्वरउवाच:
• शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ॥१॥
अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् ।
सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ २॥
ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि ।
सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ ३॥
गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः ।
गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ ४॥
जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा ।
विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ ५॥
गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम ।
विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ ६॥
गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके ।
लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ ७॥
व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा ।
जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ ८॥
हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः ।
य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ ९॥
कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ १०॥
सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।
सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ ११॥
ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः ।
पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥ १२॥
धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।
समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥ १३॥
हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले ।
किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥ १४॥
॥ • इति विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥
Rakshabandhan Mantra रक्षाबंधन मन्त्र ★
रक्षा बंधन का त्योहार भाइयों और बहनों के बीच मौजूद अटूट और अविनाशी प्रेम को समर्पित है। कई साल पहले से यह पर्व मनाया जाता रहा है। इस त्योहार का उल्लेख महाभारत, भविष्य पुराण और मुगल काल के इतिहास में भी मिलता है। धर्म ग्रंथों में कई जगहों पर यह भी उल्लेख मिलता है कि जब भी किसी व्यक्ति की कलाई पर कोई रक्षा/पवित्र धागा बांधा जाता है, तो उसी क्षण जातक को नीचे दिए गए मंत्र का जाप करना चाहिए। यह जीवन के सभी क्षेत्रों में अधिक से अधिक प्रगति और सफलता प्राप्त करने में मदद करता है। रक्षाबंधन के त्योहार के दौरान, बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) भी बांधती है। बहनें पूजा की थाली में इन सामग्री को जरूर शामिल करें। जिसमें राखी, रोली, चावल, आरती के लिए दीपक और मिठाई हो। मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करते समय भाई की कलाई पर राखी बांधने से भाई-बहन का रिश्ता मजबूत होता है और भाई को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। आइए जानते हैं इस दिव्य मंत्र के बारे में।
★ ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:,
तेन त्वामभि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ★
अर्थ- इस मन्त्र का अर्थ है कि "जो रक्षा धागा परम कृपालु राजा बलि को बाँधा गया था, वही पवित्र धागा मैं तुम्हारी कलाई पर बाँधता हूँ, जो तुम्हें सदा के लिए विपत्तियों से बचाएगा"।
भाई की कलाई पर रक्षा धागा बांध जाए उसके बाद भी को वचन लेना चाहिए कि "मैं उस पवित्र धागे की बहन के दायित्व की कसम खाता हूं, मैं आपकी हर परेशानी और विपत्ति से हमेशा रक्षा करूंगा।
8/29/2023 • 9 minutes, 51 seconds
Shri Narayana Stotram श्री नारायण स्तोत्रम्
Shri Narayana Stotram श्री नारायण स्तोत्रम् •
नारायण नारायण जय गोविंद हरे ॥
नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥ •
करुणापारावारा वरुणालयगम्भीरा ॥
घननीरदसंकाशा कृतकलिकल्मषनाशा ॥ यमुनातीरविहारा धृतकौस्तुभमणिहारा ॥
पीताम्बरपरिधाना सुरकल्याणनिधाना ॥
मंजुलगुंजाभूषा मायामानुषवेषा ॥
राधाऽधरमधुरसिका रजनीकरकुलतिलका ॥
मुरलीगानविनोदा वेदस्तुतभूपादा ॥
बर्हिनिवर्हापीडा नटनाटकफणिक्रीडा ॥ वारिजभूषाभरणा राजिवरुक्मिणिरमणा ॥
जलरुहदलनिभनेत्रा जगदारम्भकसूत्रा ॥
पातकरजनीसंहर करुणालय मामुद्धर ॥
अधबकक्षयकंसारे केशव कृष्ण मुरारे ॥
हाटकनिभपीताम्बर अभयं कुरु मे मावर ॥
दशरथराजकुमारा दानवमदस्रंहारा ॥
गोवर्धनगिरिरमणा गोपीमानसहरणा ॥
शरयूतीरविहारासज्जनऋषिमन्दारा ॥
विश्वामित्रमखत्रा विविधपरासुचरित्रा ॥
ध्वजवज्रांकुशपादा धरणीसुतस्रहमोदा ॥ जनकसुताप्रतिपाला जय जय संसृतिलीला ॥
दशरथवाग्घृतिभारा दण्डकवनसंचारा ॥
मुष्टिकचाणूरसंहारा मुनिमानसविहारा ॥
वालिविनिग्रहशौर्या वरसुग्रीवहितार्या ॥
मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर ॥
जलनिधिबन्धनधीरा रावणकण्ठविदारा ॥
ताटीमददलनाढ्या नटगुणविविधधनाढ्या ॥
गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन ॥ स्रम्भ्रमसीताहारा साकेतपुरविहारा ॥
अचलोद्घृतिञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर ॥
नैगमगानविनोदा रक्षःसुतप्रह्लादा ॥
भारतियतिवरशंकर नामामृतमखिलान्तर ॥
•
। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं नारायणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
Uchhisht Ganpati Sadhna उच्छिष्ट गणपति साधना ◆
किसी भी साधना में शुचिता का ध्यान रखना परम आवश्यक होता है, लेकिन श्रीगणेश के उच्छिष्ट गणपति स्वरूप की साधना में शुचि-अशुचि का बंधन नहीं है। यह शीघ्र फल प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख आता है कि पुराने समय में गणपति के इस स्वरूप या उच्छिष्ट चाण्डालिनी की साधना करने वाले अल्प भोजन से हजारों लोगों का भंडारा कर देते थे। कृत्या प्रयोग में इससे रक्षा होती है। गणेशजी के इस स्वरूप की पूजा, अर्चना और साधना से उच्च पद और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रास निकालें। ऐसी मान्यता है कि उच्छिष्ट गणपति की आराधना से ही कुबेर को नौ निधियां प्राप्त हुई थीं और विभिषण लंकापति बने थे।
कैसे होती है उच्छिष्ट गणपति की साधना
किसी भी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शुभ मुहूर्त में नीम की जड़ लेकर उससे अंगूठे के आकार की गणेश प्रतिमा बनाएं। रात्रि के प्रथम पहल में लाल वस्त्र पहन कर लाल आसन पर झूठा मुंह करके बैठें, मुख पश्चिम दिशा में होना चाहिए। अब इसी अवस्था में विधिवत रूप से गणेशजी की पूजा करें। उन्हें अक्षत, पुष्प, प्रसाद आदि चढ़ाएं।
उच्छिष्ट गणपति की साधना में साधक का मुंह जूंठा होना चाहिए। जैसे पान, इलायची, सुपारी आदि कोई चीज साधना के समय मुंह में होनी चाहिए। अलग-अलग कामना के लिए अलग-अलग वस्तु का प्रयोग करना चाहिए।
* वशीकरण के लिए लौंग और इलायची का प्रयोग करना चाहिए।
* किसी भी फल की कामना के लिए सुपारी का प्रयोग करना चाहिए।
* अन्न या धन वृद्धि के लिए गुड़ का प्रयोग करना चाहिए।
* सर्वसिद्धि के लिए ताम्बुल का प्रयोग करना चाहिए।
★ विनियोग
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:,
विराट छन्द:, श्री उच्छि गणपति देवता,
मम अभीष्ट (जो भी कामना हो) या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:। ★
तत्पश्चात् लाल चंदन की माला से झूठे मुंह ही
उच्चिष्ठ गणपति मंत्र
★ ॐ नमो हस्ति मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्ठाय स्वाहा ★
का जप करें।
अंत में गणपति को नारियल अर्पित करें और ये मंत्र बोलें
★ गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलि:। ★
Gayatri Mantra गायत्री मन्त्र ★
ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
हिन्दी में भावार्थ
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
मन्त्र जप के लाभ
गायत्री मन्त्र का नियमित रुप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती।
जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिन्ताओं से मुक्ति मिलती है।[1] बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है।
8/24/2023 • 4 minutes, 12 seconds
Shiva Pradosh Stotram शिव प्रदोष स्तोत्रम्
Shiva Pradosh Stotram शिव प्रदोष स्तोत्रम् ★
प्रदोष स्तोत्र स्कान्द पुराण के अन्तर्गतम् से लिया गया हैं ! प्रदोष स्तोत्र पढ़ने से भगवान शिव जी की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है ! प्रदोष व्रत में प्रदोष स्तोत्र का पाठ बहुत लाभदायक होता हैं ! ★
सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रवीमि,
सारं ब्रवीम्युपनिषद्धृदयं ब्रवीमि ।
संसारमुल्बणमसारमवाप्य जन्तोः,
सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा ॥ १ ॥
ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे,
ये नार्चितं शिवमपि प्रणमन्ति चान्ये ।
ये तत्कथां श्रुतिपुटैः न पिबन्ति मूढाः,
ते जन्मजन्मसु भवन्ति नराः दरिद्राः ॥ २ ॥
ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य,
कुर्वन्त्यनन्यमनसोऽङ्घ्रिसरोजपूजाम् ।
नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्र-
सौभाग्यसंपदधिकास्त इहैव लोके ॥ ३ ॥
कैलासशैलभवने त्रिजगज्जनित्रीम्,
गौरीं निवेश्य कनकाञ्चितरत्नपीठे ।
नृत्यं विधातुमभिवाञ्छति शूलपाणौ,
देवाः प्रदोष समये नु भजन्ति सर्वे ॥ ४ ॥
वाग्देवी धृतवल्लकी शतमखो वेणुं दधत् पद्मजः,
तालोन्निद्रकरा रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता ।
विष्णुः सान्द्रमृदङ्गवादनपटुः देवाः समन्तात् स्थिताः,
सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपतिम् ॥ ५ ॥
गन्धर्वयक्षपतगोरगसिद्धसाध्य,
विद्याधरामरवराप्सरसां गणाश्च ।
येऽन्ये त्रिलोकनिलयाः सहभूतवर्गाः,
प्राप्ते प्रदोषसमये हरपार्श्वसंस्थाः ॥ ६ ॥
अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः ।
तस्मिन् महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथाः ॥ ७ ॥
Vishnu Sahasranaam Stotram विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्रम् ◆
श्रीहरि भगवान विष्णु के 1000 नामों (Vishnu 1000 Names) की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम स्तोत्रम (Vishnu Sahasranaam Stotram) के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने वाले व्यक्ति को यश, सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सफलता, आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्त होता है तथा मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
8/23/2023 • 37 minutes, 30 seconds
Marriage Obstacles Removing Mangala Gauri Mantra विवाह बाधानाशक मंगला गौरी मन्त्र 108 times
विष्णु लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च ।।१।।
रुद्र लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति च ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१२।
8/21/2023 • 3 minutes, 41 seconds
Naag Panchami Mantra नाग पंचमी मंत्र 3 times
Naag Panchami Mantra नाग पंचमी मंत्र •
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
•
अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम हो...।
8/20/2023 • 2 minutes, 41 seconds
Nav Naag Stotra नवनाग स्तोत्र
Nav Naag Stotra नवनाग स्तोत्र ■
हिंदू धर्म में विविध जीव-जन्तुओं और पशुओं को देव तुल्य माना गया है। हमारे सभी देवताओं के वाहन पशु या पक्षी ही है। इसके कारण भी उन्हें विशेष स्थान दिया गया है।
इसी कड़ी में सांप या नाग को विशेष महत्व दिया गया है। नाग की हिंदू धर्म में पूजा की मान्यता है।
नाग स्तोत्र नाग देवता के नौ अवतारों के बारे में बताता है। इस स्तोत्र के माध्यम से नाग देवता को उनके सभी नाम के साथ स्तुति कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। नाग स्तोत्र का जप करने से मनुष्य सभी क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है।
इस स्तोत्र में नाग देवता के सभी नाम के साथ उन्हें धन्यवाद दिया गया है, जो पृथ्वी के भार को अपने मणि पर उठाए हुए हैं। इसलिए हम नाग देवता को इस स्तोत्र के माध्यम से धन्यवाद करते हैं।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥1॥
अर्थ:
अनंत, वासुकी, शेषनाग, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र और तक्षक यह नाग देवता के प्रमुख नौ नाम माने गये हैं।
एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः ॥2॥
अर्थ:
जो लोग नित्य ही सायंकाल और विशेष रूप से प्रातःकाल इन नामों का उच्चारण करते हैं।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥3॥
अर्थ:
उन्हें सर्प और विष से कोई भय नहीं रहता तथा उनकी सब जगह विजय होती है, अर्थात सफलता मिलती हैं।
॥ इति श्री नवनाग नाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
8/20/2023 • 1 minute, 9 seconds
Naag Gayatri Mantra 3 times नाग गायत्री मंत्र
Naag Gayatri Mantra 3 times नाग गायत्री मंत्र ◆
ll ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात ll ◆
8/20/2023 • 49 seconds
Haryali Teej Mantra हरयाली तीज मन्त्र 11 times
Haryali Teej Mantra हरयाली तीज मन्त्र ★
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। जनमानस में यह हरियाली तीज, श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज के नाम से भी जानी जाती है। श्रावण मास की तीज में सुहागिन महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए व्रत रखकर शिव-पार्वती का पूजन करती है तथा अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए यह व्रत करती हैं
इस दिन निम्न मंत्र का जाप करना अति फलदायक होता है।
★ गण गौरी शंकरार्धांगि, यथा त्वं शंकर प्रिया।
मां कुरु कल्याणी, कांत कांता सुदुर्लभाम्।। ★
इस मंत्र से भगवान शिव तथा माता पार्वती प्रसन्न होकर तत्काल अपने भक्त को अच्छा वर प्रदान करती है।
8/19/2023 • 3 minutes, 48 seconds
Hanuman Tandav Stotram हनुमान ताण्डव स्तोत्रम्
Hanuman Tandav Stotram हनुमान ताण्डव स्तोत्रम् ★
हनुमान तांडव स्तोत्र सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसके पढ़ने से हर तरह के संकट, रोग, शोक आदि सभी तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाते हैं।
★
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रय अत्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥
Parvati Panchak Stotram पार्वती पंचक स्त्रोत्रम् ★
वह लड़के या लड़कियां विवाह का योग नहीं बनता है, और वह अनेक विफल उपाय करा लेते हैं तो पार्वती पंचक स्त्रोत्र का भोलेनाथ के मंदिर में जाकर हर रोज उसका पाठ करें जिससे उसका विवाह का योग बहुत ही जल्द बनता है। इस पाठ को आप ब्राह्मण के द्वारा भी करवा सकते हैं या फिर खुद महादेव के मंदिर में जाकर कर सकते हैं. अगर आप खुद करते हैं तो उसका ज्यादा फायदा होगा। ★
धराधरेन्द्र नन्दिनी शशंक मालि संगिनी,
सुरेश शक्ति वर्धिनी नितान्तकान्त कामिनी।
निशाचरेन्द्र मर्दिनी त्रिशूल शूल धारिणी,
मनोव्यथा विदारिणी शिव तनोतु पार्वती ।
भुजंग तल्प शामिनी महोग्रकान्त भागिनी,
प्रकाश पुंज दायिनी विचित्र चित्र कारिणी।
प्रचण्ड शत्रुधर्षिणी दया प्रवाह वर्षिणी,
सदा सुभग्य दायिनी शिव तनोतु पार्वती। ।
प्रकृष्ट सृष्टि कारिका प्रचण्ड नृत्य नर्तिका ,
पिनाक पाणिधारिका गिरिश ऋग मालिका।
समस्त भक्त पालिका पीयूष पूर्ण वर्षिका,
कुभाग्य रेखमर्जिका शिव तनोतु पार्वती ।
तपश्चरी कुमारिका जगत्परा प्रहेलिका,
विशुद्ध भाव साधिका सुधा सरित्प्रवाहिका।
प्रयत्न पक्ष पौसिका सदार्धि भाव तोषिका,
शनि ग्रहादि तर्जिका शिव तनोतु पार्वती ।
शुभंकरी शिवंकरी विभाकरी निशाचरी,
नभश्चरी धराचरी समस्त सृष्टि संचरी ।
तमोहरी मनोहरी मृगांक मालि सुन्दरी,
सदोगताप संचरी,शिवं तनोतु पार्वती।।
पार्वती पंचक नित्यमधीयते यत कुमारिका,
दृष्कृतं निखिलं हत्वा वरं प्रप्नोति सुन्दरम।।
Padmavati Sankatmochan Stotra पद्मावती संकट मोचन स्तोत्र ◆
हर कष्ट दूर करता है मां का यह संकटमोचन स्तोत्र
।
मां पद्मावती का यह स्तोत्र प्रत्यक्ष प्रभावी है। इस स्तोत्र का नित्य 40 दिन तक पाठ करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। मां पद्मावती की महिमा बहुत निराली है तथा मां अपने भक्त की हर आशा पूर्ण करती हैं।
◆
।।दोहा।।
देवी मां पद्मावती, ज्योति रूप महान।
विघ्न हरो मंगल करो, करो मात कल्याण।।
।।चौपाई।।
जय-जय-जय पद्मावती माता, तेरी महिमा त्रिभुवन गाता।
मन की आशा पूर्ण करो मां, संकट सारे दूर करो मां।। (2)
तेरी महिमा परम निराली, भक्तों के दुख हरने वाली।
धन-वैभव-यश देने वाली, शान तुम्हारी अजब निराली।। (3)
बिगड़ी बात बनेगी तुम से, नैया पार लगेगी तुम से।
मेरी तो बस एक अरज है, हाथ थाम लो यही गरज है।। (4)
चतुर्भुजी मां हंसवाहिनी, महर करो मां मुक्तिदायिनी।
किस विध पूजूं चरण तुम्हारे, निर्मल हैं बस भाव हमारे।। (5)
मैं आया हूं शरण तुम्हारी, तू है मां जग तारणहारी।
तुम बिन कौन हरे दुख मेरा, रोग-शोक-संकट ने घेरा।। (6)
तुम हो कल्पतरु कलियुग की, तुमसे है आशा सतयुग की।
मंदिर-मंदिर मूरत तेरी, हर मूरत में सूरत तेरी।। (7)
रूप तुम्हारे हुए हैं अनगिन, महिमा बढ़ती जाती निशदिन।
तुमने सारे जग को तारा, सबका तूने भाग्य संवारा।। (8)
हृदय-कमल में वास करो मां, सिर पर मेरे हाथ धरो मां।
मन की पीड़ा हरो भवानी, मूरत तेरी लगे सुहानी।। (9)
पद्मावती मां पद्म-समाना, पूज रहे सब राजा-राणा।
पद्म-हृदय पद्मासन सोहे, पद्म-रूप पद-पंकज मोहे।। (10)
महामंत्र का मिला जो शरणा, नाग-योनी से पार उतरना।
पारसनाथ हुए उपकारी, जय-जयकार करे नर-नारी।। (11)
पारस प्रभु जग के रखवाले, पद्मावती प्रभु पार्श्व उबारे।
जिसने प्रभु का संकट टाला, उसका रूप अनूप निराला।। (12)
कमठ-शत्रु क्या करे बिगाड़े, पद्मावती जहं काज सुधारे।
मेघमाली की हर चट्टानें, मां के आगे सब चित खाने।। (13)
मां ने प्रभु का कष्ट निवारा, जन्म-जन्म का कर्ज उतारा।
पद्मावती दया की देवी, प्रभु-भक्तों की अविरल सेवी।। (14)
प्रभु भक्तों की मंशा पूरे, चिंतामणि सम चिंता चूरे।
पारस प्रभु का जयकारा हो, पद्मावती का झंकारा हो।। (15)
माथे मुकुट भाल सूरज ज्यों, बिंदिया चमक रही चंदा।
अधरों पर मुस्कान शोभती, मां की मूरत नित्य मोहती।। (16)
सुरनर मुनिजन मां को ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे।
मां का जो जयकारा बोले, उनके घर सुख-संपत्ति बोले।। (17)
ॐ ह्रीं श्री क्लीं मंत्र से ध्याऊं, धूप-दीप-नैवेद्य चढ़ाऊं।
रिद्धि-सिद्धि सुख-संपत्ति दाता, सोया भाग्य जगा दो माता।। (18)
मां को पहले भोग लगाऊं, पीछे ही खुद भोजन पाऊं।
मां के यश में अपना यश हो, अंतरमन में भक्ति-रस हो।। (19)
सुबह उठो मां की जय बोलो, सांझ ढले मां की जय बोलो।
जय-जय मां जय-जय नित तेरी, मदद करो मां अविरल मेरी।। (20)
शुक्रवार मां का दिन प्यारा, जिसने पांच बरस व्रत धारा।
उसका काज सदा ही संवरे, मां उसकी हर मंशा पूरे।। (21)
एकासन-व्रत-नियम पालकर, धूप-दीप-चंदन पूजन कर।
लाल-वेश हो चूड़ी-कंगना, फल-श्रीफल-नैवेद्य भेंटना।। (22)
मन की आशा पूर्ण हुए जब, छत्र चढ़ाएं चांदी का तब।
अंतर में हो शुक्रगुजारी, मां का व्रत है मंगलकारी।। (23)
मैं हूं मां बालक अज्ञानी, पर तेरी महिमा पहचानी।
सांचे मन से जो भी ध्यावे, सब सुख भोग परम पद पावे।। (24)
जीवन में मां का संबल हो, हर संकट में नैतिक बल हो।
पाप न होवे पुण्य संजोएं, ध्यान धरें अंतरमन धोएं।। (25)
दीन-दुखी की मदद हो मुझसे, मात-पिता की अदब हो मुझसे।
अंतर-दृष्टि में विवेक हो, घर-संपति सब नेक-एक हो।। (26)
कृपादृष्टि हो माता मुझ पर, मां पद्मावती जरा रहम कर।
भूलें मेरी माफ करो मां, संकट सारे दूर करो मां।। (27)
पद्म नेत्र पद्मावती जय हो, पद्म-स्वरूपी पद्म हृदय हो।
पद्म-चरण ही एक शरण है, पद्मावती मां विघ्न-हरण है।। (28)
।।दोहा।।
पद्म रूप पद्मावती, पारस प्रभु हैं शीष।
'ललित' तुम्हारी शरण में, दो मंगल आशीष।। (29)
पार्श्व प्रभु जयवंत हैं, जिन शासन जयवंत।
पद्मावती जयवंत हैं, जयकारी भगवंत।। (30)
चरण-कमल में 'चन्द्र' का, नमन करो स्वीकार।
भक्तों की अरजी सुनो, वरते मंगलाचार।। (31)
◆
Ekaatmata Stotra एकात्मता स्तोत्र •
एकात्मता स्तोत्र भारत की राष्ट्रीय एकता का उद्बोधक गीत है जो संस्कृत में है। इसमें आदिकाल से लेकर अब तक के भारत के महान सपूतों एवं सुपुत्रियों की नामावलि है जिन्होने भारत एवं महान सनातन सभ्यता के निर्माण और उसकी रक्षा में योगदान दिया। इसके अलावा इसमें आदर्श नारियाँ, धार्मिक पुस्तकें, नदियाँ, पर्वत, पवित्रात्मायें, पौराणिक पुरुष, वैज्ञानिक एवं सामाजिक- धार्मिक प्रवर्तक आदि सबके नामों का उल्लेख है। इसमें सनातन धर्म के सभी महापुरुषों से लेकर प्रकृति की भी वंदना की गई है और ईश्वर भी तो प्रकृति का ही अंग है। •
ॐ सच्चिदानन्दरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने
ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमाङ्गल्यमूर्तये || १ ||
प्रकृतिः पञ्चभूतानि ग्रहा लोकाः स्वरास्तथा
दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुर्वन्तु मङ्गलम्।। २।।
रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्
ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ्यां वन्दे भारतमातरम् || 3 ||
महेन्द्रो मलयः सह्यो देवतात्मा हिमालयः
ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिश्चारावलिस्तथा || ४ ||
गङ्गा सरस्वती सिन्धुर्ब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी
कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी || ५ ||
अयोध्या मथुरा माया काशीकाञ्ची अवन्तिका
वैशाली द्वारिका ध्येया पुरी तक्षशिला गया || ६ ||
प्रयागः पाटलीपुत्रं विजयानगरं महत्
इन्द्रप्रस्थं सोमनाथः तथाSमृतसरः प्रियम् || ७ ||
चतुर्वेदाः पुराणानि सर्वोपनिषदस्तथा
रामायणं भारतं च गीता सद्दर्शनानि च ॥८॥
जैनागमास्त्रिपिटकाः गुरुग्रन्थः सतां गिरः
एषः ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा ॥९॥
अरुन्धत्यनसूया च सावित्री जानकी सती
द्रौपदी कण्णगी गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥१०॥
लक्ष्मीरहल्या चन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा
निवेदिता सारदा च प्रणम्या मातृदेवताः ॥११॥
श्रीरामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः
मार्कण्डेयो हरिश्चन्द्र: प्रह्लादो नारदो ध्रुवः ॥१२॥
हनुमान् जनको व्यासो वसिष्ठश्च शुको बलिः
दधीचिविश्वकर्माणौ पृथुवाल्मीकिभार्गवाः ॥१३॥
भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा
शिविश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तय: ॥१४॥
बुद्धा जिनेन्द्रा गोरक्षः पाणिनिश्च पतञ्जलिः
शङ्करो मध्वनिंबार्कौ श्रीरामानुजवल्लभौ ॥१५॥
झूलेलालोSथ चैतन्यः तिरुवल्लुवरस्तथा
नायन्मारालवाराश्च कंबश्च बसवेश्वरः ॥१६॥
देवलो रविदासश्च कबीरो गुरुनानकः
नरसिस्तुलसीदासो दशमेशो दृढव्रतः ॥१७॥
श्रीमत् शङ्करदेवश्च बन्धू सायणमाधवौ
ज्ञानेश्वरस्तुकारामो रामदासः पुरन्दरः ॥१८॥
बिरसा सहजानन्दो रामानन्दस्तथा महान्
वितरन्तु सदैवैते दैवीं सद्गुणसंपदम् ॥१९॥
भरतर्षिः कालिदासः श्रीभोजो जकणस्तथा
सूरदासस्त्यागराजो रसखानश्च सत्कविः ॥२०॥
रविवर्मा भातखण्डे भाग्यचन्द्रः स भूपतिः
कलावंतश्च विख्याताः स्मरणीया निरन्तरम्॥२१॥
अगस्त्यः कंबुकौण्डिन्यौ राजेन्द्रश्चोलवंशजः
अशोकः पुश्यमित्रश्च खारवेलः सुनीतिमान् ॥२२॥
चाणक्यचन्द्रगुप्तौ च विक्रमः शालिवाहनः
समुद्रगुप्तः श्रीहर्षः शैलेन्द्रो बप्परावलः ॥२३॥
लाचिद्भास्करवर्मा च यशोधर्मा च हूणजित्
श्रीकृष्णदेवरायश्च ललितादित्य उद्बलः ॥२४॥
मुसुनूरिनायकौ तौ प्रतापः शिवभूपतिः
रणजि सिंह इत्येते वीरा विख्यातविक्रमाः ॥२५॥
वैज्ञानिकाश्च कपिलः कणादः सुश्रुतस्तथा
चरको भास्कराचार्यो वराहमिहिरः सुधीः ॥२६॥
नागार्जुनो भरद्वाजः आर्यभट्टो वसुर्बुधः
ध्येयो वेंकटरामश्च विज्ञा रामानुजादयः ॥२७॥
रामकृष्णो दयानन्दो रवीन्द्रो राममोहनः
रामतीर्थोऽरविंदश्च विवेकानन्द उद्यशाः ॥२८॥
दादाभाई गोपबन्धुः तिलको गान्धिरादृताः
रमणो मालवीयश्च श्रीसुब्रह्मण्यभारती ॥२९॥
सुभाषः प्रणवानन्दः क्रान्तिवीरो विनायकः
ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरुः ॥३०॥
संघशक्तिप्रणेतारौ केशवो माधवस्तथा
स्मरणीयाः सदैवैते नवचैतन्यदायकाः ॥३१॥
अनुक्ता ये भक्ताः प्रभुचरणसंसक्तहृदयाः
अनिर्दष्टा वीराः अधिसमरमुद्ध्वस्तरिपवः
समाजोद्धर्तारः सुहितकरविज्ञाननिपुणाः
नमस्तेभ्यो भूयात् सकलसुजनेभ्यः प्रतिदिनम् ॥ ३२॥
इदमेकात्मतास्तोत्रं श्रद्धया यः सदा पठेत्
स राष्ट्रधर्मनिष्ठावान् अखण्डं भारतं स्मरेत् ॥३३॥ •
8/14/2023 • 12 minutes, 20 seconds
Sampurna Vishwaratnam सम्पूर्ण विश्वरत्नम्
Sampurna Vishwaratnam सम्पूर्ण विश्वरत्नम् ◆
सम्पूर्णविश्वरत्नं खलु भारतं स्वकीयम् ।
पुष्पं वयं तु सर्वे खलु देश वाटिकेयं ॥
सर्वोच्च पर्वतो यो गगनस्य भाल चुम्बी ।
सः सैनिकः सुवीरः प्रहरी च सः स्वकीयः ॥
क्रोडे सहस्रधारा प्रवहन्ति यस्य नद्यः ।
उद्यानमाभिपोष्यम् भुविगौरवं स्वकीयम् ॥
धर्मस्य नास्ति शिक्षा कटुता मिथो विधेया ।
एके वयं तु देशः खलु भारतं स्वकीयम् ॥
सम्पूर्णविश्वरत्नं खलु भारतं स्वकीयम् ।
सम्पूर्णविश्वरत्नम् ।
◆
8/14/2023 • 1 minute, 52 seconds
Shri Parshvanath Stotra श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र
Shri Parshvanath Stotra श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र ◆
नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीश, शतेन्द्रं सु पुजै भजै नाय शीशं ।
मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमे हाथ जोड़ि, नमो देव देवं सदा पार्श्वनाथं ।।१।।
गजेन्द्र मृगेन्द्रं गह्यो तू छुडावे, महा आगतै नागतै तू बचावे ।
महावीरतै युद्ध में तू जितावे, महा रोगतै बंधतै तू छुडावे ।।२ ।।
दुखी दुखहर्ता सुखी सुखकर्ता, सदा सेवको को महा नन्द भर्ता।
हरे यक्ष राक्षस भूतं पिशाचं, विषम डाकिनी विघ्न के भय अपाचे । ।३ ।।
दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने, अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने।
महासंकटों से निकारे विधाता, सबे सम्पदा सर्व को देहि दाता।।४
महाचोर को वज्र को भय निवारे, महापौर को पूजते उबारे ।
तू महाक्रोध की अग्नि को मेघधारा, महालोभ शैलेश को वज्र मारा।।५ ।।
महामोह अंधेर को ज्ञान भानं, महा कर्म कांतार को धौ प्रधानं।
किये नाग नागिन अधो लोक स्वामी, हरयो मान दैत्य को हो अकामी।।६।।
तुही कल्पवृक्षं तुही कामधेनं, तुही दिव्य चिंतामणि नाग एनं ।
पशु नर्क के दुःखतै तू छुडावे, महास्वर्ग में मुक्ति में तू बसावे|।७।।
करे लोह को हेम पाषण नामी, रटे नाम सो क्यों ना हो मोक्षगामी ।
करै सेव ताकी करै देव सेवा, सुने बैन सोही लहे ज्ञान मेवा ।।८ ||
जपै जाप ताको नहीं पाप लागे, धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे ।
बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे, तुम्हारी कृपातै सरै काज मेरे।।६ ।।
गणधर इंद्र न कर सके, तुम विनती भगवान।
द्यानत प्रीति निहार के, कीजे आप सामान ।।१०।।
8/14/2023 • 4 minutes, 52 seconds
Shiv Swarnamala Stuti शिव स्वर्णमाला स्तुति
अथ कथमपि मद्रसनां त्वद्गुणलेशैर्विशोधयामि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १ ॥
आखण्डलमदखण्डनपण्डित तण्डुप्रिय चण्डीश विभो ।।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २ ॥
इभचर्माम्बर शम्बररिपुवपुरपहरणोज्ज्वलनयन विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३ ॥
ईश गिरीश नरेश परेश महेश बिलेशयभूषण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४ ॥
उमया दिव्यसुमंगलविग्रहयालिंगितवामांग विभॊ ।
साम्ब सदाशिव शंभॊ शंकर शरणं मॆ तव चरणयुगम् ॥ ५ ॥
ऊरीकुरुमामज्ञमनाथं दूरीकुरु मे दुरितं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ६ ॥
ऋषिवरमानसहंस चराचरजननस्थितिलयकारण ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ७ ॥
ॠक्षाधीशकिरीट महोक्षारूढ विधृतरुद्राक्ष विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ८ ।।ऌवर्णद्वन्द्वमवृन्तसुकुसुममिवाङ्घ्रौ तवार्पयामि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ९ ॥
एकं सदिति श्रुत्या त्वमेव सदासीत्युपास्महे मृड भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १० ॥
ऐक्यं स्वभक्तेभ्यो वितरसि विश्वंभरोऽत्र साक्षी भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ११ ॥
मिति तव निर्देष्ट्री मायास्माकं मृडोपकर्त्री भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १२ ॥
औदास्यं स्फुटयति विषयेषु दिगम्बरता च तवैव विभो
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १३ ॥
अंतः करणविशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम्!! १४ ॥
अस्तोपाधिसमस्तव्यस्तैर्रूपैर्जगन्मयोऽसि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १५ ॥
करुणावरुणालय मयि दास उदासस्तवोचितॊ न हि भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १६ ॥
खलसहवासं विघटय घटय सतामेव संगमनिशम् ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १७ ॥
गरलं जगदुपकृतये गिलितं भवता समोऽस्ति कोऽत्र विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १८ ॥
घनसारगौरगात्र प्रचुरजटाजूटबद्धगंग विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १९ ॥
ज्ञप्तिः सर्वशरीरेष्वखण्डिता या विभाति सा त्वं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २० ॥
चपलं मम हृदयकपिं विषयद्रुचरं दृढं बधान विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभॊ शंकर शरणं मॆ तव चरणयुगम् ॥ २१ ॥
छाया स्थाणोरपि तव तापं नमतां हरत्यहो शिव भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २२ ॥
जय कैलासनिवास प्रमथगणाधीश भूसुरार्चित भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २३ ॥
झणुतकझङ्किणुझणुतत्किटतकशब्दैर्नटसि महानट भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २४ ॥
ज्ञानं विक्षेपावृतिरहितं कुरु मे गुरुस्त्वमेव विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २५ ॥
टङ्कारस्तव धनुषो दलयति हृदयं द्विषामशनिरिव भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २६ ॥
ठाकृतिरिव तव माया बहिरन्तः शून्यरूपिणी खलु भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २७ ॥
डम्बरमंबुरुहामपि दलयत्यनघं त्वदङ्घ्रियुगलं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २८ ॥
ढक्काक्षसूत्रशूलद्रुहिणकरोटीसमुल्लसत्कर भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २९ ॥
णाकारगर्भिणी चेच्छुभदा ते शरगतिर्नृणामिह भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३०॥
तव मन्वतिसंजपतः सद्यस्तरति नरो हि भवाब्धिं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३१॥
थूत्कारस्तस्य मुखे भूयात्ते नाम नास्ति यस्य विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३२॥
दयनीयश्च दयालुः कोऽस्ति मदन्यस्त्वदन्य इह वद भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३३॥
धर्मस्थापनदक्ष त्र्यक्ष गुरो दक्षयज्ञशिक्षक भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३४॥
ननु ताडितोऽसि धनुषा लुब्धक धिया त्वं पुरा नरेण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३५॥
परिमातुं तव मूर्तिं नालमजस्तत्परात्परोऽसि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३६॥
फलमिह नृतया जनुषस्त्वत्पदसेवा सनातनेश विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३७॥
बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुणरुचितां चिरं प्रदेहि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥३८॥
भगवन् भर्ग भयापह भूतपते भूतिभूषिताङ्ग विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३९।।
महिमा तव नहि माति श्रुतिषु हिमानीधरात्मजाधव भो।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम ॥४०॥
यमनियमादिभिरङ्गैर्यमिनो हृदये भजन्ति स त्वं भो।
सांब सदाशिव शंभो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥४१॥
8/13/2023 • 21 minutes, 50 seconds
Ardhnarishwar Stotram अर्धनारीश्वर स्तोत्रम्
Ardhnarishwar Stotram अर्धनारीश्वर स्तोत्रम् ★
1- चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
2- कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारज:पुंजविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
3- चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
4- विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
5- मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
6- अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
7- प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
8- प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
8/13/2023 • 5 minutes, 17 seconds
Jain Vighna Haran Mantra जैन विघ्नहरण मन्त्र 108 times
Jain Vighna Haran Mantra जैन विघ्नहरण मन्त्र
■ ॐ हीं श्री अ सि आ उ सा मम सर्वविघ्न शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ।। ■
8/13/2023 • 17 minutes, 32 seconds
Shri Hanumat Stavan श्री हनुमत स्तवन
Shri Hanumat Stavan श्री हनुमत् स्तवन
★
प्रनवऊं पवन कुमार खल बन पावक ग्यान घन।
विज्ञापन जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,
रघुपतिप्रियं भक्तं वातंजातं नमामि।
गोष्पदीकृत वारिशं मशकीकृत राक्षसम्। रामायण महामालारत्नं वन्दे नीलात्मजं।
अंजनानंदनंवीरं जानकीशोकनाशनं। कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लंकाभयंकरम्।
उलंघ्यसिन्धों: सलिलं सलिलं य: शोकवह्नींजनकात्मजाया:।
तादाय तैनेव ददाहलंका
नमामि तं प्राञ्जलिंराञ्नेयम।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं
काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।
पारिजाततरूमूल वासिनं
भावयामि पवमाननंदनम्।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं
तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिंलम।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं
मारुतिं राक्षसान्तकाम्।
★
हिंदी अर्थ ★
मैं उन पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं, जो दुष्ट रूपी वन में अर्थात राक्षस रूपी वन में अग्नि के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। जिनके हृदय रूपी घर में धनुषधारी श्री राम निवास करते हैं।
अतुलीय बल के निवास, हेमकूट पर्वत के समान शरीर वाले राक्षस रूपी वन के लिए अग्नि के समान, ज्ञानियों के अग्रणी रहने वाले, समस्त गुणों के भंडार, वानरों के स्वामी, श्री राम के प्रिय भक्त वायुपुत्र श्री हनुमान जी को नमस्कार करता हूं।
समुद्र को गाय के खुर के समान संक्षिप्त बना देने वाले, राक्षसों को मच्छर जैसा बनाने वाले, रामायण रूपी महती माला का रत्न वायुनंदन हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।
माता अंजनी को प्रसन्न रखने वाले , माता सीता जी के शोक को नष्ट करने वाले, अक्ष को मारने वाले, लंका के लिए भंयकर रूप वाले वानरों के स्वामी को मैं प्रणाम करता हूं।
जिन्होंने समुद्र के जल को लीला पूर्वक( खेल-खेल में) लांघ कर माता सीता जी की शोकरूपी अग्नि को लेकर उस अग्नि से ही लंका दहन कर दिया, उन अंजनी पुत्र को मैं हाथ जोड़ कर नमस्कार करता हूं।
मन के समान गति वाले, वायु के समान वेग वाले, इंद्रियों के जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वायुपुत्र, वानरों के समूह के प्रमुख, श्री राम के दूत की शरण प्राप्त करता हूं।
अंजना के पुत्र, गुलाब के समान मुख वाले, हेमकुट पर्वत समान सुंदर शरीर वाले, कल्पवृक्ष की जड़ पर रहने वाले, पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं याद करता हूं।
जहां- जहां श्री रामचंद्र जी का कीर्तन होता है वहां-वहां मस्तक पर अंजलि बांधे हुए आनंदाश्रु से पूरित नेत्रों वाले, राक्षसों के काल वायुपुत्र (श्री हनुमान जी) को नमस्कार करें।
8/13/2023 • 3 minutes, 24 seconds
Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्
श्रीमद्भागवतान्तर्गतगजेन्द्र कृत भगवान का स्तवन
श्री शुक उवाच
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम॥
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम॥
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितंक्कचिद्विभातं क्क च तत्तिरोहितम।
अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षतेस आत्ममूलोवतु मां परात्परः॥
कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशोलोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु।
तमस्तदाऽऽऽसीद गहनं गभीरंयस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः।।
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतोदुरत्ययानुक्रमणः स मावतु॥
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलमविमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वनेभूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः॥
न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वान नाम रूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यःस्वमायया तान्युलाकमृच्छति॥
तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेऽनन्तशक्तये।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे॥
नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि॥
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता।
नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे॥
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च॥
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे।
पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः॥
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः॥
नमो नमस्ते खिल कारणायनिष्कारणायद्भुत कारणाय।
सर्वागमान्मायमहार्णवायनमोपवर्गाय परायणाय॥
गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपायतत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि॥
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणायमुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते॥
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय।
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभावितायज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय॥
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामाभजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययंकरोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम॥
एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थवांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलंगायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः॥
तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम।
अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूर-मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे॥
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः॥
यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयोनिर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः।
तथा यतोयं गुणसंप्रवाहोबुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः॥
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंगन स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासननिषेधशेषो जयतादशेषः॥
जिजीविषे नाहमिहामुया कि मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम॥
सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम॥
योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम॥
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तयेकदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने॥
नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम॥
श्री शुकदेव उवाच
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषंब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वाततत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत॥
तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासःस्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि:।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः॥
सोऽन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम।
उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छान्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते॥
तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्यसग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार।
ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रंसम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम॥
8/11/2023 • 17 minutes, 40 seconds
Sammed Shikhar Stuti सम्मेद शिखर स्तुति
Sammed Shikhar Stuti सम्मेद शिखर स्तुति ★
चिन्मूरति चिंतामणि, चिन्मय ज्योतीपुंज।
मैं प्रणमूं नित भक्ति से, चिन्मय आतमकुंज ।।१ । ।
- शंभु छन्द -
जय जय सम्मेदशिखर पर्वत, जय जय अतिशय महिमाशाली।
जय अनुपम तीर्थराज पर्वत, जय भव्य कमल दीधितमाली१।।
जय कूट सिद्धवर धवलकूट, आनंदकूट अविचलसुकूट ।
जय मोहनकूट प्रभासकूट, जय ललितकूट जय सुप्रभकूट ।।२ ।।
जय विद्युत संकुलकूट सुवीरकूट स्वयंभूकूट वंद्य ।
जय जय सुदत्तकूट शांतिप्रभ, कूट ज्ञानधरकूट वंद्य ।।
जय नाटक संबलकूट व निर्जर, कूट मित्रधरकूट वंद्य ।
जय पाश्र्वनाथ निर्वाणभूमि, जय सुवरणभद्र सुकूट वंद्य ।।३।।
जय अजितनाथ संभव अभिनंदन, सुमति पद्मप्रभ जिन सुपाश्र्व।
चंदाप्रभु पुष्पदंत शीतल, श्रेयांस विमल व अनंतनाथ ।।
जय धर्म शांति कुंथू अरजिन, जय मल्लिनाथ मुनिसुव्रत जी ।
जय नमि जिन पाश्र्वनाथ स्वामी, इस गिरि से पाई शिवपदवी।।४।।
केलाशगिरी से ऋषभदेव, श्री वासुपूज्य चंपापुरि से । गिरनारगिरी से नेमिनाथ, महावीर प्रभू पावापुरि से ।।
निर्वाण पधारे चउ जिनवर, ये तीर्थ सुरासुर वंद्य हुए।
हुंडावसर्पिणी के निमित्त ये, अन्यस्थल से मुक्त हुए || ५ ||
जय जय कैलाशगिरी चंपा, पावापुरि ऊर्जयंत पर्वत।
जय जय तीर्थंकर के निर्वाणों, से पवित्र यतिनुत पर्वत ।।
जय जय चौबीस जिनेश्वर के, चौदह सौ उनसठ गुरु गणधर।
जय जय जय वृषभसेन आदी, जय जय गौतम स्वामी गुरुवर ।।६।।
सम्मेदशिखर पर्वत उत्तम, मुनिवृंद वंदना करते हैं ।
सुरपति नरपति खगपति पूजें, भविवृंद अर्चना करते हैं ।।
पर्वत पर चढ़कर टोंक-टोंक पर, शीश झुकाकर नमते हैं ।
मिथ्यात्व अचल शतखंड करें, सम्यक्त्वरत्न को लभते हैं ।।७।।
इस पर्वत की महिमा अचिन्त्य, भव्यों को ही दर्शन मिलते।
जो वंदन करते भक्ती से, कुछ भव में ही शिवसुख लभते ।।
बस अधिक उनंचास भव धर, निश्चित ही मुक्ती पाते हैं।
वंदन से नरक पशूगति से, बचते निगोद नहिं जाते हैं ||८||
दस लाख व्यंतरों का अधिपति, भूतकसुर इस गिरि का रक्षक ।
यह यक्षदेव जिनभाक्तिकजन, वत्सल है जिनवृष का रक्षक।।
जो जन अभव्य हैं इस पर्वत का, वंदन नहिं कर सकते हैं।
मुक्तीगामी निजसुख इच्छुक, जन ही दर्शन कर सकते हैं ||९ | |
यह कल्पवृक्ष सम वांछितप्रद, चिंतामणि चिंतित फल देता ।
पारसमणि भविजन लोहे को, कंचन क्या पारस कर देता ।।
यह आत्म सुधारस गंगा है, समरस सुखमय शीतल जलयुत ।
यह परमानंद सौख्य सागर, यह गुण अनंतप्रद त्रिभुवन नुत । ।१० ।।
मैं नमूँ नमूँ इस पर्वत को, यह तीर्थराज है त्रिभुवन में ।
इसकी भक्ती निर्झरणी में, स्नान करूँ अघ धो लूँ मैं ।।
अद्भुत अनंत निज शांती को, पाकर निज में विश्राम करूँ ।
निज ‘ज्ञानमती’ ज्योती पाकर, अज्ञान तिमिर अवसान करूँ ।।।११ । ।
– दोहा —
नमूँ नमूँ सम्मेदगिरि, करूँ मोह अरि विद्ध । मृत्युंजय पद प्राप्त कर, वरूँ सर्वसुख सिद्धि ।।१२ ।| ★
8/11/2023 • 8 minutes, 10 seconds
Shri Kameshwari Stuti श्री कामेश्वरी स्तुति
Shri Kameshwari Stuti श्री कामेश्वरी स्तुति
•
युधिष्ठिर उवाच •
नमस्ते परमेशानि ब्रह्मरुपे सनातनि । सुरासुरजगद्वन्द्दे कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ १ ॥ न ते प्रभावं जानन्ति ब्रह्माद्यास्त्रिदशेश्वराः । प्रसीद जगतामाद्ये कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ २ ॥ अनादिपरमा विद्या देहिनां देहधारिणी । त्वमेवासि जगद्वन्द्ये कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ३ ॥
त्वं बीजं सर्वभूतानां त्वं बुद्धिश्चेतना धृतिः । त्वं प्रबोधश्च निद्रा च कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ४ ॥
त्वामाराध्य महेशोsपि कृतकृत्यं हि मन्यते । आत्मानं परमात्माsपि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ५ ॥ दुर्वृत्तवृत्तसंहर्त्रि पापपुण्यफलप्रदे । लोकानां तापसंहर्त्रि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ६ ॥ त्वमेका सर्वलोकानां सृष्टिस्थित्यन्तकारिणी । करालवदने कालि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ७ ॥ प्रपन्नार्तिहरे मातः सुप्रसन्नमुखाम्बुजे । प्रसीद परमे पूर्णे कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ८ ॥ त्वामाश्रयन्ति ये भक्त्या यान्ति चाश्रयतां तु ते ।
जगतां त्रिजगद्धात्रि कामेश्वरि नमोsस्तु ते ॥ ९ ॥ शुद्धज्ञानमये पूर्णे प्रकृतिः सृष्टिभाविनी । त्वमेव मातर्विश्वेशि कामेश्वरि नमोस्तुते ॥ १० ॥
•
॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे युधिष्ठिरकृता श्री कामेश्वरी स्तुति सम्पूर्णा ॥
8/10/2023 • 4 minutes, 24 seconds
Sri Laxmi Chalisa श्री लक्ष्मी चालीसा
Shri Lakshmi Chalisa श्री लक्ष्मी चालीसा
■
शुक्रवार का दिन लक्ष्मी माता की पूजा के लिए समर्पित होता है। आज के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से सुख, समृद्धि में वृद्धि होती है। आज माता लक्ष्मी को कमल का फूल या लाल गुलाब का फूल अर्पित करें। सफेद मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के समय में श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। श्री लक्ष्मी चालीसा में लक्ष्मी माता का गुणगान किया गया है।
★
श्री लक्ष्मी चालीसा
★
दोहा
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥
सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥
★
सोरठा
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
★
चौपाई
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥
जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥
तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥
ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥
त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥
जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥
ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।
पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥
बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥
भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥
बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥
रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥
★
दोहा
★
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥
★
8/10/2023 • 10 minutes, 22 seconds
Veetraag Stotra वीतराग स्तोत्र
Veetraag Stotra वीतराग स्तोत्र •
शिवं शुद्धबुद्धं परं विश्वनाथं,
न देवो न बंधुर्न कर्मा न कर्ता।
न अङ्गं न सङ्गं न स्वेच्छा न कायं,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम्॥ १॥
न बन्धो न मोक्षो न रागादिदोष:,
न योगं न भोगं न व्याधिर्न शोक:।
न कोपं न मानं न माया न लोभं,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम्॥ २॥
न हस्तौ न पादौ न घ्राणं न जिह्वा,
न चक्षुर्न कर्ण न वक्त्रं न निद्रा।
न स्वामी न भृत्यो न देवो न मत्र्य:,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम्॥ ३॥
न जन्म न मृत्यु: न मोहं न चिंता,
न क्षुद्रो न भीतो न काश्र्यं न तन्द्रा ।
न स्वेदं न खेदं न वर्णं न मुद्रा,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम् ॥ ४॥
त्रिदण्डे त्रिखण्डे हरे विश्वनाथं,
हृषी-केशविध्वस्त-कर्मादिजालम् ।
न पुण्यं न पापं न चाक्षादि-गात्रं,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम् ॥ ५॥
न बालो न वृद्धो न तुच्छो न मूढो,
न स्वेदं न भेदं न मूर्तिर्न स्नेह: ।
न कृष्णं न शुक्लं न मोहं न तंद्रा,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम् ॥ ६॥
न आद्यं न मध्यं न अन्तं न चान्यत्,
न द्रव्यं न क्षेत्रं न कालो न भाव: ।
न शिष्यो गुरुर्नापि हीनं न दीनं,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम् ॥ ७॥
इदं ज्ञानरूपं स्वयं तत्त्ववेदी,
न पूर्णं न शून्यं न चैत्यस्वरूपम् ।
न चान्यो न भिन्नं न परमार्थमेकं,
चिदानन्दरूपं नमो वीतरागम् ॥ ८॥
आत्माराम - गुणाकरं गुणनिधिं, चैतन्यरत्नाकरं,
सर्वे भूतगता-गते सुखदुखे, ज्ञाते त्वयि सर्वगे,
त्रैलोक्याधिपते स्वयं स्वमनसा, ध्यायन्ति योगीश्वरा:,
वंदे तं हरिवंशहर्ष-हृदयं, श्रीमान् हृदाभ्युद्यताम् ॥ ९॥
•
8/10/2023 • 4 minutes, 37 seconds
Chamatkari Shiva Name Mantra Jaap चमत्कारी शिव नाम मंत्र जाप
Chamatkari Shiva Name Mantra Jaap चमत्कारी शिव नाम मंत्र जाप ★
ॐ नमो नमोः ओंकारायः
ॐ नमोः नमोः शिवायः
ॐ नमोः नमोः महादेवायः
ॐ नमोः नमोः शंकरायः
ॐ नमोः नमोः महेश्वरायः
ॐ नमोः नमोः वृषभायः
ॐ नमोः नमोः चन्द्रायः
ॐ नमोः नमोः नागेश्वरायः
ॐ नमोः नमोः त्रिकालाय:
ॐ नमोः नमो: अर्द्धनारीश्वरायः
ॐ नमोः नमोः चन्द्रशेखराय:
ॐ नमोः नमोः योगेश्वरायः
ॐ नमोः नमोः विश्वेश्वरायः
ॐ नमोः नमोः विश्वरूपायः
भगवान शिव के इन मंत्रों का जाप रोज़ 11 बार 43 दिन तक करे और चमत्कार देखें।
8/10/2023 • 19 minutes, 13 seconds
Om Namo Bhagwate Narayanay ॐ नमो भगवते नारायणाय 108 times
Om Namo Bhagwate Narayanay ॐ नमो भगवते नारायणाय 108 times
8/9/2023 • 16 minutes, 46 seconds
Siddh Lakshmi Mantra सिद्धलक्ष्मी मन्त्र
Siddh Lakshmi Mantra सिद्धलक्ष्मी मन्त्र ◆ ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:! ◆
इस मंत्र के जाप से आपको कामयाबी मिलती है। इस मंत्र का जाप मां लक्ष्मी की चांदी या अष्टधातु की प्रतीमा के सामने करें।
8/9/2023 • 15 minutes, 55 seconds
Kamakhya Stotra कामाख्या स्तोत्र
Kamakhya Stotra कामाख्या स्तोत्र ◆
जय कामेशि चामुण्डे जय भूतापहारिणि
जय सर्वगते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
विश्वमूर्ते शुभे शुद्धे विरुपाक्ष त्रिलोचने ।
भीमरुपे शिवे विद्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
मालाजये जये जम्भे भूताक्षि क्षुभितेऽक्षये ।
महामाये महेशानि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कालि कराल विक्रान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कालि कराल विक्रान्ते कामेश्वरि हरप्रिये ।
सर्व्वशास्त्रसारभूते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामरुप प्रदीपे च नीलकूट निवासिनि ।
निशुम्भ - शुम्भमथनि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
सर्व्वशास्त्रसारभूते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामरुप प्रदीपे च नीलकूट निवासिनि ।
निशुम्भ - शुम्भमथनि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्ये कामरुपस्थे कामेश्वरि हरिप्रिये ।
कामनां देहि में नित्यं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
वपानाढ्यवक्त्रे त्रिभुवनेश्वरि
महिषासुरवधे देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
छागतुष्टे महाभीमे कामख्ये सुरवन्दिते ।
जय कामप्रदे तुष्टे कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
भ्रष्टराज्यो यदा राजा नवम्यां नियतः शुचिः
अष्टम्याच्च चतुदर्दश्यामुपवासी नरोत्तमः ॥
संवत्सरेण लभते राज्यं निष्कण्टकं पुनः
य इदं श्रृणुवादभक्त्या तव देवि समुदभवम् ॥
सर्वपापविनिर्मुक्तः परं निर्वाणमृच्छति ।
श्रीकामरुपेश्वरि भास्करप्रभे, प्रकाशिताम्भोजनिभायतानने ।
सुरारि - रक्षः - स्तुतिपातनोत्सुके, त्रयीमये देवनुते नमामि
सितसिते रक्तपिशङ्गविग्रहे, रुपाणि यस्याः प्रतिभान्ति तानि
विकाररुपा च विकल्पितानि, शुभाशुभानामपि तां नमामि ॥ •
कामरुपसमुदभूते कामपीठावतंसके ।
विश्वाधारे महामाये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
अव्यक्त विग्रहे शान्ते सन्तते कामरुपिणि ।
कालगम्ये परे शान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
या सुष्मुनान्तरालस्था चिन्त्यते ज्योतिरुपिणी ।
प्रणतोऽस्मि परां वीरां कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
दंष्ट्राकरालवदने मुण्डमालोपशोभिते ।
सर्व्वतः सर्वंगे देवि कामेश्वरि नमोस्तु ते ॥
चामुण्डे च महाकालि कालि कपाल- हारिणी ।
पाशहस्ते दण्डहस्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
चामुण्डे कुलमालास्ये तीक्ष्णदंष्ट्र महाबले ।
शवयानस्थिते देवि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
8/9/2023 • 7 minutes, 32 seconds
Sri Krishna Ashtakam श्री कृष्णाष्टकम्
Sri Krishna Ashtakam श्री कृष्णाष्टकम् •
भजे व्रजैक मण्डनम्, समस्त पाप खण्डनम्,
स्वभक्त चित्त रञ्जनम्, सदैव नन्द नन्दनम्,
सुपिन्छ गुच्छ मस्तकम् , सुनाद वेणु हस्तकम् ,
अनङ्ग रङ्ग सागरम्, नमामि कृष्ण नागरम् ॥ १ ॥
मनोज गर्व मोचनम् विशाल लोल लोचनम्,
विधूत गोप शोचनम् नमामि पद्म लोचनम्,
करारविन्द भूधरम् स्मितावलोक सुन्दरम्,
महेन्द्र मान दारणम्, नमामि कृष्ण वारणम् ॥ २ ॥ कदम्ब सून कुण्डलम् सुचारु गण्ड मण्डलम्,
व्रजान्गनैक वल्लभम नमामि कृष्ण दुर्लभम.
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतम सुखैक दायकम् नमामि गोप नायकम् ॥ ३ ॥
सदैव पाद पङ्कजम मदीय मानसे निजम्,
दधानमुत्तमालकम् , नमामि नन्द बालकम्,
समस्त दोष शोषणम्, समस्त लोक पोषणम्,
समस्त गोप मानसम्, नमामि नन्द लालसम् ॥ ४ ॥ भुवो भरावतारकम् भवाब्दि कर्ण धारकम्,
यशोमती किशोरकम्, नमामि चित्त चोरकम्.
दृगन्त कान्त भङ्गिनम् , सदा सदालसंगिनम्,
दिने दिने नवम् नवम् नमामि नन्द संभवम् ॥ ५ ॥
गुणाकरम् सुखाकरम् क्रुपाकरम् कृपापरम् ,
सुरद्विषन्निकन्दनम् , नमामि गोप नन्दनम्.
नवीनगोप नागरम नवीन केलि लम्पटम् ,
नमामि मेघ सुन्दरम् तथित प्रभालसथ्पतम् ॥ ६ ॥
समस्त गोप नन्दनम् , ह्रुदम्बुजैक मोदनम्,
नमामि कुञ्ज मध्यगम्, प्रसन्न भानु शोभनम्.
निकामकामदायकम् दृगन्त चारु सायकम्,
रसालवेनु गायकम, नमामि कुञ्ज नायकम् ॥ ७ ॥
विदग्ध गोपिका मनो मनोज्ञा तल्पशायिनम्,
नमामि कुञ्ज कानने प्रवृद्ध वह्नि पायिनम्.
किशोरकान्ति रञ्जितम, द्रुगन्जनम् सुशोभितम,
गजेन्द्र मोक्ष कारिणम, नमामि श्रीविहारिणम ॥ ८ ॥
यथा तथा यथा तथा तदैव कृष्ण सत्कथा ,
मया सदैव गीयताम् तथा कृपा विधीयताम.
प्रमानिकाश्टकद्वयम् जपत्यधीत्य यः पुमान ,
भवेत् स नन्द नन्दने भवे भवे सुभक्तिमान ॥ ९ ॥
•
ॐ नमो श्रीकृष्णाय नमः॥
ॐ नमो नारायणाय नमः॥
- आदि शंकराचार्य
8/9/2023 • 6 minutes, 51 seconds
Shri Mahavir Chalisa श्री महावीर चालीसा
Shri Mahavir Chalisa श्री महावीर चालीसा ◆
दोहा :
सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरूं अरहन्त।
निर आकुल निर्वांच्छ हो, गए लोक के अंत ॥
मंगलमय मंगल करन, वर्धमान महावीर।
तुम चिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भव पीर ॥
◆
चौपाई :
जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर।
शांत छवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी।
कोटि भानु से अति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे।
महाबली अरि कर्म विदारे, जोधा मोह सुभट से मारे।
काम क्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषाय भगाया।
रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी।
प्रभु तुम नाम जगत में साँचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा।
राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे।
महा शूल को जो तन धारे, होवे रोग असाध्य निवारे।
व्याल कराल होय फणधारी, विष को उगल क्रोध कर भारी।
महाकाल सम करै डसन्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता।
महामत्त गज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझे पुकारै।
फार डाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हे प्रभु तुही भगावै।
होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै।
शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता।
पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा।
झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं।
वज्रपात करि घन गरजावै, मूसलधार होय तड़कावै।
होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना।
बंदीगृह में बँधी जंजीरा, कठ सुई अनि में सकल शरीरा।
राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिंहासन तुही बिठावै।
न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी।
जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता।
चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आप करन्ता।
एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डलपुर धामा।
सिद्धारथ नृप सुत कहलाए, त्रिशला मात उदर प्रगटाए।
तुम जनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका।
इन्द्र ने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा।
कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी।
अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी।
शांत भाव धर कर्म विनाशे, तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे।
जड़-चेतन त्रय जग के सारे, हस्त रेखवत् सम तू निहारे।
लोक-अलोक द्रव्य षट जाना, द्वादशांग का रहस्य बखाना।
पशु यज्ञों का मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा।
अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा।
पंचम काल विषै जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई।
क्षण में तोपनि बाढि-हटाई, भक्तन के तुम सदा सहाई।
मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता।
◆
सोरठा :
करे पाठ चालीस दिन नित चालीसहिं बार।
खेवै धूप सुगन्ध पढ़, श्री महावीर अगार ॥
जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान।
नाम वंश जग में चले होय कुबेर समान ॥
◆
8/9/2023 • 8 minutes, 27 seconds
Jain Chaityalaya Vandana जैन चैत्यालय वंदना
Jain Chaityalaya Vandana जैन चैत्यालय वंदना ★
कृत्याकृत्रिम - चारु- चैत्य-निलयान् नित्यं त्रिलोकी - गतान्।
वंदे भावन-व्यंतर-द्युतिवरान् स्वर्गामरावासगान्॥
सद्गंधाक्षत- पुष्प-दाम-चरुकैः सद्दीपधूपैः फलैर् ।
द्रव्यैनरमुखैर्यजामि सततं दुष्कर्मणां शांतये ॥१॥
अर्थ- तीनों लोकों संबंधी सुन्दर कृत्रिम ( मनुष्य, देव द्वारा निर्मित) व अकृत्रिम (अनादिनिधन - जो किसी के द्वारा बनाये नहीं हैं ) चैत्यालयों ( मंदिरों) को तथा भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष, कल्पवासी देवों के भवनों, विमानों में स्थित अकृत्रिम चैत्यालयों को नमस्कार कर दुष्ट कर्मों की शांति के लिए पवित्र जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप तथा फल के द्वारा उनकी पूजा करता हूँ।
वर्षान्तर-पर्वतेषु वर्षेषु नंदीश्वरे यानि मंदरेषु ।
यावंति चैत्यायतनानि लोके सर्वाणि वंदे जिनपुंगवानाम् ॥२॥
अर्थ- जम्बूद्वीपवर्ती भरत, हेमवत आदि क्षेत्रों में घातक द्वीप एवं पुष्करार्द्ध - द्वीप - संबंधी क्षेत्रों में सर्व कुलाचलों, पंच- मेरु संबंधी, नंदीश्वर आदि समस्त द्वीप चैत्यालयों में स्थित लोक की समस्त जिन - प्रतिमाओं की वंदना करता हूँ।
अवनि-तल-गतानां कृत्रिमाकृत्रिमाणाम्।
वन-भवन-गतानां दिव्य-वैमानिकानाम्॥
इह मनुज-कृतानां देवराजार्चितानाम्।
जिनवर - निलयानां भावतोऽहं स्मरामि ॥३॥
अर्थ- पृथ्वी के नीचे ( पाताल में) व्यन्तर देवों के, (ज्योतिष देवों के ), वनवासी देवों के भवनों में एवं ( कल्पवासी देवों के) दिव्य - विमानों में स्थित कृत्रिम और अकृत्रिम चैत्यालयों तथा इस मध्यलोक में मनुष्यों द्वारा बनाये गये, इन्द्रों द्वारा पूजित चैत्यालयों का भावपूर्वक स्मरण करता हूँ।
जंबू - धातकि- पुष्करार्द्ध-वसुधा क्षेत्रत्रये ये भवाः । चन्द्राभोज - शिखंडि-कण्ठ-कनक प्रावृड्ङ्घनाभा जिनाः ॥
सम्यग्ज्ञान - चरित्र - लक्षण - धरा दग्धाष्टकर्मेन्धनाः । भूतानागत- वर्तमान-समये तेभ्यो जिनेभ्यो नमः ॥४॥
अर्थ- जम्बूद्वीप, धातकीद्वीप, और पुष्करार्द्ध - इन अढ़ाई द्वीपों के भरत, ऐरावत और विदेह - इन तीन क्षेत्रों में, चन्द्रमा के समान श्वेत, कमल के समान लाल, मोर के कंठ के समान नीले तथा स्वर्ण के समान पीले रंग के, पन्ना के समान हरे, और मेघ के समान कृष्णवर्णवाले, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के धारी और अष्टकर्मरूपी ईंधन को जला चुके भूतकालीन, भविष्यकालीन और वर्तमान-कालीन जितने तीर्थंकर हैं, उन सबको नमस्कार है।
श्रीमन्मेरौ कुलाद्रौ रजत - गिरिवरे शाल्मलौ जंबूवृक्षे । वक्षारे चैत्यवृक्षे रतिकर - रुचके कुंडले मानुषांके ॥ इष्वाकारे ऽञ्जनाद्रौ दधि - मुख-शिखरे व्यन्तरे स्वर्गलोके ।
ज्योतिर्लोकेऽभिवंदे भवन - महितले यानि चैत्यालयानि ॥५॥
अर्थ- शोभा संयुक्त सुमेरु पर्वतों पर, कुलाचल पर्वतों पर, विजयार्द्ध पर्वतों पर, शाल्मली और जम्बूवृक्ष पर, वक्षार पर्वतों पर, चैत्यवृक्षों पर, रतिकर पर्वतों पर, रुचिकगिर पर्वत पर, कुण्डलगिर पर्वत पर, मानुषोत्तर पर्वत पर, इष्वाकारगिरि पर्वतों पर अंजनगिर पर्वतों पर, दधिमुख पर्वतों पर, व्यन्तर, वै. मानिक, ज्योतिष, भवनवासी लोकों में, पृथ्वी के नीचे ( अधोलोक में ) जितने चैत्यालय हैं, उन सबको नमस्कार करता हूँ।
द्वौ कुंदेंदु - तुषार- हार-धवलौ द्वाविंद्रनील प्रभौ ।
द्वौ बंधूक - सम-प्रभौ जिनवृषौ द्वौ च प्रियंगु प्रभौ ॥
शेषाः षोडश जन्म - मृत्यु - रहिताः संतप्त - हेम-प्रभाः ।
ते संज्ञान - दिवाकराः सुरनुताः सिद्धिं प्रयच्छंतु नः ॥६॥
ॐ ह्रीं श्रीकृत्रिमाकृत्रिम - चैत्यालय - सम्बन्धि - चतुर्विंशतिजिनबिम्बेभ्योऽर्घ्यं निर्व. स्वाहा ।
अर्थ- दो (चंद्रप्रभ और पुष्पदंत) कुंद पुष्प, चन्द्रमा, बर्फ जैसे हीरों के हार के समान श्वेतवर्ण के, दो ( मुनिसुव्रतनाथ और नेमिनाथ) इन्द्रनील वर्ण के, दो (पद्मप्रभ तथा वासुपूज्य) बन्धूकपुष्प के समान लाल, एवं दो ( सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ ) प्रियंगु मणि (पन्ना) के समान हरितवर्ण, एवं तपे हुए स्वर्ण के समान वर्णवाले शेष सोलह; ऐसे जन्ममरण से रहित, सद्ज्ञान - सूर्य, देव- वन्दित ( चौबीसों) तीर्थंकर हमें मुक्ति प्रदान करें ।।
वन्दे मातरम्।
सुजलाम् सुफलाम् मलय़ज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। १।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। २।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम्।। ३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वम् हि प्राणाः शरीरे, बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।। ४।।
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलाम् अमलाम् अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम्।। ५।।
श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम् भूषिताम्,
धरणीम् भरणीम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। ६।।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो वन्दे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को "वन्दे मातरम्" गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा।
◆
I bow to thee.... Mother
Affectionate Abundant Fresh as Sandalwood
Having moon-like calmness Mother ...
One whose radiant light gives delight
Whose flowering and blossoming trees are splendorous
One whose radiant light gives delight
Ever smiling pleasant speaking
Who gives happiness and blessings Mother
Affectionate Abundant Fresh as Sandalwood
Having moon-like calmness Mother ...
Devi Padmavati Mantra देवी पद्मावती मन्त्र 108 times
Devi Padmavati Mantra देवी पद्मावती मन्त्र ★
हमारे धार्मिक शास्त्रों के अनुसार मंत्रों का जाप करने से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। मंत्र जाप निष्ठा और विधिपूर्वक करने से इच्छित फल भी प्राप्त होता है।
प्रतिदिन इस मंत्र का जाप आप न भी कर पा रहे है, तब भी आप शुक्रवार के दिन विशेष रूप से इस पद्मावती मंत्र का जाप करें। आंतरिक भाव से इस मंत्र की प्रतिदिन 1 माला जपने से मनुष्य को रोजगार और अपार धन की प्राप्ति होती है और घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है।
■
मंत्र :
ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्वजन मोहनी, सर्व कार्य करनी, मम विकट संकट हरणी, मम मनोरथ पूरणी, मम चिंता चूरणी नमो ॐ ॐ पद्मावती नम स्वाहाः। ■
8/7/2023 • 37 minutes, 25 seconds
Krishna All Ailments Healing Mantra कृष्ण समस्त रोगनाशक मंत्र
Krishna All Ailments Healing Mantra कृष्ण समस्त रोगनाशक मंत्र ★
स्व ास्थ्यप्राप्ति हेतु सिर पर हाथ रख के या संकल्प कर इस मंत्र का 108 बार उच्चारण करें-
अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात् ।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यम् ||
'हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविन्द ! - इस नामोच्चारणरूप औषध से समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य कहता हूँ.... सत्य कहता हूँ ।
8/7/2023 • 29 minutes, 47 seconds
Sri Bhuvaneshwari Panchratnam श्री भुवनेश्वरी पंचरत्नम्
Sri Bhuvaneshwari Panchratnam श्री भुवनेश्वरी पंचरत्नम् •
नमो देव्यै प्रकृत्यै च विधात्र्यै सततं नमः ।
कल्याण्यै कामदायै च वृत्त्यै सिध्यै नमो नमः ॥ १ ॥
सच्चिदानन्दरूपिण्यै संसारारण्यै नमो नमः ।
पञ्चकृत्यै विधात्र्यै च भुवनेश्वर्यै नमो नमः ॥ २ ॥
विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां ।
शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव ।
त्वं कीर्ति कान्ति कमलामल तुष्टिरूपा
मुक्तिप्रदा विरतिरेव मनुष्यलोके ॥ ३ ॥
त्राता त्वमेव मम मोहमयात् भवाब्धेः
त्वामम्बिके सततमेव महार्तिदे च ।
रागादिभिर्विरचिते विततेऽखिलान्ते
मामेव पाहि बहुदुःखहरे च काले ॥ ४ ॥
नमो देवि महाविद्ये नमामि चरणौ तव
सदा ज्ञानप्रकाशं मे देहि सर्वार्थदे शिवे । •
8/6/2023 • 2 minutes, 35 seconds
Sri Rudram Laghunyasam श्री रुद्रं लघुन्यासम्
Sri Rudram Laghunyasam श्री रुद्रं लघुन्यासम् ◆
ॐ अथात्मानग्ं शिवात्मानग् श्री रुद्ररूपं ध्यायेत् ॥
शुद्धस्फटिक सङ्काशं त्रिनेत्रं पञ्च वक्त्रकं ।
गङ्गाधरं दशभुजं सर्वाभरण भूषितम् ॥
नीलग्रीवं शशाङ्काङ्कं नाग यज्ञोप वीतिनम् ।
व्याघ्र चर्मोत्तरीयं च वरेण्यमभय प्रदम् ॥
कमण्डल्-वक्ष सूत्राणां धारिणं शूलपाणिनं ।
ज्वलन्तं पिङ्गलजटा शिखा मुद्द्योत धारिणम् ॥
वृष स्कन्ध समारूढं उमा देहार्थ धारिणं ।
अमृतेनाप्लुतं शान्तं दिव्यभोग समन्वितम् ॥
दिग्देवता समायुक्तं सुरासुर नमस्कृतं ।
नित्यं च शाश्वतं शुद्धं ध्रुव-मक्षर-मव्ययम् ।
सर्व व्यापिन-मीशानं रुद्रं वै विश्वरूपिणं ।
एवं ध्यात्वा द्विजः सम्यक् त तो यजनमारभेत् ॥
◆
Sarv Grah Shanti Jain Mantra सर्वग्रह शान्ति जैन मंत्र 108 times
Sarv Grah Shanti Jain Mantra सर्वग्रह शान्ति जैन मंत्र
★ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः असिआउसा सर्व-शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा | ★
◆ ( हर प्रातः काल 108 जप करें)
8/6/2023 • 24 minutes, 5 seconds
Namokar Mahamantra Explained णमोकार महामंत्र की व्याख्या
Namokar Mahamantra Explained णमोकार महामंत्र की व्याख्या •
Namokar Mantra (णमोकार मंत्र) जैन धर्म का मूल मंत्र है. इसे Navkar Mantra (नवकार मंत्र) या नमस्कार मंत्र भी कहा जाता है. जैन धर्म में इस मंत्र को सबसे शाक्तिशाली मंत्र माना जाता है.
Namokar Mantra (With Meaning) णमोकार मंत्र (अर्थ सहित)
• नमो अरिहंताणम
नमो सिद्धाणं
नमो आयरियाणं
नमो उवज्जायाणम
नमो लोए सव्व साहूणम
एसो पंच नमुक्कारो
सव्व पावप्पणासणों
मंगलाणम च सव्वेसिं
पढमं हवई मंगलं •
अर्थ:
शत्रु का नाश करने वाले को नमस्कार.
सिद्ध लोगों को नमस्कार
आचार्यों को नमस्कार.
उपाध्यायों को नमस्कार.
सभी साधुओं को नमस्कार.
इन पांचों की वंदना.
मेरे सभी पापों का नाश हो.
सभी मंगलों में यह प्रथम मंगल है.
Navkar Mantra Explanation) : नवकार मंत्र (पूर्ण व्याख्या)
नमो अरिहंताणम
अर्थात्: शत्रु का नाश करने वाले को नमस्कार. यहां शत्रु का अर्थ किसी मनुष्य से नहीं है बल्कि अपने मन में छिपे शत्रुओं से है। हमारे मन के अंदर पांच शत्रु होते है- काम, क्रोध, लोभ, मद, और मत्सर। ये पांच शत्रु ही हमारे दुखों और पतन का कारण होते है।
इन शत्रुओं का नाश करने वाले को अरिहंत कहा जाता है. हमारे इन पांच शत्रुओं का नाश करने वाले अरिहंत को प्रणाम करने की बात की गई है.
नमो सिद्धाणं
अर्थात्: सिद्ध लोगों को नमस्कार. Navkar Mantra (नवकार मंत्र) के इस भाग में सिद्ध लोगों से तात्पर्य उन लोगों से है जिन्होंने मुक्त अवस्था प्राप्त कर ली है। ऐसे लोग लाखों में एक होते है। मुक्त अवस्था का मतलब यह नहीं कि उन्होंने संसार में रहना ही छोड़ दिया है। मुक्त अवस्था का मतलब आत्मज्ञान से है। वैसे लोग जिन्होंने अपनी खुद की सच्चाई को जान लिया है, उन्हें सिद्ध पुरुष कहा गया है। ऐसे सिद्ध लोगों को नमस्कार (प्रणाम) करने की बात कही जा रही है।
नमो आयरियाणं
अर्थात्: आचार्यों को नमस्कार।
अरिहंत परमात्मा की अनुपस्थिति में उनके शासन को संचालन करने वाले व्यक्ति को आचार्य कहते है। 36 गुणों से भरपूर व्यक्ति को आचार्य की उपाधि दी जाती है। उन आचार्यों को नमस्कार करने की बात कही गई है।
नमो उवज्जायाणम
अर्थात्: उपाध्यायों को नमस्कार।
जो साधु और आचार्य के बीच सूत्रधार का काम करते है उन्हे उपाध्याय कहा जाता है। उपाध्याय विनय, करुणा, जैसे 25 गुणों से संपन्न होते है। उनको नमस्कार (प्रणाम) करने की बात कही गई है।
नमो लोए सव्वसाहूणम
अर्थात्: सभी साधुओं को नमस्कार.
Navkar Mantra (नवकार मंत्र) के इस भाग में साधु का तात्पर्य ऐसे लोगों से है जो ब्रह्मचर्य, त्याग, करुणा, इत्यादि जैसे 27 गुणों से संपन्न होते है। ऐसे साधु और साध्वियों को नमस्कार (प्रणाम) करने की बात कही गई है।
एसो पंच नमुक्कारो
अर्थात्: इन पांचों की वंदना।
यहां पांच लोगों का तात्पर्य ऊपर बताए गए पांच प्रकार के लोगों से है। इन पांच प्रकार के लोगों के कुल मिलाकर 108 गुण होते है। ऐसे गुणी और श्रेष्ठ लोगों का वंदन करने की बात कही गई है।
सव्व पावप्पणासणों
अर्थात्: मेरे सभी पापों का नाश हो.
ऊपर बताए गए पांच प्रकार के लोगों को नमस्कार और वंदना करने से समस्त पापों का नाश होता है। हमारे पापों का नाश करने की बात कही गई है।
मंगलाणम च सव्वेसिं
पढमं हवई मंगलं
अर्थात्: सभी मंगलों में यह प्रथम मंगल है।
कहने का तात्पर्य यह है कि दुनियां में जितने भी मंगल और पुण्य के काम है, उनमें इन पांचों को नमस्कार और इनका वंदन करने से सबका मंगल होता है।
8/4/2023 • 5 minutes, 51 seconds
Shiv Kama Sundari Ashtakam शिव कामा सुंदरी अष्टकं
Shiv Kama Sundari Ashtakam शिव कामा सुंदरी अष्टकं •
पुण्डरीक पुरा मध्य वसिनिं, नृत्यराज सहधर्मिणीम ।
अध्रि राज तनयां, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं ॥१॥
ब्रह्म विष्णु धाम देव पूजितम, बहु स्रीपद्म सुक वत्स शोभितम ।
बहुलेय कलपन नात्मजं, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं ॥२॥
वेद शीर्ष विनुत आत्मा वैभवं, वन्चितार्थ फल धन ततःपरं ।
व्यास सूनु मुखतपर्चितम, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं ॥३॥
शोदसर्न पर देवताम उमां, पञ्च बन अनिस योत्भव वेशनां ।
परिजथ तरु मूल मण्डपं, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं ॥४॥
विश्व योनिम् अमलं अनुथामं, वग विलास फलदम विचक्षणं ।
वारि वह सदृश लम्बरं, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं॥५॥
नन्दिकेश विनुत अतम वैभवं, अश्र्व नममन्तु जपकृतः सुख प्रदं ।
नास हीन पततम नदेस्वरिम्, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं ॥६॥
सोमे सूर्य हुथ भुक्त्याभिर लोचनं, सर्व मोहन करीं सुधीदिनां ।
त्रिवर्ग परमाथम सौख्यताम, दिने दिने चिन्त्यामि शिवकामा सुन्दरीं ॥७॥
पुण्डरीक चरण ऋषिणा कर्तम स्तोत्रं, येथातः अन्वहम् पदन्ति ये ।
पुण्डरीक पुरा नायिकं अम्बिकं, य दृष्टिं अखिलं महेश्वरि ॥८॥ •
Apmarjan Stotra (Padma Puraan) अपमार्जन स्तोत्र (पद्म पुराण)
यह अपमार्जन स्तोत्र भगवान विष्णु का श्रेष्ठ स्तोत्र है। पद्मपुराण में इसे भगवान् शिव ने माता पार्वती को सुनाया है।
समस्त प्रकार के रोग जैसे- नेत्ररोग, शिरोरोग, उदररोग, श्वासरोग, कम्पन, नासिकारोग, पादरोग, कुष्ठरोग, क्षयरोग, भंगदर, अतिसार, मुखरोग, पथरी, वात, कफ, पित्त, समस्त प्रकार के ज्वर तथा अन्य महाभयंकर रोग इस विचित्र स्तोत्र के पाठ करने से समाप्त हो जाते है। परकृत्या, भूत-प्रेत-वेताल-डाकिनी-शाकिनी तथा शत्रुपीड़ा, ग्रहपीड़ा, भय, शोक दुःखादि बन्धनों से साधक को मुक्ति मिलती है।
अपामार्जन स्तोत्र भगवान् विष्णु का स्तोत्र है जिसका प्रयोग विषरोगादि के निवारण के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र के नित्य गायन या पाठन से सभी प्रकार के रोग शरीर से दूर रहते हैं, तथा इसका प्रयोग रोगी व्यक्ति के मार्जन द्वारा रोग निराकरण में किया जाता है।
Santaan Gopal Mantra संतान गोपाल मंत्र •
प्रातः काल दंपत्ति संयुक्त रूप से श्री कृष्ण की उपासना करें, उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करे, संतान गोपाल मंत्र का जाप करें।
मंत्र:
• ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः । •
मंत्र जाप के बाद प्रसाद ग्रहण करें।
7/30/2023 • 33 seconds
Jin Sahasranaam Stotram by Jinsenacharya श्री जिनसेनाचार्य विरचितं जिन सहस्रनाम स्तोत्रम्
Jin Sahasranaam Stotram by Jinsenacharya श्री जिनसेनाचार्य विरचितं जिन सहस्रनाम स्तोत्रम्
Janeu Visarjan Mantra जनेऊ विसर्जन मन्त्र ★
यज्ञोपवीत को पुराना हो जाने पर अथवा घर में किसी के जन्म या मरण के दौरान सूतक लगने के बाद बदल देने की परम्परा है। गलती से जनेऊ अपवित्र हो जाए तो भी उसे तुरंत उतार कर दूसरा नया जनेऊ धारण करना पड़ता है।
जनेऊ उतारने का मंत्र :
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।
जनेऊ विसर्जन मन्त्र:
उपवीतं छिन्नतन्तुं जीर्णं कश्मलदूषितं
विसृजामि यशो ब्रह्मवर्चो दीर्घायुरस्तु मे ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ★
Dampatya Prem Mantra दाम्पत्य प्रेम मन्त्र ■
आपके पति अगर आपकी बात नहीं मानते हैं, वे आप पर ध्यान नहीं देते हैं, बाहरी स्त्रियों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं, तो आपके लिए ये मंत्र बहुत कारगर रहेगा। मंत्र कुछ इस तरह है।
■ ॐ काम मालिनी थः थ: स्वाहा।■
Devyaparadh Kshamapan Stotra देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र ★
न मत्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति
जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
★ एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ★
7/28/2023 • 7 minutes, 39 seconds
Janeu Dharan Mantra जनेऊ धारण मन्त्र
Janeu Dharan Mantra जनेऊ धारण मन्त्र ■ सनातन धर्म में यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) का अत्यधिक महत्त्व है। उपनयन संस्कार को सभी संस्कारों में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । यज्ञोपवीत के तीन तार मनुष्यों उसके तीन ऋणों का निरन्तर स्मरण कराते रहते हैं। देव ऋण, आचार्य ऋण और मातृ-पितृ ऋण।उपनयन-संस्कार में यज्ञोपवीत धारण कराते हुए पुरोहित द्वारा वेद मंत्र का उच्चारण करते हुए ही “उपनयन संस्कार “ सम्पन्न किया जाता है। नया यज्ञोपवीत धारण करते समय भी इस मंत्र का पाठ किया जाता है । उस मंत्र की अर्थ सहित व्याख्या यहाँ प्रस्तुत की जा रही है ।
★ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् । आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज़: ।।
★ (पारस्कर गृह्यसूत्र २/२/११) ये ऋग्वेद का गृह्यसूत्र है । संधि-विग्रह – प्रजापते: + यत् + सहजं । आयुष्यं + अग्र्यं । बलम्+अस्तु ।
यज्ञोपवीत ( के सूत्र ) अत्यन्त पवित्र हैं , ( यत् ) जो ( पुरस्तात् ) आदिकाल से ( प्रजापते: सहजं ) प्रजापति / सृष्टा के साथ जन्मा है । वह (आयुष्यं ) दीर्घायु को देने वाला (अग्र्यं )आगे ले जाने वाला (प्रतिमुंच ) बंधनों से छुड़ाए । ऐसा (यज्ञोपवीतं) यज्ञोपवीत ( शुभ्रं ) शुभ्रता अर्थात् चरित्र की उज्ज्वलता या पवित्रता ( बलं ) शक्ति और ( तेज़ ) तेजस्विता वाला हो । अर्थात् इन गुणों को प्रदान करने वाला होवे ।
ऐसी मान्यता है कि प्रजापति अर्थात् सृष्टा के साथ ही यज्ञ का प्रादुर्भाव हुआ उसी के साथ यज्ञोपवीत का भी आविर्भाव हुआ । अर्थात् आदिकाल से यज्ञोपवीत ब्रह्मा का सहजात है , और इसलिये अत्यन्त पवित्र है । ये यज्ञोपवीत दीर्घायु , उज्ज्वल चरित्र , शक्ति और तेजयुक्त हो । आगे ले जाने से तात्पर्य है कि उत्कर्ष की ओर ले जाने वाला हो । तभी तो उस यज्ञोपवीत को धारण करने वाला इन गुणों को प्राप्त कर सकेगा । यहाँ ” बल “को त्रिविध शक्ति या बल के लिये जानना चाहिये । अर्थात् मानसिक , शारीरिक और आध्यात्मिक बल प्रदान करने वाला हो । अभिप्राय ये है बालक के लिये यज्ञोपवीत इन सभी उपरिलिखित गुणों के साथ सिद्ध होकर, उसे भी ये गुण प्रदान करे ।
गुरुकुल में प्रवेश के पूर्व पंचवर्षीय बालक का उपनयन संस्कार करने के बाद ही वह ब्रह्मचारी बनता था – उसमें इन गुणों का समावेश अभीष्ट था । अतएव इनका उपरिलिखित मंत्र में उल्लेख किया गया है । इसके बाद ही बालक यज्ञ करने का अधिकारी बनता था। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने बालकों एवं बालिकाओं – दोनों के लिये यज्ञोपवीत का विधान किया है
7/27/2023 • 3 minutes, 15 seconds
Ganpati Gakaar 108 Naam Stotram गणपति गकार 108 नाम स्तोत्रम्
Suryamandal Ashtak Stotra सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम् •
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥ १ ॥
यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ २ ॥
यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ३ ॥
यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।
समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ४ ॥
यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ५ ॥
यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ६ ॥
यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ७ ॥
यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ८ ॥
यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।
यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ९ ॥
यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १० ॥
यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ ११ ॥
यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ १२ ॥
मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ।
सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥ १३ ॥
•
॥ इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलात्मकं स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
7/27/2023 • 7 minutes, 11 seconds
Tikkhuton Ka Paath (Guru Vandan) तिक्खुतों का पाठ (गुरु वंदन)
Tikkhuton Ka Paath (Guru Vandan) तिक्खुतों का पाठ (गुरु वंदन) •
जब कभी हम संत मुनिराज के पास जाते हैं अथवा मुनिराज हमारे सामने आते दिखते हैं तो हम तिक्खुतों का पाठ का उच्चारण कर वंदन करते हैं। तिक्खुतों के उच्चारण के साथ किया गया विधिपूर्वक भाव वंदन अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है।
गुरु वंदन का पाठ
•
तिक्खुत्तों आयाहिणं पयाहिणं करेमि,
वंदामि, नमंसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि
कल्लाणं मंगलं, देवयं, चेइयं,
पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि।
• भावार्थः- भगवन्! दाहिनी और से प्रारम्भ करके पुनः दाहिनी और तक आपकी तीन बार प्रदक्षिणा करता हूँ। आपको मैं वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, आपका सत्कार करता हूँ, सम्मान करता हूँ। आप कल्याण रूप हैं, मंगल रूप हैं, देव स्वरूप हैं, चैत्य स्वरूप यानी ज्ञान स्वरूप हैं। मैं आपको मस्तिष्क झुकाकर आपके चरण कमलों में मन, वचन और काया से सेवा भक्ति अर्थात् पर्युपासना एवं वंदना करता हूँ।
•
तिक्खुतों के पाठ में चयनित शब्दों का रहस्यः-
गुरु वंदन हेतु, अभिव्यक्ति के लिए तिक्खुतो के पाठ में विनय के सूचक चार शब्द हैं। नमनसामि का मतलब मैं शरीर से झुकता हूँ। वंदामि का अर्थ मैं वाणी द्वारा आपके गुणों का आदर करता हूँ। मन से गुरु के प्रति सक्कारेमि, अहोभाव का सूचक है तो सम्माणेमि का मतलब गुरु को देख मेरी प्राथमिकता आपके समीप आकर दर्शन की है। इस प्रकार के सही भावपूर्वक वंदन करने से मन, वचन और काया तीनों का तालमेल हो जाता है। वाणी से गुरु का गुणगान करने एवं उनको कल्याणकारी, मंगलकारी, देव स्वरूप कहने से उनके प्रति श्रद्धा, आदर, बहुमान की अभिव्यक्ति होती है और मन चुम्बक की भांति गुरु के प्रति आकर्षित होने लगता है। जिससे वंदन करने वाले में भावात्मक बदलाव आ जाता है। इसके साथ ही उसमें रेकी और प्राणिक हिलींग के सिद्धान्तानुसार गुरु की ऊर्जा, आशीर्वाद की तरंगों का प्रवाह होने लगता है। फलतः व्यक्ति की अशुभ लेश्याएँ शुभ में परिवर्तित होने लगती है। आभा मंडल शुद्ध होने लगता है। दूसरों के जो-जो गुणों एवं दोषों का हम बखान करते हैं, वे हमारे अंदर भी विकसित होने लगते हैं। अर्थात् गुणाणुवाद से, वंदन कर्ता में भी सद्गुण बढ़ने लगते हैं। परिणाम स्वरूप वंदन कर्ता भय, तनाव, दुःख, नकारात्मक सोच आदि भावों से मुक्त होने लगता है एवं उसमें अभय, सन्तोष, प्रसन्नता, उत्साह का प्रार्दुभाव होने लगता है। आत्मा कर्मो के आवरण से मुक्त एवं हल्की होने लगती है। हल्की वस्तु ऊपर उठती है। अतः सही विधि द्वारा गुरु वंदन पाठ से भावों द्वारा गुरु वंदन से नीच गौत्र का बंध नहीं होता। वंदन करते समय दृष्टि गुरु की तरफ, भावों में गुरु के प्रति श्रद्धा एवं विनय तथा वाणी में गुरु के गुणों के प्रति प्रमोदभाव की अभिव्यक्ति हो। वंदन बिना किसी स्वार्थ एवं कामना के अहोभाव पूर्वक होना चाहिए अन्यथा वह मात्र द्रव्य वंदन ही होगा, जिससे अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा। चिन्तनपूर्वक समझकर की गई धार्मिक क्रियाओं से लाभ बहुत बढ़ जाता है। तिक्खुतों के पाठ में उच्चारित प्रत्येक शब्द के रहस्य का चिंतन करते हुए यदि शारीरिक क्रिया करें तो वह क्रिया कभी भार स्वरूप नहीं लगती। रोग भी दुःख, तनाव, भय, अशान्ति का प्रमुख कारण है। गुरु वंदन से कषाय मंद होते हैं। प्रमाद दूर होता है और संयमित जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। फलतः अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। •
Netra Jyoti Vardhak Mantra (Chakshushopnishad) नेत्रज्योति वर्धक मंत्र (चाक्षुषोपनिषद)
Netra Jyoti Mantra (Chakshushopnishad) नेत्रज्योति मंत्र (चाक्षुषोपनिषद)(Mantra for better Eyesight) •
चाक्षुषोपनिषद से ली गई यह प्रार्थना आंखों के रोगों से मुक्ति और शानदार दृष्टि प्राप्त करने के लिए अचूक मंत्र है।
इससे दृष्टि बढ़ जाती है और आँखें तेज हो जाती हैं। यह प्रार्थना भगवान सूर्य को संबोधित है और इसमें यह प्रार्थना की जाती है कि मुझे पिछले जीवन से अपने सारे बुरे कर्म से छुटकारा दिलाकर, मेरी आँखों में प्रकाश स्थापित करें और मेरे सभी नेत्र रोगों को ठीक कर दें।
•
ॐ तस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बन्ध्यु ऋषि:, गायत्री छन्द:,
सूर्यो देवता, चक्षूरोगनिवृत्तये जपे विनियोग:। •
ॐ चक्षुष चक्षुष चक्षुष तेजः स्थिरो भव, माम (या रोगी का नाम) पाहि पाहि,
त्वरितं चक्शुरोगान शमय शमय
मम जातरूपं तेजो दर्शये दर्शये,
यथा अहम अन्धो नस्याम तथा कल्पय कल्पय
कल्याणं कुरु कुरु,
यानी मम पूर्व जन्मोपार्जितानी
चक्षुष प्रतिरोधक दुष्क्रुतानी
सर्वानी निर्मूलय निर्मूलय ।
ॐ नमः चक्षुः तेजोदात्रे दिव्यायभास्कराय
। ॐ नमः करूनाकराय अमृताय ।
ॐ नमः सूर्याय । ॐ नमो भगवते श्री सूर्याय । अक्षितेजसे नमः
। खेचराय नमः । महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः। असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय,
मृत्योरमा अमृतंगमय,
उष्णो भगवान् शुचिरूपः हंसो भगवान् शुचि प्रतिरूपः।
यइमाम् चाक्षुशमतिम विद्याम
ब्रह्मणों नित्यम अधीयते।
न तस्य अक्षि रोगो भवती
न तस्य कूले अंधोर भवती
। अष्टो ब्राह्मणाम ग्राहित्वा
विद्या सिद्धिर भवती
विश्वरूपं । घ्रणितम जातवेदसम हिरणमयम पुरुषंज्योतीरूपं तपन्तं
सहस्त्ररश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानाम उदयत्येष सूर्यः
।। ॐ नमो भगवते आदित्याय अक्षितेजसे-अहो वाहिनी अहो वाहिनी स्वाहाः ।। •
Samman Vardhak Mantra सम्मान वर्धक मंत्र ◆
मंत्र :
ॐ हत्थुमले विष्णु मुहु मले ॐ मलिय ॐ सतुहु माणु सीस धुणता जे गया आयास पायाल गतं ॐ अलिंगजरेस सर्व जरे स्वाहा। ◆
विधि : इस मंत्र को सात बार जपते हुए मुख के सामने अपनी दोनों हथेलियों को मसलकर और अपने मुख के ऊपर फेरकर जिस व्यक्ति से मिलें वह सम्मान करे
Swayamvara Parvathi Mantra स्वयंवर पार्वती मंत्र 108 times
Swayamvara Parvathi Mantra स्वयंवर पार्वती मंत्र
यह मंत्र स्वयंवर पार्वती स्तोत्र से लिया गया है। यह मंत्र स्वयंवर पार्वती स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक के प्रथम अक्षर से मिलकर बना है।
कोशिश करें कि समय एवं स्थान एक सा रहे.
माता रानी को फल फूल नैवेद्य अर्पित करें एवं धूप दीप जलाएं।
कम से कम 108 मंत्र प्रतिदिन 48 दिन तक करें अगर आपमें क्षमता है तो 1008 बार मंत्र भी आप प्रतिदिन कर सकते हैं।
वैसे शास्त्रीय विधि अनुसार इन मंत्रों के जप की संख्या 1 लाख बताई गई है। अगर आप की क्षमता है तो आप निश्चित संख्या में जप कर वह संख्या भी पूरी कर सकते हैं लेकिन यह केवल आपकी इच्छा पर ही निर्भर करता है.
★ ॐ ह्रीं योगिनी योगिनी योगेश्वरी योग भयन्करी सकल स्थावर जन्गमस्य मुख हृदयं मम वशं आकर्षय आकर्षय नमः ॥ ★
आप स्त्री अथवा पुरुष अगर आपकी शादी में देर हो रही है और शादी के संबंध आकर चले जाते हैं लेकिन बात नहीं बन रही हैं तो आप इस मंत्र को श्रद्धा पूर्वक पूर्ण विश्वास के साथ करें, शीघ्र ही आप का कार्य पूर्ण होगा।
अगर आप किसी से प्रेम करते हैं और विवाह करना चाहते हैं तो यह मंत्र आपकी प्रेम को पूर्ण करने में और विवाह कराने में बहुत सहायक होगा अतः श्रद्धा पूर्वक इस मंत्र का जाप करें।
अगर आपकी शादी हो चुकी है लेकिन आपके वैवाहिक जीवन में किसी भी कारण से परेशानियां चल रही है अथवा बात तलाक तक पहुंच चुकी है तो आप इस मंत्र को पूरी श्रद्धा से करें। मां गौरी से प्रार्थना करें कि वह आपके वैवाहिक जीवन (दांपत्य जीवन) की रक्षा करें और आपके दांपत्य जीवन में मधुरता लाए और उसे लंबा करें। आप शीघ्र ही देखेंगे कि आपकी दांपत्य जीवन से परेशानियां दूर हो रही है और आपका दांपत्य जीवन मधुर हो रहा है।
इसके साथ ही साथ अगर सब कुछ ठीक होते हुए भी आप की प्रजनन क्षमता दुर्बल हो रही है अर्थात् आपको संतान की प्राप्ति में बाधा आ रही है तो भी आप इस मंत्र को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करके मनोरथ की पूर्ति कर सकते हैं।
7/24/2023 • 31 minutes, 45 seconds
Shri Namokar Chalisa श्री णमोकार चालीसा
Shri Namokar Chalisa श्री णमोकार चालीसा ★
सब सिद्धों को नमन कर, सरस्वती को ध्याय।
चालीसा नवकार का ,लिखूं त्रियोग लगाय।
महामंत्र नवकार हमारा।
जन जन को प्राणों से प्यारा।
मंगलमय यह प्रथम कहा है।
मंत्र अनादि निधन महा है।
षट खण्डागम में गुरुवर ने।
मंगलाचरण लिखा प्राकृत में।
यहीं से ही लिपिबद्ध हुआ है
भवि जन ने डर धार लिया है।
पाँचो पद के पैतीस अक्षर।
अट्ठावन मात्रा हैं सुखकर।
मंत्र चौरासी लाख कहाए ,
इससे ही निर्मित बतलाए।
अरिहंतो को नमन किया है।
मिथ्यातम को वमन किया है।
सब सिद्धों को वन्दन करके।
झुक जाते भावों में भर के।
आचार्यो की पदभक्ति से।
जीव उबरते निज शक्ति से।
उपाध्याय गुरुओं का वंदन।
मोह तिमिर का करता खण्डन।
सर्व साधुओं को मन लाना।
अतिशयकारी पुण्य बढ़ाना।
मोक्ष महल की नीव बनाता।
अतः मूलमंत्र कहलाता।
स्वर्णाक्षर में जो लिखवाता।
सम्पत्ति से टूटे नहीं नाता।
णमोकार के अदभुत महिमा।
भक्त बने भगवन ये गरिमा।
जिसने इसको मन से ध्याया।
मनचाहा फल उसने पाया।
अहंकार जब मन का मिटता।
भव्य जीव तब इसको जपता।
मन से राग द्धेष मिट जाता।
समात भाव हृदय में आता।
अंजन चोर ने इसको ध्याया।
बने निरंजन निज पद पाया।
पार्श्वनाथ ने इसे सुनाया।
नाग - नागनी सुर पद पाया।
चाकदत्त ने अज को दीना।
बकरा भी सुर बना नवीना।
सूली पर लटके कैदी को।
दिया सेठ ने आत्म शुद्धि को।
हुई शांति पीड़ा हरने से।
द्वे बना इसको पढ़ने से।
पद्म रुचि के बैल को दीना।
उसने भी उत्तम पद लीना।
श्वान ने जीवन्धर से पाया।
मरकर वह भी देव कहाया।
प्रातः प्रतिदिन जो पढ़ते हैं।
अपने दुःख - संकट हरते हैं।
जो नवकार की भक्ति करते।
देव भी उनकी सेवा करते।
जिस जिसने भी इसे जपा है।
वही स्वर्ण सम खूब तपा है।
तप - तप कर कुंदन बन जाता।
अन्त में मोक्ष परम पद पाता।
जो भी कण्ठ हार कर लेता।
उसको भव भव में सुख देता
जिसने इसको शीश पे धारा।
उसने ही रिपु कर्म निवारा।
विश्व शांति का मूलमंत्र है।
भेद ज्ञान का महामंत्र है।
जिसने इसका पाठ कराया।
वचन सिद्धि को उसने पाया।
खाते - पीते - सोते जपना।
चलते -फिरते संकट हरना।
क्रोध अग्नि का बल घट जावे।
मंत्र नीर शीतलता लावे।
चालीसा जो पढ़े पढ़ावे।
उसका बेडा पार हो जावे।
क्षुलकमणि शीतल सागर ने।
प्रेरित किया लिखा ' अरुण ' ने।
तीन योग से शीश नवाऊँ।
तीन रतन उत्ताम पा जाऊ।
पर पदार्थ से प्रीत हटाऊँ।
शुद्धातम के ही गुण गाऊँ।
हे प्रभु ! बस ये ही वर चाहूँ।
अंत समय नवकार ही ध्याऊँ।
एक एक सीढ़ी चढ़ जाऊँ।
अनुक्रम से निज पद पा जाऊँ।
पंच परम परमेष्ठी , है जग में विख्यात।
नमन करे जो भाव से ,शिव सुख पा हर्षात।
★N
Shri Namutthu Nam Sutra श्री नमुत्थु णं सूत्र ★
नमुत्थुणं सूत्र शाश्वत (eternal) है क्योंकि जब भी तीर्थंकरों का जन्म होता है, तब सौधर्मेन्द्र इसी सूत्र की स्तुति करते हैं.
This sutra praises and offers reverence to all the present enlightened ones, past liberated ones, and the ones who would be liberated in the future and recites their qualities. The celestial Lord Sakrendra (Indra) recites it whenever the soul of a Jina is conceived, in its final human life, as a Tirthankara before liberation.
■ नमुत्थु णं सूत्र ■
● नमुत्थु णं, अरिहंताणं, भगवंताणं ●
● आइ-गराणं, तित्थ-यराणं, सयं-संबुद्धाणं ●
● पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सीहाणं, पुरिस-वर-पुंडरीआणं पुरिस-वर-गंध-हत्थीणं ●
●
लोगुत्तमाणं, लोग-जाहाणं, लोग-हिआणं लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोअ-गराणं ● ..... ● अभय-दयाणं, चक्खु-दयाणं, मग्ग-दयाणं,
सरण-दयाणं, बोहि-दयाणं ●
● धम्म-दयाणं, धम्म-देसयाणं, धम्म-नायगाणं, धम्म-सारहीणं, धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं ●
● अप्पडिहय-वर-नाण-दंसण-धराणं, वियट्ट-छउमाणं ●
● जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं ●
● सव्वन्नूणं, सव्व-दरिसीणं, सिव-मयल- मरुअ-मणंत- मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअ-भयाणं ●
● जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति-णागए काले ●
संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे ति-विहेण वंदामि ●
7/22/2023 • 2 minutes, 32 seconds
Shiv Bhujang Prayat Stotram शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम्
Shiv Bhujang Prayat Stotram शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम् ★
गलद्दानगण्डं मिलद्भृङ्गषण्डं
चलच्चारुशुण्डं जगत्त्राणशौण्डम् ।
कनद्दन्तकाण्डं विपद्भङ्गचण्डं
शिवप्रेमपिण्डं भजे वक्रतुण्डम् ॥ १ ॥
अनाद्यन्तमाद्यं परं तत्त्वमर्थं
चिदाकारमेकं तुरीयं त्वमेयम् ।
हरिब्रह्ममृग्यं परब्रह्मरूपं
मनोवागतीतं महःशैवमीडे ॥ २ ॥
स्वशक्त्यादि शक्त्यन्त सिंहासनस्थं
मनोहारि सर्वाङ्गरत्नोरुभूषम् ।
जटाहीन्दुगङ्गास्थिशम्याकमौलिं
पराशक्तिमित्रं नमः पञ्चवक्त्रम् ॥ ३ ॥
शिवेशानतत्पूरुषाघोरवामादिभिः
पञ्चभिर्हृन्मुखैः षड्भिरङ्गैः ।
अनौपम्य षट्त्रिंशतं तत्त्वविद्यामतीतं
परं त्वां कथं वेत्ति को वा ॥ ४ ॥
प्रवालप्रवाहप्रभाशोणमर्धं मरुत्वन्मणि
श्रीमहः श्याममर्धम् ।
गुणस्यूतमेतद्वपुः शैवमन्तः
स्मरामि स्मरापत्तिसम्पत्तिहेतुम् ॥ ५ ॥
स्वसेवासमायातदेवासुरेन्द्रा
नमन्मौलिमन्दारमालाभिषिक्तम् ।
नमस्यामि शम्भो पदाम्भोरुहं ते
भवाम्भोधिपोतं भवानी विभाव्यम् ॥ ६ ॥
जगन्नाथ मन्नाथ गौरीसनाथ
प्रपन्नानुकम्पिन्विपन्नार्तिहारिन् ।
महःस्तोममूर्ते समस्तैकबन्धो
नमस्ते नमस्ते पुनस्ते नमोऽस्तु ॥ ७ ॥
विरूपाक्ष विश्वेश विश्वादिदेव त्रयी
मूल शम्भो शिव त्र्यम्बक त्वम् ।
प्रसीद स्मर त्राहि पश्यावमुक्त्यै
क्षमां प्राप्नुहि त्र्यक्ष मां रक्ष मोदात् ॥ ८ ॥
महादेव देवेश देवादिदेव
स्मरारे पुरारे यमारे हरेति ।
ब्रुवाणः स्मरिष्यामि भक्त्या भवन्तं
ततो मे दयाशील देव प्रसीद ॥ ९ ॥
त्वदन्यः शरण्यः प्रपन्नस्य नेति
प्रसीद स्मरन्नेव हन्यास्तु दैन्यम् ।
न चेत्ते भवेद्भक्तवात्सल्यहानिस्ततो मे
दयालो सदा सन्निधेहि ॥ १० ॥
अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं
भवानेव दाता त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिमेव स्थिरां देहि मह्यं कृपाशील
शम्भो कृतार्थोऽस्मि तस्मात् ॥ ११
पशुं वेत्सि चेन्मां तमेवाधिरूढः
कलङ्कीति वा मूर्ध्नि धत्से तमेव ।
द्विजिह्वः पुनः सोऽपि ते कण्ठभूषा
त्वदङ्गीकृताः शर्व सर्वेऽपि धन्याः ॥ १२ ॥
न शक्नोमि कर्तुं परद्रोहलेशं
कथं प्रीयसे त्वं न जाने गिरीश ।
तथाहि प्रसन्नोऽसि कस्यापि
कान्तासुतद्रोहिणो वा पितृद्रोहिणो वा ॥ १३ ॥
स्तुतिं ध्यानमर्चां यथावद्विधातुं
भजन्नप्यजानन्महेशावलम्बे ।
त्रसन्तं सुतं त्रातुमग्रे
मृकण्डोर्यमप्राणनिर्वापणं त्वत्पदाब्जम् ॥ १४ ॥
शिरो दृष्टि हृद्रोग शूल प्रमेहज्वरार्शो
जरायक्ष्महिक्काविषार्तान् ।
त्वमाद्यो भिषग्भेषजं भस्म शम्भो
त्वमुल्लाघयास्मान्वपुर्लाघवाय ॥ १५ ॥
दरिद्रोऽस्म्यभद्रोऽस्मि भग्नोऽस्मि दूये
विषण्णोऽस्मि सन्नोऽस्मि खिन्नोऽस्मि चाहम् ।
भवान्प्राणिनामन्तरात्मासि शम्भो
ममाधिं न वेत्सि प्रभो रक्ष मां त्वम् ॥ १६ ॥
त्वदक्ष्णोः कटाक्षः पतेत्त्र्यक्ष यत्र
क्षणं क्ष्मा च लक्ष्मीः स्वयं तं वृणाते ।
किरीटस्फुरच्चामरच्छत्रमाला
कलाचीगजक्षौमभूषाविशेषैः ॥ १७ ॥
भवान्यै भवायापि मात्रे च पित्रे
मृडान्यै मृडायाप्यघघ्न्यै मखघ्ने ।
शिवाङ्ग्यै शिवाङ्गाय कुर्मः शिवायै
शिवायाम्बिकायै नमस्त्र्यम्बकाय ॥ १८ ॥
भवद्गौरवं मल्लघुत्वं विदित्वा
प्रभो रक्ष कारुण्यदृष्ट्यानुगं माम् ।
शिवात्मानुभावस्तुतावक्षमोऽहं
स्वशक्त्या कृतं मेऽपराधं क्षमस्व ॥ १९ ॥
यदा कर्णरन्ध्रं व्रजेत्कालवाह
द्विषत्कण्ठघण्टा घणात्कारनादः ।
वृषाधीशमारुह्य देवौपवाह्यन्तदा वत्स
मा भीरिति प्रीणय त्वम् ॥ २० ॥
यदा दारुणाभाषणा भीषणा मे
भविष्यन्त्युपान्ते कृतान्तस्य दूताः ।
तदा मन्मनस्त्वत्पदाम्भोरुहस्थं कथं
निश्चलं स्यान्नमस्तेऽस्तु शम्भो ॥ २१ ॥
यदा दुर्निवारव्यथोऽहं शयानो
लुठन्निःश्वसन्निःसृताव्यक्तवाणिः ।
तदा जह्नुकन्याजलालङ्कृतं ते
जटामण्डलं मन्मनोमन्दिरं स्यात् ॥ २२ ॥
यदा पुत्रमित्रादयो मत्सकाशे
रुदन्त्यस्य हा कीदृशीयं दशेति ।
तदा देवदेवेश गौरीश शम्भो
नमस्ते शिवायेत्यजस्रं ब्रवाणि ॥ २३ ॥
यदा पश्यतां मामसौ वेत्ति
नास्मानयं श्वास एवेति वाचो भवेयुः ।
तदा भूतिभूषं भुजङ्गावनद्धं पुरारे
भवन्तं स्फुटं भावयेयम् ॥ २४ ॥
यदा यातनादेहसन्देहवाही
भवेदात्मदेहे न मोहो महान्मे ।
तदा काशशीतांशुसङ्काशमीश
स्मरारे वपुस्ते नमस्ते स्मरामि ॥ २५ ॥
यदापारमच्छायमस्थानमद्भिर्जनैर्वा
विहीनं गमिष्यामि मार्गम् ।
तदा तं निरुन्धङ्कृतान्तस्य मार्गं
महादेव मह्यं मनोज्ञं प्रयच्छ ॥ २६ ॥
यदा रौरवादि स्मरन्नेव भीत्या
व्रजाम्यत्र मोहं महादेव घोरम् ।
तदा मामहो नाथ कस्तारयिष्यत्यनाथं
पराधीनमर्धेन्दुमौले ॥ २७ ॥
यदा श्वेतपत्रायतालङ्घ्यशक्तेः
कृतान्ताद्भयं भक्तिवात्सल्यभावात् ।
तदा पाहि मां पार्वतीवल्लभान्यं न
पश्यामि पातारमेतादृशं मे ॥ २८ ॥
इदानीमिदानीं मृतिर्मे भवित्रीत्यहो
सन्ततं चिन्तया पीडितोऽस्मि ।
कथं नाम मा भून्मृतौ भीतिरेषा
नमस्ते गतीनां गते नीलकण्ठ ॥ २९ ॥
अमर्यादमेवाहमाबालवृद्धं हरन्तं
कृतान्तं समीक्ष्यास्मि भीतः ।
मृतौ तावकाङ्घ्र्यब्जदिव्य
प्रसादाद्भवानीपते निर्भयोऽहं भवानि ॥ ३० ॥
7/21/2023 • 19 minutes, 51 seconds
Sarvaarth Siddhi Mantra सर्वार्थ सिद्धि मंत्र
Sarvaarth Siddhi Mantra सर्वार्थ सिद्धि मंत्र ★
सर्वार्थ सिद्धि मंत्र का प्रभाव साधकों के लिए जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है और अगर चाह लें, तो पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। यह महामंत्र माता भगवती दुर्गा जी सहित उनके तीनों स्वरूपों महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद व दर्शन प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है।
मंत्र जाप रुद्राक्ष या स्फटिक की माला से किया जा सकता है कमलगट्टे व मूंगे की बनी माला भी प्रभावक होती है।
सर्वार्थ सिद्धि मंत्र :-
★ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ★
1. मारण :-मारण का भाव है अपने क्रोध, मद, लोभ आदि का नाश, न कि किसी की हत्या का चिंतन करना। इस मंत्र के जाप से शत्रुपक्ष की शक्ति क्षीण हो जाती है।
2. मोहन :- मोहन का तात्पर्य है अपनी इष्ट माता भगवती जी को प्रसन्न करना। यदि वह साधक पर प्रसन्न हो गयीं, तो फिर प्रकृतिसत्ता उसकी इच्छानुसार समाज के हर क्षेत्र में साधक के प्रति सम वातावरण तैयार करती रहती है।
3. वशीकरण :-अपने मन को पूर्णतया अपने वश में किया जा सकता है और जिसका अपने मन पर अधिकार हो जाता है, वह स्वतः सबके मन पर अधिकार करने की पात्रता प्राप्त कर लेता है।
4. स्तम्भन :- इस मंत्र के माध्यम से अपनी इन्द्रियों को विषय-विकारों से रोका जा सकता है या स्तम्भित किया जा सकता है। जो व्यक्ति अपने विषय-विकारों को रोकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है, वह हर क्षेत्र में स्तम्भन कर सकता है।
5. उच्चाटन :-इस मंत्र के द्वारा मोह, ममता, लिप्तता आदि को त्यागकर साधक मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता है और जिसने स्वयं को भौतिक जगत् से उच्चाटित करके आध्यात्मिक जगत् से नाता जोड़ लिया, तो फिर वह किसी भी स्थिति का उच्चाटन कर सकता है।
7/21/2023 • 52 minutes, 4 seconds
Restlessness Mantra व्याकुलता हरण मन्त्र 20 times
Restlessness Mantra व्याकुलता हरण मन्त्र 20 times
◆. ॐ हंसः हंसः ।
◆
विधि- किसी कारण से कोई स्त्री-पुरुष बेचैनी अनुभव करते हों तो उस समय उपरोक्त मंत्र से पानी को २० बार अभिमन्त्रित कर पिलाने से तुरन्त बेचैनी दूर होती है ।
7/21/2023 • 1 minute, 54 seconds
Shiv 108 Naam Stotram शिव अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
Shiv 108 Naam Stotram शिव अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ★
शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च~ 🔱 देवा उचुः ।
जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर । जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥
नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे ।
अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥
जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन ।
जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥
जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित ।
त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥
शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय ।
शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥
सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर ।
जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥
जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक ।
रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥
दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते ।
जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥ देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत ।
वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥
भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण ।
त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥
शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज ।
नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥
कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् ।
जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥
पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् ।
दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥ अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते ।
सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥
एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये ।
न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः ।
ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥
श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् ।
विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥ •
~ इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डे शिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ •
Dev Darshan Stotra देवदर्शन स्तोत्र ■
दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पापनाशनम्।
दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम्॥ १॥
दर्शनेन जिनेन्द्राणां, साधूनां वन्दनेन च।
न तिष्ठति चिरं पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम्॥ २॥
वीतराग – मुखं दृष्ट्वा, पद्मरागसमप्रभम्।
नैकजन्मकृतं पापं, दर्शनेन विनश्यति॥ ३॥
दर्शनं जिनसूर्यस्य, संसार-ध्वान्तनाशनम्।
बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थ-प्रकाशनम्॥ ४॥
दर्शनं जिनचन्द्रस्य, सद्धर्मामृत-वर्षणम्।
जन्म-दाहविनाशाय, वर्धनं सुखवारिधे:॥ ५॥
जीवादितत्त्व प्रतिपादकाय, सम्यक्त्व मुख्याष्टगुणार्णवाय।
प्रशान्तरूपाय दिगम्बराय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय॥ ६॥
चिदानन्दैक – रूपाय, जिनाय परमात्मने।
परमात्मप्रकाशाय, नित्यं सिद्धात्मने नम:॥ ७॥
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम।
तस्मात्कारुण्यभावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर:॥ ८॥
न हि त्राता न हि त्राता, न हि त्राता जगत्त्रये।
वीतरागात्परो देवो, न भूतो न भविष्यति॥ ९॥
जिने भक्तिर्जिने भक्तिर्जिने भक्ति-र्दिनेदिने।
सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु,सदा मेऽस्तु भवे भवे॥ १०॥
जिनधर्मविनिर्मुक्तो, मा भूवंचक्रवत्र्यपि।
स्यां चेटोऽपि दरिद्रोऽपि, जिनधर्मानुवासित:॥ ११॥
जन्मजन्मकृतं पापं, जन्मकोटिमुपार्जितम्।
जन्ममृत्युजरा-रोगो, हन्यते जिनदर्शनात्॥ १२॥
अद्याभवत् सफलता नयन-द्वयस्य,
देव ! त्वदीय चरणाम्बुज वीक्षणेन।
अद्य त्रिलोक-तिलक ! प्रतिभासते मे,
संसार-वारिधिरयं चुलुक-प्रमाण:॥ १३॥
7/20/2023 • 5 minutes, 14 seconds
Ganesh Stuti by Nazeer Akbarabadi गणेश स्तुति (नज़ीर अकबराबादी)
Ganesh Stuti by Nazeer Akbarabadi नज़ीर अकबराबादी: गणेश जी की स्तुति
★
अव्वल तो दिल में कीजिए पूजन गनेश जी।
स्तुति भी फिर बखानिए धन-धन गनेश जी।
भक्तों को अपने देते हैं दर्शन गनेश जी।
वरदान बख़्शते हैं जो देवन गनेश जी।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥1॥
माथे पै अर्द्ध चन्द्र की शोभा, मैं क्या कहूं।
उपमा नहीं बने है मैं चुपका ही हो रहूं।
उस छवि को देख देख के आनन्द सुख लहूं।
लैलो निहार दिल में सदा अपने वो जपूं।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥2॥
इक दन्त को जो देखा किया खू़ब है बहार।
इस पै हज़ार चन्द की शोभा को डालूँ वार।
इनके गुणानुवाद का है कुछ नहीं शुमार।
हर वक्त दिल में आता है अपने यही विचार।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥3॥
गजमुख को देख होता है सुख उर में आन-आन।
दिल शाद-शाद होता है मैं क्या करूं बखान।
इल्मो हुनर में एक हैं और बुद्धि के निधान।
सब काम छोड़ प्यारे रख मन में यही आन।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥4॥
क्या छोटे-छोटे हाथ हैं चारों भले-भले।
चारों में चार हैं जो पदारथ खरे-खरे।
देते हैं अपने दासों को जो हैं बड़े-बड़ेI
अलबत्ता अपनी मेहर यह सब पर करें-करें।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥5॥
इक दस्त में तो हैगा यह सुमिरन बहार दार?
और दूसरे में फर्सी अजब क्या है उसकी धार?
तीजे में कंज चौथे कर में हैं लिए अहार?
मत सोच दिल में और तू ऐ यार बार-बार॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥6॥
अच्छे विशाल नैन हैं और तोंद है बड़ी।
हाथों को जोड़ सरस्वती हैं सामने खड़ी॥
होवे असान पल में ही मुश्किल है जो अड़ी।
फल पावने की इनसे तो है भी यही घड़ी॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥7॥
मूसा सवारी को है अजब ख़ूब बेनजीर।
क्या खूब कान पंजे हैं और दुम है दिल पजीर॥
खाते हैं मोती चूर कि चंचल बड़ा शरीर।
दुख दर्द को हरे हैं तो दिल को बधावें धीर॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥8॥
घी में मिला के कोई जो चढ़ाता है आ सिन्दूर।
सब पाप उसके डालता कर दम के बीच चूर॥
फूल और विरंच शीश पै दीपक को रख कपूर।
जो मन में होवे इच्छा तो फिर क्या है उससे दूर॥
हर आन ध्यान औ' सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि और अन-धन गनेश जी॥9॥
जुन्नार है गले में एक नाग जो काला।
फूलों के हार डहडहे और मोती की माला॥
वह हैंगे अजब आन से शिव गौरी के लाला।
सुर नर मुनि भी कहते हैं वो दीन दयाला॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥10॥
सनकादि सूर्य चन्द्र खड़े आरती करें।
और शेषनाग गंध की ले धूप को धरें॥
नारद बजावें बीन चँवर इन्द्र ले ढरें।
चारों बदन से स्तुति ब्रह्मा जी उच्चरें॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥11।
जंगम अतीत जोगी जती ध्यान लगावें।
सुर नर मुनीश सिद्ध सदा सिद्धि को पावें॥
और संत सुजन चरन की रज शीश चढ़ावें।
वेदों पुरान ग्रंथ जो गुन गाय सुनावें॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥12॥
जो जो शरन में आया है कीन्हा उसे सनाथ।
भव सिन्धु से उतारा है दम में पकड़ के हाथ।
यह दिल में ठान अपने और छोड़ सबका साथ।
तू भी ‘नज़ीर’ चरणों में अपना झुका के माथ।
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी।
देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥13॥
हर आन ध्यान कीजिए सुमिरन गनेश जी। देवेंगे रिद्धि सिद्धि औ' अन-धन गनेश जी॥ ★
- नज़ीर अकबराबादी
7/19/2023 • 11 minutes, 28 seconds
Siddh Beej Mantra सिद्ध बीजमंत्र 108 times
Siddh Beej Mantra सिद्ध बीजमंत्र •
माँ शक्ति की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिये नवरात्रि में इस सिद्ध बीजमंत्र की साधना जरूर करें :-
•
|| ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ह्रः ऐं नमः ||
• इस बीजमंत्र की साधना सभी राशि के जातक कर सकते हैं। कुश का आसन,रक्त चन्दन की माला, मिठाई का भोग उत्तर दिशा की ओर मुख करके, देशी गाय के घी का अखंड दीपक जलाकर, ब्रह्मचर्य तथा पूर्ण शुद्धि के साथ नवरात्रि के 9 दिनों में 12500 जप अर्थात 125 माला पूर्ण करने से इष्टकार्य की सिद्धि होती है । तत्पश्चात् उपरोक्त बीजमंत्र की प्रतिदिन 1 माला का जप अवश्य करें ।
आचार, विचार, व्यवहार, खान-पान शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखे!
महाकाल सब का कल्याण करें
Fever Curing Mantra ज्वरनाशक मन्त्र ★
ॐ ह्रीं अहं सर्व ज्वरं नाशय- नाशय, ॐ णमो सर्वोषधिवंताण ह्रीं नमः ★
विधि- १०८ बार या २१ बार पानी मन्त्रित करके पिलावें तो सर्व ज्वर पीड़ा जाय।
7/19/2023 • 4 minutes, 48 seconds
Shiv Kshama Prarthana Stotra शिव क्षमा प्रार्थना स्तोत्र
Shiv Kshama Prarthana Stotra शिव क्षमा प्रार्थना स्तोत्र ★
मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्
जन्म मृत्युजरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ||१||
मन्त्रेणाक्षर हीनेन पुष्पेण विफलेन च
पूजितोसि महादेव तत्सर्वं क्षम्यतां मम ||२||
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवननयंजं वा मानसं वापराधम् ||३||
विहितमविहितं वा सर्वमेतत क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेवशम्भो ||४||
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व महेश्वरः ||५||
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम् । तस्मात्कारूणयभावेन रक्षस्व पार्वतीनाथः ||६||
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रयमेव च
आगता सुख सम्पतिः पुण्याच्च तव दर्शनात् ।। ७ ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर !
यत्पूजितम् मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ॥८॥
हरहर महादेव यदक्षरंपदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद शिवशंकर ||९||•
7/18/2023 • 3 minutes, 35 seconds
Logass Sutra लोगस्स सूत्र
Logass Sutra लोगस्स सूत्र ★
लोगस्स उज्जोअगरे धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं चऊवीसं पि केवली ॥1॥
उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइ च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥2॥
सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमलमणंतं च जिणं धम्मं संतिं च वंदामि ॥3॥
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च ।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥4॥
एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥5॥
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा ।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥6॥
चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥7॥ •
7/18/2023 • 3 minutes, 13 seconds
Money Attraction Mantra धन आकर्षण मन्त्र 108 times
Money Attraction Mantra धन आकर्षण मन्त्र
★ ॐ धनाय नम: ॐ ★
◆ इस मंत्र का जाप करने से धन संबंधित परेशानियां दूर होती हैं।
7/18/2023 • 9 minutes, 11 seconds
Exam Success Saraswati Mantra परीक्षा सफलता सरस्वती मन्त्र 7 times
Exam Success Mantra परीक्षा सफलता मन्त्र ■
मां सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी है। जब भी कोई परीक्षा देने जाए तब इस मंत्र को सच्चे मन से मां सरस्वती का स्मरण कर 7 बार पढ़ें। अगर समयाभाव हो तो मात्र एक बार भी घी का दीपक जलाकर पढ़ा जा सकता है।
सरस्वती पूजन के समय यह श्लोक पढ़ने से मां सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। ★
मां सरस्वती का श्लोक : ★
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् ।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम् ।।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभिः ।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै: ।। ★
7/17/2023 • 6 minutes, 46 seconds
Vishnu Stuti विष्णु स्तुति
Vishnu Stuti विष्णु स्तुति ◆
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं । विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।। लक्ष्मीकान ्तं कमलनयनं योगिभिध्य्यांनगम्यम् । वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥ ◆
अर्थ~ जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को नमस्कार करता हूँ।
7/17/2023 • 1 minute, 40 seconds
Ganesha Various Names Mantras गणेश विभिन्न नाम मन्त्र
Ganesha Various Names Mantras गणेश विभिन्न नाम मन्त्र
7/17/2023 • 18 minutes, 12 seconds
Lakshmi Prapti Jain Mantra लक्ष्मी प्राप्ति जैन मन्त्र 108 times
Lakshmi Prapti Jain Mantra लक्ष्मी प्राप्ति जैन मन्त्र
★ ॐ ह्रीं अर्हम णमो विपपोसहिपत्ताणं मम शीघ्र लक्ष्मी लाभं भवतु ★
इस मंत्र का नियमित जाप शीघ्र देगा लक्ष्मी
7/17/2023 • 22 minutes, 10 seconds
Bhaktamar Stotra (Hindi) भक्तामर स्तोत्र (हिन्दी)
Bhaktamar Stotra (Hindi) भक्तामर स्तोत्र (हिन्दी)
7/16/2023 • 21 minutes, 59 seconds
Rinmochan Maha Ganpati Stotra ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र
Rinmochan Maha Ganpati Stotra ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र ◆
विनियोग –
ॐ अस्य श्रीऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान् शुक्राचार्य ऋषिः, ऋण-मोचन-गणपतिः देवता, मम-ऋण-मोचनार्थं जपे विनियोगः।
ॐ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये ॥ १ ॥
महागणपतिं देवं महासत्त्वं महाबलम् ।
महाविघ्नहरं सौम्यं नमामि ऋणमुक्तये ॥ २ ॥
एकाक्षरं एकदन्तं एकब्रह्म सनातनम् ।
एकमेवाद्वितीयं च नमामि ऋणमुक्तये ॥ ३ ॥
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णं शुक्लगन्धानुलेपनम् ।
सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ४ ॥
रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम् ।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ॥५॥
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम् । कृष्णपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ॥६॥
पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम् ।
पीतपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ७॥
नीलाम्बरं नीलवर्णं नीलगन्धानुलेपनम् ।
नीलपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ८॥
धूम्राम्बरं धूम्रवर्णं धूम्रगन्धानुलेपनम् ।
धूम्रपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ९॥
सर्वाम्बरं सर्ववर्णं सर्वगन्धानुलेपनम् ।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये ॥१०॥
भद्रजातं च रूपं च पाशाङ्कुशधरं शुभम् ।
सर्वविघ्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ११ ॥
फलश्रुतिः -
यः पठेत् ऋणहरं स्तोत्रं प्रातः काले सुधी नरः।
षण्मासाभ्यन्तरे चैव ऋणच्छेदो भविष्यति ॥
१२ ॥ ◆
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र के लाभ
क़र्ज़ से मुक्ति पाने के लिए ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति मिलती है
इस स्तोत्र का पाठ करने से धन सम्बन्धी परेशानी दूर होती है
इस स्तोत्र का पाठ करने से दोबारा क़र्ज़ लेने की स्तिथि उत्पन नहीं होती है
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र पाठ की विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करके घर के मंदिर को स्वच्छ करे
एक चौकी ले उसपर लाल रंग का कपडा बिछाये
मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा रखे
और गणेश जी को तिलक लगाए
गणेश जी के आगे पुष्प,धुप और घी का दीपक जलाये
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का पाठ आरम्भ करे
यह पाठ बुधवार को करना शुभ माना जाता है
7/16/2023 • 5 minutes, 57 seconds
Upri Badha Nivarak Jain Mantra ऊपरी बाधा निवारक जैन मंत्र
Progress Mantra उन्नति मन्त्र ◆ ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः। धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
◆ अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।
Maha Mrityunjay Mantra महामृत्युंजय मंत्र 108 times
Maha Mrityunjay Mantra महामृत्युंजय मंत्र •
भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने स्वच्छ आसन में पद्मासन की स्थिति में बैठकर रुद्राक्ष की माला से जाप करें। जाप करने से पहले सामने एक कटोरी में जल रखें। जाप करने के बाद उस जल तो पूरे घर में छिड़क दें। इससे हीन शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
• ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बंधनांन्मत्योर्मुक्षीय मामृतात । •
7/14/2023 • 31 minutes, 26 seconds
Dhanda Lakshmi Stotra धनदा लक्ष्मी स्तोत्र
Dhanda Lakshmi Stotra धनदा लक्ष्मी स्तोत्र ★
धनदे धनपे देवि, दानशीले दयाकरे |
त्वं प्रसीद महेशानि यदर्थं प्रार्थयाम्यहम || १ ||
धरामरप्रिये पुण्ये, धन्ये धनद-पूजिते |
सुधनं धार्मिकं देहि, यजमानाय सत्वरम || २ ||
रम्ये रुद्रप्रियेऽपर्णे, रमारूपे रतिप्रिये |
शिखासख्यमनोमूर्ते ! प्रसीद प्रणते मयि || ३ ||
आरक्त चरणाम्भोजे, सिद्धि-सर्वार्थदायिनि |
दिव्याम्बरधरे दिव्ये, दिव्यमाल्यानुशोभिते || ४ ||
समस्तगुणसम्पन्ने, सर्वलक्षण- लक्षिते |
शरच्चन्द्रमुखे नीले, नीलनीरद लोचने || ५ ||
चंचरीक – चमू – चारु – श्रीहार – कुटीलालके |
दिव्ये दिव्यवरे श्रीदे, कलकण्ठरवामृते || ६ ||
हासावलोकनैर्दीव्यैर्भक्ताचिन्तापहारके |
रूप – लावण्य – तारुण्य – कारुण्यगुणभाजने || ७ ||
क्वणत – कंकण – मँजीरे, रस-लीलाऽऽकराम्बुजे |
रुद्रव्यक्त – महत्तत्वे, धर्माधारे धरालये || ८ ||
प्रयच्छ यजमानाय, धनं धर्मेक – साधनम |
मातस्त्वं वाऽविलम्बेन, ददस्व जगदम्बिके || ९ ||
कृपाब्धे करुणागारे, प्रार्थये चाशू सिद्धये |
वसुधे वसुधारूपे, वसु – वासव – वन्दिते || १० ||
प्रार्थिने च धनं देहि, वरदे वरदा भव |
ब्रह्मणा ब्राह्मणैः पूज्या, त्वया च शङ्करो यथा || ११ ||
श्रीकरे शङ्करे श्रीदे ! प्रसीद मायि किङ्करे |
स्तोत्रं दारिद्र्य कष्टार्त्त – शमनं सुघन प्रदम || १२ ||
पार्वतीश – प्रसादेन – सुरेश किङ्करे स्थितम |
मह्यं प्रयच्छ मातस्त्वं त्वामहं शरणं गतः || १३ ||
यह स्तोत्र स्वयं धनदा द्वारा ही कथित है | इसकी फलश्रुति में कहा गया है
इसके पाठ से धनलाभ-दरिद्रता का नाश-सभी प्रकार के योग-भोग-सुख-वैभव की प्राप्ति होती है |
इसके चारगुना पाठ करने से अधिक और शीघ्र फल प्राप्त होता है |
|| इति श्री धनदा लक्ष्मी स्तोत्रं ||
7/14/2023 • 5 minutes, 24 seconds
Bhavishya Darshan Mantra भविष्यदर्शन मन्त्र 108 times
Bhavishya Darshan Mantra भविष्यदर्शन मन्त्र
◆ ॐ मणिनद चित्रकाय सर्वार्थ सिद्धि कार्यामम स्वप्न दर्शनाय कुरु कुरु स्वाहा' । ◆
इसका जप जापक को भविष्य वक्ता बना सकता है।
Sri Vindhyeshwari Stotram श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्
Sri Vindhyeshwari Stotram श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् ★
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं।
कपाल-शूल धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी।
वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कपीन्द्र जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं॥
॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र सम्पूर्ण ॥
( इस स्तोत्र का 9 दिन पूरी श्रद्धा से पाठ करने पर अपार धन संपदा, यश, सुख, समृद्धि, वैभव, पराक्रम, सौभाग्य, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। सफलता के द्वार खुलने लगते हैं।)
7/13/2023 • 3 minutes, 3 seconds
Kuber Kripa Mantra मेष राशि के लिए कुबेर कृपा मंत्र
Kuber Kripa Mantra मेष राशि के लिए कुबेर कृपा मंत्र ★ ॐ श्रीं यक्षराजाय नमः ★
7/13/2023 • 11 minutes, 28 seconds
Kuber Kripa Mantra वृषभ राशि के लिए कुबेर कृपा मंत्र
Kuber Kripa Mantra वृषभ राशि के लिए कुबेर कृपा मंत्र ★ ॐ श्रीं कुबेरराजाय नमः ★
7/13/2023 • 1 minute, 12 seconds
Kuber Kripa Mantra मिथुन राशि के लिए कुबेर कृपा मन्त्र
Kuber Kripa Mantra मिथुन राशि के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ★ ॐ श्रीं वैश्रवणाय नमः ★
7/13/2023 • 1 minute, 11 seconds
Punya Vardhak Mantra पुण्य वर्धक मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमः 108 times
Punya Vardhak Mantra पुण्य वर्धक मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमः 108 times
◆ (ये मंत्र पहले आपके पाप कर्मों को "नष्ट" करेगा और "पुण्य" को बढ़ाएगा, फिर "समृद्धि" लाएगा। ना किसी के चक्कर काटना, ना धन का खर्च और मन की शांति खोना। जप से मन में "विश्वास तुरंत आता है और “फालतू" विचारों को "ताला" लग जाता है.
बाधाएं आये ही नहीं, इसके लिए भक्ति और विश्वास से उपरोक्त मंत्र की १ माला तीर्थंकरों अथवा इष्टदेव की किसी भी मूर्ति/फोटो/तस्व ीर के आगे रोज जाप करें। (घर पर हो तो दीपक और अगरबत्ती करें -इससे अधिष्ठायक देव प्रसन्न होते हैं).
7/13/2023 • 11 minutes, 23 seconds
Lakshmi Gayatri Mantra लक्ष्मी गायत्री मंत्र 3 times
Lakshmi Gayatri Mantra लक्ष्मी गायत्री मंत्र:
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
घर परिवार में सुख व समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी का यह लक्ष्मी गायत्री मंत्र भी काफी उपयुक्त है।
ॐ का अर्थ ईश्वर अथवा परमपिता परमात्मा रुप, मां महालक्ष्मी जो भगवान श्री हरि अर्थात भगवान विष्णु की पत्नी हैं हम उनका ध्यान धरते हैं, वे मां लक्ष्मी हमें सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें। अर्थात हम मां महालक्ष्मी का स्मरण करते हैं एवं उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हम पर अपनी कृपा बनाएं रखें। । इस लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जाप करने से रुतबा, पद, पैसा, यश व भौतिक सुख-सुविधाओं में शीघ्र ही बढ़ोतरी होने लगती है।
Shivashtakam by Shankaracharya शङ्कराचार्य कृत शिवाष्टकम्
Shivashtakam by Shankaracharya शङ्कराचार्य कृत शिवाष्टकम् ★
तस्मै नमः परमकारणकारणाय
दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलितपिङ्गललोचनाय । नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नमः शिवाय ॥ १ ॥
श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नमः शिवाय ॥ २ ॥
पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय ।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय
नीलाब्जकण्ठसदृशाय नमः शिवाय॥ ३ ॥
लम्बत्सपिङ्गलजटामुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय। व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रैलोक्यनाथनमिताय नमः शिवाय ॥४॥
दक्षप्रजापतिमहामखनाशनाय क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय। ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगकरोटिनिकृन्तनाय योगनमिताय नमः शिवाय ॥५॥
संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय
रक्षः पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय। सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय
शार्दूलचर्मवसनाय नमः शिवाय ॥६॥
भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय । गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय गोक्षीरधारधवलाय नमः शिवाय ॥७॥
आदित्यसोमवरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय। ऋक्सामवेदमुनिभिः स्तुतिसंयुताय
गोपाय गोपनमिताय नमः शिवाय ॥ ८ ॥
शिवाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
॥ इति श्री शङ्कराचार्यकृतं शिवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
7/8/2023 • 5 minutes, 40 seconds
Shri Guru Stotram श्री गुरु स्तोत्रम्
Shri Guru Stotram श्री गुरु स्तोत्रम् ★
|| श्री महादेव्युवाच ||
गुरुर्मन्त्रस्य देवस्य धर्मस्य तस्य एव वा |
विशेषस्तु महादेव ! तद् वदस्व दयानिधे ||
श्री महादेवी (पार्वती) ने कहा : हे दयानिधि शंभु ! गुरुमंत्र के देवता अर्थात् श्री गुरुदेव एवं उनका आचारादि धर्म क्या है – इस बारे में वर्णन करें |
|| श्री महादेव उवाच ||
जीवात्मनं परमात्मनं दानं ध्यानं योगो ज्ञानम् |
उत्कल काशीगंगामरणं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||1||
श्री महादेव बोले: जीवात्मा-परमात्मा का ज्ञान, दान, ध्यान, योग पुरी, काशी या गंगा तट पर मृत्यु – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||1||
प्राणं देहं गेहं राज्यं स्वर्गं भोगं योगं मुक्तिम् |
भार्यामिष्टं पुत्रं मित्रं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||2||
प्राण, शरीर, गृह, राज्य, स्वर्ग, भोग, योग, मुक्ति, पत्नी, इष्ट, पुत्र, मित्र – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||2||
वानप्रस्थं यतिविधधर्मं पारमहंस्यं भिक्षुकचरितम् |
साधोः सेवां बहुसुखभुक्तिं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||3||
वानप्रस्थ धर्म, यति विषयक धर्म, परमहंस के धर्म, भिक्षुक अर्थात् याचक के धर्म – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||3||
विष्णो भक्तिं पूजनरक्तिं वैष्णवसेवां मातरि भक्तिम् |
विष्णोरिव पितृसेवनयोगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||4||
भगवान विष्णु की भक्ति, उनके पूजन में अनुरक्ति, विष्णु भक्तों की सेवा, माता की भक्ति, श्रीविष्णु ही पिता रूप में हैं, इस प्रकार की पिता सेवा – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||4||
प्रत्याहारं चेन्द्रिययजनं प्राणायां न्यासविधानम् |
इष्टे पूजा जप तपभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||5||
प्रत्याहार और इन्द्रियों का दमन, प्राणायाम, न्यास-विन्यास का विधान, इष्टदेव की पूजा, मंत्र जप, तपस्या व भक्ति – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||5||
काली दुर्गा कमला भुवना त्रिपुरा भीमा बगला पूर्णा |
श्रीमातंगी धूमा तारा न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||6||
काली, दुर्गा, लक्ष्मी, भुवनेश्वरि, त्रिपुरासुन्दरी, भीमा, बगलामुखी (पूर्णा), मातंगी, धूमावती व तारा ये सभी मातृशक्तियाँ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||6||
मात्स्यं कौर्मं श्रीवाराहं नरहरिरूपं वामनचरितम् |
नरनारायण चरितं योगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||7||
भगवान के मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, नर-नारायण आदि अवतार, उनकी लीलाएँ, चरित्र एवं तप आदि भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||७||
श्रीभृगुदेवं श्रीरघुनाथं श्रीयदुनाथं बौद्धं कल्क्यम् |
अवतारा दश वेदविधानं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||8||
भगवान के श्री भृगु, राम, कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि आदि वेदों में वर्णित दस अवतार श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||8||
गंगा काशी कान्ची द्वारा मायाऽयोध्याऽवन्ती मथुरा |
यमुना रेवा पुष्करतीर्थ न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||9||
गंगा, यमुना, रेवा आदि पवित्र नदियाँ, काशी, कांची, पुरी, हरिद्वार, द्वारिका, उज्जयिनी, मथुरा, अयोध्या आदि पवित्र पुरियाँ व पुष्करादि तीर्थ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||9||
गोकुलगमनं गोपुररमणं श्रीवृन्दावन मधुपुर रटनम्|
एतत् सर्वं सुन्दरि ! मातर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||10||
हे सुन्दरी ! हे मातेश्वरी ! गोकुल यात्रा, गौशालाओं में भ्रमण एवं श्री वृन्दावन व मधुपुर आदि शुभ नामों का रटन – ये सब भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||10||
तुलसीसेवा हरिहरभक्तिः गंगासागर-संगममुक्तिः |
किमपरमधिकं कृष्णेभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||11||
तुलसी की सेवा, विष्णु व शिव की भक्ति, गंगा सागर के संगम पर देह त्याग और अधिक क्या कहुं परात्पर भगवान श्री कृष्ण की भक्ति भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||11||
एतत् स्तोत्रम् पठति च नित्यं मोक्षज्ञानी सोऽपि च धन्यम् |
ब्रह्माण्डान्तर्यद्-यद् ध्येयं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ||12||
इस स्तोत्र का जो नित्य पाठ करता है वह आत्मज्ञान एवं मोक्ष दोनों को पाकर धन्य हो जाता है | निश्चित ही समस्त ब्रह्माण्ड मे जिस-जिसका भी ध्यान किया जाता है, उनमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ||12|| ★
|| इति वृहदविज्ञान परमेश्वरतंत्रे त्रिपुराशिवसंवादे श्रीगुरोःस्तोत्रम् ||
★
7/8/2023 • 6 minutes, 4 seconds
Fear Relieving Mantra भयमुक्ति मंत्र
Fear Relieving Mantra भयमुक्ति मंत्र ★
"सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्
पातु न: सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥" ★
अर्थात् :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; आपको नमस्कार है।
हे कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित आपका सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। आपको नमस्कार है।
हे भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला आपका त्रिशूल भय से हमें बचाये। आपको नमस्कार है।
7/8/2023 • 2 minutes, 20 seconds
Kuber Kripa Mantra कन्या राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र
Kuber Kripa Mantra कन्या राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ★ ॐ श्रीं रावणाग्रजाय नमः ★
7/8/2023 • 10 minutes, 14 seconds
Kuber Kripa Mantra तुला राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र
Kuber Kripa Mantra तुला राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ★ ॐ श्रीं शिवसखाय नमः ★
Vairagya Bhavna वैराग्य भावना • (दोहा)
बीज राख फल भोगवे, ज्यों किसान जग-माँहिं |
त्यों चक्री-नृप सुख करे, धर्म विसारे नाहिं ||१||
(जोगीरासा व नरेन्द्र छन्द)
इहविधि राज करे नरनायक, भोगे पुण्य-विशालो |
सुख-सागर में रमत निरंतर, जात न जान्यो कालो ||
एक दिवस शुभ कर्म-संजोगे, क्षेमंकर मुनि वंदे |
देखि श्रीगुरु के पदपंकज, लोचन-अलि आनंदे ||२||
तीन-प्रदक्षिण दे सिर नायो, कर पूजा थुति कीनी |
साधु-समीप विनय कर बैठ्यो, चरनन-दृष्टि दीनी ||
गुरु उपदेश्यो धर्म-शिरोमणि, सुनि राजा वैरागे |
राज-रमा वनितादिक जे रस, ते रस बेरस लागे ||३||
मुनि-सूरज-कथनी-किरणावलि, लगत भरम-बुधि भागी |
भव-तन-भोग-स्वरूप विचार्यो, परम-धरम-अनुरागी ||
इह संसार-महावन भीतर, भरमत ओर न आवे |
जामन-मरन-जरा दव-दाहे, जीव महादु:ख पावे ||४||
कबहूँ जाय नरक-थिति भुंजे, छेदन-भेदन भारी |
कबहूँ पशु-परयाय धरे तहँ, वध-बंधन भयकारी ||
सुरगति में पर-संपति देखे, राग-उदय दु:ख होई |
मानुष-योनि अनेक-विपतिमय, सर्वसुखी नहिं कोई ||५||
कोई इष्ट-वियोगी विलखे, कोई अनिष्ट-संयोगी |
कोई दीन-दरिद्री विलखे, कोई तन के रोगी ||
किस ही घर कलिहारी नारी, कै बैरी-सम भाई |
किस ही के दु:ख बाहर दीखें, किस ही उर दुचिताई ||६||
कोई पुत्र बिना नित झूरे, होय मरे तब रोवे |
खोटी-संतति सों दु:ख उपजे, क्यों प्रानी सुख सोवे ||
पुण्य-उदय जिनके तिनके भी, नाहिं सदा सुख-साता |
यह जगवास जथारथ देखे, सब दीखे दु:खदाता ||७||
जो संसार-विषे सुख होता, तीर्थंकर क्यों त्यागे |
काहे को शिवसाधन करते, संजम-सों अनुरागे ||
देह अपावन-अथिर-घिनावन, या में सार न कोई |
सागर के जल सों शुचि कीजे, तो भी शुद्ध न होई ||८||
सात-कुधातु भरी मल-मूरत, चर्म लपेटी सोहे |
अंतर देखत या-सम जग में, अवर अपावन को है ||
नव-मलद्वार स्रवें निशि-वासर, नाम लिये घिन आवे |
व्याधि-उपाधि अनेक जहाँ तहँ, कौन सुधी सुख पावे ||९||
पोषत तो दु:ख दोष करे अति, सोषत सुख उपजावे |
दुर्जन-देह स्वभाव बराबर, मूरख प्रीति बढ़ावे ||
राचन-योग्य स्वरूप न याको, विरचन-जोग सही है |
यह तन पाय महातप कीजे, या में सार यही है ||१०||
भोग बुरे भवरोग बढ़ावें, बैरी हैं जग-जी के |
बेरस होंय विपाक-समय अति, सेवत लागें नीके ||
वज्र अगिनि विष से विषधर से, ये अधिके दु:खदाई |
धर्म-रतन के चोर चपल अति, दुर्गति-पंथ सहाई ||११||
मोह-उदय यह जीव अज्ञानी, भोग भले कर जाने |
ज्यों कोई जन खाय धतूरा, सो सब कंचन माने ||
ज्यों-ज्यों भोग-संजोग मनोहर, मन-वाँछित जन पावे |
तृष्णा-नागिन त्यों-त्यों डंके, लहर-जहर की आवे ||१२||
मैं चक्री-पद पाय निरंतर, भोगे भोग-घनेरे |
तो भी तनक भये नहिं पूरन, भोग-मनोरथ मेरे ||
राज-समाज महा-अघ-कारण, बैर-बढ़ावन-हारा |
वेश्या-सम लछमी अतिचंचल, याका कौन पत्यारा ||१३||
मोह-महारिपु बैरी विचारो, जग-जिय संकट डारे |
घर-कारागृह वनिता-बेड़ी, परिजन-जन रखवारे ||
सम्यक्-दर्शन-ज्ञान-चरण-तप, ये जिय के हितकारी |
ये ही सार असार और सब, यह चक्री चितधारी ||१४||
छोड़े चौदह-रत्न नवों निधि, अरु छोड़े संग-साथी |
कोटि-अठारह घोड़े छोड़े, चौरासी-लख हाथी ||
इत्यादिक संपति बहुतेरी, जीरण-तृण-सम त्यागी |
नीति-विचार नियोगी-सुत को, राज दियो बड़भागी ||१५||
होय नि:शल्य अनेक नृपति-संग, भूषण-वसन उतारे |
श्रीगुरु-चरण धरी जिन-मुद्रा, पंच-महाव्रत धारे ||
धनि यह समझ सुबुद्धि जगोत्तम, धनि यह धीरज-धारी |
ऐसी संपति छोड़ बसे वन, तिन-पद धोक हमारी ||१६||
(दोहा)
परिग्रह-पोट उतार सब, लीनों चारित-पंथ |
निज-स्वभाव में थिर भये, वज्रनाभि निरग्रंथ || •
7/8/2023 • 13 minutes, 28 seconds
Mantratmakam Shri Maruti Stotram मंत्रात्मकम् श्री मारुति स्तोत्रम्
Mantratmakam Shri Maruti Stotram मंत्रात्मकम् श्री मारुति स्तोत्रम् ★
यह एक मंत्र गर्भित स्तोत्र है जिसका अर्थ है कि इस स्तोत्र की प्रत्येक पंक्ति मंत्र के एक अक्षर से शुरू होती है। यदि हम इस स्तोत्र की प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर पढ़ें तो हमें पूरा मंत्र इस प्रकार प्राप्त होता है।
• ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा । •
मंत्र गर्भित स्तोत्र अपने कार्य में बहुत शक्तिशाली होते हैं और तत्काल परिणाम देते हैं। और यह स्तोत्र कोई अपवाद नहीं है।
स्तोत्र:
ॐ नमो वायुपुत्राय भीमरूपाय धीमते I
नमस्ते रामदूताय कामरूपाय श्रीमते II १ II
मोहशोकविनाशाय सीताशोकविनाशिने I
भग्नाशोकवनायास्तु दग्धलङ्काय वाग्मिने II २ II
गतिनिर्जितवाताय लक्ष्मण प्राणदाय च I
वनौकसां वरिष्ठाय वशिने वनवासिने II ३ II
तत्त्वज्ञान सुधासिन्धुनिमग्नाय महीयसे I
आञ्जनेयाय शूराय सुग्रीवसचिवाय ते II ४ II
जन्ममृत्युभयघ्नाय सर्वक्लेशहराय च I
नेदिष्ठाय प्रेतभूतपिशाचभयहारिणे II ५ II
यातनानाशनायास्तु नमो मर्कटरूपिणे I
यक्षराक्षसशार्दूलसर्पवृश्चिक भीह्रते II ६ II
महाबलाय वीराय चिरंजीविन उद्धते I
हारिणे वज्रदेहाय चोल्लङ्घितमहाब्धये II ७ II
बलिनामग्रगण्याय नमो नः पाहि मारुते I
लाभदोSसि त्वमेवाशु हनुमन् राक्षसान्तक II ८ II
यशो जयं च मे देहि शत्रून् नाशय नाशय I
स्वाश्रितानामभयदं य एवं स्तौति मारुतिम् I
हानिः कुतो भवेत्तस्य सर्वत्र विजयी भवेत् II ९ II
•
II इति श्री ह्रत्पुन्दरिकाधिष्ठितश्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्रीवासुदेवानंदसरस्वतीकृतं मन्त्रात्मकं श्रीमारुतिस्तोत्रं संपूर्णं II
7/8/2023 • 4 minutes, 8 seconds
Shri Ram Bhujang Prayaat Stotram श्री राम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम्
Shri Ram Bhujang Prayaat Stotram श्री राम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम् ★
विशुद्धं परं सच्चिदानन्दरूपं गुणाधारमाधारहीनं वरेण्यम् ।
महान्तं विभान्तं गुहान्तं गुणान्तं सुखान्तं स्वयं धाम रामं प्रपद्ये ॥ १ ॥
शिवं नित्यमेकं विभुं तारकाख्यं सुखाकारमाकारशून्यं सुमान्यम् ।
महेशं कलेशं सुरेशं परेशम् नरेशं निरीशं महीशं प्रपद्ये ॥ २ ॥
यदावर्णयत्कर्णमूलेऽन्तकाले शिवो रामरामेति रामेति काश्याम् ।
तदेकं परं तारकब्रह्मरूपं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं ॥ ३ ॥
महारत्नपीठे शुभे कल्पमूले सुखासीनमादित्यकोटिप्रकाशम् ।
सदा जानकीलक्ष्मणोपेतमेकं सदा रामचन्द्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥ ४ ॥
क्वणद्रत्नमञ्जीरपादारविन्दं लसन्मेखलाचारुपीताम्बराढ्यम् ।
महारत्नहारोल्लसत्कौस्तुभाङ्गं नदच्चञ्चरीमन्ञ्जरीलोलमालम् ॥ ५ ॥
लसच्चन्द्रिकास्मेरशोणाधराभं समुद्यत्पतङ्गेन्दुकोटिप्रकाशम् ।
नमद्ब्रह्मरुद्रादिकोटीररत्न-स्फुरत्कान्तिनीराजनाराधिताङ्घ्रिम् ॥ ६ ॥
पुरः प्राञ्जलीनाञ्जनेयादिभक्तान् स्वचिन्मुद्रया भद्रया बोधयन्तम् ।
भजेऽहं भजेऽहं सदा रामचन्द्रं त्वदन्यं न मन्ये न मन्ये न मन्ये ॥ ७ ॥
यदा मत्समीपं कृतान्तः समेत्य प्रचण्डप्रकोपैर्भटैर्भीषयेन्माम् ।
तदाविष्करोषि त्व्दीयं स्वरूपं सदापत्प्रणाशं सकोदण्डबाणम् ॥ ८ ॥
निजे मानसे मन्दिरे सन्निधेहि प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र ।
ससौमित्रिणा कैकयीनन्दनेन स्वशक्त्यानुभक्त्या च संसेव्यमान ॥ ९ ॥
स्वभक्ताग्रगण्यैः कपीशैर्महीशै-रनीकैरनेकैश्च राम प्रसीद ।
नमस्ते नमोऽस्त्वीश राम प्रसीद प्रशाधि प्रशाधि प्रकाशं प्रभो माम् ॥ १० ॥
त्वमेवासि दैवं परं मे यदेकं सुचैतन्यमेतत्त्वदन्यं न मन्ये ।
यतोऽभूदमेयं वियद्वायुतेजो-जलोर्व्यादिकार्यं चरं चाचरं च ॥ ११ ॥
नमः सच्चिदानन्दरूपाय तस्मै नमो देवदेवाय रामाय तुभ्यम् ।
नमो जानकीजीवितेशाय तुभ्यं नमः पुण्डरीकायताक्षाय तुभ्यम् ॥ १२ ॥
नमो भक्तियुक्तानुरक्ताय तुभ्यम् नमः पुण्यपुञ्जैकलभ्याय तुभ्यम् ।
नमो वेदवेद्याय चाद्याय पुंसे नमः सुन्दरायेन्दिरावल्लभाय ॥ १३ ॥
नमो विश्वकर्त्रे नमो विश्वहर्त्रे नमो विश्वभोक्त्रे नमो विश्वमात्रे ।
नमो विश्वनेत्रे नमो विश्वजेत्रे नमो विश्वपित्रे नमो विश्वमात्रे ॥ १४ ॥
नमस्ते नमस्ते समस्तप्रपञ्च-प्रभोगप्रयोगप्रमाणप्रवीण ।
मदीयं मनः त्वत्पदद्वन्द्वसेवां विधातुं प्रवृतं सुचैतन्यसिद्ध्यै ॥ १५ ॥
शिलापि त्वदङ्घ्रिक्षमासङ्गिरेणु-प्रसादाद्धि चैतन्यमाधत्त राम ।
नरस्त्वत्पदद्वन्द्वसेवाविधाना-त्सुचैतन्यमेतीति किं चित्रमत्र ॥ १६ ॥
पवित्रं चरित्रं विचित्रं त्वदीयं नरा ये स्मरन्त्यन्वहं रामचन्द्र ।
भवन्तं भवान्तं भरन्तं भजन्तो लभन्ते कृतान्तं न पश्यन्त्यतोऽन्ते ॥ १७ ॥
स पुण्यः स गण्यः शरण्यो ममायं नरो वेद यो देवचूडामणिं त्वाम् ।
सदाकारमेकं चिदानन्दरूपं मनोवागगम्यं परं धाम राम ॥ १८ ॥
प्रचण्डप्रतापप्रभावाभिभूत-प्रभूतारिवीर प्रभो रामचन्द्र ।
बलं ते कथं वर्ण्यतेऽतीव बाल्ये यतोऽखण्डि चण्डीशकोदण्डदण्डम् ॥ १९ ॥
दशग्रीवमुग्रं सपुत्रं समित्रं सरिद्दुर्गमध्यस्थरक्षोगणेशम् ।
भवन्तं विना राम वीरो नरो वाऽ-सुरो वामरो वा जयेत् कस्त्रिलोक्याम् ॥ २० ॥
सदा राम रामेति रामामृतं ते सदा राममानन्दनिष्यन्दकन्दम् ।
पिबन्तं नमन्तं सुदन्तं हसन्तं हनुमन्तमन्तर्भजे तं नितान्तम् ॥ २१ ॥
सदा राम रामेति रामामृतं ते सदा राममानन्दनिष्यन्दकन्दम् ।
पिबन्नन्वहं नन्वहं नैव मृत्योर्-बिभेमि प्रसादादसादात्तवैव ॥ २२ ॥
असीतासमेतैरकोदण्डभूषै-रसौमित्रिवन्द्यैरचण्डप्रतापैः ।
अलङ्केशकालैरसुग्रीवमित्रै-ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ २३ ॥
अवीरासनस्थैरचिन्मुद्रिकाढ्यै-रभक्ताञ्जनेयादितत्वप्रकाशैः ।
अमन्दारमूलैरमन्दारमालै-ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ २४ ॥
असिन्धुप्रकोपैरवन्द्यप्रतापै-रबन्धुप्रयाणैरमन्दस्मिताढ्यैः ।
अदण्डप्रवासैरखण्डप्रबोधै-ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ २५ ॥
हरे राम सीतापते रावणारे खरारे मुरारेऽसुरारे परेति ।
लपन्तं नयन्तं सदाकालमेवं समालोकयालोकयाशेषबन्धो ॥ २६ ॥
नमस्ते सुमित्रासुपुत्राभिवन्द्य नमस्ते सदा कैकयीनन्दनेड्य ।
नमस्ते सदा वानराधीशवन्द्य नमस्ते नमस्ते सदा रामचन्द्र ॥ २७ ॥
प्रसीद प्रसीद प्रचण्डप्रताप प्रसीद प्रसीद प्रचण्डारिकाल ।
प्रसीद प्रसीद प्रपन्नानुकंपिन् प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र ॥ २८ ॥
भुजन्ङ्गप्रयातं परं वेदसारं मुदा रामचन्द्रस्य भक्त्या च नित्यम् ।
पठन् सन्ततं चिन्तयन् स्वान्तरङ्गे स एव स्वयं रामचन्द्रः स धन्यः ॥ २९ ॥
॥ इति श्रीशंकराचार्यविरचितम्
श्रीरामभुजंगप्रयातस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
॥ ॐ श्री-सीता-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न-हनुमत्समेत
-श्रीरामचन्द्रपरब्रह्मार्पणमस्तु ॥
7/7/2023 • 14 minutes
Guru Praan Chetna Mantra गुरु प्राण चेतना मंत्र
Guru Praan Chetna Mantra गुरु प्राण चेतना मंत्र ★
यह एक ऐसा मंत्र है जिसके अभ्यास मात्र से गुरु की सत्ता से साधक की चेतना जुड़ने लग जाती है और वह गुरु से उन तथ्यों और ज्ञान को प्राप्त करने लग जाता है जो किसी भी साधना से संभव है ही नहीं ।
गुरु प्राण चेतना मंत्र
★ ॐ पूर्वाह सतां सः श्रियै दीर्घो येताः वदाम्यै स रुद्रः स ब्रह्मः स विष्णवै स चैतन्य आदित्याय रुद्रः वृषभो पूर्णाह समस्तेः मूलाधारे तु सहस्त्रारे, सहस्त्रारे तु मूलाधारे समस्त रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय उत्तिष्ठ प्राणतः दीर्घतः एत्तन्य दीर्घाम भूः लोक, भुवः लोक, स्वः लोक, मह लोक, जन लोक, तप लोक, सत्यम लोक, मम शरीरे सप्त लोक जाग्रय उत्तिष्ठ चैतन्य कुण्डलिनी सहस्त्रार जाग्रय ब्रह्म स्वरूप दर्शय दर्शय जाग्रय जाग्रय चैतन्य चैतन्य त्वं ज्ञान दृष्टिः दिव्य दृष्टिः चैतन्य दृष्टिः पूर्ण दृष्टिः ब्रह्मांड दृष्टिः लोक दृष्टिः अभिर्विह्रदये दृष्टिः त्वं पूर्ण ब्रह्म दृष्टिः प्राप्त्यर्थम, सर्वलोक गमनार्थे, सर्व लोक दर्शय, सर्व ज्ञान स्थापय, सर्व चैतन्य स्थापय, सर्वप्राण, अपान, उत्थान, स्वपान, देहपान, जठराग्नि, दावाग्नि, वड वाग्नि, सत्याग्नि, प्रणवाग्नि, ब्रह्माग्नि, इन्द्राग्नि, अकस्माताग्नि, समस्तअग्निः, मम शरीरे, सर्व पाप रोग दुःख दारिद्रय कष्टः पीडा नाशय – नाशय सर्व सुख सौभाग्य चैतन्य जाग्रय, ब्रह्मस्वरूपं गुरू शिष्यत्वं, स-गौरव, स-प्राण, स-चैतन्य, स-व्याघ्रतः, स-दीप्यतः, स-चंन्द्रोम, स-आदित्याय, समस्त ब्रह्मांडे विचरणे जाग्रय, समस्त ब्रह्मांडे दर्शय जाग्रय, त्वं गुरूत्वं, त्वं ब्रह्मा, त्वं विष्णु, त्वं शिवोहं, त्वं सूर्य, त्वं इन्द्र, त्वं वरुण, त्वं यक्षः, त्वं यमः, त्वं ब्रह्मांडो, ब्रह्मांडोत्वं मम शरीरे पूर्णत्व चैतन्य जाग्रय उत्तिष्ठ उत्तिष्ठ पूर्णत्व जाग्रय पूर्णत्व जाग्रय पूर्णत्व जाग्रयामि ।। ★
चूंकि, मंत्र बड़ा है और अत्यंत ही प्रभावशाली है तो प्रतिदिन मात्र 11 या 21 बार इसका अभ्यास पर्याप्त रहता है । जो, साधक नये हैं उनको इसका 1, 3, 5 या 7 बार से प्रारंभ करना चाहिए ।
7/6/2023 • 4 minutes, 1 second
Shraavan Maas Japya Mantra श्रावण मास जाप्य मन्त्र 108 times
Shraavan Maas Japya Mantra श्रावण मास जाप्य मन्त्र •
धार्मिक दृष्टि से सभी 12 महीनों में सबसे अधिक महत्व रखने वाला श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना करना विशेष रूप से फल प्रदान करने वाला माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार शिवजी का प्रिय श्रावण मास में विधिवत शिव पूजा से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है, इस पवित्र मास में भगवान शिव के इस मन्त्र द्वारा उनकी आराधना करने से इच्छित मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।
◆ ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय ◆
7/6/2023 • 18 minutes, 14 seconds
Sri Sai Naam Smaran श्री साईं नाम स्मरण 3 times
Sri Sai Naam Smaran श्री साईं नाम स्मरण ★
जय ॐ, जय ॐ, जय जय ॐ, ॐ, ॐ, ॐ, ॐ, जय जय ॐ |
जय साईं, जय साईं, जय साईं ॐ, ॐ साईं, ॐ साईं, ॐसाईं ॐ ।। ★
7/6/2023 • 2 minutes, 58 seconds
Baglamukhi Brahmastra Mala Mantra बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र
Jamdagni Krit Shiv Stotram जामदग्नि कृत शिवस्तोत्रं •
ईश त्वां स्तोतुमिच्छामि सर्वथा सतोतुमक्षमम् I
अक्षराक्षरबीजं च किं वा स्तौमि निरीहकम् II १ II
न योजनां कर्तुमीशो देवेशं स्तौमि मूढधीः I
वेदा न शक्ता यं स्तोतुं कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः II २ II
बुद्धेर्वाग्मनसोः पारं सारात्सारं परात्परम् I
ज्ञानबुर्द्धेरसाध्यं च सिद्धं सिद्धैर्निषेवितम् II ३ II
यमाकाशमिवाद्यन्तमध्यहीनं तथाव्ययम् I
विश्वतन्त्रमतन्त्रं च स्वतन्त्रं तन्त्रबीजकम् II ४ II
ध्यानासाध्यं दुराराध्यमतिसाध्यं कृपानिधिम् I
त्राहि मां करुणासिन्धो दीनबन्धोSतिदीनकम् II ५ II
अद्य मे सफ़लं जन्म जीवितं च सुजीवितम् I
स्वप्रादृष्टं च भक्तानां पश्यामि चक्षुषाधुना II ६ II
शक्रादयः सुरगणाः कलया यस्य सम्भवाः I
चराचराः कलांशेन तं नमामि महेश्वरम् II ७ II
यं भास्करस्वरूपं च शशिरूपं हुताशनम् I
जलरूपं वायुरूपं तं नमामि महेश्वरम् II ८ II
स्त्रीरूपं क्लीबरूपं च पुंरूपं च बिभर्ति यः I
सर्वाधारं सर्वरूपं तं नमामि महेश्वरम् II ९ II
देव्या कठोरतपसा यो लब्धो गिरिकन्यया I
दुर्लभस्तपसां यो हि तं नमामि महेश्वरम् II १० II
सर्वेषां कल्पवृक्षं च वाञ्छाधिकफ़लप्रदम् I
आशुतोषं भक्तबन्धुं तं नमामि महेश्वरम् II ११ II
अनन्तविश्वसृष्टीनां संहर्तारं भयकरम् I
क्षणेन लीलामात्रेण तं नमामि महेश्वरम् II १२ II
यः कालः कालकालश्च कालबीजं च कालजः I
अजः प्रजश्च यः सर्वस्तं नमामि महेश्वरम् II १३ II
इत्यवमुक्त्वा स भृगुः पपात चरणाम्बुजे I
आशिषं च ददौ तस्मै सुप्रसन्नो बभूव सः II १४ II
जामदग्न्यकृतं स्तोत्रं यः पठेद् भक्तिसंयुतः I
सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोकं स गच्छति II १५ II
•
II इति श्री ब्रह्मवैवर्तपुराणे गणपतिखण्डे जामदग्न्यकृतं श्रीशिवस्तोत्रं संपूर्णं II
Shri Laxmi Chandralamba 108 Naam
Stotram श्री लक्ष्मी चंद्रलाम्बा 108 नाम स्तोत्रम्
Shri Laxmi Chandralamba 108 Naam Stotram श्री लक्ष्मी चंद्रलाम्बा 108 नाम स्तोत्रम् ★
ॐ श्रीचन्द्रलाम्बा महामाया शाम्भवी शङ्खधारिणी ।
आनन्दी परमानन्दा कालरात्री कपालिनी ॥ १ ॥
कामाक्षी वत्सला प्रेमा काश्मिरी कामरूपिणी ।
कौमोदकी कौलहन्त्री शङ्करी भुवनेश्वरी ॥ २ ॥
खङ्गहस्ता शूलधरा गायत्री गरुडासना ।
चामुण्डा मुण्डमथना चण्डिका चक्रधारिणी ॥ ३ ॥
जयरूपा जगन्नाथा ज्योतिरूपा चतुर्भुजा ।
जयनी जीविनी जीवजीवना जयवर्धिनी ॥ ४ ॥
तापघ्नी त्रिगुणात्धात्री तापत्रयनिवारिणी ।
दानवान्तकरी दुर्गा दीनरक्षा दयापरी ॥ ५ ॥
धर्मत्धात्री धर्मरूपा धनधान्यविवर्धिनी ।
नारायणी नारसिंही नागकन्या नगेश्वरी ॥ ६ ॥
निर्विकल्पा निराधारी निर्गुणा गुणवर्धिनी ।
पद्महस्ता पद्मनेत्री पद्मा पद्मविभूषिणी ॥ ७ ॥
भवानी परमैश्वर्या पुण्यदा पापहारिणी । भ्रमरी भ्रमराम्बा च भीमरूपा भयप्रदा ॥ ८ ॥
भाग्योदयकरी भद्रा भवानी भक्तवत्सला । महादेवी महाकाली महामूर्तिर्महानिधी ॥ ९ ॥
मेदिनी मोदरूपा च मुक्ताहारविभूषणा । मन्त्ररूपा महावीरा योगिनी योगधारिणी ॥ १० ॥
रमा रामेश्वरी ब्राह्मी रुद्राणी रुद्ररूपिणी । राजलक्ष्मी राजभूषा राज्ञी राजसुपूजिता ॥ ११ ॥
लक्ष्मी पद्मावती अम्बा ब्रह्माणी ब्रह्मधारीणी |
विशालाक्षी भद्रकाली पार्वती वरदायिणी ॥ १२ ॥
सगुणा निश्चला नित्या नागभूषा त्रिलोचनी
हेमरूपा सुन्दरी च सन्नतीक्षेत्रवासिनी ॥ १३ ॥
ज्ञानदात्री ज्ञानरूपा रजोदारिद्र्यनाशिनी । अष्टोत्तरशतं दिव्यं चन्द्रलाप्रीतिदायकम् ॥ १४ ॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सन्नतिक्षेत्रमहात्म्ये श्रीचन्द्रलाम्बाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Ll
7/5/2023 • 5 minutes, 2 seconds
Kuber Kripa Mantra वृश्चिक राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र 72 times
Kuber Kripa Mantra वृश्चिक राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ◆ ॐ श्रीं किम्पुरुषनाथाय नमः ◆
7/5/2023 • 10 minutes, 14 seconds
Kuber Kripa Mantra धनु राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र 72 times
Kuber Kripa Mantra धनु राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ★ ॐ श्रीं स्वर्णनगरीवासाय नमः ★
7/5/2023 • 10 minutes, 32 seconds
Kuber Kripa Mantra मकर राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र 72 times
Kuber Kripa Mantra मकर राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ★ ऊँ श्रीं मणिग्रीवपित्रे नमः ★
7/4/2023 • 9 minutes, 25 seconds
Kuber Kripa Mantra कुम्भ राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र 72 times
Kuber Kripa Mantra कुम्भ राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र ★ ऊँ श्रीं विश्रवापुत्राय नमः ★
7/4/2023 • 10 minutes, 46 seconds
Kuber Kripa Mantra मीन राशि वालों के लिए कुबेर कृपा मन्त्र 72 times
Kuber Kripa Manra कुबेर कृपा मन्त्र - मीन राशि वालों के लिए ★ ऊँ श्रीं वित्तेश्वराय नमः। ★
7/4/2023 • 9 minutes, 13 seconds
De Addiction Mantra व्यसन मुक्ति मन्त्र 11 times
De Addiction Mantra व्यसन मुक्ति मन्त्र ■ दुर्व्यसनों से बचने के लिए यह मंत्र राम बाण उपाय है।■ ॐ ह्रीं यं यश्वराये नमः ■ इस मंत्र के जाप से बड़ी ही आसानी से शराब, तम्बाकू और अन्य नशों की लत छूट जाती है और आपका मन अच्छे कामों के लिए केंद्रित होता है।
Shri Shatrunjay Laghukalp With Hindi Meaning श्री शत्रुंजय लघुकल्प (हिंदी अर्थ सहित)
Shri Shatrunjay Laghukalp श्री शत्रुंजय लघुकल्प
7/1/2023 • 19 minutes, 53 seconds
Mrit Sanjeevani Maha Mrityunjay Mantra मृत संजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र 108 times
Mrit Sanjeevani Maha Mrityunjay Mantra मृत संजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र ★
‘ॐ हौं जूं स:। ॐ भूर्भव: स्व:। ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात। स्व: भुव: भू: ॐ। स: जूं हौं ॐ। ★
शास्त्रों के अनुसार ये मंत्र मरते हुए आदमी को भी जीवन दे सकता है इसलिए इस मंत्र को मृत्यु संजीवनी कहा जाता है। जब रोग असाध्य हो जाए, कोई आशा ना बचे तब इस मंत्र का घर में कम से कम सवा लाख बार जाप करवाना चाहिए।
7/1/2023 • 1 hour, 11 minutes, 33 seconds
Shri Aadivir Shankar Stotram श्री आदिवीर शंकर स्तोत्रम्
Shri Aadivir Shankar Stotram श्री आदिवीर शंकर स्तोत्रम् ★
प्रचण्ड चण्ड दण्ड पिण्ड खण्ड खण्ड खण्डनं
न दण्डिकं सुपण्डितं च गण्ड घण्डु गुण्डकं।
न गण्डकं न तुण्डिलं तु दण्ड गुण्डिताश्रयं
प्रणाम मादितीर्थ मादिनाथ मादिशंकरं ।।१।।
अजेयदेव जैन जीवभावरक्त जीवनं
जितेन्द्रियं जिताहवं जीतात्मदेवं जोषणम।
अनात्मभाव जित्वरं च जन्म मृत्युजित्वरं
अजेयकर्मभूपतिन पराजितं जयाजितं ।।२।।
सुभावनो च भावशून्य भावविद विभावन
भविष्यभाव भावकश्च भावरूप भावकः।
असम्भवो न संभवो हि संभवो च संभव
भवादृशो भवात्परो भवंहरो न सम्भवः ।।३।।
नितान्त नन्दनं च नन्दनं च नन्दिकेश्वरं
नरं नरेश निर्मदं नरी गिरीह नायकं।
नरामरादि वंद्यकं निजात्मनो निबोधकं
नमामि चाभिनन्दनं च नातिवाद नन्दथुं ।।४।।
दरिद्र दर्प धर्ष धर्त्र धृष्ट धात्रतशच्युतं
धुरंधरं धनिष्ठ धृत्व धृष्णु धुर्म संयुतं।
प्रशांत शुद्ध देह वाक्य चित्त चेतना युतं
सुबद्धिदं च तं च तं च पं च कं च पंचमं ।।५।।
सुपद्मनाथ पद्मनाथ पद्मदेव देवतं
सुपद्मबन्धु पद्मगन्ध पद्मपाणि पद्मदम।
सुपद्मवर्ण पादपद्म पद्म पद्मलान्छन
परात्म पद्मतीर्थकं च पद्मवारवन्दनं ।।६।।
सुपार्श्व भाग युक्त तीर्थकारकं सुवर्णकं
सुपार्श्ववर्ति भव्यसर्व पापपंक भंजकं।
सुपारिपार्श्व पारिपार्श्विका परिस्थितं शलं
सुपार्श्विकं नमाम्यपार्श्वकं सुपार्श्वतीर्थकं ।।७।।
अमूर्तजीवचंद्र चंद्रतुंड चंद्रलांछनं
सुचंद्र! चंद्र चंदिरम च चन्द्रमाश्च चंद्र्कः।
सुचारु चन्द्रचर्य चर्चितारचितं च चंद्रिलं
जिनेन्द्र चंद्र चन्द्रनाथ तीर्थकारमीश्वरं ।।८।।
पुनीत पुष्कलं च शुभ्ररश्मिपुष्प वर्णकं
सुपुण्यबोध पुष्पितं च पुष्प केतु मर्दनं।
सुपुष्पपुष्पसंयुतं च पुष्प रेणु गंधकं
सुपुष्पदन्त पुष्पदंत पुष्पपुज्य वन्दनं ।।९।।
विशाल शील शीलशालिनं च शीतलप्रदं
श्याच्च शायकाद शालिनं शिवं च शिल्पिनं।
अशीतशीतयोग शालिनं च शीत शीतलं
नमामि शीतलाच्च शीतलं च शील शीलितं ।।१०।।
अढाटडं त्रिलोक तारकोडुपापटं पटुं
त्रिपिष्ठ तीर्थ तैर्थिकं त्रिचक्षुसं सुतैतिलं।
तरस्वतं तु तर्ककं तितिक्षु तीक्ष्ण तार्किकं
त्रियोगतो हि नोमि श्रेयसं जिनं जिनेश्वरं ।।११।।
वसुंधरावसुं वसुंधरावरं सु सुन्दरं
वयोवरं वरं वचं वशंवदं वनेवसं।
वरप्रदं पदप्रदं सुवातवस्तुदं वदं
सदा हि पूज्यामि वासुपूज्य पूज्य पूज्यकं ।।१२।।
विकारितच्युतं विचेष्टीतच्युतं विटच्युतं
विमोक्षदं निजात्मदेवकेवलाद्धी कासकं।
विहिनवासनं विदं विकर्षणं विमर्दकं
त्रयोदशं दिवाकरं जिनेन्द्रदेव निर्मलं ।।१३।।
अचिन्त्य सौख्यदं विभुं विचिन्त्य तत्व शोधकं
विचेतनं सचेतनं विचक्षणं विचारकं।
विभाव भाव नाशकं स्वभाव भाव दायकं
अनंतबोध वीर्यदं नमाम्यनतं चेतनं ।।१४।।
सुधर्मयुक्तसद्धनेस्त मिस्रनाशकं धवं
धनस्य लोभवर्जितं च धेय धारणं ध्रुवं।
विधर्मभाव धर्ष धाषट्र्य धोतकं सुधार्मिंणं
नमामि धर्मदेव धर्मनाथ धार्म धार्मिकं ।।१५।।
प्रशांतकाम शांत शान्तिदं प्रशान्तिदं शमं
प्रशांतबाध शासनं प्रशंसितं प्रशामदं।
निजात्मशान्ति शापितं च शांतिदूत शान्तिकं
ददातु शान्तिमीशमाशु शांतिनाथ! शंतनो!।।१६।।
पदत्रयस्य शालिनं नरामरारिसेवितं
कुंलीन कुंडीरं कुतूहलं च साधुकुंजरं।
कृतार्थशासनस्य संकुमार यूँ च कुथकं
मुनीन्द्र कुंथुनाथ सर्वजीवनाथ तीर्थकं ।।१७।।
परारि रागरज्जुसंपदस्थ चक्रधारकः
पुनश्च धर्म चक्रधारको नरेशसेवितः।
परस्य संपराभवः परंतपं परातपरं
नमामि नारसारजोऽरनाथतीर्थ चक्रकं ।।१८।।
अबाल्य बल्य बल्य मोहमल्लमान भंजनं
सजल्लमल्ल मुलिकं ललाम जल्प चातुरं।
विशल्य मल्ल कल्प कल्य कल्य काल्य मेलनं
सुमल्लिगंध मल्लिनाथ मल्लसाधु वन्दनं ।।१९।।
सुदीर्घ कीर्ति तीर्थकार पंचगुप्तलांछनं
निजात्म तीर्थ लब्ध्नार्थ सुव्रतानि धारकं।
विचित्र वर्तमान काल वंदितं सुतीर्थकं
महाव्रतं च सुव्रतं ददं सुसाधुसुव्रतं ।।२०।।
नमो नमो नमो नमो नमस्यनाय नायकं
नियाम नैमयं नु निर्निमित्तमित्र नर्मदं।
निदर्शनं नहुष्क नाग नारदैर्नमस्कृतं
नमोगुरुं नमस्कृतिं नमोस्तु तं च मि नमिम ।।२१।।
अरिष्टनेमिनाथ! नेमिने! निमे! नुते! मुने!
गरिष्ठ-पुष्ट-पुष्टिदं बलिष्ठ पौष्टिक प्रदः।
समस्त विष्टपे निकृष्टवसनाग वर्जितो
विशिष्ट शिष्ट शिष्टहार रिष्टको विशिष्टकः ।।२२।।
विरोधतश्च यो नभस्वरैः स्थिरश्च संकटे
तड्ट तड्ट तड्टतड़न्निनादकैरभयंकरे।
निजात्मशुद्धमंदिरे ध्रुवे वसेच्च पार्श्व! मे
समत्वमूर्ति पार्श्वनाथ! काशिपार्थ नन्दनं ।।२३।।
महत्तरं महानुभाव मोक्षमार्ग मार्गिकं
महार्णवं महन्त मंगलं महार्ह माठरं।
ममात्म मार्जनं महालयं मराल मार्मिकं
नमोस्तु मन्त्रतो महा महात्मवीर शंकरं ।।२४।।
पठेत्कृतं विशुद्ध नंदनेन शासकस्तुतिं
भवेत् रमरन्ब्रुवज्जनः सुकीर्ति बुद्धि शालिनः।
पुनश्च सो निजात्म भक्तिरंजितश्च नित्यशः
समस्त कर्मणां विनश्य चादिवीरवद भवेद ।।२५।।
7/1/2023 • 14 minutes, 27 seconds
Reverse Chanting of Namokar Mantra णमोकार मन्त्र की पश्चानुपूर्वी (उल्टी) जाप 9 times
Before Meals Mantra भोजन पूर्व मंत्र ★
Before Meals Mantra भोजन पूर्व मन्त्र ★ ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे ।
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थम् भिक्षाम् देहि च पार्वति।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् |
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।। ★
अर्थात्
परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए, हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें।
माँ अन्नपूर्णा शिव की शक्ति हैं, शिव जी का जीवन संगिनी है, वे संपूर्ण है। अनादिकाल से अन्नपूर्णा जुड़ाव को अन्न का वरदान दे रहा है और अनंत तक वे अन्न का प्रसाद प्रदान करते रहेंगे। हम भी माँ अन्नपूर्णा से हमारे ज्ञान और वैराग्य के इस मार्ग में सिद्धि प्राप्त करने हेतु आवश्यक अन्न रूपी प्रसाद के भिक्षा की याचना करते हैं व माँ हमें अन्न की भिक्षा प्रदान करें।
(जिस यज्ञ में) अर्पण ब्रह्म है, हवन-द्रव्य भी ब्रह्म है, तथा ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि में आहुति देने की क्रिया भी ब्रह्मरुप है- उस ब्रह्मकर्मरुप समाधि द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है ।
7/1/2023 • 2 minutes, 56 seconds
Saubhagya Mantra सौभाग्य मन्त्र ॐ ह्रीं नमः 108 times
Recitation of
■ ॐ ह्रीं नमः ■
108 times for 40 days at night time brings you out of troubles
6/30/2023 • 7 minutes, 50 seconds
Wake up Mantra प्रातः हस्तदर्शन मन्त्र
Look at your Palms when u wake up सुबह करने चाहिए हथेलियों के दर्शन ◆ Wake up Mantra प्रातः हस्तदर्शन मन्त्र◆
अपनी हथेलियों के जरिए आप अपने जीवन में सकारात्मक उर्जा का संचार कर सकते हैं।
ऐसा माना जाता है कि शास्त्रों के मुताबिक हाथों में ब्रह्मा, लक्ष्मी और सरस्वती तीनों का वास होता है। आचारप्रदीप के एक श्लोक में कहा गया है कि
★ कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।
★ इस श्लोक का एक अन्य पाठ भी प्रचलित है, जो इस तरह है: ★
ऊं कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले च गोविंद: प्रभाते कुरुदर्शनम्।। ★
इस श्लोक का अर्थ है कि हथेली के सबसे आगे के भाग में लक्ष्मी जी, बीच के भाग में सरस्वती जी और मूल भाग में ब्रह्माजी निवास करते हैं, इसलिए सुबह दोनों हथेलियों के दर्शन करना चाहिए।
सुबह हाथों के दर्शन के पीछे की मान्यता है कि जब व्यक्ति अपनी हथेलियों को आपस में रगड़कर पूरे विश्वास के साथ हथेलियों को देखता है तो उसमें एक विश्वास जाग्रत हो जाता है कि उसके शुभ कर्मों में देवता भी सहायक होंगे। जब वह अपने हाथों पर भरोसा करके सकारात्मक कदम उठाएगा, तो भाग्य भी उसका साथ देगा। ध्यान रहे कि इस मंत्र का जाप करते समय आपको केवल हथेली की ओर ही अपनी निगाहें रखनी हैं। और फिर मंत्र उच्चारण समाप्त होते ही हथेलियों को परस्पर घर्षण करके उन्हें अपने चेहरे पर लगाना चाहिए।
मान्यता है कि ऐसा करने से हम सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं और पूरा दिन अच्छा बीते इसके लिए सकारात्मक ऊर्जा भी प्राप्त हो जाती है।
6/30/2023 • 1 minute, 37 seconds
Daridrya Dahan Shiv Stotram दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम्
Daridrya Dahan Shiv Stotram दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम् ★
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय
कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
गौरी प्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिप कंकणाय
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय
मंजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय
।
पंचाननाय फनिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय
आनंदभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरर्चिताय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय
मातंग चर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय।
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र और अर्थ
~
जो विश्व के स्वामी हैं,
जो नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले हैं,
जो कानों से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले हैं,
जो अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले हैं,
जो कर्पूर की कांति के समान धवल वर्ण वाले जटाधारी हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो माता गौरी के अत्यंत प्रिय हैं,
जो रजनीश्वर (चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले हैं,
जो काल के भी अन्तक (यम) रूप हैं,
जो नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले हैं,
जो अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले हैं,
जो गजराज का विमर्दन करने वाले हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो भक्तिप्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय का नाश करने वाले हैं,
जो संहार के समय उग्ररूपधारी हैं,
जो दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले हैं,
जो ज्योतिस्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो बाघ के चर्म को धारण करने वाले हैं,
जो चिताभस्म को लगाने वाले हैं,
जो भाल में तीसरा नेत्र धारण करने वाले हैं,
जो मणियों के कुण्डल से सुशोभित हैं,
जो अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो पांच मुख वाले नागराज रूपी आभूषण से सुसज्जित हैं,
जो सुवर्ण के समान किरणवाले हैं,
जो आनंदभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले हैं,
जो सृष्टि के संहार के लिए तमोगुनाविष्ट होने वाले हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो सूर्य को अत्यंत प्रिय हैं,
जो भवसागर से उद्धार करने वाले हैं,
जो काल के लिए भी महाकालस्वरूप, और जिनकी कमलासन (ब्रम्हा) पूजा करते हैं,
जो तीन नेत्रों को धारण करने वाले हैं,
जो शुभ लक्षणों से युक्त हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो राम को अत्यंत प्रिय, रघुनाथजी को वर देने वाले हैं,
जो सर्पों के अतिप्रिय हैं,
जो भवसागररूपी नरक से तारने वाले हैं,
जो पुण्यवालों में अत्यंत पुण्य वाले हैं,
जिनकी समस्त देवतापूजा करते हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
जो मुक्तजनों के स्वामीस्वरूप हैं,
जो चारों पुरुषार्थों का फल देने वाले हैं,
जिन्हें गीत प्रिय हैं और नंदी जिनका वाहन है,
गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले हैं, महेश्वर हैं,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है|
6/30/2023 • 5 minutes, 10 seconds
Devshayani Ekadashi (Hari Shayan) Mantra देवशयनी एकादशी (हरि शयन) मंत्र
Devshayani Ekadashi (Hari Shayan) Mantra देवशयनी एकादशी (हरि शयन) मंत्र •
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकृति के पालनकर्ता हैं और उन्हीं कृपा से यह सृष्टि चल रही है।
इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस के बाद अगले चार महीने तक शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं, जिसे चातुर्मास भी कहते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु का विधि विधान से पूजन किया जाता है ताकि चातुर्मास में भगवान विष्णु की कृपा बनी रहे।
– मूर्ति या चित्र रखें।
– दीप जलाएं।
– पीली वस्तुओं का भोग लगाएं।
– पीला वस्त्र अर्पित करें।
– भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। अगर कोई मंत्र याद नहीं है तो सिर्फ हरि के नाम का जाप भी कर सकते हैं। हरि का नाम अपने आप में एक मंत्र है।
– जप तुलसी या चंदन की माला से करें तो अति उत्तम।
– आरती करें।
फिर इन मंत्रों का उच्चारण करें...
1. देवशयनी एकादशी संकल्प मंत्र
•
सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
2. विष्णु क्षमा मंत्र
•
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।
•
3. अंत में इस हरिशयन मंत्र से सुलाएं भगवान विष्णु को
•
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
•
अर्थात् , हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है। आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।
Shri Vishnu Krit Ganesh Stotram श्री विष्णुकृत गणेश स्तोत्रम्
Shri Vishnu Krit Ganesh Stotram श्री विष्णुकृत गणेश स्तोत्रम् • श्रीविष्णुरुवाच
ईश त्वां स्तोतुमिच्छामि ब्रह्मज्योतिः सनातनम् ।
निरुपितुमशक्तोsहमनुरुपमनीहकम् ॥ १ ॥
प्रवरं सर्वदेवानां सिद्धानां योगिनां गुरुम् ।
सर्वस्वरुपं सर्वेशं ज्ञानराशिस्वरुपिणम् ॥ २ ॥
अव्यक्तमक्षरं नित्यं सत्यमात्मस्वरुपिणम् ।
वायुतुल्यातिनिर्लिप्तं चाक्षतं सर्वसाक्षिणम् ॥ ३ ॥
संसारार्णवपारे च मायापोते सुदुर्लभे ।
कर्णधारस्वरुपं च भक्तानुग्रहकारकम् ॥ ४ ॥
वरं वरेण्यं वरदं वरदानामपीश्र्वरम् ।
सिद्धं सिद्धिस्वरुपं च सिद्धिदं सिद्धिसाधनम् ॥ ५ ॥
ध्यानातिरिक्तं ध्येयं च ध्यानासाध्यं च धार्मिकम् ।
धर्मस्वरुपं धर्मज्ञं धर्माधर्मफलप्रदम् ॥ ६ ॥
बीजं संसारवृक्षाणामङकुरं च तदाश्रयम् ।
स्त्रीपुत्रपुंसकानां च रुपमेतदतीन्द्रियम् ॥ ७ ॥
सर्वाद्यमग्रपूज्यं च सर्वपूज्यं गुणार्णवम् ।
स्वेच्छया सगुणं ब्रह्म निर्गुणं चापि स्वेच्छया ॥ ८ ॥
स्वयं प्रकृतिरुपं च प्राकृतं प्रकृतेः परम् ।
त्वां स्तोतुमक्षमोsनन्तः सहस्त्रवदनेन च ॥ ९ ॥
न क्षमः पञ्चवक्त्रश्र्च न क्षमश्र्चतुराननः ।
सरस्वती न शक्ता च न शक्तोsहं तव स्तुतौ ।
न शक्ताश्र्च चतुर्वेदाः के वा ते वेदवादिनः ॥ १० ॥
इत्येवं स्तवनं कृत्वा सुरेशं सुरसंसदि ।
सुरेशश्र्च सुरैः सार्द्धं विरराम रमापतिः ॥ ११ ॥
इदं विष्णुकृतं स्तोत्रं गणेशस्य च यः पठेत् ।
सायंप्रातश्र्च मध्याह्ने भक्तियुक्तः समाहितः ॥ १२ ॥
तद्विघ्ननिघ्नं कुरुते विघ्नेशः सततं मुने ।
वर्धते सर्वकल्याणं कल्याणजनकः सदा ॥ १३ ॥
यात्राकाले पठित्वा तु यो याति भक्तिपूर्वकम् ।
तस्य सर्वाभीष्टसिद्धिर्भवत्येव न संशयः ॥ १४ ॥
तेन दृष्टं च दुःस्वप्नं सुस्वप्नमुपजायते ।
कदापि न भवेत्तस्य ग्रहपीडा च दारुणा ॥ १५ ॥
भवेद् विनाशः शत्रूणां बन्धूनां च विवर्धनम् ।
शश्र्वदिघ्नविनाशश्र्च शश्र्वत् सम्पद्विवर्धनम् ॥ १६ ॥
स्थिरा भवेद् गृहे लक्ष्मीः पुत्रपौत्रविवर्धिनी ।
सर्वैश्र्वर्यमिह प्राप्य ह्यन्ते विष्णुपदं लभेत् ॥ १७ ॥
फलं चापि च तीर्थानां यज्ञानां यद् भवेद् ध्रुवम् ।
महतां सर्वदानानां श्रीगणेशप्रसादतः ॥ १८ ॥ • ॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते श्रीविष्णुकृतं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
6/29/2023 • 8 minutes, 6 seconds
Shri Shivashtak Stotra श्री शिवाष्टक स्तोत्र
Shri Shivashtak Stotra श्री शिवाष्टक स्तोत्र ★
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुरातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकार, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधर दया करो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय मन भावन, जय अति पावन, शोक नशावन,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,
सरल हृदय, अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,
निमिष में देते हैं, नवनिधि मन मानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,
स्वयम् अकिंचन, जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
तुम बिन 'बेकल' हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
॥ इति श्री शिवाष्टक स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
Bhumi Vandana भूमि वन्दना ◆
प्रतिदिन प्रातः जागते ही भूमि पर पैर रखने से पहले भूमि देवी से क्षमा याचना करनी चाहिए। ★
समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते ।
विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे ॥
◆
अर्थात् समुद्र रुपी वस्त्र धारण करने वाली पर्वत रुपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वी! मुझे आपको अपने पाद से स्पर्श करना पड़ रहा है । इस पाद स्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।
6/27/2023 • 1 minute, 3 seconds
Shani Stavraj Stotra शनि स्तवराज स्तोत्र
Shani Stavraj Stotra शनि स्तवराज स्तोत्र ★
अगर आप शनि दशा से गुजर रहे हैं या गुजरने वाले हैं तो प्रति शनिवार 'शनि स्तवराज' का पाठ अवश्य करें। यह पाठ शनि देव के प्रकोप को शांत करता है और साढ़ेसाती या ढैय्या जैसी दशा के समय इस पाठ से कष्ट की अनुभूति ही नहीं होती है, अपितु शनिदेव की प्रसन्नता और कृपा प्राप्त होती है। हर शनिवार के दिन अथवा शनि जयंती को इस पाठ को पढ़ने से जीवन में सुख-शांति मिलती है। ★
।।शनि स्तवराज।।
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोवतु।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोवतु।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोवतु ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः ।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शन। शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुत।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्यभुग् राज्यदायकः ।। छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः ।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।।
तिथ्यात्मा तिथिगणनो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा यान्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् । पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।। ★
6/27/2023 • 10 minutes, 36 seconds
Kaamdev Vashikaran Mantra कामदेव वशीकरण मंत्र 108 times
■ Vashikaran Kaamdev Mantra वशीकरण कामदेव मंत्र 108 times ■
'ॐ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यस्य यस्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा। ■
इस मंत्र के जाप से मानसिक और शारीरिक आकर्षण में तीव्रता आ जाती है। वशीकरण और प्रेमियों के बीच आपसी आकर्षण बनाए रखने के लिए इस मंत्र का जाप करें।
6/27/2023 • 29 minutes, 38 seconds
Shri Shankheshwar Parshvanath Stotra श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र
Shri Shankheshwar Parshvanath Stotra श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र ★
ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्वचिंतामणीयते ।
ह्रीं धरणेन्द्र वैरोट्या पद्मादेवी युतायते ॥१॥
शान्ति - तुष्टि - महापुष्टि धृति-कीर्ति - विधायिने।
ॐ ह्रीं द्विड्व्याल - वेताल, सर्वाधिव्याधिनाशिने ॥२॥
जया - जिताख्या विजयाख्याऽपराजितयान्वितः ।
दिशां पालैग्रहैर्यक्षैर्विद्यादेविभिरन्वितः ॥३॥
ॐ अ-सि- आ-उ-सा य नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् ।
चतुःषष्टिसुरेन्द्रास्ते, भासन्ते छत्रचामरैः ॥४॥
श्रीशंखेश्वरमण्डपार्श्वजिन ! प्रणतकल्पतरुकल्प !
चूरय दुष्टव्रातं पूरय मे वाञ्छितं नाथ ! ॥५॥
★ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति है। इसके जाप से रोग, शोक, कलह, महामारी, दुःख-दारिद्र्य और ग्रह-दोष दूर होते हैं।
6/27/2023 • 2 minutes, 13 seconds
Namokar Mantra Mahatmya (Sanskrit) णमोकार मंत्र माहात्म्य
Akshat (Rice) Arpan Mantra अक्षत (चावल) अर्पण मन्त्र ★
जैन मंदिर में वेदी पर चावल आदि द्रव्य को निम्न श्लोक बोलते हुए मन्त्र को उच्चारण करते हुए चढाये
★ उदक चन्दन तन्दुल पुष्पकैः
चरू सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवलं मंगल गान र वा कुले:
जिन गृहे जिननाथ महं-यजे।। ★
पांच पुंज (ढेरी) में ★
"ऊँ ह्रीं श्री गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाण कल्याणक प्राप्ताय जलादि अर्घ्य निर्वपामीती स्वाहा" ★
इस प्रकार मंत्र बोलते हुए चढ़ाना चाहिये।
6/25/2023 • 1 minute, 15 seconds
Sri Ram Panchratna Stotram श्री राम पञ्चरत्न स्तोत्रम्
Vasudev Krit Shri Krishna Stotra वसुदेवकृत श्रीकृष्ण स्तोत्र • श्रीमन्तमिन्द्रियातीतमक्षरं निर्गुणं विभुम् ।
ध्यानासाध्यं च सर्वेषां परमात्मानमीश्र्वरम् ॥ १ ॥
स्वेच्छामयं सर्वरुपं स्वेच्छारुपधरं परम् ।
निर्लिप्तं परमं ब्रह्म बीजरुपं सनातनम् ॥ २ ॥
स्थूलात् स्थूलतरं व्याप्तमतिसूक्ष्ममदर्शनम् ।
स्थितं सर्वशरीरेषु साक्षिरूपमदृश्यकम् ॥ ३ ॥
शरीरवन्तं सगुणमशरीरं गुणोत्करम् ।
प्रकृतिं प्रकृतीशं च प्राकृतं प्रकृतेः परम् ॥ ४ ॥
सर्वेशं सर्वरूपं च सर्वान्तकरमव्ययम् ।
सर्वाधारं निराधारं निर्व्यूहं स्तौमि किं विभो ॥ ५ ॥
अनन्तः स्तवनेsशक्तोsशक्ता देवी सरस्वती ।
यं स्तोतुमसमर्थश्र्च पञ्चवक्त्रः षडाननः ॥ ६ ॥
चतुर्मुखो वेदकर्ता यं स्तोतुमक्षमः सदा ।
गणेशो न समर्थश्र्च योगीन्द्राणां गुरोर्गुरुः ॥ ७ ॥
ऋषयो देवताश्र्चैव मुनीन्द्रमनुमानवाः ।
स्वप्ने तेषामदृश्यं च त्वामेवं किं स्तुवन्ति ते ॥ ८ ॥
श्रुतयः स्तवनेsशक्ताः किं स्तुवन्ति विपश्र्चितः ।
विहायैवं शरीरं च बालो भवितुमर्हसि ॥ ९ ॥
वसुदेवकृतं स्तोत्रं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
भक्तिदास्यमवाप्नोति श्रीकृष्णचरणाम्बुजे ॥ १० ॥
विशिष्टपुत्रं लभते हरिदासं गुणान्वितम् ।
सङकटं निस्तरेत् तूर्णं शत्रुभीत्या प्रमुच्यते ॥ ११ ॥ • ॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे वसुदेवकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
6/23/2023 • 4 minutes, 27 seconds
Krodh Shanti Mantra क्रोध शांति मन्त्र
Krodh Shanti Mantra क्रोध शांति मन्त्र ★ ॐ शान्तं प्रशान्तं सर्वक्रोध - प्रशमति स्वाहा।
★ प्रयोग विधि - एक लोटा जल लेकर उसको इस मन्त्र से 21 बार अभिमन्त्रित करें, फिर उसी जल से तीन बार मुंह पर छीटे मारकर धोयें। क्रोध शान्त हो जायेगा।
6/23/2023 • 3 minutes, 2 seconds
Mahakali Chalisa महाकाली चालीसा
Mahakali Chalisa महाकाली चालीसा •
दोहा
मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय ।
जान मोहि निज दास सब दीजै काज बनाय ॥
नमो महा कालिका भवानी। महिमा अमित न जाय बखानी॥
तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो। सुर नर मुनिन सबन गुण गायो॥
परी गाढ़ देवन पर जब जब। कियो सहाय मात तुम तब तब॥
महाकालिका घोर स्वरूपा। सोहत श्यामल बदन अनूपा॥
जिभ्या लाल दन्त विकराला। तीन नेत्र गल मुण्डन माला॥
चार भुज शिव शोभित आसन। खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण॥
रहें योगिनी चौसठ संगा। दैत्यन के मद कीन्हा भंगा॥
चण्ड मुण्ड को पटक पछारा। पल में रक्तबीज को मारा॥
दियो सहजन दैत्यन को मारी। मच्यो मध्य रण हाहाकारी॥
कीन्हो है फिर क्रोध अपारा। बढ़ी अगारी करत संहारा॥
देख दशा सब सुर घबड़ाये। पास शम्भू के हैं फिर धाये॥
विनय करी शंकर की जा के। हाल युद्ध का दियो बता के॥
तब शिव दियो देह विस्तारी। गयो लेट आगे त्रिपुरारी॥
ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी। खड़ा पैर उर दियो निहारी॥
देखा महादेव को जबही। जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही॥
भई शान्ति चहुँ आनन्द छायो। नभ से सुरन सुमन बरसायो॥
जय जय जय ध्वनि भई आकाशा। सुर नर मुनि सब हुए हुलाशा॥
दुष्टन के तुम मारन कारन। कीन्हा चार रूप निज धारण॥
चण्डी दुर्गा काली माई। और महा काली कहलाई॥
पूजत तुमहि सकल संसारा। करत सदा डर ध्यान तुम्हारा॥
मैं शरणागत मात तिहारी। करौं आय अब मोहि सुखारी॥
सुमिरौ महा कालिका माई। होउ सहाय मात तुम आई॥
धरूँ ध्यान निश दिन तब माता। सकल दुःख मातु करहु निपाता॥
आओ मात न देर लगाओ। मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ॥
सुनहु मात यह विनय हमारी। पूरण हो अभिलाषा सारी॥
मात करहु तुम रक्षा आके। मम शत्रुघ्न को देव मिटा को॥
निश वासर मैं तुम्हें मनाऊं। सदा तुम्हारे ही गुण गाउं॥
दया दृष्टि अब मोपर कीजै। रहूँ सुखी ये ही वर दीजै॥
नमो नमो निज काज सैवारनि। नमो नमो हे खलन विदारनि॥
नमो नमो जन बाधा हरनी। नमो नमो दुष्टन मद छरनी॥
नमो नमो जय काली महारानी। त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी॥
भक्तन पे हो मात दयाला। काटहु आय सकल भव जाला॥
मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा। आवहू बेगि न करहु विलम्बा॥
मुझ पर होके मात दयाला। सब विधि कीजै मोहि निहाला॥
करे नित्य जो तुम्हरो पूजन। ताके काज होय सब पूरन॥
निर्धन हो जो बहु धन पावै। दुश्मन हो सो मित्र हो जावै॥
जिन घर हो भूत बैताला। भागि जाय घर से तत्काला॥
रहे नही फिर दुःख लवलेशा। मिट जाय जो होय कलेशा॥
जो कुछ इच्छा होवें मन में। संशय नहिं पूरन हो छण में॥ औरहु फल संसारिक जेते। तेरी कृपा मिलैं सब तेते॥
दोहा - महाकलिका की पढ़ै नित चालीसा जोय।
मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय॥ °
6/23/2023 • 8 minutes, 49 seconds
Ganesh 12 Naam Stotra गणेश द्वादश नाम स्तोत्र
Ganesh 12 Naam Stotra गणेश द्वादश नाम स्तोत्र ★
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ||
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् |
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ||
पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ||
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् |
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ||
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः |
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ||
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् |
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ||
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् |
संवत्सरेण च संसिद्धिं लभते नात्र संशयः ||
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् |
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ||
★
|| इतिश्रीनारदपुराणे संकटनाशननाम गणेशद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
6/22/2023 • 3 minutes, 27 seconds
Shri Jagannath Stotra श्री जगन्नाथ स्तोत्र
Shri Jagannath Stotra श्री जगन्नाथ स्तोत्र ★
जो भी भक्त अपने दुखों से मुक्ति पाने एवं मनवाछिंत कामना की पूर्ति के लिए भगवान जगन्नाथ के इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, श्री जगन्नाथ जी उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
श्री जगन्नाथ स्तोत्र का पाठ विधि
सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण, श्री बलराम जी एवं देवी सुभद्रा जी पंचोपचार पूजन- जल, अक्षत-पुष्प, धुप, दीप और नैवेद्य से पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रभु का ध्यान करें।
इसके बाद किसी धुले हुए आसन पर बैठकर भगवान श्री जगन्नाथ जी के इस स्त्रोत का शांत चित्त होकर धीमे स्वर में पाठ करें ।
4- जब तक पाठ चलता रहे तब तक गाय के घी का दीपक भी जलता रहे।
5- ऐसा कहा जाता कि इस स्त्रोत का सिर्फ एक बार पाठ करने से मानसिक शांति मिलने के साथ अनेक कष्टों का निवारण श्री भगवान जी कर देते हैं।
6/22/2023 • 24 minutes, 55 seconds
Manorath Siddhi Jain Mantra मनोरथ सिद्धि जैन मन्त्र
Jagannath Rathyatra Mantra जगन्नाथ रथयात्रा मन्त्र ★
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः । जगदानन्दकन्दाय प्रणतार्तहराय च । नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः ।। ★
6/21/2023 • 1 minute, 1 second
Shri Jagannath Ashtakam
श्री जगन्नाथ अष्टकम्
Shri Jagannath Ashtakam श्री जगन्नाथ अष्टकम् ◆
कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो।
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः।।
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो।
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥१॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो।
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥२॥
महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो।
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥३॥
कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो।
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥४॥
रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
। जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥५॥
परंब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्फुल्ल-नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो
। जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥६॥
न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ पतिना गीतचरितो
। जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥७॥
हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं ।
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥८॥
जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥
॥ इति श्रीमत् शंकराचार्यविरचितं जगन्नाथाष्टकं संपूर्णम् ॥
6/21/2023 • 6 minutes, 7 seconds
Sri Jagannath Prarthana श्री जगन्नाथ प्रार्थना
Sri Jagannath Prarthana श्री जगन्नाथ प्रार्थना ★
रथयात्रा के दौरान 10 दिनों तक जो भी भक्त अपने दुखों से मुक्ति पाने एवं मनवाछिंत कामना की पूर्ति के लिए भगवान जगन्नाथ की इस स्तुति का पाठ करते हैं श्री जगन्नाथ जी उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
श्री जगन्नाथ स्तोत्र का पाठ विधि
1- सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण, श्री बलराम जी एवं देवी सुभद्रा जी पंचोपचार पूजन- जल, अक्षत-पुष्प, धुप, दीप और नैवेद्य से पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रभु का ध्यान करें।
2- पूजन के बाद स्त्रोत के पहले दो श्लोक से योगेश्वर श्री कृष्ण, श्री बलराम, और देवी सुभद्रा को दण्वत प्रणाम करें।
3- पूजन और नमन करने के बाद किसी धुले हुए आसन पर बैठकर भगवान श्री जगन्नाथ जी की इस प्रार्थना का शांत चित्त होकर धीमे स्वर में पाठ करें । •
।। श्री जगन्नाथ प्रार्थना ।।
रत्नाकरस्तव गृहं गृहिणी च पद्मा,
किं देयमस्ति भवते पुरुषोत्तमाय।
अभीर, वामनयनाहृतमानसाय,
दत्तं मनो यदुपते त्वरितं गृहाण।।१।।
भक्तानामभयप्रदो यदि भवेत् किन्तद्विचित्रं
प्रभो कीटोऽपि स्वजनस्य रक्षणविधावेकान्तमुद्वेजितः।
ये युष्मच्चरणारविन्दविमुखा स्वप्नेऽपिनालोचका:
तेषामुद्धरण-क्षमो यदि भवेत्कारुण्य सिन्धुस्तदा।।२।।
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः,
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो।।
या त्वरा द्रौपदीत्राणे या त्वरा गजमोक्षणे,
मय्यार्ते करुणामूर्ते सा त्वरा क्व गता हरे।।३।।
मत्समो पातकी नास्ति त्वत्समो नास्ति पापहा ।
इति विज्ञाय देवेश यथायोग्यं तथा कुरु।।४।। •
6/21/2023 • 3 minutes, 45 seconds
Tulsi Jal Arpan Mantra तुलसी जल अर्पण मन्त्र
Tulsi Jal Arpan Mantra तुलसी जल अर्पण मन्त्र ■
तुलसी का पौधा अगर आपके घर पर है तो उसे नियमित जल चढ़ाना अनिवार्य है। तुलसी के पौधे को जल अर्पित करते समय उसमें थोड़ा कच्चा दूध मिला दिया जाए और ये एक विशेष मंत्र बोला जाए, तो समृद्धि का वरदान 1000 गुना बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, इस मंत्र के उच्चारण से व्यक्ति को रोग, शोक, बीमारी-व्याधि आदि से भी छुटकारा मिल जाता है।
मंत्र- •
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी।
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोsस्तु ते।।
6/20/2023 • 1 minute, 6 seconds
Rognivarak Jain Mantra रोगनिवारक जैन मन्त्र
Rognivarak Jain Mantra रोगनिवारक जैन मन्त्र ★ॐ ह्रीं सकल रोगहराय श्री सन्मति देवाय नमः ★
6/20/2023 • 8 minutes, 57 seconds
Devi Navratna Malika Stotra देवी नवरत्न मालिका स्तोत्रम्
Surya Grahan Shanti Parihar सूर्य ग्रहण शान्ति परिहार
Surya Grahan Shanti Parihar सूर्य ग्रहण शान्ति परिहार ★
शान्ति श्लोकाः –
इन्द्रोऽनलो दण्डधरश्च रक्षः प्राचेतसो वायु कुबेर शर्वाः ।
मज्जन्म ऋक्षे मम राशि संस्थे सूर्योपरागं शमयन्तु सर्वे ॥
★
ग्रहण पीडा परिहार ★
योऽसौ वज्रधरो देवः आदित्यानां प्रभुर्मतः ।
सहस्रनयनः शक्रः ग्रहपीडां व्यपोहतु ॥ १
मुखं यः सर्वदेवानां सप्तार्चिरमितद्युतिः ।
चन्द्रसूर्योपरागोत्थां अग्निः पीडां व्यपोहतु ॥२
यः कर्मसाक्षी लोकानां यमो महिषवाहनः ।
चन्द्रसूर्योपरागोत्थां ग्रहपीडां व्यपोहतु ॥ ३
रक्षो गणाधिपः साक्षात् प्रलयानलसन्निभः उग्रः
करालो निऋतिः ग्रहपीडां व्यपोहतु ॥ ४
नागपाशधरो देवः सदा मकरवाहनः ।
वरुणो जललोकेशो ग्रहपीडां व्यपोहतु ॥ ५
यः प्राणरूपो लोकानां वायुः कृष्णमृगप्रियः ।
चन्द्रसूर्योपरागोत्थां ग्रहपीडां व्यपोहतु ॥ ६
योऽसौ निधिपतिर्देवः खड्गशूलधरो वरः ।
चन्द्रसूर्योपरागोत्थां कलुषं मे व्यपोहतु ॥ ७
योऽसौ शूलधरो रुद्रः शङ्करो वृषवाहनः ।
चन्द्रसूर्योपरागोत्थां दोषं नाशयतु द्रुतम् ॥ ८
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
6/19/2023 • 2 minutes, 25 seconds
Karz Mukti Mantra कर्ज़ मुक्ति मन्त्र
Karz Mukti Mantra कर्ज़मुक्ति मन्त्र ■
ऐसा माना जाता है कि यदि आप कर्ज में डूबे हैं और लाख कोशिशों के बावजूद आप कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं तो इस मंत्र
★ ॐ आं ह्रीं क्रीं श्रीं श्रियै नमः ममालक्ष्मीं नाशय ममृणोत्तीर्णं कुरु कुरु संपदं वर्धय स्वाहा ★
का जाप करने से कर्ज से मुक्ति मिल जाती है। 44 दिनों तक 10,000 बार इस मंत्र से जाप करने से धन का लाभ जीवन में होता है साथ ही इंसान को अपने कर्ज से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है।
6/19/2023 • 29 minutes, 10 seconds
Shri Parshvanath Stotram by Gyanmati Mataji ज्ञानमती माताजी विरचित श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम्
Shri Kali Stotra श्री काली स्तोत्र * ॐ अचिंत्यामिताकार शक्ति स्वरूपा प्रतिव्यक्तव्यधिष्टान सत्वैक मूर्ति: । गुणातीत निर्द्वन्द्वबोधैकगम्या त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥१
अगोत्रा कृतित्वादनैकान्तिकत्वा दलक्ष्यागमत्वाद शेषाकर त्वात् । प्रपंचालसत्वादना रम्भकत्वात् त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥२
यदा नैवघाता न विष्णुर्नरुद्रो न काली न वा पंचभूतानिनाशा । तदा कारणीभूत सत्वैक मूर्ति त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥३
न मीमांसकानैव कालादितर्का न साँख्या न योगा न वेदान्त वेदाः । न देवा विदुस्ते निराकार भावं त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥४
न तो नामगोत्रे न ते जन्म मृत्यु न ते धाम चेष्टे न ते दुख सोख्ये । न ते मित्र शत्रु न ते बन्ध मोक्षौ त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥५
न बाला न च त्वं वयस्था न वृद्धा न च स्यदिषष्ठ पुमान्नैव च त्वम् । न व त्वं सुरो नासुरो नो नरो वा त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥६
जले शीतलत्वं शुचौदाहकत्व विधी निर्मलत्वं रवौ तापकत्वम् । तवैवाम्बिके यस्म कस्यापि शक्ति त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥७
पपौक्ष्वेडमुग्रे पुरा यन्महेश: पुन: संहरत्यन्त काले जगच्च । तवैव प्रसादान्त च स्वस्य शक्त्या त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ||८
कराला कृतीन्यानानि भ्रयान्ती भजन्ती करास्त्रादि बाहुल्यमिथम् । जगत्पालनाया सुराणाम् बंधाय त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥ ९
रूदन्ती शिवाभिर्वहन्ती कपालं जयन्ती सुरारीन बधन्ती प्रसन्ना । नटन्ती पतन्ती चलंती हसंती त्वमेका परंबह्मरूपेण सिद्धा ॥१० आपादापिवताधिकं धावसित्व श्रुतिभ्याम् विहिनामि शब्द श्रृणोसि । अनासापिजिथ्रस्य नेत्रापि पश्य स्वजिह्वापि नानारसास्वाद विज्ञा ॥११
यथा भ्रामयित्वा मृद चक्र कुलाली बिद्यते शरावं घटं च । महामोह यंत्रेषु भूतान्य शेषान् तथा मानुषास्त्वं सूत्रस्यादि सर्गे ॥१२
यथा रंगरज्वर्कदृष्टिष्व कस्मान्नृणां रूपदर्वी कराम्बुभ्रमः स्यात् । जगत्यत्र तत्तन्मये तद्वदेव त्वमेकैव तत्तन्नितत्तौ समस्तम् ॥१३
महाज्योति एका संहासनम् वत् त्वकीयान् सुरान वाहयस्युग्रमूर्ते । अवष्टभ्य पदभ्याम् शिवं भैरवं च स्थिता तेन मध्ये भवत्येव मुख्या ॥१४
कुयोग आसने योग मुद्राभिनीति: कुगोसायु पोतस्य वालाननं च । जगन्मातरादृक तवा पूर्वलीला कथं कारमस्मद्विधैर्देवि गम्या ॥१५
महाघोर कालानल ज्वाल ज्वाल सित्यत्यंतवासा महाट्टाहासा । जटाभार काला महामुण्ड माला विशाला त्वमहित मयाध्यायशSम्ब ||१६
तपोनैव कुर्वन् वपुः सदयामि ब्रजन्नापि तीर्थ पदे खंजयामि । पटठन्नापि वेदान् चनि यापयामि त्वदंघ्रिद्वयं मंगल साधयामि ॥१७
तिरस्कुर्वतोऽन्यामारो पास नार्चे परित्यक्त धर्माध्वरस्यास्य जन्तोः । त्वदाराधनान्यस्त चित्तस्य किं में करिष्यन्तयमी धर्मराज्य दूताः ॥१८
न मन्यसे हरि न वुधातारमीशं न वह्निं न ह्यर्क न चेन्द्रादि देवान् । शिवोदीरितानेक वाक्यप्रबन्ध स्त्वदर्चाविधानं विशत्वम्ब मत्याम् ॥१९
नरा मां विनिन्दन्तु नाम त्यजेद्वान्धंवा ज्ञातयः सन्त्यजन्तु । मयि भटा नारके पातयन्तु त्वमेका गतिमें त्वमेका गतिमें ॥२०
6/18/2023 • 10 minutes, 31 seconds
Amogh Shiv Kavacham अमोघ शिव कवचम्
Amogh Shiv Kavacham अमोघ शिव कवचम्
6/18/2023 • 29 minutes, 37 seconds
Anant Chaturdashi Mantra अनंत चतुर्दशी मन्त्र
Anant Chaturdashi Mantra अनंत चतुर्दशी मन्त्र ■
अग्नि पुराण के अनुसार अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इस दिन सबसे पहले स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके इस व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद मंदिर में कलश स्थापना करके भगवान विष्णु की तस्वीर लगाएं। अब एक डोरी को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर इसमें 14 गांठें सगा लें। अब इसे भगवान विष्णु जी को चढ़ाकर पूजा शुरू करें।
इस दिन पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें ★
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव । अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते। ★
इसके बाद पूजा में बैठे पुरुष सूत्र को अपने दाएं हाथ के बाजू और महिलाएं बाएं हाथ के बाजू पर बांध लें। सूत्र बांधने के बाद यथा शक्ति ब्राह्मण को भोज कराएं और प्रसाद ग्रहण करें।
अनंत चतुर्दशी की पूजा से लाभ
-यह पूजा ग्रहों की अशुभता को भी दूर करती है - कुंडली में काल सर्प दोष होने पर इस दिन पूजा करने से लाभ मिलता है। - अनंत चतुर्दशी की पूजा जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर करती है ।
Rahu Shanti Jain Mantra Jaap राहु शांति जैन मंत्र जाप 108 times
Rahu Shanti Jain Mantra Jaap राहु शांति जैन मंत्र जाप
★ ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते नेमि तीर्थंकराय सर्वाण्हयक्ष कुष्मांडीयक्षी सहिताय ॐ आं क्रीं ह्रीं ह्रः राहुमहाग्रह मम दुष्टग्रह, रोग कष्ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् । ★
6/17/2023 • 46 minutes, 36 seconds
'Stuti Vidya’ by Acharya Samantbhadra आचार्य समंतभद्र विरचित ’स्तुति विद्या’
'Stuti Vidya’ by Acharya Samantbhadra आचार्य समंतभद्र विरचित ’स्तुति विद्या’
6/17/2023 • 42 minutes, 42 seconds
Bhagwan Mahaveer Gaurav Gatha भगवान महावीर गौरव गाथा
Bhagwan Mahaveer Gaurav Gatha भगवान महावीर गौरव गाथा
6/16/2023 • 2 hours, 9 minutes, 33 seconds
Shri Lakshmi Suktam श्री लक्ष्मी सूक्तम्
Shri Lakshmi Suktam श्री लक्ष्मी सूक्तम् ★
पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥
- हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥
- हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे॥
- हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें।
पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे॥
- हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।
धनमाग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु।
धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे॥
- हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।
वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥
हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्॥
- इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्॥
- हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम॥
- भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।
महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥
- हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।
चंद्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम्।
चंद्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे॥
- जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं।
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते।
धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम् सत्संवत्सरं दीर्घमायुः॥
- इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।
॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तम् संपूर्णम् ॥
6/15/2023 • 5 minutes, 3 seconds
Shani Kavach शनि कवच
Shani Kavach शनि कवच • अथ श्री शनिकवचम्
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II
अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II
शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् II
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः II १ II
ब्रह्मोवाच II
श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् I
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् II २ II
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् I
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् II ३ II
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः I
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः II ४ II
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा I
स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः II ५ II
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः I
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा II ६ II
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा I
ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा II ७ II
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः I
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः II ८ II
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः I
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः II ९ II
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा I
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः II १० II
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे I
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् II ११ II
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा I
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा I
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः II १२ II
• II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं II
6/15/2023 • 5 minutes, 27 seconds
Gayatri Chalisa गायत्री चालीसा
Gayatri Chalisa गायत्री चालीसा • दोहा • ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति क्रांति जागृति प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥
अक्षर चौबिस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥
हंसारूढ़ श्वेतांबर धारी। स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी॥
पुस्तक पुष्प कमण्डल माला। शुभ्रवर्ण तनु नयन विशाला॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई। सुख उपजत दुःख दुरमति खोई॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥
तुम्हरी महिमा पार न पावै। जो शरद शतमुख गुण गावैं॥
चार वेद की मातु पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥
महामंत्र जितने जग माहीं। कोऊ गायत्री सम नाहीं॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥
महिमा अपरंपार तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जग में आना॥ तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाए कछु रहै न क्लेशा॥
जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥ तुम्हरी शक्ति दपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥
जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥
मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावें। रोगी रोग रहित ह्वै जावें॥ दारिद मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥ ग्रह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख संपत्ति युत मोद मनावें॥ भूत पिशाच सब भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥ घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥ जयति जयति जगदंब भवानी। तुम सम और दयालु न दानी ॥ जो सद्गुरू सों दीक्षा पावें । सो साधन को
सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी। लहैं मनोरथ
गृही विरागी ॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ
गायत्री माता ॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी। आरत अर्थी
चिन्तित भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावैं॥
बल बुद्धि विद्या शील स्वभाऊ। धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥
सकल बढ़ें उपजें सुख नाना। जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
•
दोहा • यह चालीसा भक्तियुक्त पाठ करें जो
कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥
6/15/2023 • 11 minutes, 36 seconds
Kali Stav काली स्तव
Kali Stav काली स्तव ★
नमामि कृष्णरूपिणीं कृशाङ्ग-यष्टि-धारिणीम्।
समग्रतत्त्व – सागरामपार-पार – गह्वराम्॥१॥
जिनका रूप काला एवं शरीर कृश है, जो सम्पूर्ण तत्त्वों की सागर हैं । जिनका पार पाना कदापि सम्भव नहीं हैं, ऐसी गहनकाली को मैं प्रणाम करता हूँ । •
शिवां प्रभासमुज्जवलां स्फुरच्छशाङ्कशेखराम।
ललाटरत्नभास्वरां जगत् प्रदीप्ति – भास्कराम्॥२॥
भक्तों का कल्याण करनेवाली, प्रकाश से उज्ज्वल, जिन महाकाली के मस्तक में चन्द्रमा स्फुरित हो रहा है। जिनके ललाट में रत्नों की ज्योति जगमगा रही हैं। जो अपने दिव्य प्रकाश से सूर्य के तुल्य शोभायमान हो रही है । ऐसी भगवती काली को मैं प्रणाम करता हूँ। •
महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार – संस्तुताम्।
सुराऽसुरेन्द्र – वन्दितां यदार्थनिर्मलाद् भुताम्॥३॥
इन्द्र तथा कश्यप ऋषि के द्वारा अर्चित, सनत्कुमार के द्वारा प्रार्थित, देवताओं एवं राक्षसों के द्वारा वंदित, सत्य, स्वच्छ एवं अद्भुत रूप वाली काली को मैं प्रणाम करता हूँ। •
अतर्क्यरोचिरूर्जितां विकार-दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विकार-दोषवार्जिताम्॥ ४ ॥
मन, कर्म, वाणी से अत्यधिक तेजयुक्ता, अत्यन्त पराक्रमशील, विकार एवं दोषरहित, मुमुक्षुओं से ध्यान की जानेवाली एवं है विकार एवं दोष से रहित, काली को मैं प्रणाम करता हूँ। •
मृतास्थिनिर्मितस्त्रजां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुद्धतत्त्वतोषणां त्रिवेदसारभूषणाम्॥ ५॥
शव की हड्डी की माला को गले में धारण करनेवाली, जिनका वाहन सिंह है । सबसे पहले उत्पन्न होनेवाली परब्रह्म तथा तीनों वेदों के साररूपी भूषण को धारण की हुई भगवती महाकाली को मैं प्रणाम करता हूँ। •
भुजङ्गहारहारिणीं कपालषण्ड-धारिणीम्।
सुधार्मिकोपकारिणीं सुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥ ६॥
भयंकर सर्पों की माला एवं कपाल समूहों को गले में धारण करनेवाली, धर्म का पालन करने वालों का उपकार करने वाली तथा इंद्र के शत्रुओं को नाश करनेवाली महाकाली को मैं प्रणाम करता हूँ । •
कुठारपाशचापिनीं कृतान्तकाममेदिनीम्।
शुभां कपालमालिनी सुवर्णकल्प-शाखिनीम्॥ ७ ॥
हाथों में कुठार,पाश और चाप धारण करनेवाली, काल की इच्छा को भी व्यक्त कर करनेवाली,सभी का कल्याण करनेवाली, कपाल की माला धारण करनेवाली, सुवर्ण कल्पवृक्ष के तुल्य महाकाली को मैं प्रणाम करता हूँ । •
श्मशानभूमिवासिनीं द्विजेन्द्रमौलिभाविनीम्।
तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्॥ ८॥
श्मशान भूमि में वास वास करने वाली, जो चन्द्रमा को अपने मस्तक में धारण करती है जो तम मोहरूप पंचपर्वा अविद्या की रात्रि स्वरूपा हैं | जो महाकाली स्वभाव से ही शिव की इच्छा करनेवाली हैं उन महाकाली को मैं प्रणाम करता हूँ। •
सहस्रसूर्यराजिकां धनञ्जयोपकारिकाम्।
सुशुद्धकाल-कन्दलां सुभृङ्गवृन्दमञ्जुलाम्॥९॥
हजारों सूर्य के तुल्य शोभायमान होनेवाली, समर में अर्जुन को विजयी करवा के उनका उपकार करनेवाली, विशुद्ध कालतत्त्व की अंकुरस्वरूपा, भृङ्गमाला के तुल्य मनोहर स्वरूपवाली, उन महाकाली को मैं प्रणाम करता हूँ । •
प्रजायिनीं प्रजावतीं नमानि मातरं सतीम्।
स्वकर्मकारणो गतिं हरप्रियां च पार्वतीम्॥१०॥
संसाररूपी संतानवाली, मनुष्यों के अपने कर्मों के अनुसार उनको फल प्रदान करनेवाली, शिव की प्रिया सती पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ। •
अनन्तशक्ति-कान्तिदां यशोऽर्थ-भुक्ति-मुक्तिदाम्।
पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्॥११॥
अनन्त शक्ति, कान्ति, यश, अर्थ, भोग एवं मोक्ष प्रदत्त करनेवाली,अनेकानेक बार संसार का कल्याण करनेवाली और देवगणों के द्वारा सदैव अर्चित श्रीमहाकाली को मैं प्रणाम करता हूँ । •
जयेश्वरि! त्रिलोचने! प्रसीद देवि! पाहि माम्।
जयन्ति ते स्तुवन्ति ये शुभं लभन्त्यभीक्ष्णशः॥१२॥
हे ईश्वरि! आपकी जय हो, हे त्रिलोचने! आप मुझ पर प्रसन्न हों, मेरी रक्षा करो। हे माते!जो आपकी स्तुति करते हैं, वे सदैव विजय को प्राप्त करते हैं तथा उनका सदैव कल्याण होता है । •
सदैव ते हतद्विषः परं भवन्ति सज्जुषः।
ज्वरापहे शिवेऽधुना प्रशाधि मां करोमि किम्॥१३॥
ऐसे भक्तों के शत्रुगण नष्ट हो जाते हैं तथा वे अच्छे लोगों से सदैव सेवित होते है। हे तीनों तापों को हरनेवाली माता भगवति! मुझको आज्ञा दो कि मैं क्या करूँ? •
अतीव मोहितात् मनो वृथा विचेष्टितस्य मे।
तथा भवन्तु तावका यथैव चोषितालकाः॥१४॥
हे माते! मेरी आत्मा अत्यधिक मोह में पड़ी हुई है, मेरी सम्पूर्ण चेष्टाएँ व्यर्थ हो रही हैं। अब आप मुझ पर प्रसन्न होवें जिससे कि मैं मुक्ति का पात्र बन जाऊँ । •
|| काली स्तव फलश्रुतिः ||
इमां स्तुतिं मयेरितां पठन्ति कालिसाधकाः।
न ते पुनः सुदुस्तरे पतन्ति मोहगह्वरे॥१५॥
ब्रह्मदेव का कथन है कि मेरे द्वारा रची गई इस स्तुति को जो काली के साधक पढ़ते हैं, वे अत्यंत दुस्तर मोहरूपी गड्ढे में नहीं पड़त
6/15/2023 • 5 minutes, 1 second
Rin Mukteshwar Mahadev Mantra ऋण मुक्तेश्वर महादेव मन्त्र 21 times
Rin Mukteshwar Mahadev Mantra ऋण मुक्तेश्वर महादेव मन्त्र ■ शंकर जी के मंदिर जाकर तीन केले लेकर चढ़ाये और 11 या 21 बार ★ ओम ऋण मुक्तेश्वर महादेवाए नमः ★ का जाप करें।
6/14/2023 • 3 minutes, 35 seconds
Mrityunjay Manas Puja Stotra मृत्युंजय मानस पूजा स्तोत्र
Kali Beej Mantra Jaap काली बीज मन्त्र जाप 108 times
Kali Beej Mantra Jaap काली बीज मन्त्र जाप ★
काली बीज मंत्र देवी काली से संबंधित है। जैसे बीज मंत्र का कोई विशिष्ट अर्थ नहीं है। लेकिन यह उन स्पंदनों का प्रतिनिधित्व करता हैं जो मन की आध्यात्मिक और मानसिक स्थिति को बेहतर बनाने में सहायता करते हैं। काली बीज मंत्र का जाप जातक को देवी काली की ऊर्जा से जोड़ता है। ये परिवर्तनकारी ऊर्जाएं जातक को उसके आसपास और अंदरूनी बुरी ताकतों से लड़ने में मदद करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि काली बीज मंत्र को भक्तिभाव से जप करने से जातक को मनपसंद चीजें प्राप्त होती हैं। वे चीजें भौतिक भी हो सकती हैं।
काली बीज मंत्र है:
|| ॐ क्रीं काली ||
अर्थ यहां 'क' का अर्थ पूर्ण ज्ञान है, 'र' का अर्थ शुभ है और 'बिंदु' का अर्थ वह स्वंत्रता देती है। वह अपने भक्त को पूर्ण ज्ञान देती है और उसके जीवन को शुभ घटनाओं से भर देती है। उस सर्वोपरि देवी को मेरा नमन ।
काली बीज मंत्र के जाप के लाभ :
• ज्योतिषियों के अनुसार काली बीज मंत्र का जाप सभी बुरी शक्तियों से बचाता है।
• काली बीज मंत्र का भक्ति भाव के साथ जप करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और आपके आसपास के माहौल में सकारात्मकता का संचार होता है।
• जातक अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए भी इस मंत्र का जाप कर सकता है।
6/12/2023 • 11 minutes, 30 seconds
Shri Shiv Shatangayu Mantra श्री शिव शतांगायु मन्त्र
Shri Shiv Shatangayu Mantra श्री शिव शतांगायु मन्त्र ◆ गंभीर से गंभीर बीमारियों को दूर करता है यह शिव का सौ साल तक की आयुदेनेवाला मंत्र |
शत्रु को ध्वस्त कर देता है। बिमारिओ को परस्त कर देता है। सभी दोषो का विनाश कर देता है मारण- मोहन स्तम्भन सभी को ध्वस्त कर देता है ।
◆
मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीँ हैं ह्रः हन हन दह दह पच पच गृहाण गृहाण मारय मारय मर्दय मर्दय महा महा भैरव भैरव रूपेण धुनय धुनय कम्पय कम्पय विघ्नय विघ्नय
विश्वेश्वरी क्षोभय क्षोभय कटु कटु मोहय मोहय हुम् स्वाहा ||
6/11/2023 • 1 minute, 15 seconds
Complete Srimad Bhagwad Gita सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता
Complete Srimad Bhagwad Gita सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता • श्रीमद् भगवद् गीता” एक बड़े महाकाव्य, "महाभारत" का हिस्सा है। भगवत गीता में कुल 18 अध्याय हैं। 18 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। वेदों का सार अर्थात संक्षिप्त रूप है उपनिषद् और उपनिषदों का सार है गीता। “श्रीमद्भगवद्गीता” में योग को एक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसके द्वारा व्यक्ति परमात्मा से जुड़ सकता है।
“श्रीमद्भगवद्गीता”, अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण के बीच एक संवाद के माध्यम से बताया गया है। अर्जुन को संदेह है कि क्या उसे युद्ध में जाना चाहिए और श्री कृष्ण बताते हैं कि उसे एक योद्धा के रूप में अपना धर्म को कर्तव्य मानकर पूरा करना चाहिए। अपनी व्याख्या में, श्री कृष्ण विभिन्न प्रकार के योगों की चर्चा करते हैं, जिन में ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राजविद्या राजगुह्ययोग शामिल हैं। •
6/11/2023 • 4 hours, 10 minutes, 8 seconds
Sarv Karya Siddhi Padmavati Mantra सर्वकार्य सिद्धि पद्मावती मन्त्र 18 times
Sarv Karya Siddhi Mantra सर्वकार्य सिद्धि पद्मावती मन्त्र 18 times ★ ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावती पद्मनेत्रे पद्मासने लक्ष्मीदायिनी वाञ्छापूर्णि
मम ऋद्धिं सिद्धिं जयं कुरु कुरु स्वाहा!! ★
प्रतिदिन मात्र 18 बार जाप करें।
100% कार्य सिद्धि होगी ही होगी।
6/11/2023 • 5 minutes, 58 seconds
Shri Bhairav Tandav Stotram श्री भैरव ताण्डव स्तोत्रम्
Shri Bhairav Tandav Stotram श्री भैरव ताण्डव स्तोत्रम् • श्री भैरव ताण्डव स्तोत्रम् एक बहुत ही दुर्लभ और अमोघ स्तोत्र हैं। इसके नित्य पाठ करने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं। भैरव, भगवान शिव का ही स्वरूप हैं। इनकी कृपा से जातक के जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता हैं। उसकी जन्मपत्री में यदि कोई दोष भी हो तो उसका भी निवारण हो जाता हैं। सुख-शांति समृद्धि-यश-बल और आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
•
॥ श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम् ॥
•
श्रीगणेशाय नमः
श्री उमामहेश्वराभ्यां नमः ।
श्रीगुरवे नमः ।
श्रीभैरवाय नमः ॥
•
अथ श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम् ।
•
ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरं
लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् डमरुध्वनिशङ्खं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ॥ १॥
चर्चितसिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरं किङ्किणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्परसावं पुण्यभरम् करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तसुकेशं पापहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ २
कलिमलसंहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीघ्रकरं
कलुषं शमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगन्तं शुद्धतरम् गतिनिन्दितकेशं नर्तनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ३ ॥
कठिनस्तनकुम्भं सुकृतं सुलभं कालीडिम्भं खड्गधरं वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् । तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेशं कष्टहरम् ॥ ४ ॥
ललिताननचन्द्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरं सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् । वरदाभयहारं तरलिततारं क्षुद्रविदारं तुष्टिकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ५॥
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भ्रष्टमलं शरणागतपालं मृगमदभालं सञ्जितकालं स्वेष्टबलम् पदनूपूरसिञ्जं त्रिनयनकञ्जं गुणिजनरञ्जन कुष्टहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ६ ॥
मर्दयितुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदं रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मतिदम् । कुटिलभ्रुकुटीकं ज्वरधननीकं विसरन्धीकं प्रेमभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ७ ॥
परिनिर्जितकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशं बहुमद्यपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।
कलयन्तमशेषं भृतजनदेशं नृत्यसुरेशं वीरेशं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ •
6/11/2023 • 7 minutes, 16 seconds
Shani MantraJaap शनि मंत्रजाप 108 times
Shani Mantra शनि मंत्र ★
शनि को कर्मों व न्याय का देवता माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि शनि कर्म के आधार पर ही फल देते हैं। कुछ लोग इन्हें क्रूर देवता भी मानते हैं।
लोगों को शनि जयंती के दिन
• ॐ शं शनैश्चराय नमः •
का जाप करने से जॉब, करियर, व्यापार में तरक्की के मार्ग खुल जाते हैं।
अर्थ : सर्व कर्म फल देने वाले हे शनिदेव हमारे पाप कर्मों का नाश कर शुभ फल प्रदान करें। हम आपको नमस्कार करते हैं।
6/11/2023 • 8 minutes, 10 seconds
Rahu Kavach राहु कवच
Rahu Kavach राहु कवच •
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः I
अनुष्टुप छन्दः I रां बीजं I नमः शक्तिः I
स्वाहा कीलकम् I राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् II
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् II १ II
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः I
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् II २ II
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम I
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः II ३ II
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ I
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः II ४ II
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः I
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा II ५ II
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः I
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: II ६ II
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो I
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् I
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् II ७ II
•
II इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं II
6/10/2023 • 3 minutes, 32 seconds
Shukar Dant Bhairav Mantra शूकर दंत भैरव मन्त्र 11 times
Shukar Dant Bhairav Mantra शूकर दंत भैरव मन्त्र 11 times ◆ यदि आपके कई दुश्मन हैं, जो आपकी जिंदगी व तरक्की में रोड़ा बन रहे हैं, ऐसे शत्रुओं के नाश के लिए शूकर दंत भैरव मंत्र बहुत प्रभावशाली है। ये मंत्र इस प्रकार है - ◆ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दंताय भैरवाय नमः।◆
ये मंत्र होली, दिवाली, ग्रहण व अमावस्या की रात को पढ़ना चाहिए। इस मंत्र को 1008 बार पढ़ना चाहिए। मंत्र पढ़ते समय आपका मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
6/10/2023 • 2 minutes, 5 seconds
Ganesh Stuti गणेश स्तुति
भगवान श्री गणेश स्तुति मंत्र (Ganesh Stuti Mantra) :
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय!
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते!!
भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय!
विद्याधराय विकटाय च वामनाय , भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते!!
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:!
नमस्ते रुद्ररूपाय करिरुपाय ते नम:!!
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे!
भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक!!
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय!
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा!!
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति ,
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति!
विद्याप्रत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति,
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव!!
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम !
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोSस्तु सदा मम !!
6/10/2023 • 3 minutes, 50 seconds
Durga Visarjan Vidhi दुर्गा विसर्जन विधि
Durga Visarjan Vidhi दुर्गा विसर्जन विधि ◆ शारदीय नवरात्रि के खत्म होते ही मां दुर्गा की विदाई का समय आ जाता है। बता दें कि विजयादशमी के दिन मां की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। उससे पहले शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ होते ही देवी की प्रतिमा बनाई जाती है और उसे वस्त्र-अलंकारों से सजाया जाता है। नौ दिन तक उसी प्रतिमा की पूर्ण श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना करते हैं और फिर उसी प्रतिमा को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन का यह साहस केवल हमारे सनातन धर्म में ही दिखाई देता है क्योंकि सनातन धर्म इस तथ्य से परिचित है कि आकार तो केवल प्रारंभ है और पूर्णता सदैव निराकार होती है।
विसर्जन विधि
• कन्या पूजन के बाद हथेली में एक फूल और कुछ चावल के दाने लेकर संकल्प लें।
• पात्र में रखे नारियल को प्रसाद के रूप में ही लें और परिवार को अर्पित करें।
• पात्र के पवित्र जल को पूरे घर में छिड़कें और फिर पूरे परिवार को प्रसाद के रूप में इसका सेवन करना चाहिए।
• सिक्कों को एक कटोरी में रखो; आप इन सिक्कों को अपने बचत स्थान में भी रख सकते हैं।
परिवार में सुपारी को प्रसाद के रूप में बांटें।
• अब घर में माता की चौकी का आयोजन करें और सिंघासन को अपने मंदिर में रखें।
• घर की महिलाएं साड़ियों और गहनों आदि का प्रयोग कर सकती हैं। घर के मंदिर में श्री गणेश जी की मूर्ति को उनके स्थान पर स्थापित करें। परिवार में सभी फल और मिठाइयां प्रसाद के रूप में बांटें।
• चावल को चौकी और कलश के ढक्कन पर रखें। उन्हें पक्षियों को अर्पित करें।
मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो के सामने झुकें और उनका आशीर्वाद लें। इसके अलावा, उस कलश का आशीर्वाद लें जिसमें आपने ज्वार और अन्य पूजा की आवश्यक चीजें बोई थीं। फिर किसी नदी, सरोवर या समुद्र में विसर्जन का अनुष्ठान करें।
★
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।
★
इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद हाथ में चावल व फूल लेकर देवी भगवती का इस मंत्र के साथ विसर्जन करना चाहिए
◆ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि ।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।। ◆
विसर्जन के बाद एक ब्राह्मण को एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े दें।
विसर्जन करते समय इन बातों का ध्यान रखें।
• किसी नदी या सरोवर में विसर्जन करना बहुत शुभ माना जाता है। माता की मूर्ति, पात्र या जवार को पूरे विश्वास के साथ विसर्जित करें। पूजा के सभी आवश्यक सामानों को भी पवित्र जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
• विसर्जन के लिए मां दुर्गा की मूर्ति का उसी तरह ख्याल रखें जैसे आपने मां दुर्गा को लाते समय उनकी देखभाल की थी। विसर्जन से मां दुर्गा की मूर्ति को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। मां दुर्गा के विसर्जन से पहले उचित आरती की जानी चाहिए।
आरती के दिव्य प्रकाश को मां दुर्गा की कृपा और शुद्ध प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। विसर्जन के बाद ब्राह्मण को नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े दान शुभ माना जाता है।
6/10/2023 • 4 minutes, 24 seconds
Meri Bhavna मेरी भावना
Meri Bhavna मेरी भावना ★
जिसने राग-द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया,
बुद्ध, वीर जिन, हरि, हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो
भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो। ॥1॥
विषयों की आशा नहीं जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं
निज-पर के हित साधन में जो निशदिन तत्पर रहते हैं,
स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं
ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख-समूह को हरते हैं। ॥2॥
रहे सदा सत्संग उन्हीं का ध्यान उन्हीं का नित्य रहे
उन ही जैसी चर्या में यह चित्त सदा अनुरक्त रहे,
नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहीं कहा करूं
पर-धन-वनिता पर न लुभाऊं, संतोषामृत पिया करूं। ॥3॥
अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर खेद करूं
देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या-भाव धरूं,
रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य-व्यवहार करूं
बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं। ॥4॥
मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे
दीन-दुखी जीवों पर मेरे उरसे करुणा स्त्रोत बहे,
दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे
साम्यभाव रखूं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे। ॥5॥
गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे
बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे,
होऊं नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे
गुण-ग्रहण का भाव रहे नित दृष्टि न दोषों पर जावे। ॥6॥
कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे
लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे।
अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे।
तो भी न्याय मार्ग से मेरे कभी न पद डिगने पावे। ॥7॥
होकर सुख में मग्न न फूले दुख में कभी न घबरावे
पर्वत नदी-श्मशान-भयानक-अटवी से नहिं भय खावे,
रहे अडोल-अकंप निरंतर, यह मन, दृढ़तर बन जावे
इष्टवियोग अनिष्टयोग में सहनशीलता दिखलावे। ॥8॥
सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे
बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग नित्य नए मंगल गावे,
घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे
ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना मनुज-जन्म फल सब पावे। ॥9॥
ईति-भीति व्यापे नहीं जगमें वृष्टि समय पर हुआ करे
धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे,
रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे
परम अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्वहित किया करे। ॥10॥
फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे
अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं कोई मुख से कहा करे,
बनकर सब युगवीर हृदय से देशोन्नति-रत रहा करें
वस्तु-स्वरूप विचार खुशी से सब दुख संकट सहा करें। ॥11 ॥
6/9/2023 • 8 minutes, 37 seconds
Guru Gorakhnath Chalisa गुरु गोरखनाथ चालीसा
Guru Gorakhnath chalisa गुरु गोरखनाथ चालीसा •
दोहा
गणपति गिरजा पुत्र को सुमिरु बारम्बार |
हाथ जोड़ बिनती करू शारद नाम आधार ||
चोपाई
जय जय जय गोरख अविनाशी | कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ||
जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी | इच्छा रूप योगी वरदानी ||
अलख निरंजन तुम्हरो नामा | सदा करो भक्त्तन हित कामा ||
नाम तुम्हारो जो कोई गावे | जन्म जन्म के दुःख मिट जावे ||
जो कोई गोरख नाम सुनावे | भूत पिसाच निकट नहीं आवे||
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे | रूप तुम्हारा लख्या न जावे ||
निराकार तुम हो निर्वाणी | महिमा तुम्हारी वेद न जानी ||
घट - घट के तुम अंतर्यामी | सिद्ध चोरासी करे परनामी ||
भस्म अंग गल नांद विराजे | जटा शीश अति सुन्दर साजे ||
तुम बिन देव और नहीं दूजा | देव मुनिजन करते पूजा ||
चिदानंद संतन हितकारी | मंगल करण अमंगल हारी ||
पूरण ब्रह्मा सकल घट वासी | गोरख नाथ सकल प्रकाशी ||
गोरख गोरख जो कोई धियावे | ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ||
शंकर रूप धर डमरू बाजे | कानन कुंडल सुन्दर साजे ||
नित्यानंद है नाम तुम्हारा | असुर मार भक्तन रखवारा ||
अति विशाल है रूप तुम्हारा | सुर नर मुनि जन पावे न पारा ||
दीनबंधु दीनन हितकारी | हरो पाप हम शरण तुम्हारी ||
योग युक्ति में हो प्रकाशा | सदा करो संतान तन बासा ||
प्रात : काल ले नाम तुम्हारा | सिद्धि बढे अरु योग प्रचारा ||
हठ हठ हठ गोरछ हठीले | मर मर वैरी के कीले ||
चल चल चल गोरख विकराला | दुश्मन मार करो बेहाला ||
जय जय जय गोरख अविनाशी | अपने जन की हरो चोरासी ||
अचल अगम है गोरख योगी | सिद्धि दियो हरो रस भोगी ||
काटो मार्ग यम को तुम आई | तुम बिन मेरा कोन सहाई ||
अजर अमर है तुम्हारी देहा | सनकादिक सब जोरहि नेहा ||
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा | है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
योगी लखे तुम्हारी माया | पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ||
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे | अष्ट सिद्धि नव निधि पा जावे ||
शिव गोरख है नाम तुम्हारा | पापी दुष्ट अधम को तारा ||
अगम अगोचर निर्भय नाथा | सदा रहो संतन के साथा ||
शंकर रूप अवतार तुम्हारा | गोपीचंद, भरथरी को तारा ||
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी | कृपासिन्धु योगी ब्रहमचारी ||
पूर्ण आस दास की कीजे | सेवक जान ज्ञान को दीजे ||
पतित पवन अधम अधारा | तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ||
अखल निरंजन नाम तुम्हारा | अगम पंथ जिन योग प्रचारा ||
जय जय जय गोरख भगवाना | सदा करो भक्त्तन कल्याना ||
जय जय जय गोरख अविनाशी | सेवा करे सिद्ध चोरासी ||
जो यह पढ़े गोरख चालीसा | होए सिद्ध साक्षी जगदीशा ||
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे | और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ||
बारह पाठ पढ़े नित जोई | मनोकामना पूर्ण होई || •
6/9/2023 • 8 minutes, 40 seconds
Shiv Chalisa शिव चालीसा
Shiv Chalisa शिव चालीसा ★
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥ ★
6/9/2023 • 8 minutes, 9 seconds
Mahakali Dhyanam महाकाली ध्यानम्
Mahakali Dhyanam महाकाली ध्यानम् ◆ ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघान् शूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं सन्दधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
यां हन्तुं मधुकैटभौ जलजभूस्तुष्टाव सुप्ते हरौ
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकाम् ॥ ◆
अर्थ:
जिनकी 10 भुजाये है और क्रमशः उन भुजाओ में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, त्रिशूल, भुशुण्डी, मुण्ड और शङ्ख धारण किया है। ऐसी तीन नेत्रोंवाली त्रिनेत्रा सभी अङ्गो में आभूषणों से विभूषित नीलमणि जैसी आभावाली दशमुखोवाली और दश पैरोंवाली महाकाली माँ का ध्यान करता हु । (करती हु ) जिनकी स्तुति मधु कैटभ का वध करने के लिए विष्णु के सो जाने पर साक्षात् ब्रह्मदेव ( ब्रह्माजी) ने की थी ।
Bhavani Ashtakam भवानी अष्टकम् ★ न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न
भृत्यो न भर्ता । न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं
त्वमेका भवानि ॥१॥ भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः प्रपात प्रकामी
प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबध्दः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥२॥
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं
त्वमेका भवानि ॥३॥ न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं
लयं वा कदाचित ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि माता गतिस्त्वं गतिस्त्वं
त्वमेका भवानि ॥४॥ कुकर्मी कुसंगी कुबुध्दिः कुदासः कुलाचारहीनः
कदाचारलीनः ।
कुदृष्टीः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं
त्वमेका भवानि ॥५॥ प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा
कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥६॥
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते
शत्रुमध्ये । अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाही गतिस्त्वं गतिस्त्वं
त्वमेका भवानि ॥७॥ अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा
जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं
त्वमेका भवानि ॥८॥ ॥ ★ ॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं भवान्यष्टकं संपूर्णम् ॥
6/6/2023 • 4 minutes, 16 seconds
Rog Nivaran Suktam रोगनिवारण सूक्तम्
Rog Nivaran Suktam रोगनिवारण सूक्तम् ★
उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः । उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः ॥ १ ॥
द्वाविमौ वातौ वात आ सिन्धोरा परावतः ।
दक्षं ते अन्य आवातु व्यन्यो वातु यद्रपः ॥२ ॥
आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः।
त्वं हि विश्वभेषज देवानां दूत ईयसे ॥ ३ ॥
त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्तां मरुतां गणाः ।
त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत् ॥ ४ ॥
आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिष्टतातिभिः
दक्षं त उग्रमाभारिषं परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥५॥
अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः ।
अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः ॥ ६ ॥
हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिह्वा वाचः पुरोगवी
अनामयित्नुभ्यां हस्ताभ्यां ताभ्यां त्वाभि मृशामसि ॥ ७ ॥
हिंदी अर्थ :
हे देवो! हे देवो! आप नीचे गिरे हुए को फिर निश्चयपूर्वक ऊपर उठाओ। हे देवो! हे देवो! और पाप करनेवाले को भी फिर जीवित करो, जीवित करो ॥१ ॥
ये दो वायु हैं। समुद्रसे आनेवाला वायु एक है और दूर भूमिपर से आनेवाला दूसरा वायु है। इनमें से एक वायु तेरे पास बल ले आये और दूसरा वायु जो दोष है, उसे दूर करे ॥ २ ॥
हे वायु! ओषधि यहाँ ले आ। हे वायु! जो दोष है, वह दूर कर। हे सम्पूर्ण ओषधियोंको साथ रखने वाले वायु! निःसन्देह तू देवोंका दूत जैसा होकर चलता है, जाता है, बहता है ॥ ३ ॥
हे देवो! इस रोगी की रक्षा करो। हे मरुतों के समूहो! रक्षा करो। सब प्राणी रक्षा करें। जिससे यह रोगी रोग-दोष रहित हो जाय ॥ ४ ॥
आपके पास शान्ति फैलानेवाले तथा अविनाशी करने वाले साधनों के साथ आया हूँ। तेरे लिये प्रचण्ड बल भर देता हूँ। तेरे रोग को दूर कर भगा देता हूँ ॥ ५ ॥
मेरा यह हाथ भाग्यवान् है। मेरा यह हाथ अधिक भाग्यशाली है। मेरा यह हाथ सब औषधियों से युक्त है और यह मेरा हाथ शुभ स्पर्श देने वाला है ॥ ६ ॥
दस शाखावाले दोनों हाथों के साथ वाणी को आगे प्रेरणा करने वाली मेरी जोभ है। उन नीरोग करने वाले दोनों हाथों से तुझे हम स्पर्श करते हैं ॥७॥
Sri Krishna Naivedya Bhog Mantra श्रीकृष्ण नैवेद्य भोग मंत्र
Sri Krishna Naivedya Bhog Mantra श्रीकृष्ण नैवेद्य भोग मंत्र ★
श्रीकृष्ण की पूजा करके जब उन्हें भोग लगाया जाता है तब यह मंत्र बोला जाता है। ★
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च आहारम् भक्ष्य-भोज्यम् च नैवेद्यम् प्रति-गृह्यताम् ॥
•
अर्थात्ः
शर्करा - खण्ड, खाध पदार्थ दही, दूध, घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
संस्कृत अन्नवर्ग शब्दावली:
शर्करा - खण्ड - बताशा आदि मिठाई,
दधि – दही,
क्षीर- दूध
,
घृत - घी
Sarv Karya Siddhi Shabar Mantra सर्वकार्यसिद्धि शाबर मन्त्र
◆ Sarv Karya Siddhi Shabar Mantra सर्वकार्यसिद्धि शाबर मन्त्र ◆ नौकरी, व्यापार व अन्य किसी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए ये मंत्र बहुत उपयोगी है। इसके प्रयोग से आपके संपर्क में आने वाले लोग आपसे खुश हो जाएंगे। आपको सम्मान देंगे। ये मंत्र कुछ इस प्रकार है। ◆ऊं नमो महाशाबरी शक्ति, मम अरिष्टं निवारय, मम अमुक कार्य सिद्धं कुरु कुरु स्वाहा।
◆
इस मंत्र को लगातार 41 दिनों तक पढ़ें। रोजाना इसे 324 बार (3 माला) बोले। मंत्र हमेशा मध्य रात्रि के समय पढ़ें।
6/6/2023 • 21 minutes, 16 seconds
Mahalakshmi Ashtakam महालक्ष्मी अष्टकम्
■Mahalakshmi Ashtakam महालक्ष्मी अष्टकम् ■
नमस्तेsस्तु महामाये श्रीपीठे सूरपुजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ १ ॥
नमस्ते गरूडारूढे कोलासूर भयंकरी ।
सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ २ ॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥३ ॥
सिद्धीबुद्धिप्रदे देवी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।
मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ ४ ॥
आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ति महेश्वरी ।
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ ५ ॥
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ ६ ॥
पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ ७ ॥
श्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मार्त महालक्ष्मी नमोsस्तुते ॥ ८ ॥
महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेत् भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिं वाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः ॥१०॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रूविनाशनं ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
॥इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः ॥
6/6/2023 • 4 minutes, 14 seconds
Tulsi Namashtakam तुलसी नामाष्टकम्
■ Tulsi Namashtakam तुलसी नामाष्टकम् ■ वृंदा, वृन्दावनी, विश्वपुजिता, विश्वपावनी । पुष्पसारा, नंदिनी च तुलसी, कृष्णजीवनी ।।
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम ।
य:पठेत तां सम्पूज्य सोsश्वमेघ फलं लभेत ॥
ॐ वृन्दायै नमः ।
ॐ वृन्दावन्यै नमः ।
ॐ विश्वपूजितायै नमः ।
ॐ विश्वपावन्यै नमः ।
ॐ पुष्पसारायै नमः ।
ॐ नन्दिन्यै नमः ।
ॐ तुलस्यै नमः ।
ॐ कृष्णजीवन्यै नमः ॥8
★ वृंदा,वृदावनी,विश्वपुजिता,विश्व पावनी,
पुष्पसारा,नंदिनी,तुलसी और कृष्ण जीवनी तुलसी के आठ प्रिय नाम है। जो कोई भी तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है वह अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त करता है।
6/5/2023 • 2 minutes, 17 seconds
Ganesh Panchratnam (Adi Shankaracharya) गणेश पँचरत्नम्
Lakshmi Beej MantraJaap लक्ष्मी बीज मंत्रजाप ◆
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥ ◆
इस मंत्र में ॐ परमपिता परमात्मा अर्थात परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है। ह्रीं मायाबीज है इसमें हूँ शिव, र प्रकृति, नाद विश्वमाता एवं
बिंदु दुखहरण है इसका तात्पर्य हुआ हे शिव युक्त जननी आद्य शक्ति मेरे दुखों को दूर करें। श्रीं लक्ष्मी बीज है जिसमें श् महालक्ष्मी के लिए प्रयुक्त हुआ है, र धन संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है, ई महामाया, तो नाद जगतमाता की पुकार करता है, बिंदु दुखों का हरण करने वाला माना जाता है। कुल मिलकार श्रीं का तात्पर्य है, हे ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी मेरे दुखों का हरण करें व मेरे जीवन में समृद्धि की कोई कमी न हो। लक्ष्मीभ्यो नमः मां लक्ष्मी को पुकारते हुए उन्हें नमन करने के लिए इस्तेमाल किया गया है।
Namokar Mantra Paath 9 times. A must daily prayer. णमोकार मंत्रपाठ 9 बार
Namokar Mantra Paath 9 times. A must daily prayer. णमोकार मंत्रपाठ ★
Used at every occasion before or after a ceremony, religious or personal. A daily must. ■
णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
नमो आईरियाणं
णमो उवज्झायाणं
नमो लोए सव्वसाहूणं।
एसो पंच णमोक्कारो, सवपावप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं।। ■
नवकार (णमोकार) मंत्र का
अर्थ
अरिहंतो को नमस्कार
सिद्धो को नमस्कार आचायों को नमस्कार
उपाध्यायों को नमस्कार सर्व साधुओं को नमस्कार
ये पाँच परमेष्ठी है। इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है। संसार में सबसे उत्तम मंत्र है।
6/4/2023 • 5 minutes, 48 seconds
Charnamrit Sevan Mantra चरणामृत सेवन मन्त्र
Charnamrit Sevan Mantra चरणामृत सेवन मन्त्र •
चरणामृत यानि चरणों का अमृत।
हिन्दू धर्म में चरणामृत को बेहद शुद्ध और पवित्र माना जाता है। चरणामृत उस जल को कहा जाता है जिससे ईश्वर के पैर धोए जाते हैं। और उसे अमृत के समान समझा जाता है। चरणामृत कच्चे दूध, दही, गंगाजल आदि से बना होता है। इसे आदर स्वरुप अपने माथे पर लगाकर ही इसका सेवन किया जाता है।
चरणामृत सेवन करते समय इस श्लोक का उच्चारण करें
• 'अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णुपादोदक पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।' •
अर्थात -चरणामृत अकाल मृत्यु को दूर रखता है। सभी प्रकार की बिमारियों का नाश करता है। इसके सेवन से पुनर्जन्म नहीं होता है।
अत: चरणामृत को ग्रहण करते समय इस मंत्र का उच्चारण अति शुभ माना गया है।
Uvsaggaharam Stotra (Prakrit) by Acharya Bhadrabahu आचार्य भद्रबाहु विरचित उवसग्गहरम् स्तोत्र ◆
श्रीभद्रबाहुप्रसादात् एष योग: प्रफलतु’
।
उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-निन्नासं मंगल कल्लाण आवासं ।१।
अर्थ- प्रगाढ़ कर्म-समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरो के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवान् पार्श्वनाथ की मैं वन्दना करता हूँ।
विसहर-फुल्लिंगमंतं कंठे धारेइ जो सया मणुओ
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।
अर्थ- विष को हरने वाले इस मंत्ररूपी स्फुलिंग (ज्योतिपुंज) को जो मनुष्य सदैव अपने कंठ में धारण करता है, उस व्यक्ति के दुष्ट ग्रह, रोग, बीमारी, दुष्ट शत्रु एवं बुढ़ापे के दु:ख शांत हो जाते हैं।
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ
नर तिरियेसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ।३।
अर्थ- हे भगवन्! आपके इस विषहर मंत्र की बात तो दूर रहे, मात्र आपको प्रणाम करना भी बहुत फल देने वाला होता है। उससे मनुष्य और तिर्यंच गतियों में रहने वाले जीव भी दु:ख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते हैं।
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पायवब्भहिए
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।
अर्थ- वे व्यक्ति आपको भली भाँति प्राप्त करने पर, मानो चिंतामणि और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं, और वे जीव बिना किसी विघ्न के अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
इह संथुओ महायस भत्तिब्भर निब्भरेण हिअएण
ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंद ।५।
अर्थ- हे महान् यशस्वी ! मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए हृदय से आपकी स्तुति करता हूँ। हे देव! जिनचन्द्र पार्श्वनाथ ! आप मुझे प्रत्येक भव में रत्नत्रय की बोधि प्रदान करें।
ॐ-अमरतरु-कामधेणु-चिंतामणि-कामकुंभमादिया
सिरि पासणाह सेवाग्गहणे सव्वे वि दासत्तं ।६।
अर्थ- श्री पार्श्वनाथ भगवान् की सेवा ग्रहण कर लेने पर ॐ, कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिंतामणि रत्न, इच्छापूर्ति करने वाला कलश आदि सभी सुखप्रदाता कारण उस व्यक्ति के दासत्व को प्राप्त हो जाते हैं।
उवसग्गहरं त्थोत्तं कादूणं जेण संघ कल्लाणं
करुणायरेण विहिदं स भद्दबाहु गुरु जयदु ।७।
अर्थ- जिन करुणाकर आचार्य भद्रबाहु के द्वारा संघ के कल्याणकारक यह ‘उपसर्गहर स्तोत्र’ निर्मित किया गया है, वे गुरु भद्रबाहु सदा जयवन्त हों।
6/2/2023 • 3 minutes, 3 seconds
Sri Ram Taarak Mantra श्री राम तारक मंत्र 11 times
Sri Ram Taarak Mantra श्री राम तारक मंत्र ◆ सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए श्री राम तारक मंत्र ~
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥
6/2/2023 • 3 minutes, 47 seconds
Om Namo Bhagwate Vasudevaye ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 108 times
Om Namo Bhagwate Vasudevaye ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 108 times
6/2/2023 • 11 minutes, 20 seconds
Gandhodak Application Mantra गंधोदक लेपन मन्त्र
Gandhodak Application Mantra गंधोदक लेपन मन्त्र ★
गंधोदक भगवान् के अभिषेक से प्राप्त सुगन्धित पवित्र जल है ! गंधोदक स्वयं निर्मल (पवित्र) है औरों को भी निर्मल (पवित्र) करते है। जब यह जल जिन प्रतिमा पर अभिषिक्त होता है, तब मूर्ती के चारों ओर प्रवाहित होने वाला ‘‘सूर्यमन्त्र’’ का तेज-ऊर्जा उससे यह जल भी संस्कारित (चार्ज) होकर असाध्य रोगों को दूर करने में समर्थ हो जाता है। हाथ को धोकर चम्मच अथवा कन्नी अंगुली को छोड़कर अगली दो अँगुलियों से थोड़ा सा गंधोदक लेकर मस्तक, नेत्र, कंठ एवं हृदय पर धारण करे ! गंधोदक लेते समय निम्न मंत्र बोले ★ "निर्मलं निर्मले करणं, पवित्रं पापनाशनम् !
जिन गन्धोदकम् बंदे अष्ट कर्म विनाशनम्' !! ★ अर्थात यह निर्मल है, निर्मल करने वाला है, पवित्र है और पापों को नष्ट करने वाला है, ऐसे जिन गंधोदक कि मै वंदना करता हूँ, यह मनुष्य के अष्टकर्मों का नाशक है! गंधोदक अत्यंत महिमावान है! गंधोदक लेते समय ध्यान रखने योग्य विशेष बात है- अंगुली से एक बार गंधोदक कटोरे में से लेने के बाद पुन: वही अंगुली पुनः गंधोदक लेने के लिए, बिना धोये, गंधोदक के कटोरे में डालना अनुचित है क्योकि शरीर का स्पर्श करने से वे अशुद्ध हो जाती है!
6/2/2023 • 1 minute, 44 seconds
Kaamkala Kali Sahasrakshar Mantra कामकला काली सहस्राक्षर मंत्र
Aarti- Padmavati Mata पद्मावती माता की आरती ★
पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां।। टेक०।।
पार्श्वनाथ महाराज विराजे मस्तक ऊपर थारे,
माता मस्तक ऊपर थारे।
इन्द्र, फणेन्द्र, नरेन्द्र सभी मिल, खड़े रहें नित द्वारे।
हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां।। दो बार।।
जो जीव थारो शरणो लीनो, सब संकट हर लीनो,
माता सब संकट हर लीनो।
पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, सम्पदा, मंगलमय कर दीनो।
हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां।। दो बार।।
डाकिनि, शाकिनि, भूत, भवानी, नाम लेत भग जायें,
माता नाम लेत भग जायें।
वात, पित्त, कफ, कुष्ट मिटे अरू तन सुखमय हो जावे।
हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां।। दो बार।।
दीप, धूप, अरु पुष्प आरती, ले आरति को आयो,
माता ले दर्शन को आयो।
दर्शन करके मात तिहारो, मनवांछित फल पायो।
हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।। दो बार।।
जब भक्तों पर पीर पड़ी है रक्षा तुमने कीनी,
माता रक्षा तुमने कीनी।
वैरियों का अभिमान चूरकर इज्जत दूनी दीनी।
हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां।।
हे पद्मावती माता, आरति की बलिहारियां।।
6/1/2023 • 3 minutes, 34 seconds
Anger Dousing Mantra क्रोध प्रशमन मन्त्र 7 times
Anger Dousing Mantra क्रोध प्रशमन मन्त्र ★
किसी क्रोधित व्यक्ति को शान्त करना हो तब इस मन्त्र को पढ़ते हुए अपने कपड़े जैसे धोती, अंगोछा, लुंगी, कुर्ता आदि पर एक गांठ लगा लें। इस तरह इस मन्त्र को सात बार पढ़कर कपड़े पर सात गांठें लगायें। मन्त्र पढ़ते समत उस व्यक्ति की कल्पना कर लेनी चाहिए, जिसका क्रोध शांत करना हो। ★ ॐ ह्रीं ठीं ठीं क्रोध प्रशमन ह्रीं ह्रीं ह्रां क्लीं सः सः स्वाहा ★
फिर वही वस्त्र पहने हुए, उस व्यक्ति के पास जायें। निश्चय ही उसका क्रोध शान्त हो जायेगा ।
कलह निवारण, शान्ति स्थापना एवं सन्धि प्रस्ताव के समय यह बहुत ही उपयोगी होता है ।
6/1/2023 • 2 minutes, 42 seconds
Kaamdev Gayatri Mantra कामदेव गायत्री मंत्र
◆ Kaamdev Gayatri Mantra कामदेव गायत्री मंत्र ◆
प्रेम के देवता कामदेव माने गए हैं। अगर आप किसी को आकर्षित करना चाहते हैं तो कामदेव को कीजिए प्रसन्न।
◆ 'ॐ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्।' ◆
इस मंत्र से दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है। सुयोग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।
इस मंत्र जाप से दांपत्य जीवन में प्रेम की रसधारा के प्रवाह में गति आ जाती है।
5/31/2023 • 46 seconds
Sri Krishna Brahmand Kavach श्री कृष्ण ब्रह्माण्ड
कवच
Sri Krishna Brahmand Kavach श्री कृष्ण ब्रह्माण्ड कवच •
।। ब्रह्मोवाच ।।
राधाकान्त महाभाग ! कवचं यत् प्रकाशितं ।
ब्रह्माण्ड-पावनं नाम, कृपया कथय प्रभो ! ।। १
मां महेशं च धर्मं च, भक्तं च भक्त-वत्सल ।
त्वत्-प्रसादेन पुत्रेभ्यो, दास्यामि भक्ति-संयुतः ।। २
।। श्रीकृष्ण उवाच ।।
श्रृणु वक्ष्यामि ब्रह्मेश ! धर्मेदं कवचं परं ।
अहं दास्यामि युष्मभ्यं, गोपनीयं सुदुर्लभम् ।। १
यस्मै कस्मै न दातव्यं, प्राण-तुल्यं ममैव हि ।
यत्-तेजो मम देहेऽस्ति, तत्-तेजः कवचेऽपि च ।। २
कुरु सृष्टिमिमं धृत्वा, धाता त्रि-जगतां भव ।
संहर्त्ता भव हे शम्भो ! मम तुल्यो भवे भव ।। ३
हे धर्म ! त्वमिमं धृत्वा, भव साक्षी च कर्मणां ।
तपसां फल-दाता च, यूयं भक्त मद्-वरात् ।। ४
ब्रह्माण्ड-पावनस्यास्य, कवचस्य हरिः स्वयं ।
ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, देवोऽहं जगदीश्वर ! ।। ५
धर्मार्थ-काम-मोक्षेषु, विनियोगः प्रकीर्तितः ।
त्रि-लक्ष-वार-पठनात्, सिद्धिदं कवचं विधे ! ।। ६
यो भवेत् सिद्ध-कवचो, मम तुल्यो भवेत्तु सः ।
तेजसा सिद्धि-योगेन, ज्ञानेन विक्रमेण च ।। ७
।। मूल-कवच-पाठ ।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीब्रह्माण्ड-पावन-कवचस्य श्रीहरिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेषु विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीहरिः ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्रीकृष्णो देवतायै नमः हृदि, धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेषु विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
प्रणवो मे शिरः पातु, नमो रासेश्वराय च ।
भालं पायान् नेत्र-युग्मं, नमो राधेश्वराय च ।। १
कृष्णः पायात् श्रोत्र-युग्मं, हे हरे घ्राणमेव च ।
जिह्विकां वह्निजाया तु, कृष्णायेति च सर्वतः ।। २
श्रीकृष्णाय स्वाहेति च, कण्ठं पातु षडक्षरः ।
ह्रीं कृष्णाय नमो वक्त्रं, क्लीं पूर्वश्च भुज-द्वयम् ।। ३
नमो गोपांगनेशाय, स्कन्धावष्टाक्षरोऽवतु ।
दन्त-पंक्तिमोष्ठ-युग्मं, नमो गोपीश्वराय च ।। ४
ॐ नमो भगवते रास-मण्डलेशाय स्वाहा ।
स्वयं वक्षः-स्थलं पातु, मन्त्रोऽयं षोडशाक्षरः ।। ५
ऐं कृष्णाय स्वाहेति च, कर्ण-युग्मं सदाऽवतु ।
ॐ विष्णवे स्वाहेति च, कंकालं सर्वतोऽवतु ।। ६
ॐ हरये नमः इति, पृष्ठं पादं सदऽवतु ।
ॐ गोवर्द्धन-धारिणे, स्वाहा सर्व-शरीरकम् ।। ७
प्राच्यां मां पातु श्रीकृष्णः, आग्नेय्यां पातु माधवः ।
दक्षिणे पातु गोपीशो, नैऋत्यां नन्द-नन्दनः ।। ८
वारुण्यां पातु गोविन्दो, वायव्यां राधिकेश्वरः ।
उत्तरे पातु रासेशः, ऐशान्यामच्युतः स्वयम् ।
सन्ततं सर्वतः पातु, परो नारायणः स्वयं ।। ९
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं ब्रह्मन् ! कवचं परमाद्भुतं ।
मम जीवन-तुल्यं च, युष्मभ्यं दत्तमेव च ।।
•
5/31/2023 • 7 minutes, 24 seconds
Rinmochak Mangal Stotram ऋणमोचक मङ्गल स्तोत्रम्
Rinmochak Mangal Stotram ऋणमोचक मङ्गल स्तोत्रम् ■ भूमिपुत्र भगवान मंगलदेव ऋणमोचक हैं एवं सुखों को देने वाले हैं। जब किसी व्यक्ति पर कर्ज की स्थिति बहुत अधिक बढ़ जाये तब किसी शुभ तिथि से लाल वस्त्र धारण कर मंगल देव (मंगल यन्त्र को प्राण प्रतिष्ठित कर) व हनुमान जी के समक्ष इस स्तोत्र का नियमित 3, 5, 8, 9 अथवा 11 पाठ 45 दिन तक प्रतिदिन करे | इस पाठ को करने से पूर्व लाल वस्त्र बिछा कर मंगल यन्त्र व महावीर हनुमान जी को स्थापित करे, सिंदूर व चमेली के तेल का चोला अर्पित कर अपने बाये हाथ की तरफ देसी घी का दीपक व दाहिने हाथ की तरफ सरसो के तेल या तिल के तेल का दीपक स्थापित करे साथ ही हनुमान जी को गुड चने व बेसन का कुछ भोग अवश्य लगाये | इस पाठ को करने से निश्चय ही ऋणमुक्ति मिलेगी। ऋणमोचन मंगल स्तोत्र इस प्रकार है ★
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।
कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्क्षणात्।।
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा।।
।। इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
Jhulelal Chalisa झूलेलाल चालीसा ★
ॐ श्री वरुणाय नमः
★ दोहा
जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप |
अमर उडेरो लाल जय, झुलेलाल अनूप ||
★ चौपाई
रतनलाल रतनाणी नंदन | जयति देवकी सुत जग वंदन ||
दरियाशाह वरुण अवतारी | जय जय लाल साईं सुखकारी ||
जय जय होय धर्म की भीरा | जिन्दा पीर हरे जन पीरा ||
संवत दस सौ सात मंझरा | चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ||
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा | प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ||
सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी | मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ||
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी | यवन मलिन मन अत्याचारी ||
धर्मान्तरण करे सब केरा | दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ||
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा | हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ||
सिन्धी प्रजा बहुत घबराई | इष्ट देव को टेर लगाई ||
वरुण देव पूजे बहुंभाती | बिन जल अन्न गए दिन राती ||
सिन्धी तीर सब दिन चालीसा | घर घर ध्यान लगाये ईशा ||
गरज उठा नद सिन्धु सहसा | चारो और उठा नव हरषा ||
वरुणदेव ने सुनी पुकारा | प्रकटे वरुण मीन असवारा ||
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा | कर पुष्तक नवरूप अनूपा ||
हर्षित हुए सकल नर नारी | वरुणदेव की महिमा न्यारी ||
जय जय कार उठी चाहुँओरा | गई रात आने को भौंरा ||
मिरखशाह नऊप अत्याचारी | नष्ट करूँगा शक्ति सारी ||
दूर अधर्म, हरण भू भारा | शीघ्र नसरपुर में अवतारा ||
रतनराय रातनाणी आँगन | खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ||
रतनराय घर ख़ुशी आई | झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई ||
घर घर मंगल गीत सुहाए | झुलेलाल हरन दुःख आए ||
मिरखशाह तक चर्चा आई | भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ||
मंत्री ने जब बाल निहारा | धीरज गया हृदय का सारा ||
देखि मंत्री साईं की लीला | अधिक विचित्र विमोहन शीला ||
बालक धीखा युवा सेनानी | देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ||
योद्धा रूप दिखे भगवाना | मंत्री हुआ विगत अभिमाना ||
झुलेलाल दिया आदेशा | जा तव नऊपति कहो संदेशा ||
मिरखशाह नऊप तजे गुमाना | हिन्दू मुस्लिम एक समाना ||
बंद करो नित्य अत्याचारा | त्यागो धर्मान्तरण विचारा ||
लेकिन मिरखशाह अभिमानी | वरुणदेव की बात न मानी ||
एक दिवस हो अश्व सवारा | झुलेलाल गए दरबारा ||
मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी | झुलेलाल बनाओ बन्दी ||
किया स्वरुप वरुण का धारण | चारो और हुआ जल प्लावन ||
दरबारी डूबे उतराये | नऊप के होश ठिकाने आये ||
नऊप तब पड़ा चरण में आई | जय जय धन्य जय साईं ||
वापिस लिया नऊपति आदेशा | दूर दूर सब जन क्लेशा ||
संवत दस सौ बीस मंझारी | भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ||
भक्तो की हर आधी व्याधि | जल में ली जलदेव समाधि ||
जो जन धरे आज भी ध्याना | उनका वरुण करे कल्याणा ||
★ दोहा
चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय |
पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय || ★
Shri Ghantakarna Mahaveer Siddhidayak Stotra श्री घंटाकर्ण महावीर सिद्धिदायक स्तोत्र
Shri Ghantakarna Mahaveer Siddhidayak Stotra श्री घंटाकर्ण महावीर सिद्धिदायक स्तोत्र ● जैन मंत्रों में घंटाकर्ण महावीर की साधना सबसे बलशाली है। कईयों को तो घंटाकर्ण महावीर के दर्शन करने से ही "डर" लगता है। जिनके मन में भावना अच्छी नहीं होती, उन्हें ही घंटाकर्ण महावीर से डर लगता है।
श्री घंटाकर्ण महावीर सिद्धिदायक चमत्कारी स्तोत्र
(उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध करना आता हो तो ही पढ़े, अन्यथा दूसरे से ही एक बार सुन लें. ये भी व्यवस्था ना हो तो भक्तिपूर्वक "नमस्कार" करके नीचे लिखा मंत्र जप करें)
★
ॐ घंटाकर्णो महावीरः सर्वव्याधि-विनाशकः।
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष-रक्ष महाबलः ॥1॥
यत्र त्वं तिष्ठसे देव! लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात पित्त कफोद्भवाः ॥2॥
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपात्क्षयम्।
शाकिनी -भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति नो ॥3॥
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दृश्यते।
अग्नि चौर भयं नास्ति, नास्ति तस्य प्यरि-भयं
ॐ ह्वीं श्रीं घंटाकर्ण ||४||
★
ऊपर वाला स्तोत्र पढ़ने के बाद नीचे लिखे मंत्र का 21 बार जप करें:
घंटाकर्ण महावीर का मंत्र :
★
ॐ घंटाकर्ण महावीर नमोस्तु ते ठः ठः ठः स्वाहा। ★
Panch Mahaguru Bhakti पञ्च महागुरु भक्ति ★
श्रीमदमरेन्द्र मुकुट प्रघटित मणि किरणवारिधाराभिः ।
प्रक्षालित-पद-युगलान् प्रणमामि जिनेश्वरान् भक्त्या ॥१॥
शोभा सम्पन्न - अमरेन्द्र के मुकुटों में लगी मणियों की किरणरूपी जलधारा से जिनके चरण युगल धुले हैं ऐसे जिनेश्वर को भक्ति से मैं प्रणाम करता हूँ।
अष्टगुणैः समुपेतान् प्रणष्ट-दुष्टाष्टकर्म-रिपुसमितीन् ।
सिद्धान् सतत-मनन्तान् नमस्करोमीष्ट-तुष्टि संसिद्ध्यै ॥२॥
आठ गुणों से युक्त दुष्ट- अष्ट कर्म-शत्रु के समूह को नष्ट किया है जिन्होंने ऐसे अनन्त सिद्धों को सन्तोष की सिद्धि के लिए सदैव नमस्कार करता हूँ।
साचार- श्रुत- जलधीन् प्रतीर्य शुद्धोरुचरण-निरतानाम् ।
आचार्याणां पदयुग कमलानि दधे शिरसि मेऽहम् ॥३॥
आचार सहित श्रुत सागर को तैरकर शुद्ध, महान चारित्र में निरत चरण युगलकमल को अपने शिर पर मैं धारण करता हूँ।
मिथ्यावादि मद्रोग्र ध्वान्त-प्रध्वंसि वचन - संदर्भान् ।
उपदेशकान् प्रपद्ये मम दुरितारि - प्रणाशाय ॥४॥
मिथ्यावादियों के गर्वरूपी उग्र अन्धकार के नाशक वचनों के सन्दर्भ वाले उपदेशकों को मैं अपने पाप शत्रु का नाश करने के लिए प्राप्त होता हूँ।
सम्यग्दर्शन दीप प्रकाशका मेय-बोध-सम्भूताः ।
भूरि-चरित्र पताकास् ते साधु-गणास्तु मां पान्तु ॥५ ॥
जो सम्यग्दर्शनरूपी दीपक को प्रकाशित करते हैं, जो व्यापक ज्ञान से सम्पन्न हैं जो उत्कृष्ट
चारित्र की ध्वजा हैं, वह साधुगण ही मेरी रक्षा करें।
जिनसिद्ध-सूरिदेशक साधु-वरानमल-गुण- गणोपेतान् ।
पञ्चनमस्कारपदैस् त्रिसन्ध्यमभिनौमि
मोक्षलाभाय ॥६॥
निर्मल गुण-गण से युक्त जिन, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और उत्कृष्ट साधुओं को मोक्ष की प्राप्ति के लिए पञ्च नमस्कार पदों के द्वारा तीनों संध्याओं में नमस्कार करता हूँ ।
एष पञ्चनमस्कारः सर्व पापप्रणाशनः ।
मङ्गलानां च सर्वेषां प्रथमं मङ्गलं मतम् ॥७॥
यह पञ्च नमस्कार सभी पापों का नाशक और सभी मंगलों में पहला मंगल माना है।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायाः सर्वसाधवः ।
कुर्वन्तु मङ्गलाः सर्वे निर्वाण- परमश्रियम् ॥८ ॥
अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और समस्त साधु मंगल रूप हैं यह सभी निर्वाणरूपी उत्कृष्ट लक्ष्मी को करें।
सर्वांन्- जिनेन्द्र-चन्द्रान् सिद्धानाचार्य पाठकान् साधून् ।
रत्नत्रयं च वन्दे रत्नत्रय - सिद्धये भक्त्या ॥९॥
सभी जिनेन्द्र चन्द्रों को सिद्ध को आचार्य, उपाध्यायों को और साधुओं को तथा रत्नत्रय को रत्नत्रय की सिद्धि के लिए भक्ति से नमस्कार करता हूँ ।
पान्तु श्रीपाद पद्मानि पञ्चानां परमेष्ठिनाम्। लालितानि सुराधीश चूड़ामणि मरीचिभिः ॥१०॥
इन्द्र के चूड़ामणि की किरणों से सेवित पाँचों परमेष्ठियों के श्री चरण कमल रक्षा करें।
प्रातिहार्यैर्जिनान् सिद्धान् गुणैः सिद्धान् गुणैः सूरीन् स्वमातृभिः ।
पाठकान् विनयैः साधून् योगाङ्गैरष्टभिः स्तुवे ॥११॥
जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिहार्यों से सिद्धों की गुणों से आचार्यों को अपनी मातृकाओं से उपाध्यायों को विनय से साधुओं को आठ योगों से स्तुति करता हूँ।
अञ्चलिका
अर्थ- हे भगवन्! मैंने पंच महागुरु भक्ति का कायोत्सर्ग किया है, उसकी मैं आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। अष्ट-महा प्रातिहार्यों से युक्त अरहन्त, अष्ट गुणों से सम्पन्न तथा ऊर्ध्व लोक के मस्तक पर प्रतिष्ठित सिद्ध, अष्ट प्रवचन मातृकाओं से युक्त आचार्य, आचारांग आदि श्रुत ज्ञान का उपदेश देने वाले उपाध्याय और रत्नत्रय गुणों के पालन में रत सभी साधू परमेष्ठी की मैं सदा अर्चना करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, बोधिलाभ हो, सुगति में गमन हो, समाधि मरण हो और मुझे जिनेन्द्र भगवान् के गुणों की प्राप्ति होवे।
5/24/2023 • 3 minutes, 44 seconds
Shatru Shaman Mantra शत्रुशमन मन्त्र 108 times
■ Shatru Shaman Mantra शत्रुशमन मन्त्र ■ मंत्र जप करते समय राम दरबार की फोटो सामने रखकर एक गाय के घी का दीपक भी जलता रहे 'ॐ रामाय धनुष्पाणये स्वाहा:' मंत्र का जप करने से शत्रु शमन, न्यायालय, मुकदमे आदि की समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है ।
5/24/2023 • 14 minutes, 53 seconds
Easiest way in Jainism to gain Prosperity समृद्धि पाने का सबसे सरल जैन उपाय
Easiest way in Jainism to gain Prosperity समृद्धि पाने का सबसे सरल जैन उपाय : (जिन्हें मंदिर विधि नहीं आती है)
पहले मंदिर में प्रवेश करें और फिर नीचे लिखी स्तुति बड़े भाव से बोलें:
"प्रभु दर्शन सुख सम्पदा प्रभु दर्शन नव निध | प्रभु दर्शन थी पाइए सकल पदार्थ सिध ||" (ध्यान रहे आपकी नज़र मात्र प्रभु की प्रतिमा पर रहे )
फिर बड़े ही भावपूर्वक एक बार बोलें
"श्री नमुत्थुणं सूत्र!"
तीन महीने में ही काया पलट होने लगेगी.
सूत्र का उच्चारण एकदम स्पष्ट होना चाहिए.
नमुत्थुणं सूत्र शाश्वत (perpetual) है क्योंकि जब भी तीर्थंकरों का जन्म होता है, तब सौधर्मेन्द्र इसी सूत्र से भगवान की स्तुति करते हैं.
5/24/2023 • 1 minute, 46 seconds
Japmala Sanskar Vidhi जपमाला संस्कार विधि
Japmala Sanskar Vidhi जपमाला संस्कार विधि ★
साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर आसन पर बैठ जाएं। सर्व प्रथम आचमन, पवित्रीकरण आदि करने के बाद गणेश, गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर लें। तत्पश्चात पीपल के 9 पत्तों को भूमि पर अष्टदल कमल की भांती बिछा लें। एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओं में रखने से अष्टदल कमल बनेगा, इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दें।
अब गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर से बने पंचगव्य से किसी पात्र में माला को प्रक्षालित करें और पंचगव्य से माला को स्नान कराते हुए..
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं इस समस्त स्वर वयंजन का अनुनासिक उच्चारण करें।
माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गौदुग्ध से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं।
"ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः ! भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः"
माला को निम्न मंत्र बोलते हुए दही से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं।
"ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमः रुद्राय नमः कालाय नमः कल विकरणाय नमः बलाय नमः
बल प्रमथनाय नमः बलविकरणाय नमः सर्वभूत दमनाय नमः मनोनमनाय नमः"
माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गौघृत से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं।
"ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:"
माला को निम्न मंत्र बोलते हुए शहद से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं।
"ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात "
माला को निम्न मंत्र बोलते हुए शक्कर से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं
"ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!"
अब माला को स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर माला को कांसे की थाली अथवा किसी अन्य स्वच्छ थाली या चौकी पर स्थापित करके माला की प्राण प्रतिष्ठा हेतु अपने दाएं हाथ में जल लेकर विनियोग करके वह जल भूमि पर छोड़ दें !
"ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः "
अब माला को दाएं हाथ से ढक लें और निम्न चैतन्य मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है।
"ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः"
"ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः "
"ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा "
"ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ "
अब माला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प आदि से पंचोपचार पूजन कर, उस माला पर जिस मन्त्र की साधना करनी है उस मन्त्र को मानसिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं, अथवा
“ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋ लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं”
का अनुनासिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं। इसके बाद माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित गौमुखी में स्थापित कर दें। इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है।
5/24/2023 • 9 minutes, 29 seconds
Mala Mantra before Mantrajaap मंत्रजाप पूर्व माला मंत्र
Mala Mantra before Mantrajaap मंत्रजाप पूर्व माला मंत्र ★
नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरांत जप प्रारम्भ करें
★ ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी सर्व मन्त्र साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा।
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः ।
★
नोट: जप करते समय तर्जनी अंगुली का माला को कभी स्पर्श नहीं होना चाहिए।
गोमुख रूपी थैली (गोमुखी) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है। संस्कारित माला से ही किसी भी मन्त्र जप करने से पूर्णफल की प्राप्ति होती है।
5/23/2023 • 31 seconds
Pandemic Healing Mantra वैश्विक महामारी नाशक मन्त्र 108 times
Pandemic Healing Mantra वैश्विक महामारी नाशक मन्त्र ■
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं,
विश्वात्मिका धारयन्ति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति,
वि श्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्राः।। ■
इस मंत्र के जप से आप वैश्विक महामारी से मुक्ति पा सकते हैं और विश्व कल्याण के लिए माता से प्रार्थना कर सकते हैं।
5/23/2023 • 46 minutes, 37 seconds
Rin Mukti Jain Mantra ऋण मुक्ति जैन मन्त्र
Rin Mukti Jain Mantra ऋण मुक्ति जैन मन्त्र ★
ये श्लोक मात्र एक बार ही बोलें~
"सर्वदा वासुपूज्य अस्य
नाम्ना शान्तिम् जय श्रियं
रक्षा कुरु धरासुतो
अशुभोऽपि शुभ भवः ।।
फिर इस मंत्र को रोज मात्र बारह बार बोलें: (हथेली में उंगलिओं में जो १२ जोड़ हैं, उन पर) ~
‡ ॐ ह्रीं श्रीं भौमाय पूजिताय श्री वासुपूज्य स्वामिने नमः || ‡
मंत्र पूरे एकाग्र चित्त से जपें।
ये मंत्र:
१. शांति प्रदान करता है. (इसका अर्थ बहुत गंभीर है)
जिस पर कर्जा हो, वो शान्ति में कैसे जी सकता है? परन्तु मंत्र प्रभाव से वो शान्ति से जीयेगा.
शांति से तभी जीयेगा जब ऋण से मुक्ति होगी. मतलब ऋण से मुक्ति इस मंत्र के प्रभाव से हो जाती है).
२. हर कार्य सिद्ध करता है.
३. रुका हुआ पैसा आता है.
४. शत्रु/सरकार/कोर्ट केस में रक्षा करता है.
सबसे विशेष:
५. अशुभोऽपि शुभ भवः
जो अभी अशुभ दिख रहा है, वो शुभ में कन्वर्ट हो जाएगा.
5/23/2023 • 2 minutes, 42 seconds
Yuktyanushasana by Acharya Samantabhadra आचार्य समंतभद्र विरचित युक्त्यनुशासन
Yuktyanushasana by Acharya Samantabhadra आचार्य समंतभद्र विरचित युक्त्यनुशासन
5/21/2023 • 34 minutes, 29 seconds
Shri Tara Shatnaam Stotram श्री तारा शतनाम स्तोत्रम्
Kaamkala Kali Dhyanam कामकला काली ध्यानम् ★
उद्यद्घनाघनाश्लिष्यज्जवा कुसुम सन्निभाम्॥
मत्तकोकिलनेत्राभां पक्वजम्बूफलप्रभाम्।
सुदीर्घप्रपदालम्बि विस्रस्तघनमूर्द्धाजाम्॥
ज्वलदङ्गार वच्छोण नेत्रत्रितयभूषिताम्।
उद्यच्छारदसंपूर्णचन्द्रकोकनदाननाम्॥
दीर्घदंष्ट्रायुगोदञ्चद् विकराल मुखाम्बुजाम्।
वितस्तिमात्र निष्क्रान्त ललज्जिह्वा भयानकाम्॥
व्यात्ताननतया दृश्यद्वात्रिंशद् दन्तमण्डलाम्।
निरन्तरम् वेपमानोत्तमाङ्गा घोररूपिणीम्॥अंसासक्तनृमुण्डासृक् पिबन्ती वक़कन्धराम्।
सृक्कद्वन्द्वस्रवद्रक्त स्नापितोरोजयुग्मकाम्॥
उरोजा भोग संसक्त संपतद्रुधिरोच्चयाम्।l
सशीत्कृतिधयन्तीं तल्लेलिहानरसज्ञया॥
ललाटे घननारासृग् विहितारुणचित्रकाम्।
सद्यश्छिन्नगलद्रक्त नृमुण्डकृतकुण्डलाम्॥
श्रुतिनद्धकचालम्बिवतंसलसदंसकाम।
स्रवदस्रौघया शश्वन्मानव्या मुण्डमालया॥
आकण्ठ गुल्फलंबिन्यालङ्कृतां केशबद्धया।
श्वेतास्थि गुलिका हारग्रैवेयकमहोज्ज्वलाम्॥
शवदीर्घाङ्गुली पंक्तिमण्डितोरः स्थलस्थिराम्।
कठोर पीवरोत्तुङ्ग वक्षोज युगलान्विताम्॥
महामारकतग्राववेदि श्रोणि परिष्कृताम्।
विशाल जघना भोगामतिक्षीण कटिस्थलाम्॥
अंत्रनद्धार्भक शिरोवलत्किङ्किणि मण्डिताम्।
सुपीनषोडश भुजां महाशङ्खाञ्चदङ्गकाम्॥
शवानां धमनीपुञ्जैर्वेष्टितैः कृतकङ्कणाम्।
ग्रथितैः शवकेशस्रग्दामभिः कटिसृत्रिणीम्॥ शवपोतकरश्रेणी ग्रथनैः कृतमेखलाम्।
शोभामानांगुलीं मांसमेदोमज्जांगुलीयकैः॥
असिं त्रिशूलं चक्रं च शरमंकुशमेव च।
लालनं च तथा कर्त्रीमक्षमालां च दक्षिणे॥
पाशं च परशुं नागं चापं मुद्गरमेव च।
शिवापोतं खर्परं च वसासृङ्मेदसान्वितम्॥
लम्बत्कचं नृमुण्डं च धारयन्तीं स्ववामतः।
विलसन्नूपुरां देवीं ग्रथितैः शवपञ्जरैः॥
श्मशान प्रज्वलद् घोरचिताग्निज्वाल मध्यगाम्।
अधोमुख महादीर्घ प्रसुप्त शवपृष्ठगाम्॥
वमन्मुखानल ज्वालाजाल व्याप्त दिगन्तरम्।
प्रोत्थायैव हि तिष्ठन्तीं प्रत्यालीढ पदक्रमाम्॥
वामदक्षिण संस्थाभ्या नदन्तीभ्यां मुहुर्मुहुः।
शिवाभ्यां घोररूपाभ्यां वमन्तीभ्यां महानलम्॥
विद्युङ्गार वर्णाभ्यां वेष्टितां परमेश्वरीम्।
सर्वदैवानुलग्नाभ्यां पश्यन्तीभ्यां महेश्वरीम्॥
अतीव भाषमाणाभ्यां शिवाभ्यां शोभितां मुहुः।
कपालसंस्थं मस्तिष्कं ददतीं च तयोर्द्वयोः॥
दिगम्बरां मुक्तकेशीमट्टहासां भयानकाम्।
सप्तधानद्धनारान्त्रयोगपट्ट विभूषिताम्॥
संहारभैरवेणैव सार्द्धं संभोगमिच्छतीम्।
अतिकामातुरां कालीं हसन्तीं खर्वविग्रहाम्॥
कोटि कालानल ज्वालान्यक्कारोद्यत् कलेवरम्।
महाप्रलय कोट्यर्क्क विद्युदर्बुद सन्निभाम्॥
कल्पान्तकारणीं कालीं महाभैरवरूपिणीम्।
महाभीमां दुर्निरीक्ष्यां सेन्द्रैरपि सुरासुरैः॥
शत्रुपक्षक्षयकरीं दैत्यदानवसूदनीम्।
चिन्तयेदीदृशीं देवीं काली कामकलाभिधाम्॥
यह देवी उगते हुए सूर्य के साथ रक्तवर्ण वाले बादल, संश्लिष्ट जवाकुसुम, मत्त कोकिल के नेत्र के जैसी, पके हुए जामुन के फल की कान्तिवाली है । इसके पैरों तक लटकते घने बाल बिखरे हुए हैं । जलते अङ्गारे जैसे लाल तीन नेत्रों से यह विभूषित है । इनका मुख उगते हुए शारदीय पूर्णचन्द्र तथा लाल कमल के समान है । दो लम्बे दाँत बाहर निकलने से विकराल मुख वाली हैं । बाहर निकली हुई लपलपाती जीभ के कारण भयानक है । खुले मुख में बत्तीसो दाँत दिख रहे हैं । शिर निरन्तर काँप रहा है अतएव घोर रूप वाली है । गले में लटके नरमुण्ड से निकलते रक्त को पीती हुई वक्रकन्धे वाली हैं । जबड़ों से स्रवित रक्त इसके विस्तृत दोनों स्तन उपलिप्त कर रक्त बह रहा है जिसे लेलिहान जिह्वा से सीत्कार के साथ वह पी रही है । ललाट पर नर रक्त से बना लालरंग का चित्र है। गिरते रक्त वाले नरमुण्ड का उसने कुण्डल धारण किया है । कानों में बँधे हुए बालों से कर्णाभूषण कन्धे तक लटक रहा है । बालों से परस्पर बँधे हुए रक्त टपकते नरमुण्डों की माला से वे अलङ्कृत हैं । हड्डी से बने हार एवं ग्रैवेयक उज्ज्वल हैं । शव की अङ्गुलियों की माला से उनका दृढ़ उरस्थल अलङ्कृत है । वे कठोर विशाल और ऊँचे दो स्तनों वाली हैं । इनके उत्तम नितम्ब महा मरकत पत्थर से निर्मित वेदी के समान चिकने, कठोर और समतल हैं । उनके जघन का विस्तार अत्यधिक है और कटि अत्यन्त क्षीण है ।
आँतों से बँधे हुए बच्चों के शिररूपी करधनी से वे मण्डित हैं । वे सोलह भुजा वाली हैं । मनुष्य के कपाल से शोभायमान है । शवों की धमनियों को हाथ में लपेट कर कङ्कण बना लिया है । शव के गुँथे बालों से उनका कटिसूत्र बना है । मृत शिशु के हाथों को गूंथ कर उन्होंने करधनी बनायी है । अङ्गुलियों में मांस, मेदा, मज्जा की अङ्गठियाँ पहनी हैं । दायें हाथों में खड्ग, त्रिशूल, चक्र, बाण, अङ्कश, विषधर लालन, कैंची और अक्षमाला तथा अपने बायें हाथों में पाश, परशु, नाग, धनुष, मुद्गर, सियार का बच्चा तथा वसा रक्त और मेदा से भरा कपाल
5/20/2023 • 10 minutes
After Meals Mantra भोजन उपरांत मन्त्र
After Meals Mantra भोजन उपरांत मन्त्र ★भोजन के बाद पेट पर हाथ फेरते वक्त यह श्लोक बोला जाता है-
अगस्त्यं कुम्भर्कण च शनिं च वडवानलम् । आहार परिपाकाम स्मरेद् भीमं च पञ्चकम्।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः ।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः ।। ★
केवल तीन आचमन में संपूर्ण समुद्र प्राशन करने वाले अगस्त्य मुनि, महाप्रचंड आहार लेकर उसे अच्छी तरह पचाने वाले कुंभकर्ण, महाशक्तियों को झुकाने वाला और मनुष्य का सर्वस्व हरण करने वाला शनि, निमिष में संपूर्ण जंगल भस्म करने वाला वडवानल तथा नितांत भूखा भीम - इनका स्मरण होते ही अन्न उत्तम रीति से पच जाता है।
अन्न से सब प्राणी उत्पन्न होते हैं, और वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है।
यज्ञ से वर्षा होती है, अतः यज्ञ कर्म का स्रोत है।
5/19/2023 • 1 minute, 52 seconds
Karya Siddhi Karak Gorakshnath Mantra कार्य सिद्धिकारक गोरक्षनाथ मंत्र
Karya Siddhi Karak Gorakshnath Mantra कार्य~सिद्धि कारक गोरक्षनाथ मंत्र ◆ “ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”
◆ १॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
२॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
३॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
४॰ आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
५॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
६॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
७॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
८॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
९॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से १०८ बार मंत्रित करे ।
१०॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।
5/19/2023 • 1 minute, 51 seconds
Dattatreya Stotra दत्तात्रेय स्तोत्र
Dattatreya Stotra दत्तात्रेय स्तोत्र ◆
जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम् ।
सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ।।
विनियोग –
अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारद ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीदत्त: परमात्मा देवता, श्रीदत्तप्रीत्यर्थं जपे विनियोग: । ◆
जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसंहारहेतवे ।
भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।1।।
जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च।
दिगम्बर दयामूर्ते दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।2।।
कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च ।
वेदशास्त्रपरिज्ञाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।3।।
हृस्वदीर्घकृशस्थूलनामगोत्रविवर्जित । पंचभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।4।। यज्ञभोक्त्रै च यज्ञाय यज्ञरूपधराय च । यज्ञप्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।5।। आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देव: सदाशिव:। मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।6।। भोगालयाय भोगाय योग्ययोग्याय धारिणे। जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।7।। दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूपधराय च । सदोदितपरब्रह्म दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।8।।
जम्बूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुरनिवासिने ।
जयमान: सतां देव दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।9।।
भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे ।
नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।10।।
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले।
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।11।।
अवधूत सदानन्द परब्रह्मस्वरूपिणे ।
विदेहदेहरूपाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।12।।
सत्यरूप सदाचार सत्यधर्मपरायण ।
सत्याश्रय परोक्षाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।13।। शूलहस्त गदापाणे वनमालासुकन्धर।
यज्ञसूत्रधर ब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।14।।
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च ।
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।15।।
दत्तविद्याय लक्ष्मीश दत्तस्वात्मस्वरूपिणे ।
गुणनिर्गुणरूपाय दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।16।।
शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम्
सर्वपापशमं याति दत्तात्रेय नमोsस्तु ते ।।17।।
इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम् ।
दत्तात्रेयप्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तितम् ।।18।।
इति श्रीनारदपुराणे नारदविरचितं
दत्तात्रेयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
5/19/2023 • 8 minutes, 4 seconds
Aatm Aalochna Paath आत्म आलोचना पाठ
Aatm Aalochna Paath आत्म आलोचना पाठ★
वंदौं पाँचों परम गुरु, चौबीसों जिनराज।
करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरण के काज॥ १॥
सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी।
तिनकी अब निर्वृत्ति काजा, तुम सरन लही जिनराजा॥ २॥
इक वे ते चउ इन्द्री वा, मनरहित-सहित जे जीवा।
तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदय ह्वै घात विचारी॥ ३॥
समरंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ।
कृत कारित मोदन करिकै , क्रोधादि चतुष्टय धरिकै ॥ ४॥
शत आठ जु इमि भेदन तैं, अघ कीने परिछेदन तैं।
तिनकी कहुँ कोलों कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी॥ ५॥
विपरीत एकांत विनय के, संशय अज्ञान कुनय के।
वश होय घोर अघ कीने, वचतैं नहिं जाय कहीने॥ ६॥
कुगुरुन की सेवा कीनी, केवल अदयाकरि भीनी।
या विधि मिथ्यात भ्ऱमायो, चहुंगति मधि दोष उपायो॥ ७॥
हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, परवनिता सों दृगजोरी।
आरंभ परिग्रह भीनो, पन पाप जु या विधि कीनो॥ ८॥
सपरस रसना घ्राननको, चखु कान विषय-सेवनको।
बहु करम किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने॥ ९॥
फल पंच उदम्बर खाये, मधु मांस मद्य चित चाहे।
नहिं अष्ट मूलगुण धारे, सेये कुविसन दुखकारे॥ १०॥
दुइबीस अभख जिन गाये, सो भी निशदिन भुंजाये।
कछु भेदाभेद न पायो, ज्यों-त्यों करि उदर भरायो॥ ११॥
अनंतानु जु बंधी जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो।
संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश गुनिये॥ १२॥
परिहास अरति रति शोग, भय ग्लानि त्रिवेद संयोग।
पनबीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम॥ १३॥
निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई।
फिर जागि विषय-वन धायो, नानाविध विष-फल खायो॥१४||
आहार विहार निहारा, इनमें नहिं जतन विचारा।
बिन देखी धरी उठाई, बिन शोधी वस्तु जु खाई॥ १५॥
तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकलप उपजायो।
कछु सुधि बुधि नाहिं रही है, मिथ्यामति छाय गयी है॥ १६॥
मरजादा तुम ढिंग लीनी, ताहू में दोस जु कीनी।
भिनभिन अब कैसे कहिये, तुम ज्ञानविषैं सब पइये॥ १७॥
हा हा! मैं दुठ अपराधी, त्रसजीवन राशि विराधी।
थावर की जतन न कीनी, उर में करुना नहिं लीनी॥ १८॥
पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागां चिनाई।
पुनि बिन गाल्यो जल ढोल्यो,पंखातैं पवन बिलोल्यो॥ १९॥
हा हा! मैं अदयाचारी, बहु हरितकाय जु विदारी।
तामधि जीवन के खंदा, हम खाये धरि आनंदा॥ २०॥
हा हा! परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई।
तामधि जीव जु आये, ते हू परलोक सिधाये॥ २१॥
बींध्यो अन राति पिसायो, ईंधन बिन-सोधि जलायो।
झाडू ले जागां बुहारी, चींटी आदिक जीव बिदारी॥ २२॥
जल छानि जिवानी कीनी, सो हू पुनि-डारि जु दीनी।
नहिं जल-थानक पहुँचाई, किरिया बिन पाप उपाई॥ २३॥
जलमल मोरिन गिरवायो, कृमिकुल बहुघात करायो।
नदियन बिच चीर धुवाये, कोसन के जीव मराये॥ २४॥
अन्नादिक शोध कराई, तामें जु जीव निसराई।
तिनका नहिं जतन कराया, गलियारैं धूप डराया॥ २५॥
पुनि द्रव्य कमावन काजे, बहु आरंभ हिंसा साजे।
किये तिसनावश अघ भारी, करुना नहिं रंच विचारी॥ २६॥
इत्यादिक पाप अनंता, हम कीने श्री भगवंता।
संतति चिरकाल उपाई, वानी तैं कहिय न जाई॥ २७॥
ताको जु उदय अब आयो, नानाविध मोहि सतायो।
फल भुँजत जिय दुख पावै, वचतैं कैसें करि गावै॥ २८॥
तुम जानत केवलज्ञानी, दुख दूर करो शिवथानी।
हम तो तुम शरण लही है जिन तारन विरद सही है॥ २९॥
इक गांवपती जो होवे, सो भी दुखिया दुख खोवै।
तुम तीन भुवन के स्वामी, दुख मेटहु अन्तरजामी॥ ३०॥
द्रोपदि को चीर बढ़ायो, सीता प्रति कमल रचायो।
अंजन से किये अकामी, दुख मेटो अन्तरजामी॥ ३१॥
मेरे अवगुन न चितारो, प्रभु अपनो विरद सम्हारो।
सब दोषरहित करि स्वामी, दुख मेटहु अन्तरजामी॥ ३२॥
इंद्रादिक पद नहिं चाहूँ, विषयनि में नाहिं लुभाऊँ ।
रागादिक दोष हरीजे, परमातम निजपद दीजे॥ ३३॥
दोहा
दोष रहित जिनदेवजी, निजपद दीज्यो मोय।
सब जीवन के सुख बढ़ै, आनंद-मंगल होय॥ ३४॥
अनुभव माणिक पारखी, जौहरी आप जिनन्द।
ये ही वर मोहि दीजिये, चरन-शरन आनन्द॥ ३५॥
5/19/2023 • 12 minutes, 30 seconds
Siddh Shrut Acharya Bhakti सिद्ध श्रुत आचार्य भक्ति
Sapt Matrika Sadhna Mantra सप्तमातृका साधना मन्त्र ★ ॐ माहेश्वरी नमः। ॐ वैष्णवी नमः । ॐ ब्रह्माणी नमः । ॐ ऐन्द्री नमः। ॐ कौमारी नमः । -ॐ नारसिंही नमः । ॐ वाराही नमः।
★
फिर ' रुद्राक्ष माला' से निम्न मंत्र की 21 मालाएं मंत्र जप करें।
मंत्र:-
॥ ★ॐ ऐं क्लीं सौः सप्तमातृकाः सौः क्लीं ऐं ॐ फट्।।
★ साधना के उपरांत व्यक्ति समस्त साधना सामग्री एवं पूजन सामग्री को अगले ही दिन किसी तालाब, कुएं आदि में विसर्जित कर दें। फिर घर आकर 1, 3, 5 या 7 जितनी सामर्थ्य हो उतनी छोटी कन्याओं को भोजन, वस्त्र, दान दक्षिणा दें। ऐसा करने से साधना पूर्ण सफल होती है, और संतान के ऊपर से समस्त ग्रह कोप एवं क्रूर ग्रहों के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।
5/16/2023 • 23 minutes, 7 seconds
Davanal Sanharan Stotram दावानल संहरण स्तोत्रम्
Davanal Sanharan Stotram दावानल संहरण स्तोत्रम् ◆
यथा संरक्षितं ब्रह्मन् सर्वापत्स्वेव नः कुलम् ।
तथा रक्षां कुरु पुनर्दावाग्रेर्मधुसूदन ॥ १ ॥
त्वमिष्टदेवतास्माकं त्वमेव कुलदेवता ।
वन्हिर्वा वरुणो वापि चन्द्रौ वा सूर्य एव वा ॥ २ ॥
यमः कुबेरः पवन ईशानाद्याश्र्च देवताः ।
ब्रह्मेशशेषधर्मेन्द्रा मुनीन्द्रा मनवः स्मृता: ॥ ३ ॥
मानवाश्र्च तथा दैत्या यक्षराक्षसकिन्नराः ।
ये ये चराचराश्र्चैव सर्वे तव विभूतयः ॥ ४ ॥
स्रष्टा पाता च संहर्ता जगतां च जगत्पते ।
आविर्भावस्तिरोभावः सर्वेषां च तवेच्छया ॥ ५ ॥
अभयं देहि गोविन्द वन्हिसंहरण कुरु ।
वयं त्वां शरणं यामो रक्ष नः शरणागतान् ॥ ६ ॥
इत्येवमुक्त्वा ते सर्वे तस्थुर्ध्यात्वा पदाम्बुजम् ।
दूरीकृतश्र्च दावाग्निः श्रीकृष्णामृतदृष्टितः ॥ ७ ॥
दूरीभूतेऽत्र दावाग्नौ विपत्तौ प्राणसंकटे ।
स्तोत्रमेतत् पठित्वा च मुच्यते नात्र संशयः ॥ ८ ॥
शत्रुसैन्यं क्षयं याति सर्वत्र विजयी भवेत् ।
इहलोके हरेर्भक्तिमन्ते दास्यं लभेद् ध्रुवम् ॥ ९ ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे श्रीकृष्णजन्मखंडे दावानल संहरण स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥
Ganapati Namashtakam Stotram गणपति नामाष्टक स्तोत्रम् ◆.
गणेशमेकदन्तं च हेरम्बं विघ्ननायकम् I
लम्बोदरं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं गुहाग्रजम् I
नामाष्टार्थ च पुत्रस्य श्रुणु मातर्हरप्रिये I
स्तोत्राणां सारभूतं च सर्वविघ्नहरं परम् II १ II
ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचकः I
तयोरीशं परं ब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम् I
एकशब्दः प्रधानार्थो दन्तश्च बलवाचकः I
बलं प्रधानं सर्वस्मादेकदन्तं नमाम्यहम् II २ II
दिनार्थवाचको हेश्च रम्बः पालकवाचकः I
परिपालकं दिनानां हेरम्बं प्रणमाम्यहम् I
विपत्तिवाचको विघ्नो नायकः खण्डनार्थकः I
विपत्खण्डनकारकं नमामि विघ्ननायकम् II ३ II
विष्णुदत्तैश्च नैवेद्यैर्यस्य लम्बोदरं पुरा I
पित्रा दतैश्च विविधैर्वन्दे लम्बोदरं च तम् I
शूर्पाकारौ च यत्कर्णौ विघ्नवारणकारणौ I
सम्पद्दौ ज्ञानरुपौ च शूर्पकर्णं नमाम्यहम् II ४ II
विष्णुप्रसादपुष्पं च यन्मूर्ध्नि मुनिदत्तकम् I
तद् गजेन्द्रवक्त्रयुतं गजवक्त्रं नमाम्यहम् I
गुहस्याग्रे च जातोSयमाविर्भूतो हरालये I
वन्दे गुहाग्रजं देवं सर्वदेवाग्रपूजितम् II ५ II
एतन्नामाष्टकं दुर्गे नामभिः संयुतं परम् I
पुत्रस्य पश्य वेदे च तदा कोपं तथा कुरु I
एतन्नामाष्टकं स्तोत्रं नानार्थसंयुतं शुभम् I
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स सुखी सर्वतो जयी II ६ II
ततो विघ्नाः पलायन्ते वैनतेयाद् यथोरगाः I
गणेश्वरप्रसादेन महाज्ञानी भवेद् ध्रुवम् I
पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी विपुलां स्त्रियम् I
महाजडः कवीन्द्रश्च विद्दावांश्च भवेद् ध्रुवम् II ७ II
II इति श्रीब्रह्मवैवर्ते गणपतीखण्डे श्रीविष्णुर्प्रोक्तं गणपति नामाष्टकं संपूर्णं II
◆
Himalaya Krit Shiv Stotram हिमालय कृत शिव स्तोत्रम्
Himalaya Krit Shiv Stotram हिमालय कृत शिव स्तोत्रम् ★ त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः I
त्वं शिवः शिवदोSनन्तः सर्वसंहारकारकः II १ II
त्वमीश्र्वरो गुणातीतो ज्योतीरूपः सनातनः I
प्रकृतिः प्रकृतीशश्र्च प्राकृतः प्रकृतेः परः II २ II
नानारूपविधाता त्वं भक्तानां ध्यानहेतवे I
येषु रूपेषु यत्प्रीतिस्तत्तद्रूपं बिभर्षि च II ३ II
सूर्यस्त्वं सृष्टिजनक आधारः सर्व तेजसाम् I
सोमस्त्वं शस्य पाता च सततं शीतरश्मिना II ४ II
वायुस्त्वं वरुणस्त्वं च त्वमग्निः सर्वदाहकः I
इन्द्रस्त्वं देवराजश्र्च कालो मृत्युर्यमस्तथा II ५ II
मृत्युञ्जयो मृत्युमृत्युः कालकालो यमान्तकः I
वेदस्त्वं वेदकर्ता च वेदवेदाङ्गपारगः II ६ II
विदुषां जनकस्त्वं च विद्वांश्र्च विदुषां गुरुः I
मंत्रस्त्वं हि जपस्त्वं हि तपस्त्वं तत्फलप्रदः II ७ II
वाक् त्वं वागधिदेवि त्वं तत्कर्ता तद्गुरुः स्वयम् I
अहो सरस्वतीबीजं कस्त्वां स्तोतुमिहेश्र्वरः II ८ II
इत्येवमुक्त्वा शैलेन्द्रस्तस्थौ धृत्वा पदाम्बुजम् I
तत्रोवास तमाबोध्य चावरुह्य वृषाच्छिवः II ९ II
स्तोत्रमेतन्महापुण्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः I
मुच्यते सर्वपापेभ्यो भयेभ्यश्र्च भवार्णवे II १० II
अपुत्रो लभते पुत्रं मासमेकं पठेद् यदि I
भार्याहिनो लभेद् भार्यां सुशीलां सुमनोहराम् II ११ II
चिरकालगतं वस्तु लभते सहसा ध्रुवम् I
राज्यभ्रष्टो लभेद् राज्यं शङ्करस्य प्रसादतः II १२ II
कारागारे श्मशाने च शत्रुग्रस्तेSतिसङ्कटे I
गभीरेSतिजलाकीर्णे भग्नपोते विषादने II १३ II
रणमध्ये महाभीते हिन्स्रजन्तुसमन्विते I
सर्वतो मुच्यते स्तुत्वा शङ्करस्य प्रसादतः II १४ II
★
II इति श्री ब्रह्मवैवर्तपुराणे हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं सम्पूर्णं II
Wisdom Mantra बौद्धिक विकास मन्त्र ★ ॐ बुद्धिप्रदाय नमः ★
हिंदू धर्म में गणपति बप्पा को बुद्धि के देवता कहा जाता है कहते हैं, इनकी कृपा से जातक को बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो आप भी अपने ज्ञान का और विकास करना चाहते हैं तथा तीव्र बुद्धि और विद्या की प्राप्ति चाहते हैं। तो प्रत्येक बुधवार के दिन सुबह के समय गणपति जी को मोदक, लाल गुलाब के फूल तथा दुर्गा की पत्तियां अर्पित करें। ध्यान रहे इस सारी सामग्री की संख्या पांच में होनी चाहिए। इसके अलावा गणपति बप्पा के समक्ष गाय के घी का दीपक जलाकर ''ॐ बुद्धिप्रदाये नमः'' मंत्र का 108 बार जाप करें।
5/12/2023 • 7 minutes, 40 seconds
Sri Neelkanth Stuti श्री नीलकंठ स्तुति
Sri Neelkanth Stuti श्री नीलकंठ स्तुति ★ श्री नील कंठ कृपालु भज मन हरण भव भय दु: सहम
वामांग गिरिजा गंग सिर शशि बाल भाल वृषारूहम ||
चंद्रार्क अगणित अमित छबी भस्मांगलेपन सुन्दरं
अति शुन्य मानस दिग्वसन शुची नौमी शैलसुता वरं ||
शिर जटा कुंडल तिलक चारू कराल सर्प विभूषनं
आजान भुज वर शूल धर पिबत हलाहल दारुणं ||
भज दक्ष मख हर दक्ष सुख कर त्रिपुर दुष्ट निकन्दनं
भूतेश आनंद कंद हिमगिरी चन्द्र काम निशूदनं ||
इति वदति श्री हरीदास ब्रम्हा- शेष- मुनि मन रंजनं
मम ह्रदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनं ||
5/12/2023 • 2 minutes, 7 seconds
Garbh Chandi Paath गर्भ चण्डी पाठ
Garbh Chandi Paath गर्भ चण्डी पाठ ★विनियोगः- ॐ अस्य श्रीगर्भचण्डीमाला मन्त्रस्य श्रीब्रह्मा विष्णु महेश्वरादि ऋषयः । गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छंदांसि । श्रीशक्तिस्वरुपिणी महाचण्डी देवता । ऐं बीजं । ह्रीं कीलकं । क्लीं शक्तीः । मम चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ।।ध्यानम्।।
शुद्ध स्फटिक संकाशां रवि विम्बाननां शिवाम् ।
अनेक शक्तिसंयुक्तां सिंहपृष्ठे निषेदुषीम् ।।
अंकुशं चाक्षसूत्रं च पाशपुस्तक धारिणीम् ।
मुक्ताहार समायुक्तां चण्डीं ध्याये चतुर्भुजाम् ।।
सितेन दर्पणाब्जेन वस्त्रालंकार भूषितम् ।
जटाकलाप संयुक्तां सुस्तनीं चन्द्रशेखराम् ।।
कटकैः स्वर्ण रत्नाढ्यैर्महावलय शोभिताम् ।
कम्बुकण्ठीं सु ताम्रोष्ठीं सर्पनूपुरधारिणीम् ।।
केयुर मेखलाद्यैश्च द्योतयंतीं जगत्-त्रयम् ।
एवं ध्याये महाचण्डीं सर्वकामार्थ सिद्धिदाम् ।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः ब्रह्मोवाच मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। १ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः यच्च किञ्चित् क्वचिद् अस्तु सदसद् वाखिलात्मिके ।
तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। २ ।।
ॐ श्रीं नमः सम्मानिता ननादौच्चैः साट्टहासं मुहुर्मुहुः ।
तस्या नादेन घोरेण कृत्स्नमापूरितं नमः । मः न श्रीं ॐ ।। ३ ।।
ॐ श्रीं नमः अर्द्धनिष्क्रान्तः एवासौ युध्यमानो महाऽसुरः ।
तया महाऽसिना देव्या शिरश्छित्वा निपातितः । मः न श्रीं ॐ ।। ४ ।।
ॐ श्रीं नमः दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थै स्मृता मतिवमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रय दुःख भय हारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता । मः न श्रीं ॐ ।। ५ ।।
ॐ क्लीं नमः इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या ।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः । मः न क्लीं ॐ ।। ६ ।।
ॐ क्लीं नमः इत्युक्तः सोऽभ्यधावत् तामसुरो धूम्रलोचनः ।
हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः । मः न क्लीं ॐ ।। ७ ।।
ॐ क्लीं नमः भृकुटी कुटिलात् तस्याः ललाटफलकाद् द्रुतम् ।
काली कराल वदना विनिष्क्रान्ताऽसि पाशिनी । मः न क्लीं ॐ ।। ८ ।।
ॐ क्लीं नमः ब्रह्रेश गुहविष्णुनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः ।
शरीरेभ्यो विनिष्क्रमय तद्रुपैश्चण्डिकां ययुः मः न क्लीं ॐ ।। ९ ।।
ॐ क्लीं नमः अट्टाट्टहासमशिवं शिवदूती चकार ह ।
तैः शब्दैरसुरास्त्रेसुः शम्भुः कोपं परं ययौ । मः न क्लीं ॐ ।। १० ।।
ॐ क्लीं नमः एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा ?
पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः । मः न क्लीं ॐ ।। ११ ।।
ॐ क्लीं नमः सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्व-शक्ति-समन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुऽते । मः न क्लीं ॐ ।। १२ ।।
ॐ क्लीं नमः देव्युवाच मः न क्लीं ॐ ।। १३ ।।
ॐ क्लीं नमः सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः ।
मनुष्यो मत्-प्रसादेन भविष्यति न संशयः । मः न क्लीं ॐ ।। १४ ।।
ॐ क्लीं नमः यत् प्रार्थ्यते त्वया भूप त्वया च कुलनन्दन ।
मत्तस्तत् प्राप्यतां सर्वं परितुष्टा ददामि तत् । मः न क्लीं ॐ ।। १५ ।।
।। जय जय श्रीमार्कण्डेय पुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवी महात्म्ये सत्याः सन्तु मनसः कामाः ।। ★
5/12/2023 • 10 minutes, 4 seconds
Narayan Paad Pankajam Stotram नारायण पादपङ्कजम् स्तोत्रम्
Narayan Paad Pankajam Stotram नारायण पादपङ्कजम् स्तोत्रम् ◆ नमामि नारायणपादपङ्कजं करोमि नारायणपूजनं सदा I
वदामि नारायणनाम निर्मलं स्मरामि नारायणतत्वमव्ययम् II १ II
श्रीनाथ नारायण वासुदेव श्रीकृष्ण भक्तप्रिय चक्रपाणे I
श्रीपद्मनाभाच्युत कैटभारे श्रीराम पद्माक्ष हरे मुरारे II २ II
अनन्त वैकुण्ठ मुकुन्द कृष्ण गोविन्द दामोदर माधवेति I
वक्तुं समर्थोSपि न वक्ति कश्र्चिदहो जनानां व्यसनाभिमुख्यम् II ३ II
ध्यायन्ति ये विष्णुमनन्तमव्ययं हृत्पद्ममध्ये सततं व्यवस्थितम् I
समाहितानां सतताभयप्रदं ते यान्ति सिद्धिं परमां च वैष्णवीम् II ४ II
क्षीरसागरतरन्गशीकरासारतार चितचारुमूर्तये I
भोगिभोगशयनीयशायिने माधवाय मधुविद्विषे नमः II ५ II
◆
II इति श्री नमामि नारायण पादपङ्कजं स्तोत्रम् संपूर्णं II
5/12/2023 • 3 minutes, 9 seconds
Aanjaneya Mantra आञ्जनेय मंत्र 21 times
Aanjaneya Mantra आञ्जनेय मंत्र
★ ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा। ★
यह हनुमान जी का एक शक्तिशाली मंत्र है, और ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन 21 बार इसका जाप करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं, बुरी आत्माएं दूर हो जाती हैं और जीवन में स्थिरता आ जाती है।
5/12/2023 • 3 minutes, 15 seconds
Mantra offering food to Agnidev अग्नि जिमाने का मन्त्र
Mantra offering food to Agnidev अग्नि जिमाने का मन्त्र
★ ॐ भूपतये स्वाहा, ॐ भुवनप, ॐ भुवनपतये स्वाहा ।
ॐ भूतानां पतये स्वाहा ।। ★
कहकर बने हुए भोजन की तीन आहूतियाँ डालें ।
5/12/2023 • 34 seconds
Dash Shloki Stuti दशश्लोकी स्तुतिः
Dash Shloki Stuti दशश्लोकी स्तुतिः ★
दशश्लोकी स्तुतिः के समर्पित भगवान श्री शिव जी हैं ! दशश्लोकी स्तुतिः के रचियता श्री शंकराचार्य जी हैं
★
साम्बो नः कुलदैवतं पशुपते साम्ब त्वदीया वयं,
साम्बं स्तौमि सुरासुरोरगगणाः साम्बेन संतारिताः ।
साम्बायास्तु नमो मया विरचितं साम्बात्परं नो भजे,
साम्बस्यानुचरोऽस्म्यहं मम रतिः साम्बे परब्रह्मणि ॥ १ ॥
विष्ण्वाद्याश्च पुरत्रयं सुरगणाः जेतुं न शक्ताः स्वयं,
यं शंभुं भगवन्वयं तु पशवोऽस्माकं त्वमेवेश्वरः ।
स्वस्वस्थाननियोजितास्सुमनसः स्वस्था बभूवुस्ततः,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ २ ॥
क्षोणी यस्य रथो रथाङ्गयुगलं चन्द्रार्कबिम्बद्वयं,
कोदण्डः कनकाचलॊ हरिरभूद्बाणो विधिः सारथिः ।
तूणीरो जलधिर्हयाः श्रुतिचयो मौर्वी भुजङ्गाधिपः,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ३ ॥
येनापादितमङ्गजाङ्गभसितं दिव्याङ्गरागैः समं,
येन स्वीकृतमब्जसंभवशिरः सौवर्णपात्रैः समम् ।
येनाङ्गीकृतमच्युतस्य नयनं पूजारविन्दैः समं,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ४ ॥
गोविन्दादधिकं न दैवतमिति प्रोच्चार्य हस्तावुभा,
वुद्धृत्याथ शिवस्य सन्निधिगतो व्यासो मुनीनां वरः ।
यस्य स्थंभितपाणिरानतिकृता नन्दीश्वरेणाभवत्,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ५ ॥
आकाशश्चिकुरायते दशदिशाभोगो दुकूलायते,
शीतांशुः प्रसवायते स्थिरतरानन्द स्वरूपायते ।
वेदान्तो निलयायते सुविनयो यस्य स्वभावायते,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ६ ॥
विष्णुर्यस्य सहस्रनामनियमादम्भोरुहाण्यर्चय,
न्नेकोनोपचितेषु नेत्रकमलं नैजं पदाब्जद्वये ।
संपूज्यासुरसंहतिं विदलयंस्त्रैलोक्यपालोऽभवत्,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ७ ॥
शौरिं सत्यगिरं वराहवपुषं पादाम्बुजादर्शने,
चक्रे यो दयया समस्तजगतां नाथं शिरोदर्शने ।
मिथ्यावाचमपूज्यमेव सततं हंसस्वरूपं विधिं,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ८ ॥
यस्यासन्धरणीजलाग्निपवनव्योमार्कचन्द्रादयो,
विख्यातास्तनवोऽष्टधा परिणता नान्यत्ततो वर्तते ।
ॐकारार्थविवेचनी श्रुतिरियं चाचष्ट तुर्यं शिवं,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ ९ ॥
विष्णुब्रह्मसुराधिपप्रभृतयः सर्वेऽपि देवा यदा,
संभूताज्जलधेर्विषात्परिभवं प्राप्तास्तदा सत्वरम् ।
तानार्तान् शरणागतानिति सुरान्योऽरक्षदर्धक्षणात्,
तस्मिन् मे हृदयं सुखेन रमतां साम्बे परब्रह्मणि ॥ १० ॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं दश श्लोकि स्तुति:।
5/10/2023 • 7 minutes, 16 seconds
Neel Saraswati Stotram नील सरस्वती स्तोत्रम्
Neel Saraswati Stotram नील सरस्वती स्तोत्रम् ★घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि I
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् II १ II
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते I
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् II २ II
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि I
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् II ३ II
सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते I
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् II ४ II
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला I
मूढतां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् II ५ IIवं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः I
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम् II ६ II
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे I
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् II ७ II
इन्द्रादिविलसद्द्वन्द्ववन्दिते करुणामयि I
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम् II ८ II
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः I
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा II ९ II
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम् I
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम् II १० II
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वितः I
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते II ११ II
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये I
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः II १२ II
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत् II १३ II
II इति नीलसरस्वती स्तोत्रं संपूर्णं II
★
Kleshahar Namamrit Stotram क्लेशहर नामामृत स्तोत्रम् ★
श्रीकेशवं क्लेशहरं वरेण्यमानन्दरूपं परमाथमेव ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। १ ।।
अर्थात्—भगवान केशव जो दयालु हैं सबका क्लेश हरने वाले, सबसे श्रेष्ठ, आनन्दरूप और परमार्थ-तत्त्व से युक्त हैं । उनका नामरूप अमृत ही सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
श्रीपद्मनाभं कमलेक्षणं च आधाररूपं जगतां महेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। २ ।।
अर्थात्—भगवान विष्णु की नाभि से कमल प्रकट हुआ है । उनके नेत्र कमल के समान सुन्दर हैं । वे जगत के आधारभूत और महेश्वर हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
पापापहं व्याधि विनाशरूपमानन्ददं दानवदैत्य नाशनम्।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ३ ।।
अर्थात्—भगवान विष्णु पापों का नाश करके आनन्द प्रदान करते हैं । वे दानवों और दैत्यों का संहार करने वाले हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
यज्ञांगरूपं च रथांगपाणिं पुण्याकरं सौख्यमनन्तरूपम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ४ ।।
अर्थात्—यज्ञ भगवान के अंगरूप हैं, उनके हाथ में सुदर्शनचक्र शोभा पाता है । वे पुण्य की निधि और सुख रूप हैं । उनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं है । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
विश्वाधिवासं विमलं विरामं रामाभिधानं रमणं मुरारिम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ५ ।।
अर्थात्—सम्पूर्ण विश्व उनके हृदय में निवास करता है । वे निर्मल, सबको आराम देने वाले, ‘राम’ नाम से विख्यात, सबमें रमण करने वाले तथा मुर दैत्य के शत्रु हैं । उनका नामरूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
आदित्यरूपं तमसां विनाशं चन्द्रप्रकाशं मलपंकजानाम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ६ ।।
अर्थात्—भगवान केशव आदित्य (सूर्य) स्वरूप, अंधकार के नाशक, मल रूप कमलों के लिए चांदनी रूप हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
सखड्गपाणिं मधुसूदनाख्यं तं श्रीनिवासं सगुणं सुरेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ७ ।।
अर्थात्—जिनके हाथों में नन्दक नामक खड्ग है, जो मधुसूदन नाम से प्रसिद्ध, लक्ष्मी के निवास स्थान, सगुण और देवेश्वर हैं, उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
नामामृतं दोषहरं सुपुण्यमधीत्य यो माधवविष्णुभक्त: ।
प्रभातकाले नियतो महात्मा स याति मुक्तिं न हि कारणं च ।। ८ ।।
अर्थात्—यह नामामृत स्तोत्र दोषहारी और पुण्य देने वाला है । लक्ष्मीपति भगवान विष्णु में भक्ति रखने वाला जो पुरुष प्रतिदिन प्रात:काल नियमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह मुक्त हो जाता है, पुन: प्रकृति के अधीन नहीं होता है ।
इस अमृत रुपी स्त्रोत के नियमित अध्ययन से सभी दुःख भय क्लेश और पीड़ाओं का अंत होता है। भगवान श्रीकृष्ण के इस नाम रूपी अमृत वाले स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।
5/9/2023 • 4 minutes, 50 seconds
Jaadu Tona Nivaran Mantra जादू टोना निवारण मन्त्र 21 times
Jaadu Tona Nivaran Mantra जादू टोना निवारण मन्त्र ★ हरि खिल्लुं गडि खिल्लुं चामुंडा खिल्लुं दुष्ट पिशुन चिल चिला तउई पारि प्ररई ★ इस मंत्र को सात दिन तक प्रतिदिन 21 बार जल को मंत्रित कर पिलने से तथा 31
बार मंत्र से झाड़ा देने से मूठ और जादू टोना आदि का प्रभाव समाप्त होता है
सहस्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम्। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१॥ जो सहस्रों नेत्रवाला, सैकड़ों धाराओं में बहनेवाला तथा ऋषियोंसे पवित्र किया गया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१॥ येन पूतमन्तरिक्षं यस्मिन्वायुरधिश्रितः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥२॥ जिससे अन्तरिक्ष पवित्र हुआ है, वायु जिसमें अधिष्ठित है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥२॥ येन पूते द्यावापृथिवी आपः पूता अथो स्वः । तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥३॥ जिससे द्युलोक, पृथिवी, जल और स्वर्ग पवित्र किये गये हैं, उन सहस्त्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥३॥ येन पूते अहोरात्रे दिशः पूता उत येन प्रदिशः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥४॥ जिससे रात और दिन, दिशा-प्रदिशाएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥४॥ येन पूतौ सूर्याचन्द्रमसौ नक्षत्राणि भूतकृतः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥५॥ जिससे सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र और भौतिक पदार्थ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥५॥ येन पूता वेदिरग्नयः परिधयः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥६॥ जिससे वेदी, अग्नि और परिधि पवित्र की गयी हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥६॥ येन पूतं बर्हिराज्यमथो हविर्येन पूतो यज्ञो वषट्कारो हुताहुतिः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥७॥ जिससे कुशा, आज्य, हवि, यज्ञ, वषट्कार तथा हवन की हुई आहुति पवित्र हुए हैं,उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥७॥ येन पूतौ व्रीहियवौ याभ्यां यज्ञो अधिनिर्मितः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥८॥ जिसके द्वारा व्रीहि और जौ पवित्र हुए हैं, जिससे यज्ञ का निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥८॥ येन पूता अश्वा गावो अथो पूता अजावयः। तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥९॥ जिससे अश्व, गौ, अजा, अवि प्राण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥९॥ येन पूता ऋचः सामानि यजुर्जाह्मणं सह येन पूतम्। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१०॥ जिसके द्वारा ऋचाएँ, साम, यजु और ब्राह्मण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधारके द्वारा पवमान मुझे पवित्र करे॥१०॥ येन पूता अथर्वाङ्गिरसो देवताः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥११॥ जिससे अथर्वाङ्गिरस और देवता पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥११॥ येन पूता ऋतवो येनार्तवा येभ्यः संवत्सरो अधिनिर्मितः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१२॥ जिससे ऋतु तथा ऋतुओं में उत्पन्न होनेवाले रस पवित्र हुए हैं, एवं जिससे संवत्सरका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१२॥ येन पूता वनस्पतयो वानस्पत्या ओषधयो वीरुधः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१३॥ जिससे वनस्पतियाँ, पुष्पसे फल देनेवाले वृक्ष, ओषधियाँ और लताएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१३॥ येन पूता गन्धर्वाप्सरसः सर्पपुण्यजनाः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१४॥ जिससे गन्धर्व, अप्सराएँ, सर्प और यक्ष पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१४॥ येन पूताः पर्वता हिमवन्तो वैश्वानराः परिभुवः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१५॥ जिससे हिममण्डित पर्वत, वैश्वानर अग्नि और परिधि पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१५॥ येन पूता नद्यः सिन्धवः समुद्राः सह येन पूताः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१६॥ जिससे नदियाँ, सिंधु आदि महानद और सागर पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१६॥ येन पूता विश्वेदेवाः परमेष्ठी प्रजापतिः। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१७॥ जिससे विष्णु और परमेष्ठी प्रजापति पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१७॥ येन पूतः प्रजापतिर्लोकं विश्वं भूतं स्वराजभार। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१८॥ जिससे पवित्र होकर प्रजापतिने समस्त लोको, भूतों और स्वर्गको धारण किया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१८॥ येन पूतः स्तनयित्नुरपामुत्सः प्रजापतिः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥१९॥ जिससे विद्युत् और जलोंके आश्रय प्रजापालक मेघ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सौमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥१९॥ येन पूतमृतं सत्यं तपो दीक्षां पूतयते। तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥२०॥ जिससे ऋत और सत्य पवित्र हुए हैं, जो तप और दीक्षाको पवित्र करता है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २० ॥ येन पूतमिदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥२१॥ जिससे भूत और भविष्य, सभी पवित्र हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे॥२१॥
5/9/2023 • 6 minutes, 31 seconds
Shri Vardhman Jin Puja श्री वर्द्धमान जिन पूजा
Shri Vardhman Jin Puja श्री वर्द्धमान जिन पूजा ◆ श्रीमत वीर हरें भव-पीर, भरें सुख-सीर अनाकुलताई,
केहरि-अंक अरिकरदंक, नए हरि-पंकति-मौलि सुआई ||
मैं तुमको इत थापत हौं प्रभु, भक्ति समेत हिये हर्षाई, हे करुणा-धन-धारक देव, यहाँ अब तिष्टहु शीघ्र ही आई ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाह्न्म |
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ: ठ: ठ: स्थापनम |
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट सन्निधिकरणम |
अष्टक
◆ क्षीरोदधि सम शुचि नीर, कंचन-भृंग भरों,
प्रभु वेग हरो भव-पीर, यातैं धार करों |
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा |
मलयागिर-चन्दन सार, केसर संग घसों |
प्रभु भव-आताप निवार, पूजत हिय हुलसों || श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा |
तंदुल-सित शशि सम शुद्ध लीनों थारी भरी |
तसु पुंज धरों अविरुद्ध, पावों शिव-नगरी ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा ।
सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे |
सों मन्मथ-भंजन हेत, पूजों पद प्यारे ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
रस-रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी |
पद जज्ज्त रज्जत अद्य, भज्जत भूख-अरी ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यम निर्वपामीति स्वाहा ।
तम-खंडित मंडित-नेह, दीपक जोवत हों |
तुम पदतर हे सुख-गेह, भ्रम-तं खोवत हों ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो || ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
हरिचन्दन अगर कपूर, चूर सुगंध करा |
तुम पदतर खेवट भूरि, आठों कर्म जरा ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
ऋतु-फल कल-वर्जित लाय, कंचन-थार भरों |
शिव-फल-हित हे जिनराय, तुम ढिग भेंट धरों ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरों |
गुण गाऊं भव-दधि तार, पूजत पाप हरों ||
श्रीवीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो,
जय वर्धमान गुण-धीर सन्मति-दायक हो || ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
5/9/2023 • 15 minutes, 36 seconds
Santaan Gopal Stotram संतान गोपाल स्तोत्रम्
■Santaan Gopal Stotram संतान गोपाल स्तोत्रम् ■ श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् सुतसंप्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥१॥ नमाम्यहं वासुदेवं सुतसंप्राप्तये हरिम् । यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥२॥ अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् । नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥३॥ गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् पुत्रसंप्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम् ॥४॥ पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम् । देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥५॥ पद्मापते पद्मनेत्रे पद्मनाभ जनार्दन । देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥६॥ यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम्
अस्माकं पुत्र लाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥७॥
श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिर्हरणाच्युत
गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ॥८॥
भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥९॥
रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।
भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः ॥१०॥
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
@
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ११ ॥
वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ १२ ॥
कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ १३ ॥ लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित ।। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ १४ ॥ कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा नमामि पुत्रलाभार्थ सुखदाय बुधाय ते ॥१५॥ राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे ॥ १६ ॥ अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ॥१७॥ श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥१८॥ अस्माकं पुत्रसंप्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ॥१९॥ वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव । पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो ॥ २० ॥ डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ॥ २१ ॥ नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते । कमलनाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ॥ २२ ॥ अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ॥२३॥ यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनं वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ॥ २४ ॥ नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो । रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ॥२५॥ पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव ।
अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ।।26।।
गोपालडिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते ।
अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ।।27।।
मद्वांछितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत ।
मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ।।28।।
याचेsहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसम्पदम् ।
भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ।।29।।
आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् ।
अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ।।30।।
वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् ।
अस्माकं पुत्रसम्प्राप्त्यै सदा गोविन्दच्युतम् ।।31।।
ऊँकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् ।
कलींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ।।32।।
वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत ।
देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ।।33।।
राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो ।
समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ।।34।।
अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते ।
देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ।।35।। नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।।36।।
दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत ।
गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ।।37।।
यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत ।
देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ।।38।।
अस्माकं वांछितं देहि देहि पुत्रं रमापते ।
भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ।।39।।
रमाहृदयसम्भार सत्यभामामन:प्रिय ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।।40।।
चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव ।
अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ।।41।।
कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित ।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ।।42।।
देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते ।
समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ।।43।।
भक्तमन्दार गम्भीर शंकराच्युत माधव ।
देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ।।44।।
श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो ।।45।।
जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे ।
वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ।।46।।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।।47।।
दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।।48।।
5/9/2023 • 38 minutes, 9 seconds
Ghantakarna Stotra 2 घण्टाकर्ण स्तोत्र 2
Ghantakarna Stotra 2 घण्टाकर्ण स्तोत्र 2 ★ ॐ घंटाकर्णो महावीर, सर्व व्याधि विनाशकः । विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष-रक्ष महाबल: ॥ यत्रत्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः। रोगास्तत्र प्रणश्यति, वातपित्तकफोद्भवाः । तत्र राजभयं नास्ति, यांति कर्णे जपात्क्षयं शाकिनी भूतवेताला, राक्षसा च प्रभवन्ति नः॥ नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण डस्यते। अग्नि चोर भयं नास्ति, ही घंयकों नमोस्तुते॥
ॐ नरवीर ठः ठः ठः स्वाहा।
★
विधि- इस स्तोत्र को मंदिर जी में या घर में दीप जलाकर धूप खेते हुए रोज भक्ति पूर्वक पढ़ने से सर्व तरह की बाधायें दूर होकर धन-धान्य आदि की वृद्धि होकर गृह शांति होती है। अथवा उत्तर दिशा में लाल माला, वस्त्र, आसन से ७२ दिन में सवा लाख जप करें, अन्त में दशांश होम करें किसमिश, बादाम, नारियल, चारोली आदि से तो सर्व अरिष्ट शान्त हों।
5/8/2023 • 1 minute, 36 seconds
Stambhan Uchchhedan Mantra स्तम्भन उच्छेदन मंत्र
Stambhan Stambhan Uchchhedan Mantra स्तम्भन उच्छेदन मंत्र ◆
"ह स्व क्षी मान्त (य)" ◆
यदि किसी ने स्तम्भन किया हो तो इस मंत्र से उच्छेदन करें।
5/8/2023 • 10 minutes, 34 seconds
Sankashti Chaturthi Puja संकष्टी चतुर्थी पूजा
Sankashti Chaturthi Puja संकष्टी चतुर्थी पूजा ★ 1. संकष्टी चतुर्थी मन्त्र ◆ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि (जल चढ़ाएं). ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि ◆ 2. गणेश विविध नाम मन्त्र ★
5/7/2023 • 18 minutes, 45 seconds
Shiv Puja शिव पूजा
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः: शिवाय, हर हर बोले नमः शिवाय।
रामेश्वराय शिव रामेश्वराय, हर हर बोले नमः शिवाय।
गंगाधराय शिव गंगाधराय, हर हर बोले नमः शिवाय। विश्वेश्वराय शिव विश्वेश्वराय, हर हर बोले नमः शिवाय।
जटाधराय शिव जटाधराय, हर हर बोले नमः शिवाय। सोमेश्वराय शिव सोमेश्वराय, हर हर बोले नमः शिवाय।
कोटेश्वरा शिव कोटेश्वरा, हर हर बोले नमः शिवाय। महाकालेश्वराय शिव कालेश्वराय, हर हर बोले नमः शिवाय। ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः: शिवाय, हर हर बोले नमः शिवाय।
5/6/2023 • 3 minutes, 44 seconds
Ganesh Pratah Smaran Mantra गणेश प्रातः स्मरण मन्त्र
Ganesh Pratah Smaran Mantra गणेश प्रातः स्मरण मन्त्र ★ गणेश जी के महामंत्र का जाप करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि के साथ सफलता की प्राप्ति होती है।
हर मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन गणेश जी के महामंत्र का जाप करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि के साथ सफलता की प्राप्ति होती है।
चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर आप गणेश जी की पूजा करें। पूजा में उनको लाल फूल, केला, पान का पत्ता, सुपारी और दूर्वा अर्पित करें। इन पांच चीजों के अर्पित करने से भगवान गणेश प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति करेंगे।
सुख-समृद्धि एवं सफलता के लिए
चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करते समय आप नीचे दिए गए गणेश महामंत्र का जाप करें, इससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि आएगी। साथ ही आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी। जो लोग निर्धन हैं, वे लोग अपने जीवन से दरिद्रता को दूर करने के लिए इस गणेश महामंत्र का जाप करें।
★
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानम, ईच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं, विलासचतुरं शिवयो: शिवाय।।
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त, शोकदावानलं, गणविभुं वरकुञ्जरास्यम्।
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहम, उत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य।।
★
इस गणेश महामंत्र का जाप करने से पूर्व अपने मन को शांतिपूर्वक एकाग्र कर लेना चाहिए और गणपति का ध्यान करते हुए जाप करना चाहिए। इस मंत्र का एक माला जाप करें।
5/6/2023 • 1 minute, 23 seconds
KaalSarp Dosh Nivaran Jain Mantra कालसर्पदोष निवारण जैन मन्त्र 108 times
KaalSarp Dosh Nivaran Jain Mantra कालसर्पदोष निवारण हेतु जैन मन्त्र ★ प्रतिदिन "पार्श्वनाथ" भगवान के दर्शन और
★ "नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग" ★
इस मंत्र के जप से हो जाता है। ये मंत्र कितना जपा जाए, ये "समस्या" की तीव्रता पर निर्भर करता है और साधना की क्वालिटी पर भी।
महापूजन के लिए पंडित आते हैं और बहुत सी पूजन सामग्री चाहिए जिसका खर्च बहुत अधिक आता है. परन्तु यदि जप विधि करनी हो तो "स्वयं" को करनी चाहिए और उसमें खर्च भी शून्य के बराबर आता है. हाँ, "तपना" स्वयं को पड़ता है।
Love Marriage Mantra प्रेम विवाह मन्त्र ■ प्रेम की चाहत, प्रेमिका की निष्ठा, सच्चाई और भावनात्मक माधुर्यता बनाए रखने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर में बांसुरी के साथ पान अर्पित करना चाहिए। ऐसा तब तक करना चाहिए जबतक कि प्रेमिका प्रेम को स्वीकार न कर ले। इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा के प्रेममय तस्वीर का ध्यान कर मंत्र
★ ॐ हुं ह्रीं सः कृष्णाय नमः ★
का जाप करने से मनचाहा प्रेम विवाह संपन्न हो जाता है। इस मंत्र के जाप के बाद भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर शहद का छिड़काव करें।
Shiv Namaskaratha Mantra शिव नमस्काराथा मंत्र ◆
ॐ नमो हिरण्यबाहवे हिरण्यवर्णाय हिरण्यरूपाय हिरण्यपतए अंबिका पतए उमा पतए पशूपतए नमो नमः
ईशान सर्वविद्यानाम् ईश्वर सर्व भूतानाम् ब्रह्मादीपते ब्रह्मनोदिपते ब्रह्मा शिवो अस्तु सदा शिवोहम
तत्पुरुषाय विद्महे वागविशुद्धाय धिमहे तन्नो शिव प्रचोदयात्
महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धिमहे तन्नों शिव प्रचोदयात्
महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धिमहे तन्नों शिव प्रचोदयात्
नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय महादेवाय त्र्यंबकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकाग्नी कालाय कालाग्नी रुद्राय नीलकंठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्रीमान महादेवाय नमः
श्रीमान महादेवाय नमः
ॐ शांति शांति शांति !
इस मंत्र का जाप करना शिव की अराधना करने के लिए काफी अच्छा माना गया है। इस मंत्र का जाप आप रोज़ाना सूरज उगने से पहले रुद्राक्ष की माला लेकर 108 बार कर सकते है। मंत्र का जाप करने से पहले अपने सामने एक शिवलिंग रखना भी बहुत जरूरी होता है। अगर आप इस मंत्र का जप सुबह नहीं कर सकते है तो रात को सोने से पहले भी आप इस मंत्र का जप ठीक इसी प्रकार से कर सकते है। अगर आप की कोई बड़ी मनोकामना है तो आपको इस मंत्र का जप लगातार 43 दिन तक करना होगा। अगर आप रात के समय जप कर रहे तो आप का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना काफी जरुरी है। आप घर पर शांत जगह पर एक आसन बिछा कर इस मंत्र का जप कर सकते है। अगर घर पर संभव नहीं है तो आप भगवान शिव के मंदिर जाकर इस मंत्र का जप कर सकते हैं। ध्यान रहे आपको जप करते समय किसी से वार्तालाप नहीं करना है और ना ही मंत्र को बीच में छोड़कर कहीं पर जाना है।
Om Kleem Krishnaye Namah MantraJaap ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्रजाप
Om Kleem Krishnaye Namah MantraJaap ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्रजाप ★
ॐ एक ऐसा एक अक्षर का मंत्र है जो ज्यादातर मंत्रों के आगे लगाए ही जाता है। कहा जाता है कि किसी भी मंत्र के आगे ॐ लगाने से उसकी शक्ति 100 गुना बढ़ जाती है। ॐ एक एंपलीफायर की तरह काम करता है जो किसी भी मंत्र के भी असर को 100 गुना तक बढ़ा सकता है।
क्लीं बीज मंत्र काली देवी से संबंधित है और बहुत शक्तिशाली है। इस मंत्र के जाप से एक दिव्य आभा और आकर्षण शक्ति विकसित होती है जो दैवीय ऊर्जाओं के साथ-साथ भौतिक सुखों को आकर्षित करने में मदद करती है। यह जबरदस्त आकर्षण व समोहन शक्ति प्रदान करने वाला मंत्र है।
कृष्णाय नमः का मतलब भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम करना।
कृष्णाय नमः का जाप करने से भगवान श्री कृष्ण की शक्तियां आप में आने लगती हैं। ॐ क्लीम कृष्णाय नमः का अर्थ है यह श्री कृष्ण मेरा प्रणाम स्वीकार करें तथा जीवन की बाधाओं से मुझे मुक्ति प्राप्त कराएं।
“ॐ क्लीं कृष्णाय नमः” एक शक्तिशाली मंत्र है जो आंतरिक आध्यात्मिक ऊर्जा का आह्वान करता है जिसका लगातार जप किया जाता है इसलिए जो लोग आध्यात्मिक विकास चाहते हैं उनके लिए भी फायदेमंद है।
इस मंत्र के जाप से सम्मोहक आभा प्राप्त होती है अर्थात यह मंत्र व्यक्ति की आकर्षण शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
यह आय के स्रोत खोलने और व्यक्ति को समृद्ध बनाने में मदद करता है।
अगर किसी को आध्यात्मिक विकास चाहिए तो भी यह मंत्र बहुत मदद करेगा।
यह मंत्र भगवान कृष्ण के साथ-साथ देवी काली के आशीर्वाद को आकर्षित करने में मदद करता है।
“ॐ क्लीं कृष्णाय नमः” मंत्र व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से भी बचाता है, काले जादू से भी बचाता है ।
इसके जप से जीवन में खुशियों का प्रवेश होता है ।
व्यक्ति को रिश्तों में सफलता मिलती है।
इस मंत्र का जाप सफल करियर, सफल सामाजिक जीवन, सफल प्रेम जीवन आदि बनाने में मदद करता है।
5/2/2023 • 12 minutes, 20 seconds
Ketu Beej Mantra Jaap केतु बीजमन्त्र जाप 108 times
Ketu Beej Mantra केतु बीज मन्त्र ★ ॐ स्राँ स्रीं स्रों सः केतवे नमः
केतु की पूजा से स्वास्थ्य, धन, भाग्य खुशी की वृद्धि होती है।
5/2/2023 • 17 minutes, 28 seconds
Rahu Beej Mantra Jaap राहु बीजमंत्र जाप 108 times
Rahu Beej Mantra राहु बीज मंत्र ★ ॐ भ्राँ भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः
★
राहु की पूजा से जीवन में शक्ति और समाजिक प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होती है।
5/2/2023 • 22 minutes, 20 seconds
Shani Beej Mantra Jaap शनि बीजमंत्र जाप 108 times
Shani Beej Mantra Jaap शनि बीजमंत्र जाप ◆ ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
◆ अर्थ : 'मेरे पक्ष में रहने और मेरी इंद्रियों को शांत करने के लिए भगवान शनि की स्तुति।'
शनि की पूजा से मानसिक शांति, खुशी, स्वास्थ्य और समृद्धि में बढ़ावा मिलता है।
5/2/2023 • 22 minutes, 55 seconds
Shukra Beej Mantra Jaap शुक्र बीजमन्त्र जाप 108 times
Shukra Beej Mantra शुक्र बीज मन्त्र ★ ॐ द्राँ द्रीं द्रों सः शुक्राय नमः
★ शुक्र की पूजा से जीवन में खुशियों की प्राप्ति होती है। प्रेम और रिश्तों में प्रगाढ़ता आती है।
Brihaspati Beej Mantra बृहस्पति बीज मन्त्र ★ ॐ ग्राँ ग्रीं ग्रों सः गुरुवे नमः
★
गुरु की पूजा से धन, शिक्षा और संतान की प्राप्ति होती है। पूजा से व्यक्ति दीर्घायु होता है।
5/1/2023 • 19 minutes, 2 seconds
Budh Grah Beej Mantra Jaap बुध ग्रह बीजमंत्र जाप
Budh Grah Beej Mantra Jaap बुध ग्रह बीजमंत्र जाप ★ बुध ग्रह को बुद्धि का गृह माना जाता है और इसके बीज मंत्र का जाप करने से आपकी स्मरण शक्ति बढ़ने लगती है और आप में बोलने की कला भी आने लगती है। बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप करने से बुद्धि इतनी तीक्षण हो जाती है कि व्यक्ति जिस किसी भी क्षेत्र में कार्य करता है वहां पर अपनी तीक्षण बुद्धि से विख्यात होने लगता है। यदि किसी छात्र की समरण शक्ति कम है अर्थात उसको ज्यादा पढ़ने पर भी कुछ समरण नहीं रहता तो वह बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप करके अपनी स्मरण शक्ति बढ़ा सकता है। बुध की पूजा से ज्ञान, धन और शारीरिक बीमारियों से छुटकारा मिलता है। ★ ॐ ब्राँ ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः ★
Chandra Beej Mantra Jaap चन्द्र बीजमन्त्र जाप 108 times
Chandra Beej Mantra Jaap चन्द्र बीजमन्त्र जाप : ★ ॐ श्राँ श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः
★ चंद्रमा की पूजा मानसिक शांति, धन की प्राप्ति और जीवन में सफलता के लिए उपयोगी है।
4/30/2023 • 22 minutes, 8 seconds
Surya Beej Mantra Jaap सूर्य बीज मन्त्रजाप 108 times
Surya Beej Mantra Jaap सूर्य बीज मन्त्रजाप ■ ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।। ■ हृदय रोग, नेत्र व पीलिया रोग एवं कुष्ठ रोग तथा समस्त असाध्य रोगों को नष्ट करने के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए। भगवान सूर्य की पूजा से शक्ति, साहस, यश, सफलता और समृद्धि हासिल होती है।
Baglamukhi Vajra Kavach MantraJaap बगलामुखी वज्र कवच मन्त्रजाप ■ मां बगलामुखी को पान, मिठाई, फल सहित पंचमेवा अर्पित करना चाहिए। साथ ही छोटी-छोटी कन्याओं को प्रसाद और दक्षिणा भी देना चाहिए।
★ 'ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुं' ★
मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से पूर्व की ओर मुख करके एक माला करें।
इस मंत्र का जाप करने से संसार में कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता है।
4/28/2023 • 19 minutes, 24 seconds
Baglamukhi Mantra बगलामुखी मन्त्र
Baglamukhi Mantra बगलामुखी मन्त्र ★ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा। व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्। बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा। ★ इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्भुत प्रभाव है।
4/27/2023 • 1 minute, 9 seconds
Baglamukhi Kavach Paath बगलामुखी कवच पाठ
Baglamukhi Kavach Paath बगलामुखी कवच पाठ ★
माँ बगलामुखी ध्यान ★
ॐ सौवर्णासन-संस्थितां त्रिनयनां
पीतांशुकोल्लासिनीम्।
हेमाभांगरुचिं शशांक-मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम्।।
हस्तैर्मुद्गर पाश वज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः।
व्याप्तांगीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं
चिन्तयेत्।।
★
विनियोग - ॐ अस्य श्री बगलामुखी ब्रह्मास्त्र मंत्र कवचस्य भैरव ऋषिः, विराट छंदः, श्री बगलामुखी देव्य, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम मनोभिलाषिते कार्य सिद्धयै विनियोगः। ★ शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुललाटकम ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। १
।। श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। २
।। देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। ३
।। कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। ४
।। अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। ५
।। ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु ।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। ७
।। जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।। ८
।। जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। ९
।। जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पाद तले मम ।। १०
।। विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।। ११ ।।
सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। १२ ।।
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। १३
।।वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदावतु ।। १४ ।।
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।। १५
।। श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।। १६
।। योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। १७
।। ★
Baglamukhi Mantra Sadhna बगलामुखी मन्त्र साधना ★ बगलामुखी मन्त्र साधना रात्रि के 10 बजे से प्रात: 4 बजे के बीच करनी चाहिए। मां बगलामुखी की साधना~चौकी पर पीले रंग का साफ-स्वच्छ कपड़ा बिछाएं। उस पर मां बगलामुखी के चित्र या प्रतिमा को स्थापित करें। उनके सामने देसी घी का दीपक लगाएं। दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखाई होनी चाहिए। फिर पीले फूल और पीला नैवेद्य चढ़ाएं। ★
विनियोग
ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोगः।
आवाहन
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
ॐ ह्लीं ॐ, ॐ ह्लीं ॐ, ॐ ह्लीं ॐ
फिर हल्दी की जपमाला से इस मन्त्र का जाप करें
★" ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्वां कीलय, बुद्धि विनाशय, ह्लीं ॐ स्वाहा "
Pavitra Ganga Stotram पवित्र गंगा स्तोत्रम्
★ श्री गंगा जी की स्तुति ★
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥ ★
माँ गंगा स्तोत्रम्॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥१॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव
जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं
पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २॥
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे
हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं
कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३॥
तव जलममलं येन निपीतं,
परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे
खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,
पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ ५॥
कल्पलतामिव फलदां लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे
विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥ ६॥
तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः
पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे
कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ ७॥
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे
जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे
सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥
रोगं शोकं तापं पापं
हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे
त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥ ९॥
अलकानन्दे परमानन्दे
कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १०॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः
किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव
न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥ ११॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये
देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं
पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥
येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः ॥ १३॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं
वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति
सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥ १४॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥
शंकरसेवकशंकरचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्त:★
4/24/2023 • 6 minutes, 52 seconds
Ganga Pujan Mantra गंगा पूजन मन्त्र 5 times
Ganga Pujan Mantra गंगा पूजन मन्त्र ★गंगा पूजन की विधि: इस दिन गंगा नदी में स्नान करके पुष्प और अर्घ्य देते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण चाहिए • 'ॐ नमो भगवति, ऐं ह्रीं श्रीं (वाक्-काम मायामयि) हिलि हिलि, मिलि मिलि, गंगे मां पावय पावय', इस मंत्र से पांच बार गंगा का पूजन करें।
★ यह गंगाजी का सबसे पवित्र पावन मंत्र है। इसका अर्थ है कि, हे भगवति गंगे! मुझे बार बार मिल, पवित्र कर, पवित्र कर... इस मंत्र से गंगाजी के लिए पंचोपचार और पुष्पांजलि समर्पण करें।
इसके अतिरिक्त गंगा नदी से दूर रहने वाले उपासक मां गंगा की मूर्ति का अक्षत, पुष्प, धूप आदि से विधि विधानपूर्वक पूजन करना चाहिये। इसके बाद ' पूजन के बाद अगर संभव हो तो दस फल, दस दीपक और तिलों का दान करना चाहिए।
4/23/2023 • 1 minute, 11 seconds
Shri Ganga Chalisa श्री गंगा चालीसा
Shri Ganga Chalisa श्री गंगा चालीसा ★
पतित पावनी गंगाजल का आचमन और स्नान।
कर ले जो एक बार जन्म में उसे मिले निवांन॥
मुक्तिदायिनी जय जय गंगे। जय हरि पद जल सुधा तरंगे ॥ जय माँ सिव की जटा निवासिनि। तुम हो सब जीवन्ह की तारिनि ।
गंगोत्री से हुयी प्रवाहित । धरा पे तुम्हरी धारा अमृत ।॥
पुनि पुनि मैं करूं विनय तुम्हारी। सुनो सगर कुल तारनहारी ॥
भगीरथ तप से भूमि पे आई। माँ तुम भगीरधी कहलाई॥
सिव की जटा में बास बनाया। तुममें है सब तीर्थ समाया ॥
जहनु के मुख में जाय समाई। निकल कान से फिर लहराई।
हुआ जाह्नवी नाम तुम्हारा। माँ तुम सब का पाप निवारा।
मकर श्वेत अति विकट बिसाला। उसे बनाकर वाहन पाला॥
श्वेत वस्त्र वर मुद्रा शुभकर। चार कलश हाथों में सुन्दर ।
धवल प्रकाशित शुभ मनोहर। हीरक जटित मुकुट मस्तक पर ।।
मुख छवि कोटिक चन्द्र समाना। देखत कलिमल सकल नसाना ।
चारों जुग में गंगा धारा । कर देती भव सागर पारा॥
सब तीरथ तुम्हरे गुन गावें। जग अध का सब भार मिटावें ॥
ऋषीकेश में तुम्हरी तरंगा। हरिद्वार में हर हर गंगा ।।
शोभित तीरथ राज प्रयागा। तीर्थ त्रिवेनी का जस जागा।
रवि तनया जमुना की धारा । श्यामल शुभ रंग अपारा ॥
सरस्वती अलखित गुन श्रेनी। सब मिल निर्मित भई त्रिवेनी॥
स्याम धवल जल देख हिलोरें। देव दनुज नर चरन अगोरें।
नित नित पावें ब्रह्मानन्दा। छूट कोटि जनम कर फंदा॥
विन्ध्याचल गिरि वृहद अपारा। जेहि कर सागर तक विस्तारा ॥
अष्टभुजा के चरण से उपजत। विन्ध्यवासिनी कर पद सेवत।
तुम्हरे चरण कमल में झुक कर। निस दिन विनय करत सौ गिरिवर ।।
कासी महिमा जाय न बरनी। तहाँ भी तुम राजत सुखकरनी ॥
पारबती संग सिव सुख रमना । हम सब को राखो निज सरना ।
जनम जनम संग सब परिवारा। पाइ जनम जहँ गंगा धारा ।
सिव त्रिसूल वसि कासी नगरी। वहीं मुक्ति हो माता हमरी ॥
तुम्हरा कर के सुमिरन पूजन । अतुलित बुधि बल धन पाते जन ॥
चन्दन इत्र सुगन्ध अपारा। तट बड़ाय करे स्वच्छ किनारा॥
फूल अगरु श्रद्धा से चढ़ाये। सो नर निश्चय स्वर्ग को पाये।॥
रोपे तुम्हरे तीर जो तुलसी। पाये मुक्ति महामुनि जैसी ॥
पुष्प वाटिका फल कर बागा। तट पर रच कर करें जो जागा॥
मंदिर तट सोपान बनाये। अक्षय धन सुख ग्यान को पाये।
दूध औषध केवड़ा गुलाबजल। चड़ा जो निर्मल करे गंगजल।
उसके कुल रहे सदा उजियाला। इच्छित पुत्र मिले गुणवाला॥
गंगा गुन पढ़े सुने जो मन धर। कृपा करें अज हरि सिब उसपर ।।
जो पड़े यह गंगा चालीसा। उसके संकट हरे जगदीसा॥ नित्य आचमन कर जो नहाता। उसे रक्षेन नौ दुगा माता। रामरंग को शरण लगाओ। रिद्धि सिद्धि धन मुक्ति दिलाओ।
सब मुख रुप धन संतन को, संग भक्ति सत्य निर्वान।
पावत्त नग जग जीवन में करे जो गंगा का ध्यान ।॥ ★
4/23/2023 • 8 minutes, 34 seconds
Rahu Mahadasha Shanti Mantra राहु महादशा शांति मन्त्र 108 times
Rahu Mahadasha Shanti Mantra राहु महादशा शांति मन्त्र ~ "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल, ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।। राहु दशा से पीड़ित व्यक्ति अगर तेज स्वर में इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार उच्चारण करें। शीघ्र ही राहु की दशा खत्म हो जाती है
4/22/2023 • 58 minutes, 33 seconds
Shri Devya Kavacham श्री देव्या: कवचम्
Shri Devya Kavacham श्री देव्या: कवचम्
4/22/2023 • 21 minutes, 1 second
Ghantakarna Stotra 1 घण्टाकर्ण स्तोत्र 1
Ghantakarna Stotra 1 घण्टाकर्ण स्तोत्र 1 ★ ॐ घंटाक्णों महावीर, सर्व व्याधि विनाशकः। विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष-रक्ष महाबल: ॥१ ॥ लक्ष्मी वृद्धिकरं देवं, ह्रीं कराय नमोऽस्तु ते। यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः । रोगास्तत्र प्रणश्यंति, बातपित्तकफोद्भवाः ॥२ ॥ तत्र राजभयं नास्ति, यांति कर्णे जपात्क्षयं शाकिनी भूतवेताला, राक्षसा च प्रभवन्ति न पिशाचा ब्रह्म राक्षसाः ॥३॥
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दृश्यते। ग्रह देवा क्षेत्रपाला, स्वन भवंति कदाचन ॥ अग्नि चोर भयं नास्ति, ह्रीं घंटाकर्णों नमोस्तुते ।॥४॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लौं ब्ली ऐं घण्टा कणों नमोस्तुते ॐ नर वीर ठः ठः ठः स्वाहा।
★
विधि- यह घंटाकर्ण मंत्र का जाप ४२ दिन तक प्रतिदिन त्रिकाल १०८ बार जपें। धुप खेवें। मिर्च, सरसों जप कर होम करें तो अनिष्ट देव का भय नहीं होता।
4/22/2023 • 1 minute, 26 seconds
Batuk Bhairav Raksha Mala Mantra बटुक भैरव रक्षा माला मन्त्र
Akshay Tritiya Mantra अक्षय तृतीया मन्त्र 11 times
Akshay Tritiya Mantra अक्षय तृतीया मन्त्र 11 times:
★
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं
महालक्ष्मयै नमः॥
★ अक्षय तृतीया के दिन से हर रोज अगर आप इस मंत्र का जप करते हैं तो आपका सारा कर्ज उतर जाएगा। आप पर हमेशा मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहेगी। घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहेगी। मान्यता है कि कमलगट्टे की माला से प्रतिदिन इस मंत्र का जाप करने ऋणों का बोझ उतर जाता है और मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहती है।
4/20/2023 • 3 minutes, 31 seconds
Kuber Asht Lakshmi Mantra कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र 11 times
Kuber Asht Lakshmi Mantra कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र ■ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
■
महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है। लक्ष्मी जी के ये आठ स्वरुप जीवन की आधारशिला है। इन आठों स्वरूपों में लक्ष्मी जी जीवन के आठ अलग-अलग वर्गों से जुड़ी हुई हैं। इन आठ लक्ष्मी की साधना करने से मानव जीवन सफल हो जाता है। अष्ट लक्ष्मी और उनके मूल बीज मंत्र इस प्रकार है।
1. श्री आदि लक्ष्मी - ये जीवन के प्रारंभ और आयु को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं।।
2. श्री धान्य लक्ष्मी - ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं क्लीं।।
3. श्री धैर्य लक्ष्मी - ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।
4. श्री गज लक्ष्मी - ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।
5. श्री संतान लक्ष्मी - ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।
6. श्री विजय लक्ष्मी यां वीर लक्ष्मी - ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ क्लीं ॐ।।
7. श्री विद्या लक्ष्मी - ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ ऐं ॐ।।
8. श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी - ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं श्रीं।।
अष्ट लक्ष्मी साधना का उद्देश जीवन में धन के अभाव को मिटा देना है। इस साधना से भक्त कर्जे के चक्र्व्यूह से बाहर आ जाता है। आयु में वृद्धि होती है। बुद्धि कुशाग्र होती है। परिवार में खुशहाली आती है। समाज में सम्मान प्राप्त होता है। प्रणय और भोग का सुख मिलता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होता है और जीवन में वैभव आता है।
अष्ट लक्ष्मी साधना विधि: शुक्रवार की रात तकरीबन 09:00 बजे से 10:30 बजे के बीच गुलाबी कपड़े पहने और गुलाबी आसान का प्रयोग करें। गुलाबी कपड़े पर श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। किसी भी थाली में गाय के घी के 8 दीपक जलाएं। गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। लाल फूलो की माला चढ़ाएं। मावे की बर्फी का भोग लगाएं। अष्टगंध से श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्र पर तिलक करें और कमलगट्टे हाथ में लेकर उपरोक्त मंत्र का यथासंभव जाप करें।
4/20/2023 • 3 minutes, 14 seconds
Akshay Dhanprapti Mantra अक्षय धनप्राप्ति मन्त्र
Akshay Dhanprapti Mantra अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र
◆
प्रार्थना◆
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
◆ मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
◆ विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।
4/20/2023 • 1 minute, 35 seconds
Alokaye Shri Balkrishnam आलोकये श्री बालकृष्णम्
Alokaye Shri Balkrishnam आलोकये श्री बालकृष्णम् ★
आलोकये श्री बाल कृष्णं
सखि आनन्द सुन्दर ताण्डव कृष्णम् ॥आलोकये॥
चरण निक्वणित नूपुर कृष्णं
कर सङ्गत कनक कङ्कण कृष्णम् ॥आलोकये॥
किङ्किणी जाल घण घणित कृष्णं
लोक शङ्कित तारावलि मौक्तिक कृष्णम् ॥आलोकये॥
सुन्दर नासा मौक्तिक शोभित कृष्णं
नन्द नन्दनं अखण्ड विभूति कृष्णम् ॥आलोकये॥
कण्ठोप कण्ठ शोभि कौस्तुभ कृष्णं
कलि कल्मष तिमिर भास्कर कृष्णम् ॥आलोकये॥
नवनीत खण्ठ दधि चोर कृष्णं
भक्त भव पाश बन्ध मोचन कृष्णम् ॥आलोकये॥
नील मेघ श्याम सुन्दर कृष्णं
नित्य निर्मलानन्द बोध लक्षण कृष्णम् ॥आलोकये॥
वंशी नाद विनोद सुन्दर कृष्णं
परमहंस कुल शंसित चरित कृष्णम् ॥आलोकये॥
गोवत्स बृन्द पालक कृष्णं
कृत गोपिका चाल खेलन कृष्णम् ॥आलोकये॥
नन्द सुनन्दादि वन्दित कृष्णं
श्री नारायण तीर्थ वरद कृष्णम् ॥आलोकये॥
Sarva Kasht Haari Ganadhar Valay Mantra सर्वकष्टहारी गणधर वलय मन्त्र ★ यह मन्त्रोच्चारण करने और सुनने से कामकाज और परिवार की बुरी नजर से रक्षा होकर धन व्यापार में वृद्धि होती है। सुबह-शाम इस मंत्र को सुनने से हमारे घर व्यापर को जादू टोना व बुरी नज़र से रक्षा होती है । " ★
अपने दाएं हाथ मे पीली सरसों लेकर श्री गौतम स्वामी विरचित गणधरवलय मंत्र (प्राकृत) के 48 रिद्धि मंत्रों को एक बार बोलना है ★
णमो जिणाणं।
णमो ओहिजिणाणं।
णमो परमोहिजिणाणं।
णमो सव्वोहिजिणाणं।
णमो अणंतोहिजिणाणं।
णमो कोट्ठबुद्धीणं।
णमो बीजबुद्धीणं।
णमो पादाणुसारीणं।
णमो संभिण्णसोदाराणं।
णमो सयंबुद्धाणं।
णमो पत्तेयबुद्धाणं।
णमो बोहियबुद्धाणं।
णमो उजुमदीणं।
णमो विउलमदीणं।
णमो दसपुव्वीणं।
णमो चउदसपुव्वीणं।
णमो अट्ठंग-महा-णिमित्त-कुसलाणं।
णमो विउव्व-इड्ढि-पत्ताणं।
णमो विज्जाहराणं।
णमो चारणाणं।
णमो पण्णसमणाणं।
णमो आगासगामीणं।
णमो आसीविसाणं।
णमो दिट्ठिविसाणं।
णमो उग्गतवाणं।
णमो दित्ततवाणं।
णमो तत्ततवाणं।
णमो महातवाणं।
णमो घोरतवाणं।
णमो घोरगुणाणं।
णमो घोर परक्कमाणं।
णमो घोरगुण-बंभयारीणं।
णमो आमोसहिपत्ताणं।
णमो खेल्लोसहिपत्ताणं।
णमो जल्लोसहि पत्ताणं।
णमो विप्पोसहिपत्ताणं।
णमो सव्वोसहिपत्ताणं।
णमो मणबलीणं।
णमो वचिबलीणं।
णमो कायबलीणं।
णमो खीरसवीणं।
णमो सप्पिसवीणं।
णमो महुरसवीणं।
णमो अमियसवीणं।
णमो अक्खीणमहाणसाणं।
णमो वड्ढमाणाणं।
णमो सिद्धायदणाणं।
णमो भयवदो महदिमहावीर-
वड्ढमाण-बुद्धरिसीणो चेदि।
★
इसके बाद ★
"ॐ ह्रीं अर्हं णमो घोरगुण बंभयारीणं झ्रौं झ्रौं नमः स्वाहा" ★
का 108 बार जाप करना है। उसके बाद अपनी पीली सरसों को दुकान या मकान के बाहर फैला दीजिये। किसी शत्रु द्वारा कराया गया जादू टोना, बुरी नज़र सब कट जाएगा और आपका कारोबार फिर चलने लगेगा। दुनिया के हर जादू टोने-टोटके, किया-कराया और तंत्र मंत्र की ये रामबाण काट हैं। और यदि स्वयम कर सकें तो और भी बेहतर।
4/19/2023 • 27 minutes, 54 seconds
Pauranik Shani Mantra पौराणिक शनि मंत्र
16 times
Pauranik Shani Mantra पौराणिक शनि मंत्र
ऊँ ह्रीं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
मंत्र जाप के दौरान इन बातों का रखें ध्यान: शनि को प्रसन्न करने के लिए किसी भी मंत्र के जाप से पहले स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद शनिदेव के मंदिर में जाकर उनकी पूजा-अर्चना करें। उसके उपरांत ही मंत्रोच्चारण करें।
Masik Shivratri Mantra मासिक शिवरात्रि मन्त्र ★
इस मंत्र का बैठकर जाप करना है
★ शंकराय नमस्तुभ्यं नमस्ते करवीरक।
त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं महश्र्वरमत: परम्।।
नमस्त अस्तु महादेवस्थाणवे च ततछ परमू।
नम: पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नम: ।।
नम्सते परमानन्द नण: सोमार्धधारिणे।
नमो भीमाय चोग्राय त्वामहं शरणं गत: ।।
★ इस मंत्र का मासिक शिवरात्रि की रात को सोने से पहले घर के पूर्वभाग में इस मंत्र का जप कीजिए। यह शिव की शरणागति का मंत्र है। अर्थात इस मंत्र का जाप करने से भगवान शिव बहुत जल्द ही प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति पर अपनी कृपा बरसाते हैं। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के जीवन की सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और वह दीर्घ आयु को प्राप्त होता है।
4/17/2023 • 1 minute, 22 seconds
Sadhana Panchakam साधना पंचकम्
Sadhana Panchakam साधना पंचकम् ◆
गुरु: ब्रह्मा: गुरु: विष्णु: गुरु देवो महेश्वर: |
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
[गुरु ही ब्रह्मा विष्णु महेश हैं…. गुरु ही ब्रह्म हैं इसलिये उस गुरु को प्रणाम …]
वेदो नित्यम्धीयताम तदुदितं कर्म स्वनुष्ठियतम |
तेनेशस्य विधीयतामपचिती: काम्ये मतिस्त्यज्यताम ||
पापौघ: परिभूयताम भवसुखे दोषो अनुसंधीयता |
मात्मेछा व्यव्सीयताम निजगृहातूर्णम विनिर्गाम्यताम ||१||
[हम नित्य वेदों का पाठ करें, वेद आधारित रीति से कर्मकाण्ड और देवताओं का पूजन करें, हमारे कर्म अनासक्त भाव से हो और हमें पाप समूहों से दूर ले जाने वाले हो, हम अपने जीवन में गलतियो को जान सकें , आत्म-ज्ञान प्राप्त करें और मुक्ति की ओर बढें]
संग: सत्सु विधीयताम भगवतो भक्तिदृढा धीयताम |
शान्त्यादि: परिचीय्ताम दृढतरं कर्माशु सन्त्यज्यताम ||
सिद्विद्वानुपसर्प्याताम प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यताम |
ब्रह्मैकाक्षरमथर्यताम श्रुतिशिरोवाक्यम स्माकर्न्याताम ||२||
[ हम अच्छे संग में रहे, दृढ भक्ति प्राप्त करें, हम शान्ति जैसी मन की अवस्था को जान सकें, हम कठिन परिश्रम करें, सद्गुरु के समीप जाकर आत्म समर्पण करें और उनकी चरण पादुका का नित्य पूजन करें, हम एकाक्षर ब्रह्म का ध्यान करें और वेदों की ऋचाएं सुनें… ]
वाक्यार्थश्च विचार्यताम श्रुतिशिर: पक्ष: स्माश्रीयताम |
दुस्तर्कात्सुविरम्यताम श्रुतिमतर्कात्सो अनुसंधीयताम ||
ब्रह्मैवास्मि विभाव्यताम हरहर्गर्व: परित्ज्यताम |
देहे अहम्मतिरुज्झ्यताम बेधजनैर्वाद: परित्ज्यताम ||३||
[हम महावाक्यों और श्रुतियो को समझ सकें, हम कुतर्को में ना उलझें, “में ब्रह्म हूँ” ऐसा विचार करें, हम अभिमान से प्रतिदिन दूर रहे, “में देह हूँ” ऐसे विचार का त्याग कर सकें और हम विद्वान बुद्धिजनों से बहस न करें… ]
क्षुद्व्याधि:च चिकित्स्य्ताम प्रतिदिनं भिक्षोषधम भुज्यताम |
स्वाद्वन्नम न तु याच्यताम विधिवशातप्राप्तेन संतुश्यताम ||
शीतोष्नादि विषह्यताम न तु वृथा वाक्यं समुच्चार्यता |
मौदासीन्यमभिपस्यताम जनकृपा नैष्ठुर्यमुत्सृज्यताम ||४||
[ हम भूख पर नियंत्रण पा सकें और भिक्षा का अन्न ग्रहण करें (संन्यास की नियमानुसार), स्वादिष्ट अन्न की कामना न करें और जो कुछ भी प्रारब्ध वशात हमें प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहे, हम शीत और उष्ण को सहन कर सकें, हम वृथा वाक्य न कहें, सहनशीलता हमें पसंद हो और हम दयनीय बनकर न निकलें… ]
एकान्ते सुखमास्यताम परतरे चेत: समाधीयताम |
पूर्णात्मा सुस्मीक्ष्यताम जगदिदम तद्बाधितम दृश्यताम ||
प्राक कर्म प्रविलाप्यताम चितिब्लान्नाप्युत्तरै: श्लिष्यताम |
प्रारब्धम त्विह भुज्यतामथ परब्रह्मात्मना स्थियाताम ||५||
[ हम एकांत सुख में बैठ सकें और आत्मा के परम सत्य पर मन को केन्द्रित कर सकें, हम समस्त जगत को सत्य से परिपूर्ण देख सकें, हम पूर्व कृत बुरे कर्मो के प्रभाव को नष्ट कर सकें और नवीन कर्मो से न बंधे, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचें की सब कुछ प्रारब्धानुसार है और हम परम सत्य के साथ रहें… ]
य: श्लोकपंचक्मिदम पठते मनुष्य: संचितयत्यनुदिनम स्थिरतामुपेत्य |
तस्याशु संसृतिद्वानल तीव्र घोर ताप: प्रशांतिमुप्याति चिति प्रसादात ||
[ जो मनुष्य इस पंचक के श्लोको का पाठ नित्य करता है, वह जीवन में स्थिरता को अर्जित और संचित करता है… इस तपस्या से प्राप्त प्रशांति के फलस्वरुप जीवन के समस्त घोर दुख शोकादि के ताप उसके लिए प्रभाव हीन हो जाते हैं… ]
।। इति श्री जगद्गुरु आदि शंकराचार्य कृत साधना पंचकं समाप्त: ।।
4/17/2023 • 3 minutes, 55 seconds
Bhaj Govindam Stotra भज गोविन्दम् स्तोत्र
Bhaj Govindam Stotra भज गोविन्दम् स्तोत्र ◆ 'भज गोविन्दम्’ में शंकराचार्य ने संसार के मोह में ना पड़ कर भगवान् कृष्ण की भक्ति करने का उपदेश दिया है। उनके अनुसार, संसार असार है और भगवान् का नाम शाश्वत है। उन्होंने मनुष्य को किताबी ज्ञान में समय ना गँवाकर और भौतिक वस्तुओं की लालसा, तृष्णा व मोह छोड़ कर भगवान् का भजन करने की शिक्षा दी है। इसलिए ‘भज गोविन्दम’ को ‘मोह मुगदर’ यानि मोह नाशक भी कहा जाता है। ★ भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। सम्प्राप्ते सन्निहिते मरणे, नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ॥1॥ मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णां, कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम्। यल्लभसे निजकर्मोपात्तं, वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥2॥
नारीस्तनभरनाभीनिवेशं, दृष्ट्वा- माया-मोहावेशम्। एतन्मांस-वसादि-विकारं, मनसि विचिन्तय बारम्बाररम् ॥ 3॥ नलिनीदलगतसलिलं तरलं, तद्वज्जीवितमतिशय चपलम्। विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोकं शोकहतं च समस्तम् ॥4॥ यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावत् निज परिवारो रक्तः। पश्चात् धावति जर्जर देहे, वार्तां पृच्छति कोऽपि न गेहे ॥5॥ यावत्पवनो निवसति देहे तावत् पृच्छति कुशलं गेहे। गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥6॥ बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः। वृद्धस्तावत् चिन्तामग्नः पारे ब्रह्मणि कोऽपि न लग्नः ॥7॥ का ते कांता कस्ते पुत्रः, संसारोऽयं अतीव विचित्रः। कस्य त्वं कः कुत अयातः तत्त्वं चिन्तय यदिदं भ्रातः ॥8॥ सत्संगत्वे निःसंगत्वं, निःसंगत्वे निर्मोहत्वं। निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ॥9॥ वयसि गते कः कामविकारः शुष्के नीरे कः कासारः। क्षीणे वित्ते कः परिवारो ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः ॥10॥
मा कुरु धन-जन-यौवन-गर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वम्। मायामयमिदमखिलं हित्वा ब्रह्म पदं त्वं प्रविश विदित्वा ॥11॥ दिनमपि रजनी सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायातः। कालः क्रीडति गच्छत्यायुः तदपि न मुञ्चति आशावायुः ॥12॥
का ते कान्ता धनगतचिन्ता वातुल किं तव नास्ति नियन्ता। त्रिजगति सज्जन संगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका ॥13॥ जटिलो मुण्डी लुञ्चित केशः काषायाम्बर-बहुकृतवेषः। पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः उदरनिमित्तं बहुकृत शोकः ॥14॥ अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशन विहीनं जातं तुण्डम्। वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चति आशापिण्डम् ॥15॥ अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः रात्रौ चिबुक- समर्पित-जानुः। करतलभिक्षा तरुतलवासः तदपि न मुञ्चति आशापाशः ॥16॥ कुरुते गंगासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम्। ज्ञानविहिनः सर्वमतेन मुक्तिः न भवति जन्मशतेन ॥17॥ सुर-मन्दिर-तरु-मूल- निवासः शय्या भूतलमजिनं वासः। सर्व-परिग्रह-भोग-त्यागः कस्य सुखं न करोति विरागः ॥18॥
योगरतो वा भोगरतो वा संगरतो वा संगविहीनः। यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं नन्दति नन्दति नन्दति एव ॥19॥ भगवद्गीता किञ्चिदधीता गंगा- जल-लव-कणिका-पीता। सकृदपि येन मुरारिसमर्चा तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम् ॥20॥ पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥ रथ्याचर्पट-विरचित- कन्थः पुण्यापुण्य-विवर्जित- पन्थः। योगी योगनियोजित चित्तः रमते बालोन्मत्तवदेव ॥22॥ कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः का मे जननी को मे तातः। इति परिभावय सर्वमसारम् विश्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् ॥23॥ त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः व्यर्थं कुप्यसि सर्वसहिष्णुः। सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥24॥
शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ। भव समचित्तः सर्वत्र त्वं वाछंसि अचिराद् यदि विष्णुत्वम्॥ 25॥
कामं क्रोधं लोभं मोहं त्यक्त्वात्मानं भावय कोऽहम्। आत्मज्ञानविहीना मूढाः ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥26॥ गेयं गीता नाम सहस्रं ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्। नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम् ॥27॥
सुखतः क्रियते रामाभोगः पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः। यद्यपि लोके मरणं शरणं तदपि न मुञ्चति पापाचरणम् ॥28॥
अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्। पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः सर्वत्रैषा विहिता रीतिः ॥ 29॥ प्राणायामं प्रत्याहारं नित्यानित्य विवेकविचारम्। जाप्यसमेत समाधिविधानं कुर्ववधानं महदवधानम् ॥30॥ गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः संसारादचिराद्भव मुक्तः। सेन्द्रियमानस नियमादेवं द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम् ॥ 31॥ मूढः कश्चन वैयाकरणो, डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः । श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै, बोधित आसिच्छोधितकरणः ॥32॥
भजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते। नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे ॥33॥
4/17/2023 • 15 minutes, 56 seconds
Om Tat Sat ॐ तत् सत् 108 times
Om Tat Sat ॐ तत् सत् ★ Om Tat Sat are the group of three mantras in Sanskrit found in verse 17.23 of the Bhagavad Gita. It means "Om is the mantra of Brahm, Tat is the secret mantra of Parbrahm and Sat is the secret mantra of Vishnu. "Om Tat Sat" is the eternal sound-pranava. "Om Tat Sat" represents the unmanifest and absolute reality.
4/16/2023 • 4 minutes, 39 seconds
Business Flourishing Mantras व्यापार वृद्धि रिद्धि मन्त्र
Pakshik Shravak Pratikr
पूर्वकृत दोषों का मन, वचन, काय से कृत कारित, अनुमोदना से विमोचन करना पश्चाताप करना, प्रतिक्रमण कहलाता है इससे अनात्मभाव विलय होकर आत्म भाव की जागृति होती है प्रमाद जन्य दोषों से निवृति होकर आत्मस्वरूप में स्थिरता की क्रिया को भी प्रतिक्रमण कहते हैं।
इसमें शरीर, वस्त्र, द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव को शुद्ध कर मन स्थिर करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर खड़े होकर सर्व बाहरी परिग्रह की ममता के त्याग स्व प्रतिज्ञा लेवें।
प्रतिज्ञान की विधि - हे भगवान दो घड़ी (जघन्य) चार घड़ी (मध्यम) और छः घड़ी (उत्कृष्ट) का समय आत्म चिंतन निज दोषावलोकन तथा जिनेन्द्र गुणानुवाद में ही व्यतीत करूंगा ऐसी प्रतिज्ञा कर तीन आर्वत और एक शिरोनति कर तीन बार नमोस्तु कहना चाहिए और फिर 27 श्वासोच्छवास यानी नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ना चाहिए।
आसन - प्रतिक्रमण करते समय तीन आसनों का उपयोग किया जाताहै। पद्मासन, खड़गासन, अर्ध पद्मासन। जिस आसन से प्रतिक्रमण शुरू किया जाता है उस आसन को प्रतिक्रमण की समाप्ति तक नहीं बदलना चाहिए।
प्रतिक्रमण शांत चित्त से शुद्ध उच्चारण पूर्वक करना चाहिए। प्रतिक्रमण का काल पूरण हो जाने पर मन, वचन, काय से प्रमाद जन्य बत्तीस दोषों में से कोई दोष लगने की संभावना से अरहंत या सिद्ध भगवान को क्षमा मांगते हुए प्रायश्चित लेना चाहिए।
क्षमा विधि - ली हुई प्रतिज्ञा के प्रतिकूल जाने, अनजाने - मन वचन, काय, औ कृत, कारित, अनुमोदना से यदि प्रमादजन्य कोई दोष मेरे लग गया हो तो हे भगवान मैं उसकी क्षमा चाहता हूं नौ बार णमोकार मंत्र पढत्रकर कायोत्सर्ग कर प्रतिक्रमण समाप्त करना चाहिए।
प्रतिक्रमण का फल - प्रतिक्रमण द्वारा पूर्व संचित कर्मों की स्थिति और अनुभाग मंद होता है और अशुभ प्रकृतियों का शुभ प्रकृतियों में संक्रमण होता है।
यह प्रतिक्रमण सकल व्रति मुनिराज एवं देशव्रति श्रावक तो नियम से करते ही हैं किंतु यह प्रतिक्रमण जीव के संसार के प्रति उदासीन होने के कारण है। अतः प्रत्येक अव्रति सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि को भी यह प्रतिक्रमण करना चाहिए जिससे सभी को लाभ होता है।
1 - पाक्षिक श्रावक प्रतिक्रमण –
जीवे प्रमाद जनिताः प्रचुराः प्रदोषा,
यस्मात् प्रतिक्रमणतः प्रलयं प्रयान्ति।
तस्मात्तदर्थ ममलं गृहिबोधनार्थम्,
वक्ष्ये विचित्र भवकर्म विशोध नार्थम्।।
अर्थ - प्रमाद से जीवों के जो अनेक दोष उत्पन्न हुआ करते हैं, वे प्रतिक्रमण करने से दूर हो जाते हैं। इसलिए मैं (ग्रंथकरता) गृहस्थ श्रावकों को विशेष परिज्ञान कराने के लिए नाना प्रकार के सांसारिक पापों को नष्ट करने वाले ‘ प्रतिक्रमण ’ को कहता हूं।
समता सर्वभूतेषु, संयमः शुभभावना।
आर्तरौरद्रपरित्यागः, तृद्धि प्रतिक्रमणं मतम्।।
अर्थ - सब जीवों का साम्य भाव धारकरके शुभ भावनापूर्ण संयम पालते हुए, आर्त रौद्र का त्याग प्रतिक्रमण कहलाता है।
पापिष्ठेन दुरात्मना जड़धिया, मायाविना लोभिना।
रागद्वेषमलीमसेन मनसा, दुष्कर्म यत्संचित्तम्।।
त्रैलोक्याधिपत! जिनेन्द्र! भवतः श्रीपादमूलेऽधुना।
निन्दापूर्वमहं जहामि सततं, विर्वर्तिषु सत्पथे।।
अर्थ - हे जिनन्द्र! मैं पापी, दुष्ट, मंद बुद्धि, माया चोरी और लोभी हूं। मैंने राग द्वेष युक्त मन से जो बहुत सा पाप संचय किया है उसे हे त्रैलोक्यनाथ! मैं आपके पादमूल में रहकर आत्मनिंदापूर्वक छोड़ता हूं ( प्रतिक्रमण करता हूं) क्योंकि अब मेरी सन्मार्ग पर चलने की उत्कृष्ट भावना हुई है।
खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, वैरं मज्जं ण के णवि।।4।।
अर्थ - मैं सर्व जीवों पर क्षमा करता हूं। सर्व जीव मुझ पर भी क्षमा करें। मेरी समस्त प्राणिमात्र से मित्रता है, मुझे किसी से भी बैर नहीं है।
रागं दोसं पमादं च, हरिस्सं दोणभावयं।
उस्सुकत्तं भयं सोगं, रदिमरदि च वोस्सरे।।5।।
अर्थ - मैं राग, द्वेष दीनता, उत्सुकता, भय, शोक, रति, अरित आदि सर्व वैभाविक भावों का त्याग करता हूं।
हा दुट्ठं हा दुट्ठं चितियं, भासियं च हा दुट्ठं।
अंतो अन्तों उज्झमि, पच्छच्चावेण वेयन्तो।।6।।
अर्थ - हाय! हाय! मैंने दुष्कर्म किए, मैंने दुष्ट कर्मों का बार-बार चिंतवन किया, मैंने दुष्ट मर्मभेदक वचन कहे, इस प्रकार मन, वचन और काय की दुष्टता से मैंने अत्यंत कुत्सित कर्म किये। उन कार्यों का अब मुझे अत्यंत पश्चाताप है।
दव्वे खेत्ते काले, भावे व किदं परासोहणयं।
णिंदणगरहणजुत्तं, मनवचकायेण पडिक्कमणं।।7।।
अर्थ - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के निमित्त से मैंने कभी किसी की असुहानी निंदा, गर्हा की हो तो मैं उसका मन, वचन और काय से प्रतिक्रमण करता हूं।
एइंदिया, बेइंदिया तेइंदिया, चउरिंदिया पंचेंदिया,
पुडविकायइया आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणफ
दकाइया, तसकाइया, एदेसिं उद्दावणं परिदावण, विराह
Paapbhakshini Vidyaroop Mantra पापभक्षिणी विद्यारुप मंत्र
Paapbhakshini Vidyaroop Mantra पापभक्षिणी विद्यारुप मंत्र ◆ ॐ अर्हन्मुख-कमलवासिनी पापात्म-क्षयंकरि, श्रुतज्ञान
ज्वाला-सहस्र प्रज्ज्वलिते- सरस्वति मम पापं हन हन,
दह दह, क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः क्षीरवर-धवले अमृत-संभवे वं वं हूं हूं स्वाहा ।
◆
इस मंत्र के जप के प्रभाव से साधक का चित्त प्रसन्नता धारण करता पाप नष्ट हो जाते हैं, और आत्मा में पवित्र भावनाओं का संचार होता हैं।
4/14/2023 • 1 minute, 9 seconds
Dashavtar Stotra दशावतार स्तोत्र
Dashavtar Stotram श्री दशावतार स्तोत्र
•
प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदम्
विहित वहित्र-चरित्रम् अखेदम्
केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे
क्षितिर् इह विपुलतरे तिष्ठति तव पृष्ठे
धरणि- धारण-किण चक्र-गरिष्ठे
केशव धृत-कूर्म-शरीर जय जगदीश हरे
वसति दशन शिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनि कलंक कलेव निमग्ना
केशव धृत शूकर रूप जय जगदीश हरे .
तव कर-कमल-वरे नखम् अद्भुत शृंगम्
दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंगम्
केशव धृत-नरहरि रूप जय जगदीश हरे
छलयसि विक्रमणे बलिम् अद्भुत-वामन
पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन
केशव धृत-वामन रूप जय जगदीश हरे
क्षत्रिय-रुधिर-मये जगद् -अपगत-पापम्
स्नपयसि पयसि शमित-भव-तापम्
केशव धृत-भृगुपति रूप जय जगदीश हरे.
वितरसि दिक्षु रणे दिक्-पति-कमनीयम्
दश-मुख-मौलि-बलिम् रमणीयम्
केशव धृत-राम-शरीर जय जगदीश हरे
वहसि वपुशि विसदे वसनम् जलदाभम्
हल-हति-भीति-मिलित-यमुनाभम्
केशव धृत-हलधर रूप जय जगदीश हरे
नंदसि यज्ञ- विधेर् अहः श्रुति जातम्
सदय-हृदय-दर्शित-पशु-घातम्
केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे.
म्लेच्छ-निवह-निधने कलयसि करवालम्
धूमकेतुम् इव किम् अपि करालम्
केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे
श्री-जयदेव-कवेर् इदम् उदितम् उदारम्
शृणु सुख-दम् शुभ-दम् भव-सारम्
केशव धृत-दश-विध-रूप जय जगदीश हरे
वेदान् उद्धरते जगंति वहते भू-गोलम् उद्बिभ्रते
दैत्यम् दारयते बलिम् छलयते क्षत्र-क्षयम् कुर्वते
पौलस्त्यम् जयते हलम् कलयते कारुण्यम् आतन्वते
म्लेच्छान् मूर्छयते दशाकृति-कृते कृष्णाय तुभ्यम् नमः •
- श्री जयदेव गोस्वामी
Kaal Ashtami MantraJaap काल अष्टमी मंत्रजाप 108 times
Kaal Ashtami MantraJaap काल अष्टमी मंत्रजाप 108 times ★
भगवान काल भैरव भले ही शिव के उग्र अवतार माने गए हैं लेकिन अपने सच्चे भक्तों पर वह कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं. कालाष्टमी पर वैसे तो रात्रि में पूजा अधिक फलदायी है लेकिन परिवारजन इस दिन सुबह के समय साधारण पूजा कर सकते हैं। यह पूजा करने पर काल भैरव साधक के सभी प्रकार के भय हर लेते हैं. गृहस्थ जीवन वाले भूलकर भी तामसिक पूजा न करें.पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध करके वंहा लकड़ी की चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की तस्वीर स्थापित कर
उन्हें पुष्प, चंदन, रोली अर्पित करें।
फिर भगवान कालभैरव का स्मरण करते हुए नारियल, इमरती, पान, का भोग लगाएं. चौमुखी दीपक लगाकर इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से 108 बार जाप करें।
★ ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा ।। ★
KaalBhairav Mantra कालभैरव मंत्र - शिव पुराण में दिये इस मंत्र का जप करने से हर मनोकामना हो जाती हैं पूरी
★
।। ऊँ अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम् ।
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि ।। ★
Saraswati Mantra सरस्वती मंत्र
ॐ श्री सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्
वह्निशुद्धां शुक्लाधानां वीणापुस्तकधारिणीम् रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:
श्री सरस्वती दूध जैसे सफेद रंग की, मुस्कुराती हुई, सुंदर, करोड़ों चंद्रमाओं की आभा से युक्त, उज्ज्वल, पुष्ट, शुभ चिन्हों से युक्त, जैसे अग्नि में तप कर स्वच्छ हुई, श्वेत वस्त्रों में, हाथों में वाद्य यंत्रों में सर्वोत्तम वीणा और ज्ञान का भंडार पुस्तक धारण करने वाली, सर्वोत्तम रत्नों के द्वारा बनाए गए आभूषणों से सुशोभित, ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवताओं द्वारा, साथ ही मुनियों में श्रेष्ठ मुनि, और मनु के वंशज मनुष्यों द्वारा पूजी जाती हैं।
4/9/2023 • 1 minute, 57 seconds
Prakrit Prarthna with Hindi Meaning प्राकृत प्रार्थना हिंदी अर्थ सहित
Prakrit Prarthna with Hindi Meaning प्राकृत प्रार्थना हिंदी अर्थ सहित ★
णिच्चकालं, अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाओ सुगइगमणं, समाहि मरणं, जिन गुण संपत्ति, होउ मज्झं । ★ भावार्थ ~ णिच्चकालं - नित्यकाल सदैव ,अंचेमि - मैं अर्चना करता हूँ, पूजेमि – मैं पूजा करता हूँ,
वंदामि - मैं वंदना करता हूँ , णमंस्सामि - मैं नमस्कार करता हूँ,
दुक्खक्खओ- मेरे दुःखों का नाश हो
,
कम्मक्खओ - मेरे कर्मों का नाश हो
,
बोहिलाओ - मुझे रत्नत्रय की प्राप्ति हो
,
सुगइगमणं - मेरा सुगति में गमन हो, समाहि मरणं - मेरा समाधिपूर्वक मरण हो
जिनगुण - मुझे जिनेन्द्र गुण रुपी
संपत्ति-संपदा की ,
होउ मज्झ - प्राप्ति होवें।
4/9/2023 • 2 minutes, 15 seconds
Kayakalpa Mantra कायाकल्प मन्त्र 108 times
Kayakalpa Mantra कायाकल्प मन्त्र ■ 20 मिनट प्रतिदिन किसी भी समय. यदि यात्रा में है तो कहीं रुकने पर कर ले. लेकिन चलते फिरते बिल्कुल ना करें. ◆
साधना की दिशा:- पूर्व मुख होकर.
◆ साधना का मंत्र: ★ ऊं ह्रौं जूं सः मम कायाकल्प कुरू कुरू सः जूं ह्रौं ऊं ★
मंत्र जाप का तरीका:- मन ही मन, बिना माला.
◆ साधना का आसन:- कोई भी आरामदायी आसन या कुर्सी सोफे पर भी कर सकते हैं. सोने वाले बिस्तर पर बिल्कुल ना करें. ◆
साधना की सावधानी:- साधना से एक घंटे पहले और एक घंटे बाद तक गुस्सा बिल्कुल ना करें. जो लोग बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं वह साधना ना करें.
4/9/2023 • 25 minutes, 28 seconds
Murti Pran Pratishtha Vidhi मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विधि
Murti Pran Pratishtha Vidhi मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विधि
4/9/2023 • 15 minutes, 17 seconds
Shri Bageshwar Dham Balaji Mantra श्री बागेश्वर धाम बालाजी मंत्र 108 times
Shri Bageshwar Dham Balaji Mantra श्री बागेश्वर धाम बालाजी मंत्र
‡ ॐ बागेश्वराय वीर वीराये हुं फट स्वाहा ‡
4/8/2023 • 15 minutes, 31 seconds
Saraswati Naman Mantra सरस्वती नमन मन्त्र
Saraswati Naman Mantra सरस्वती नमन मन्त्र ■ नमस्ते शारदे देवी, सरस्वती मतिप्रदे
वसत्वम् मम जिव्हाग्रे, सर्वविद्याप्रदाभव।
नमस्ते शारदे देवी, वीणापुस्तकधारिणी
विद्यारंभम् करिष्यामि, प्रसन्ना भव सर्वदा।
■ अर्थ: हे विद्याप्रदायिनी शारदा देवी! हमारी जिव्हा के अग्र भाग में बसो तथा
हमें समस्त विद्याओं का ज्ञान दो। हे वीणा तथा पुस्तक हाथ में लिए रहने वाली देवी शारदे, हम विद्यारंभ कर रहे हैं, आपको नमन करते हैं, हम पर
आप सदा प्रसन्न रहें।
4/8/2023 • 37 seconds
Shanaishchar Stotram शनैश्चर स्तोत्रम्
Shanaishchar Stotram शनैश्चर स्तोत्रम् ★ कोणोऽन्तकारौद्रयमोऽख बभ्रुःकृष्णः शनि पिंगलमन्दसौरि ।
नित्य स्मृतो यो हरते पीड़ां तस्मै नमः श्रीरविनन्दाय ॥ 1 ॥
सुरासुराः किंपु-रुषोरगेन्द्रा गन्धर्वाद्याधरपन्नगाश्च
पीड्य सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 2 ॥
नराः नरेन्द्राः पुष्पत्तनानि पीड्यन्ति
सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 3 ॥
तिलेयवैर्माषुगृडान्दनैर्लोहेन नीलाम्बर-दानतो
वा प्रीणाति मन्त्रैर्निजिवासरे च तस्मै नमः ॥ 4 ॥
प्रयाग कूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यागतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै ॥ 5 ॥
अन्यप्रदेशात्स्वः गृहंप्रविष्टदीयवारेसनरः सुखी ॥ 6 ॥
स्यात् गहाद्गतो यो न पुनः प्रयतितस्मैनभ खष्टा
स्वयं भूवत्रयस्य त्रोता हशो दुःखोत्तर हस्ते पिनाकी एक स्त्रिधऋज्ञ जुःसामभूतिंतस्मै ॥ 7 ॥
शन्यष्टक यः प्रठितः प्रभाते, नित्यं सुपुत्रः पशुवान्यश्च ॥ 8 ॥
पठेतु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोतिनिर्वाण पदं तदन्ते ॥ 9 ॥
कोणस्थः पिंगलो बभ्रूः कृष्णोरौद्रान्तको यमः ॥ 10 ॥
सौरिः शनैश्चरोमन्दः पिपलादेन संस्तुतः ॥ 11 ॥
एतानि दशनामानि प्रतारुत्थाय यः पठेत् ॥ 12 ॥
शनैश्चकृता पीड़ा न न कदाचिद् भविष्यति ॥ 13 ॥
★
राजा दशरथ शनिदेव की स्तुति करने लगे। यह स्तुति शनैश्चर स्तोत्रम् के नाम से जानी जाती हैं। उनके मुख से अपना स्तोत्र सुनकर शनिदेव ने एक वर मांगने को कहा। तब राजा दशरथ ने कहा कि आप किसी को कभी पीड़ा न दें। इस पर शनिदेव ने कहा कि यह संभव ही नहीं। जीवों को कर्म के अनुसार सुख और दुख भोगना पड़ेगा। हां, मैं यह वरदान देता हूं कि तुमने जो मेरी स्तुति की है, उसे जो भी पढ़ेगा, उसे पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी।
4/8/2023 • 4 minutes, 10 seconds
Pauranik Budh Mantra पौराणिक बुध मंत्र
Pauranik Budh Mantra पौराणिक बुध मंत्र ★ प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम ।। ★
Sri Radha Kripa Kataksh Stavraj श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज
Sri Radha Kripa Kataksh Stavraj श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज ◆
श्रीराधाजी की स्तुतियों में श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र का स्थान सर्वोपरि है। इसीलिए इसे 'श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज' नाम दिया गया है अर्थात् स्तोत्रों का राजा। यह स्तोत्र बहुत प्राचीन है। इस स्तोत्र के पाठ से साधक नित्यनिकुंजेश्वरि श्रीराधा और उनके प्राणवल्लभ नित्यनिकुंजेश्वर ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण की सुर-मुनि दुर्लभ कृपाप्रसाद अनायास ही प्राप्त कर लेता है।
इस स्तोत्र के विधिपूर्वक व श्रद्धा से पाठ करने पर श्रीराधा-कृष्ण का साक्षात्कार होता है। इसकी विधि इस प्रकार है-गोवर्धन में श्रीराधाकुण्ड के जल में जंघाओं तक या नाभिपर्यन्त या छाती तक या कण्ठ तक जल में खड़े होकर इस स्तोत्र का १०० बार पाठ करे। इस प्रकार कुछ दिन पाठ करने पर सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
◆
उरु, नाभि, हिय कण्ठ तक, राधाकुण्ड मँझार।
अंग डुबाए सलिल में, पढ़ता जो सौ बार।।
हों सब इच्छा पूर्ण, हो वचन सिद्धि तत्काल।
विभव मिले, दे राधिका दर्शन करे निहाल।।
रीझ तुरत देती अतुल वर राधिका कृपाल।
हो जाते सम्मुख प्रकट प्रिय उनके नंदलाल।।
●
इस स्तोत्र के पाठ की जो फलश्रुति बताई गयी है, उसे अनेक उच्चकोटि के संतों व सच्चे साधकों द्वारा अपने जीवन में अनुभव किया गया है।
◆
श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र ◆
मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी,
प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकुंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥१।।
अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते,
प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ्र कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥२।।
अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां,
सुविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥३।।
तड़ित्सुवर्णचम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,
मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्डले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥४।।
मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमण्डिते,
प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपण्डिते।
अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥५।।
अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते,
प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुम्भिकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूर्णपूर्णसौख्यसागरे,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥६।।
मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोर्लते,
लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥७।।
सुवर्णमालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे,
त्रिसूत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिति।
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥८।।
नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण,
प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥९।।
अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्,
समाजराजहंसवंश निक्वणातिगौरवे।
विलोलहेमवल्लरी विडम्बिचारूचंक्रमे,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्।।१०।।
अनन्तकोटिविष्णुलोक नम्रपद्मजार्चिते,
हिमाद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिद्धिवृद्धिदिग्ध सत्पदांगुलीनखे,
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्॥११।।
मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,
त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी,
ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥१२।।
इतीदमद्भुतस्तवं निशम्य भानुनन्दिनी,
करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तदैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं,
लभेत्तदाव्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्।।१३।।
स्तोत्र पाठ करने की विधि व फलश्रुति
राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धया,
एकादश्यां त्रयोदश्यां य: पठेत्साधक: सुधी।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति साधक:,
राधाकृपाकटाक्षेण भक्ति: स्यात् प्रेमलक्षणा।।१४।।
उरुमात्रे नाभिमात्रे हृन्मात्रे कंठमात्रके,
राधाकुण्ड-जले स्थित्वा य: पठेत्साधक:शतम्।।
तस्य सर्वार्थसिद्धि:स्यात् वांछितार्थ फलंलभेत्,
ऐश्वर्यं च लभेत्साक्षात्दृशा पश्यतिराधिकाम्।।१५।।
तेन सा तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम्।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत्प्रियं श्यामसुन्दरम्।।
नित्य लीला प्रवेशं च ददाति श्रीब्रजाधिप:।
अत: परतरं प्राप्यं वैष्णवानां न विद्यते।।१६।।
◆ करौ कृपा श्रीराधिका, बिनवौं बारंबार।
बनी रहे स्मृति मधुर सुचि मंगलमय सुखसार।।
श्रद्धा नित बढ़ती रहै, बढ़ै नित्य विश्वास।
अर्पण हों अवशेष अब जीवन के सब श्वास।।
◆
4/7/2023 • 11 minutes, 18 seconds
Mukund Mala Stotram
मुकुन्दमाला स्तोत्रम्
Mukund Mala Stotram मुकुन्दमाला स्तोत्रम्
4/7/2023 • 18 minutes, 21 seconds
Shiva Panchakshar Stotra with Hindi Meaning शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)
Shiva Panchakshar Stotra with Hindi Meaning शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र
(हिंदी अर्थ सहित) ★
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय
शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य
मूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
★ अर्थ
वे जिनके पास साँपों का राजा उनकी माला के रूप में है, और जिनकी तीन आँखें हैं,
जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई है और जो महान प्रभु हैं,
वे जो शाश्वत हैं, जो पूर्ण पवित्र हैं और चारों दिशाओं को जो अपने वस्त्रों के रूप में धारण करते हैं,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "न" द्वारा दर्शाया गया है
वे जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल से होती है और चंदन का लेप लगाया जाता है,
वे जो नंदी के और भूतों-पिशाचों के स्वामी हैं, महान भगवान,
वे जो मंदार और कई अन्य फूलों के साथ पूजे जाते हैं,
उस शिव को प्रणाम, जिन्हें शब्दांश "म" द्वारा दर्शाया गया है
वे जो शुभ हैं और जो नए उगते सूरज की तरह हैं, जिनसे गौरी का चेहरा खिल उठता है,
वे जो दक्ष के यज्ञ के संहारक हैं,
वे जिनका कंठ नीला है, और जिनके प्रतीक के रूप में बैल है,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "शि" द्वारा दर्शाया गया है
वे जो श्रेष्ठ और सबसे सम्मानित संतों - वशिष्ट, अगस्त्य और गौतम, और देवताओं द्वारा भी पूजित हैं, और जो ब्रह्मांड का मुकुट हैं,
वे जिनकी चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीन आंखें हों,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "वा" द्वारा दर्शाया गया है
वे जो यज्ञ (बलिदान) का अवतार हैं और जिनकी जटाएँ हैं,
जिनके हाथ में त्रिशूल है और जो शाश्वत हैं,
वे जो दिव्य हैं, जो चमकीले हैं, और चारों दिशाएँ जिनके वस्त्र हैं,
उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "य" द्वारा दर्शाया गया है
जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं,
वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और आनंद लेंगे।
¶ इति श्री शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रं
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि
।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
।बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार
।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।
रामदूत अतुलित बल धामा
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा
।। महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
। कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुंचित केसा
।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै
कांधे मूँज जनेउ साजे
। शंकर सुवन केसरीनंदन
तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर ।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया
।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा ।
भीम रूप धरि असुर संहारे
रामचंद्र के काज संवारे
।।
लाय सजीवन लखन जियाये
श्री रघुबीर हरषि उर लाये
। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई
।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा
।। जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा
।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना
लंकेश्वर भए सब जग जाना ।
जुग सहस्र जोजन पर भानु
लील्यो ताहि मधुर फल जानू
।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं
। दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
।। राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डरना
।। आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हांक तें कांपै ।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै
।। नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा ।
संकट तें हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा
। और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै ।। चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
। साधु-संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे
।। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता ।
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा
।। तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम-जनम के दुख बिसरावै ।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई
।। और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
।। जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
। जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई
।। जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होए सिद्धि साखी गौरीसा
।। तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा
।। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा
।।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप
। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप
।।
4/6/2023 • 8 minutes, 49 seconds
Hanuman Mantra हनुमान मन्त्र
Hanuman Mantra हनुमान मन्त्र ◆ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय
विश्वरूपाय अमित विक्रमाय
प्रकटपराक्रमाय महाबलाय
कोटिसूर्यसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।। ◆ श्री हनुमान चिरंजीवी माने जाते हैं। ऐसी अद्भुत शक्तियों व गुणों के स्वामी होने से ही वे जागृत देवता के रूप में पूजनीय हैं। इसलिए हनुमान की भक्ति संकटमोचन करने के साथ ही तन, मन व धन से संपन्न बनाने वाली मानी गई है। बजरंगबली का यह शुभ मंत्र आपको स्वस्थ, प्रसन्न और संपन्न रखता है।
4/6/2023 • 1 minute, 5 seconds
Shri Panchmukh Hanumat Kavacham श्री पञ्चमुख हनुमत्कवचम्
Panchmukhi Hanuman Mantra पंचमुखी हनुमान मन्त्र ★ ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाभीमपराक्रमाय सकलसिद्धिदाय वाञ्छितपूरकाय सर्वविघ्ननिवारणाय मनो वाञ्छितफलप्रदाय सर्वजीववशीकराय दारिद्रयविध्वंसनाय परममंगलाय सर्वदुःखनिवारणाय अञ्जनीपुत्राय सकलसम्पत्तिकराय जयप्रदाय ॐ ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रूं फट् स्वाहा।” ★ सर्वकामना सिद्धि का संकल्प करके उपर्युक्त पूरे मन्त्र का १३ दिनों में ब्राह्मणों द्वारा ३३००० जप पूर्ण कराये। तेरहवें दिन १३ पान के पत्तों पर १३ सुपारी रखकर शुद्ध रोली अथवा पीसी हुई हल्दी रखकर स्वयं १०८ बार उक्त मन्त्र का जाप करके एक पान को उठाकर अलग रख दे। तदन्तर पञ्चोपचार से पूजन करके गाय का घृत, सफेद दूर्वा तथा सफेद कमल का भाग मिलाकर उसके साथ उस पान का अग्नि में हवन कर दे। इसी प्रकार १३ पानों का हवन करे।
तदन्तर ब्राह्मणों द्वारा उक्त मन्त्र से ३२००० आहुतियाँ दिलाकर हवन करायें। तथा ब्राह्मणों को भोजन कराये।
4/5/2023 • 1 minute, 8 seconds
Hanumat Stotram हनुमत स्तोत्रम्
Hanumat Stotram हनुमत स्तोत्रम् ★ॐ नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे नमः श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नमः ॥ नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे ॥ सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च | रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नमः ॥
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे ॥ वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने। वनपालशिरच्छेदलङ्कापप्रासादभञ्जिने || ज्वलत्कनक़वर्णाय दीर्घलाङ्गलधारिणे सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः ॥
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे । लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षतविनाशिने ॥ रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नमः ॥ परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः । विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः ॥ महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैक कारिणे । परप्रेरितमंत्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे ॥ पयः पाषाणतरणकारणाय नमो नमः । बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे ॥ नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च रिपुमाया विनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे ॥
प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने करालशैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नमः ॥ बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च विहङ्गमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः ॥ कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय च | दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने ॥
कृत्याक्षतव्यथाघ्नाय सर्वक्लेशहराय च | स्वाम्याज्ञापार्थसङ्ग्रामसंख्ये सञ्जयधारिणे ॥ भक्तांतदिव्यवादेशु सङ्ग्रामे जयदायिने । किलकिलाबुबुकोच्चार घोरशब्दकराय च || सर्पाग्निव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे । सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषतः ॥ महार्णव शिला बद्धसेतुबन्धाय ते नमः
॥ फलश्रुतिः ॥ वादे विवादे सङ्ग्रामे भये घोरे महावने । सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्रपाठाद्भयं न हि ॥ दिव्ये भूतभये व्याघौ विषे स्थावरजङ्गमे || राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च । जले सर्पे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे ॥ पठेत स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तव् पाठतः || सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवम् | सर्वान कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥ विभीषणकृतं स्तोत्रं ताक्ष्येण समुदीरितम् । ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिताः || ★ ॥ विभीषण कथितं श्री हनुमत् स्तोत्रम् सम्पूर्णं ॥
Jain Aatm Kirtan जैन आत्म कीर्तन
◆
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम।
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम। ।
मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह है भगवान।
अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग-वितान॥ १॥
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम।
मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति-सुख-ज्ञान-निधान।
किन्तु आशवश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान॥2 ॥
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम।
सुख-दुख-दाता कोई न आन, मोह-राग-रुष दुख की खान।
निज को निज, पर को पर जान, फिर दुख का नहिं लेश निदान॥3 ॥
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम।
जिन, शिव, ईश्वर, ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिनके नाम।
राग त्यागि पहुँचूँ शिव धाम, आकुलता का फिर क्या काम॥4 ॥
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम।
होता स्वयं जगत-परिणाम, मैं जग का करता क्या काम ।
दूर हटो पर-कृत परिणाम, सहजानन्द रहूँ अभिराम॥ ५॥
हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम। हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम।
4/3/2023 • 3 minutes, 53 seconds
Baglamukhi Success Mantra बगलामुखी सफलता मन्त्र
Baglamukhi Success Mantra बगलामुखी सफलता मन्त्र
★ ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगलामुखी देव्यै ह्रीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा: ★
रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
4/3/2023 • 21 minutes, 58 seconds
Shiv Namaskar शिव नमस्कार
Shiv Namaskar शिव नमस्कार ◆
ऊँ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च। नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।।
तव तत्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर।
यादशोसि महादेव तादृशाय नमोनम:॥
त्रिनेत्राय नमज्ञतुभ्यं उमादेहार्धधारिणे।
त्रिशूल धारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम:॥
गंगाधर नमस्तुभ्यं वृषमध्वज नमोस्तु ते।
आशुतोष नमस्तुभ्यं भूयो भूयो नमो नम:॥
◆
Vardhman Jinpuja Jaimala वर्द्धमान जिनपूजा जयमाला~
गनधर असनिधर, चक्रधर, हलधर गदाधर वरवदा
अरु चापधर विद्यासुधर, तिरसूलधर सेवहिं सदा |
दुखहरन आनन्द-भरन तारन, तरन चरन रसाल हैं
सुकुमाल गुन-मनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल है ||
(घत्तानन्द)
जय त्रिशला नन्दन, हरिकृत वन्दन, जगदानन्दन चंदवरं |
भव-ताप-निकंदन, तन कन मन्दन, रहित-स्पंदन नयन-धरं ||
(तोटक)
जय केवल भानु कलासदनं,
भवि-कोक-विकसनकंज-वनं |
जग-जेते-महारिपु-मोह-हरं,
रज-ज्ञान-दृगांवर छु करं ||
गर्भादिक-मंगल-मंडित हो,
दो-दारिद को नित खंडित हो |
जग मांहि तुम्हीं सत-पंडित हो,
तुम ही भव-भाव विहंडित हो ||
हरिवंश सरोजं को रवि हो,
बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो |
लहि केवल धर्म-प्रकाश कियो,
अबलों सोई मारग राजति हो ||
पुनि आप तने गुन मांहि सही,
सुर मग्न रहैं जितने सब ही |
तिनकी वनिता गुन गावत हैं,
ली माननि सों मन-भवत हैं ||
पुनि नाचत रंग उमंग भरी,
तुअ भक्ति विशैं पग येम धरी |
झननं झननं झननं झननं,
सुर लेत तहां तननं तननं ||
घननं घननं घन घंट बजै,
दृमदं, दृमदं मिरदंग सजै |
गगनांगन-गर्भगता सुगता,
ततता ततता अतता वितता ||
धृगतां धृगतां गति बाजत है,
सुरताल रसाल जु छाजत है |
सननं सननं सननं नभ में,
इक रूप अनेक जु धारि भ्रमें ||
कई नारि सुबीन बजावति हैं,
तुमरो जस उज्ज्वल गावति हैं |
कर-ताल विषैं कर-ताल धरें,
सुरताल विशाल जु नाद करें ||
इन आदि अनेक उछाह भरी,
सुर भक्ति करें प्रभु जी तुमरी |
तुम ही जग-जीवनि की पिता हो,
तुम ही बिन कारन तैं हितु हो ||
तुम ही सब विघ्न-विनाशन हो,
तुम ही निज आनन्द-भासन हो |
तुम ही चित चिन्तित दायक हो,
जगमांहि तुम्हीं सब लायक हो ||
तुमरे पन मंगल मांहि सही,
जिय उत्तम पुन्न लियो सब ही |
हमको तुमरी सरनागत है,
तुमरे गुण में मन पागत है ||
प्रभु मो हिय आप सदा बसिए,
जब लों वसु कर्म नहीं नसिये |
तब लों तुम ध्यान हिय वरतो,
तब लों श्रुत चिन्तन चित्त गहो ||
जब लों नहि नाश करों अरि को,
शिव-नारि वरों समता धारि को |
यह द्योतब लों हमको जिन जी,
हम जाचतु हैं इतनी सुन जी ||
(घत्तानन्द)
श्रीवीर-जिनेशा नमित-सुरेशा, नाग –नरेशा भगति भरा |
भक्त ध्यावै विघन नशावै, वांछित पावै शर्म-वरा ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय पूर्णार्घयं निर्वपामीति स्वाहा ||
(दोहा)
श्री सन्मति के जुग्न पद, जो पूजै धरि प्रीति |
भक्त सो चतुर नर, लहै मुक्ति नवनीत ||
इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि क्षिपेत
Tantra Badha Nashak Baglamukhi Mantra तंत्र बाधानाशक बगलामुखी मन्त्र ■ यदि आपको लगता है कि आप किसी बाधा से पीड़ित हैं, नजर जादू टोना या तंत्र मंत्र आपके जीवन में जहर घोल रहा है, आप उन्नति ही नहीं कर पा रहे अथवा भूत प्रेत की बाधा सता रही हो तो देवी के तंत्र बाधानाशक मंत्र का जाप करना चाहिए।
★
ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं पीताम्बरे तंत्र बाधां नाशय नाशय
★
आटे के तीन दिये बनाएं व देसी घी डाल कर जलाएं।
कपूर से देवी की आरती करें।
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें।
मंत्र जाप के समय दक्षिण की तरफ मुख रखें।
Ram Dhun राम धुन ■ राम धुन लागि श्री राम धुन लागि,
मन हमारा हुआ, राम राम जी का सुआ,
बोले राम राम, हरपल राम राम,
निशदिन राम राम, जय श्री राम राम,
हे राम ही राम रटे बैरागी,
राम धुन लागि श्री राम धुन लागि।।
बिन कारण रोए हँसे, अजब हमारा हाल,
हम गाते है राम धुन, दुनिया देती ताल,
श्री राम जय राम जय जय राम,
श्री राम जय राम जय जय राम।।
राम रसपान कर, मन राम का भ्रमर,
गाए राम राम हरपल राम राम,
निशदिन राम राम, जय श्री राम राम,
हे राम सुमन मन भ्रमर बड़भागी,
राम धुन लागि श्री राम धुन लागि,
राम धुन लागि श्री राम धुन लागि।।
बड़ी चतुराई से केवट ने, चरणामृत का पान किया,
चरण धूल ने श्रापित नारी, अहिल्या का कल्याण किया, राम नाम जिन पर लिखा, तर गए वे पाषाण,
राम भक्त हनुमान के, राम ही जीवन प्राण,
श्री राम जय राम जय जय राम,
श्री राम जय राम जय जय राम।।
गुरुजन की आज्ञा शीश धरी, पितृ वचनों का सत्कार किया, भीलनी को दिए दर्शन प्रभु ने, निज भक्तो से सदा प्यार किया,
दशरथ सूत ने दशमी को, दशमुख रावण का संहार किया, जिसे मार दिया उसे तार दिया, अवतार धरे उपकार किया, सितार के तारो में झंकृत, श्री राम जय राम जय जय राम, मुरली की तानो में मुखरित, श्री राम जय राम जय जय राम, शिव शंकर का डमरू बोले, श्री राम जय राम जय जय राम, श्री राम जय राम जय जय राम।।
राम धुन लागि श्री राम धुन लागि,
मन हमारा हुआ, राम राम जी का सुआ,
बोले राम राम, हरपल राम राम,
निशदिन राम राम, जय श्री राम राम,
हे राम ही राम रटे बैरागी,
राम धुन लागि श्री राम धुन लागि।।
Shiv Ghrit Snaan शिव घृत स्नान ★ लिङ्गस्य दर्शनं पुण्यं दर्शनात्स्पर्शनं शुभम् स्पर्शनादर्चनं श्रेष्ठं धृतस्नान मतः परम् || शिवलिंग का दर्शन पुण्य प्रसूत होता है। दर्शन की अपेक्षा उसका स्पर्श करना शुभ है। स्पर्श की अपेक्षा अर्चन श्रेष्ठ माना गया है और धृत से स्न्नान करवाना तो परमश्रेष्ठ बताया गया है
इहामुत्रकृतं पापं घृतस्न्नानेन देहिनाम् । क्षमते शङ्करो यस्मात् तस्मात्स्न्नानं समाचरेत् || धृतस्न्नान से व्यक्ति द्वारा इहलोक परलोक में किए गए समस्त पापों को भगवान् शंकर क्षमा कर देते हैं। इस अर्थ में शिव स्नान को करवाना चाहिए। दशापराधं तोयेन क्षीरेण तु शतं तथा सहस्त्रं क्षमते दध्ना घृतेनाप्युतं शिवः ॥ शिवलिंग को जल से स्नान करवाने से दस प्रकार के अपराधों का निवारण होता है। दूध से स्न्नान करवाने से सौ पाप नष्ट होते हैं। दधि से स्नान करवाने से हजार पापों का शमन होता है। जबकि घृत से स्नान करवाने पर भगवान् शिव अयुत (दश हजार) पापों को क्षमा कर देते हैं।
नैरन्तर्येण यो मासं घृतस्नानं समाचरेत् | एकविंशत्कुलोपेतः क्रीडते दिवि रुद्रवत् ॥ जो कोई प्रतिमास निरन्तर शिवलिंग को धृत से स्नान करवाते हैं, वे अपने इक्कीस कुलों को तारकर देवता बनते हैं और रुद्र के समान ही देवलोक में क्रीड़ा करते हैं।
जलस्न्नानं पलशतं अभ्यङ्गः पञ्चविंशति | पलानां द्वेसहस्त्रे तु महासन्नानं तु भक्तितः || शिव को पच्चीस पल से स्नान करवाएँ तो वह अभ्यङ्ग होता है। सौ पलों जल से स्नान करवाएँ तो वह स्न्नान होता है। दो हजार पलों से भक्ति सहित स्नान करवाएँ तो वह महास्नान कहा जाता है। घृताभ्यङ्गे घृतस्त्राने यत्नालिङ्गं विरुक्षयेत् यवगोधूमजैश्चूर्णैः तोषयेद्गन्धयोजितैः ॥ धृतभ्यंग और धृतस्न्नान करवाने के उपरान्त शिवलिंग की चिकनाई को दूर करके रुखा करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए जौ और गेहूँ के आटे का प्रयोग सुगन्धित द्रव्यों को मिलाकर करें और शिव को सन्तुष्ट करने का यत्न करना चाहिए
सुखाष्णेनाम्भसा चापि स्नापयेत्तदनन्तरम् | घर्षयेद्विल्वपत्रैश्च तव पीठं च शोधयेत् ॥ उक्त कृत्य के उपरान्त सुहाते सुहाते गर्म जल को लेकर स्नान करवाएँ और बिल्वपत्र लेकर उससे धीरे धीरे घिसाई करें और शिवलिंग की पीठ को शोधित कर सुखाएँ । ★
|| अस्तु ||
Tantroktam Devi Suktam तंत्रोक्तम देवी सूक्तम् ★
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणताः स्म ताम् ॥ १ ॥ रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः । ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥ २ ॥ कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः । नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥ ३ ॥ दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥ ४ ॥ अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः । नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥ ५ ॥ या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६ ॥ या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७ ॥ या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ८ ॥ या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ ९ ॥ या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
१० ॥ ...
3/28/2023 • 9 minutes, 24 seconds
Ram Stuti राम स्तुति
Ram Stuti राम स्तुति ★ जय रघुनंदन रविकुलचंदन,जय करुणा के नाथ हरे। जय असुरनिकन्दन कृपानिकेतन,तेरी जयजयकार करें।
मर्यादा भी जिससे मर्यादित, ऐसे पुरुषोत्तम को वंदन
इक्ष्वाकु वंश के गौरव को हम, कोटि कोटि करते हैं नमन।
प्रजापाल दनुजों के घालक, दीनों की करुण पुकार सुनें
प्रभु के आशीष की छाया में, बिगड़ों के सारे काज बने।
दृग से हीन जगत को देखे, पंगु भी सागर पार करे
ऐसे रघुवर की भक्ति से, निर्धन का भी घरद्वार भरे।
मूक व्यक्ति वक्ता बन जाए,फलरहित तरू फूले और फले
श्री राम नाम की शक्ति से,बुझते दीपक में ज्योति जले।
चरण कमल स्पर्श से जिनके, पाहन नारी का रूप धरे
ऐसे अवधपति की कृपा से, तारिणी गंगा भी स्वयं तरे।
खाकर जूठे बैर जिन्होंने, सबरी को भी तृप्त किया
ऊँच नीच के भेदभाव से, निज भक्तों को भी मुक्त किया।
जिनके शौर्य की आभा से, रावण के कुल का दमन हुआ
उनके शर से भीत सिन्धु भी, चरण पूज कर भृत्य हुआ।
कमल नयन श्री दशरथनंदन , जग के पालनहार है
दीनों के संकटहर्ता को , अभिनंदन बारम्बार है।
★
- आनंद प्रताप सिंह
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
3/28/2023 • 4 minutes, 16 seconds
Shri Durga 108 Naam Stotram श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
Shri Durga 108 Naam Stotram श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ◆
ईश्वर उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥१॥
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥२॥
पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥३॥
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥४॥
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥५॥
अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनि ॥६॥
अमेयविक्रमा क्रूरा सुंदरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥७॥
ब्राम्ही माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुंडा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥८॥
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च ।
बुद्धिदा बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ॥९॥
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥१०॥
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥११॥
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥१२॥
अप्रौढ़ा चैव प्रौढ़ा च वृद्धमाता बलप्रदा ।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥१३॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी |
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥१४॥
शिवदूती कराली च अनंता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रम्हवादिनी ॥१५॥
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥१६॥
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥१७॥
कुमारी पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥१८॥
तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥१९॥
गोरोचनालक्तकुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥२०॥
भौमावस्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥२१॥
इति श्री विश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ◆
3/28/2023 • 8 minutes, 18 seconds
Shiv Ramashtak Stotra शिव रामाष्टक स्तोत्र
Shiv Ramashtak Stotra शिव रामाष्टक स्तोत्र ~ श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् भगवान शिव जी को समर्पित है! श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् का नियमित 11 बार पाठ करने पर जातक के बुद्धि में सुधार, ज्ञान में वृद्धि तथा हर परीक्षा में उत्तम परिणाम मिलता है ! श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् श्री रामानन्द स्वामी द्वारा विरचित है! • शिव हरे शिव राम सखे प्रभो त्रिविधतापनिवारण हे प्रभो ।
अज जनेश्वर यादव पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥१॥
कमललोचन राम दयानिधे हर गुरो गजरक्षक गोपते ।
शिवतनो भव शङ्कर पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥२॥
सुजनरञ्जन मङ्गलमन्दिरं भजति ते पुरुषः परमं पदम्।
भवति तस्य सुखं परमद्भुतं शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥३॥
जय युधिष्ठिरवल्लभ भूपते जय जयार्जितपुण्यपयोनिधे।
जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तु ते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥४॥
भवविमोचन माधव मापते सुकविमानसहंस शिवारते।
जनकजारत राघव रक्ष मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥५॥ अवनिमण्डलमङ्गल मापते जलदसुन्दर राम रमापते।
निगमकीर्तिगुणार्णव गोपते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥६॥
पतितपावन नाममयी लता तव यशो विमलं परिगीयते।
तदपि माधव मां किमुपेक्षसे शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥७॥
अमरतापरदेव रमापते विजयतस्तव नामधनोपमा।
मयि कथं करुणार्णव जायते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥८॥
हनुमतः प्रिय चापकर प्रभो सुरसरिद्धृतशेखर हे गुरो।
मम विभो किमु विस्मरणं कृतं शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥९॥
अहरहर्जनरञ्जनसुन्दरं पठति यः शिवरामकृतं स्तवम्।
विशति रामरमाचरणाम्बुजे शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥१०॥
प्रातरुत्थाय यो भक्त्या पठेदेकाग्रमानसः।
विजयो जायते तस्य विष्णुमाराध्यमाप्नुयात् ॥११॥ •
3/28/2023 • 4 minutes, 51 seconds
Navratri 8 Ma Maha Gauri Mantra माँ महागौरी मन्त्र
Navratri 8 Ma Maha Gauri Mantra माँ महागौरी मन्त्र ★ माहेश्वरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना।
श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।
★
Navratri 6 Ma Katyayani Mantra माँ कात्यायनी मन्त्र
Navratri 6 Ma Katyayani Mantra माँ कात्यायनी मन्त्र ★ चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
★
3/27/2023 • 35 seconds
Shri Parshvanath Stuti श्री पार्श्वनाथ स्तुति
Shri Parshvanath Stuti श्री पार्श्वनाथ स्तुति ★ तुमसे लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा । निशदिन तुमको जपूं पर से नेह तजूं, जीवन सारा, तेरे चाणों में बीत हमारा ॥टेक॥
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे। सबसे नेह तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा, संयम धारा ॥मेटो॥
इंद्र और धरणेन्द्र भी आए, देवी पद्मावती मंगल गाए। आशा पूरो सदा, दुःख नहीं पावे कदा, सेवक थारा ॥मेटो॥
जग के दुःख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है। मेटो जामन मरण, होवे ऐसा यतन, पारस प्यारा ॥मेटो॥
लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ । 'पंकज' व्याकुल भया दर्शन बिन ये जिया लागे खारा ॥मेटो॥
3/27/2023 • 3 minutes, 41 seconds
Saubhagya Pradayi Shiv Mantra सौभाग्य प्रदायि शिव मंत्र 101 times
Saubhagya Pradayi Shiv Mantra सौभाग्य प्रदायि शिव मंत्र ■ परिवार की सुख-समृद्धि और सौभाग्य के लिए पवित्र श्रावण मास में शिव साधक को शिव ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र स्थापित करके नीचे दिए गए मंत्र का 101 बार पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ जप करना चाहिए।
★
।। ॐ साम्ब सदाशिवाय नम:।। ★
Sri Shail Chalisa श्री शैल चालीसा ◆ शीश झुका कर जिनचरण, नमूँ पंचगुरुदेव। सिद्ध अनन्तानन्तप्रम, करें भ्रमण भव छेव।।१।।
चालीसा श्रीशैल का, शक्ति प्रदायक जान।
मांगीतुंगी से मिला, जिनको पद निर्वाण।।२।।
उनका ही हनुमान यह, नाम हुआ विख्यात।
नमस्कार कर उन चरण, पाऊँ आतम ख्याति।।३।।
-चौपाई-
जय जय प्रभु श्री शैल महाना, जय बजरंगबली हनुमाना।।१।।
जय प्रभु कामदेव परधाना, वानरवंशी रूप सुहाना।।२।।
सती अंजना मात तुम्हारी, तुम सा सुत पाकर बलिहारी।।३।।
पवनञ्जय जी पिता कहाये, पाकर पुत्र बहुत हरषाये।।४।।
नव लख वर्ष पूर्व जन्मे थे, रामचन्द्र के भक्त बने थे।।५।।
जन्म से ही बलशाली इतने, पर्वत चूर हुआ गिरने से।।६।।
एक बार का है घटनाक्रम, सती अंजना का टूटा भ्रम।।७।।
जंगल में उसने सुत जन्मा, विकट परिस्थितियों का क्षण था।।८।।
तभी अंजना के मामा ने, कहा चलो तुम मेरे घर में।।९।।
दोनों को लेकर विमान में, हनुरुह द्वीप चले द्रुतगति से।।१०।।
तभी बीच में पुत्र गिर गया, मातृशक्ति का भाव भर गया।।११।।
नीचे उतरा वह विमान जब, देखा बालक खेल रहा तब।।१२।।
उसको चोट लगी नहिं किंचित्, पर्वत शिला चूर थी प्रत्युत् ।।१३।।
खुशियों का तब पार नहीं था, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं था।।१४।।
देख अपूरब घटना ऐसी, जय बोली वजरंगबली की।।१५।।
तुम सा सुत पाए हर माता, जो बन गया जगत का त्राता।।१६।।
रामचन्द्र की रामायण के, प्रमुख पात्र बनकर चमके थे।।१७।।
विद्याधर मानव की काया, समय-समय पर दिखती माया।।१८।।
कभी दीर्घ-लघु काय बनाते, कार्य हेतु नभ में उड़ जाते।।१९।।
राम लखन के भक्त कहाये, सीता माता के गुण गाये।।२०।।
रामचन्द्र वनवास काल में, सीता के अपहरणकाल में।।२१।।
जब रावण से युद्ध हुआ था, लंका में संघर्ष छिड़ा था।।२२।।
शक्ति अमोघ लगी लक्ष्मण को, गये हनुमान अयोध्यापुरि को।।२३।।
सती विशल्या को ले आए, संजीवनी नाम जन गाएं।।२४।।
ज्यों ही पास विशल्या पहुँची, दूर हुई लक्ष्मण की शक्ती।।२५।।
पुन: युद्ध में विजय हो गई, राम लखन की जीत हो गई।।२६।।
सीता ने पाया निज पति को, जन्म दिया फिर सुत लवकुश को।।२७।।
राम भक्त का एक लक्ष्य था, राम सिवा न उन्हें कुछ प्रिय था।।२८।।
थे सुग्रीव प्रधान साथ में, वानर सेना सदा साथ में।।२९।।
वानर सम नहिं मुख था उनका, मात्र मुकुट में वानर चिन्ह था।।३०।।
क्योंकि वंश था उनका वानर, वे थे कामदेव अति सुन्दर।।३१।।
आगे चलकर रामचन्द्र जब, दीक्षा ले तप हेतु गए वन।।३२।।
उनके संग हनुमान भी जा कर, दीक्षित हो पाया सुखसागर।।३३।।
ग्रन्थ पुराणों में वर्णन है, तुंगीगिरि का जहाँ कथन है।।३४।।
राम हनू सुग्रीव सुडीलं, गव गवाख्य नील महानीलं।।३५।।
तुंगीगिरि से मोक्ष पधारे, निन्यानवे कोटि मुनि सारे।।३६।।
इसीलिए हनुमान प्रभू को, माना है भगवान सभी ने।।३७।।
उनकी भक्ति करे जो प्राणी, मनवांछित फल पाते ज्ञानी।।३८।।
ग्रह बाधा सब भग जाती है, शारीरिक शक्ती आती है।।३९।।
श्री वजरंगबली हनुमाना, नमूँ नमूँ श्री शैल प्रधाना।।४०।।
-दोहा-
वीर संवत् पच्चीस सौ, पच्चिस वर्ष महान।
प्रथम ज्येष्ठ मावसतिथी, की यह रचना जान।।१।।
ज्ञानमती मातेश्वरी, गणिनी प्रमुख महान।
उनकी शिष्या चन्दनामती आर्यिका नाम।।२।।
काय आत्म द्वय शक्ति की, वृद्धि हेतु गुणगान।
करो सभी चालीस दिन, चालीसा हनुमान।।३।। ◆
Shiv Tarpan शिव तर्पण ◆ शिव तर्पण के लिए सिर्फ थोड़ा जल और अक्षत
लेना है। अक्षत को जल में मिश्रित कर निचे दिए गए मंत्रो को बोलकर
शिवजी के ऊपर आचमनी से जल अर्पण करे चाहो तो हाथो से भी तर्पण कर सकते है।
ॐ भवं देवं तर्पयामि ||
ॐ शर्वं देवं तर्पयामि ॥
ॐ ईशानं देवं तर्पयामि ||
ॐ पशुपतिं देवं तर्पयामि ॥
ॐ उग्रं देवं तर्पयामि || ॐ रुद्रं देवं तर्पयामि ॥
ॐ भीमं देवं तर्पयामि ॥
ॐ महांतं देवं तर्पयामि ॥ भवस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥
शर्वस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ||
ईशानस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ||
पशुपतेर्देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥
उग्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ||
रुद्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि || भीमस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥
महतो देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥
|| अस्तु ||
3/26/2023 • 2 minutes, 48 seconds
Shatrunashak Baglamukhi Mantra शत्रुनाशक बगलामुखी मंत्र
Shatrunashak Baglamukhi Mantra शत्रुनाशक बगलामुखी मंत्र ■
अगर शत्रुओं नें जीना दूभर कर रखा हो, कोट कचहरी पुलिस के चक्करों से तंग हो गए हों, शत्रु चैन से जीने नहीं दे रहे, प्रतिस्पर्धी आपको परेशान कर रहे हैं तो देवी के शत्रु नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए।
★
ॐ बगलामुखी देव्यै ह्रीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु
★
नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करें
मूर्ति या चित्र के सम्मुख गुगुल की धूनी जलाएं।
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें।
मंत्र जाप के समय पश्चिम में मुख रखें।
3/26/2023 • 17 minutes, 24 seconds
Navratri 5 Ma Skand Mata Mantra माँ स्कंदमाता मन्त्र
Navratri 5 Ma Skand Mata Mantra माँ स्कंदमाता मन्त्र ★ सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
★
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
★
3/25/2023 • 39 seconds
Navratri 4 Ma Kooshmanda Mantra माँ कूष्मांडा मन्त्र
Navratri 4 Ma Kooshmanda Mantra माँ कूष्मांडा मन्त्र ★ सुरासम्पूर्णकलशं रूधिरा प्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु। ★ फिर मां कूष्मांडा के इस मंत्र का जाप करें। या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। ★
3/25/2023 • 34 seconds
Mahakali Mantra महाकाली मन्त्र
Mahakali Mantra महाकाली मन्त्र
◆काली काली महाकाली कालिके पापनाशिनी
सर्वत्र मोक्षदा देहि नारायणी नमस्तेऽस्तु।
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमस्तेऽस्तु।
◆
तथ्य काली, संस्कृत में कालिका, शिव-शक्ति पार्वती का भयंकरतम रूप है। शिव को काल कहते हैं, अत: काली। असुरों का काल (मृत्यु) होने के कारण काली। इसके अलग अलग गुण धर्मों के द्योतक इसके अनेक नाम हैं। जैसे भद्रकाली इसका कुछ दयालु रूप है। कपालिनी इस कारण कि इसे एक हाथ में कपाल लिए दिखाते हैं जिसमें दूसरे हाथ में पकड़े नरमुंड का रक्त टपक रहा होता है। इसके सर्वाधिक प्रचलित रूपों में से एक रूप चार और दूसरा दस भुजाओं वाला है।
3/25/2023 • 1 minute, 35 seconds
Jagaddhatri Stotram जगद्धात्री स्तोत्रम्
Jagaddhatri Stotram जगद्धात्री स्तोत्रम् ◆ आधारभूते चाधेये धृतिरूपे धुरन्धरे ।
ध्रुवे ध्रुवपदे धीरे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥१॥ शवाकारे शक्तिरूपे शक्तिस्थे शक्तिविग्रहे ।
शाक्ताचारप्रिये देवि जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥२॥ जयदे जगदानन्दे जगदेकप्रपूजिते ।
जय सर्वगते दुर्गे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥३॥ सूक्ष्मातिसूक्ष्मरूपे च प्राणापानादिरूपिणि ।
भावाभावस्वरूपे च जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥४॥ कालादिरूपे कालेशे कालाकाल विभेदिनि ।
सर्वस्वरूपे सर्वज्ञे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥५॥ महाविघ्ने महोत्साहे महामाये वरप्रदे ।
प्रपञ्चसारे साध्वीशे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥६॥ अगम्ये जगतामाद्ये माहेश्वरि वराङ्गने ।
अशेषरूपे रूपस्थे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥७॥ द्विसप्तकोटिमन्त्राणां शक्तिरूपे सनातनि ।
सर्वशक्तिस्वरूपे च जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥८॥ तीर्थयज्ञतपोदानयोगसारे जगन्मयि ।
त्वमेव सर्वं सर्वस्थे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥९॥ दयारूपे दयादृष्टे दयार्द्रे दुःखमोचनि ।
सर्वापत्तारिके दुर्गे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥१०॥ अगम्यधामधामस्थे महायोगिशहृत्पुरे ।
अमेयभावकूटस्थे जगद्धात्रि नमोऽस्तु ते ॥११॥
Devi Keelak Stotram देवी कीलक स्तोत्रम् ★ ॐ नमश्चण्डिकायै ॥ ★
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे। श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥१॥ सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम् । सोऽपि क्षेममवाण्नोति सततं जाप्यतत्परः ॥ २ ॥ सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि। एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ॥ ३।। न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते । विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम् ॥ ४ ॥ समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः । कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम् ॥ ५ ॥ स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः। समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम् ॥ ६ ॥ सोऽपि क्षेममवाण्नोति सर्वमेवं न संशयः । कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥ ७ ॥ ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति । इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥ ८ ॥ यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्। स सिद्धः स गण: सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः ॥ ९ ॥ न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते । नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाण्नुयात् ॥ १० ॥ ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति । ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ॥ ११ ॥
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम् ||१२|
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः। भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत् ॥ १३ ॥ ऐश्वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः। शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः ॥ॐ ॥ १४॥ ★
3/23/2023 • 5 minutes, 55 seconds
Vedoktam Ratri Suktam वेदोक्तम रात्रिसूक्तम्
Vedoktam Ratri Suktam वेदोक्तम रात्रिसूक्तम् ★
ॐ रात्रीत्याद् यष्टर्चस्य सूक्तस्य कुशिकः सौभरो रात्रिर्वा भारद्वाज रात्रिर् देवता, गायत्री छन्दः, देवी माहात्म्य पाठे विनियोगः । ★
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभिः ।
विश्वा अधि श्रियोऽधित ॥ १ ॥
अर्थ : महत्तत्त्वादिरूप व्यापक इन्द्रियों से सब देशों में समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करनेवाली ये रात्रिरूपा देवी अपने उत्पन्न किये हुए जगत् के जीवों के शुभाशुभ कर्मों को विशेष रूपसे देखती हैं और उनके अनुरूप फल की व्यवस्था करने के लिये समस्त विभूतियों को धारण करती हैं ।। १ ।।
ओर्वप्रा अमत्यानिवतो देव्युद्धतः ।
ज्योतिषा बाधते तमः ॥ २ ॥
अर्थ : ये देवी अमर हैं और सम्पूर्ण विश्व को, नीचे फैलनेवाली लता आदि को तथा बढ़नेवाले वृक्षों को भी व्याप्त करके स्थित हैं; इतना ही नहीं, ये ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञानमय अन्धकार का नाश कर देती हैं ।।२।।
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती।
अपेदु हासते तमः॥ ३॥
अर्थ : परा चिच्छक्तिरूपा रात्रि देवी आकर अपनी बहिन ब्रह्मविद्या मयी उषादेवी को प्रकट करती हैं, जिससे अविद्यामय अन्धकार स्वतः नष्ट हो जाता है।।३।।
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि ।
वृक्षे न वसतिं वयः॥ ४ ॥
अर्थ : वे रात्रि देवी इस समय मुझ पर प्रसन्न हों, जिनके आने पर हम लोग अपने घरों में सुख से सोते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे रात्रि के समय पक्षी वृक्षों पर बनाये हुए अपने घोंसलों में सुखपूर्वक शयन करते हैं । । ४ । ।
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः ।
नि श्येनासश्चिदर्थिनः ॥ ५ ॥
अर्थ: उस करुणामयी रात्रिदेवी के अंक (गोद) में सम्पूर्ण ग्रामवासी मनुष्य, पैरों से चलनेवाले गाय, घोड़े आदि पशु, पंखों से उड़नेवाले पक्षी एवं पतंग आदि, किसी प्रयोजन से यात्रा करनेवाले पथिक और बाज आदि भी सुखपूर्वक सोते हैं ।।५।।
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूम्म्ये ।
अथा नः सुतरा भव॥ ६॥
अर्थ : रात्रिमयी चिच्छक्ति (चेतन शक्ति)! तुम कृपा करके वासनामयी वृकी तथा पापमय वृक (भेड़िये) को हमसे अलग करो। काम आदि तस्कर समुदाय को भी दूर हटाओ । तदनन्तर हमारे लिये सुखपूर्वक तरने योग्य हो जाओ, मोक्षदायिनी एवं कल्याणकारिणी बन जाओ ।। ६ ।।
उप मा पेपिशक्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित ।
उष ऋणेव यातय॥७॥
अर्थ: हे उषा! हे रात्रि की अधिष्ठात्री देवी ! सब ओर फैला हुआ यह अज्ञानमय काला अन्धकार मेरे निकट आ पहुँचा है। तुम इसे ऋण की भाँति दूर करो- जैसे धन देकर अपने भक्तों के ऋण दूर करती हो, उसी प्रकार ज्ञान देकर इस अज्ञान को भी हटा दो । ।७।।
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः।
रात्रि स्तोमं न जिग्युषे॥ ८॥
अर्थ : रात्रिदेवी! तुम दूध देनेवाली गौके समान हो। मैं तुम्हारे समीप आकर स्तुति आदि से तुम्हें अपने अनुकूल करता हूँ। परम व्योमस्वरूप (आकाश स्वरूप) परमात्मा की पुत्री ! तुम्हारी कृपा से मैं काम आदि शत्रुओं को जीत चुका हूँ, तुम स्तोम (यज्ञ) की भाँति मेरे इस हविष्य को भी ग्रहण करो ।।८।।
3/23/2023 • 2 minutes, 43 seconds
Navratri 3 Ma Chandraghanta Mantra माँ चन्द्रघंटा मन्त्र
Navratri 2 Ma Brahmcharini Mantra माँ ब्रह्मचारिणी मन्त्र
Navratri 2 Ma Brahmcharini Mantra माँ ब्रह्मचारिणी मन्त्र ★ दुर्गा जी का दूसरा अवतार (2nd Form of Navdurga): कठोर तप और ध्यान की देवी "ब्रह्मचारिणी" माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। इनकी उपासना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है।
देवी ब्रह्मचारिणी: 'ब्रहाचारिणी' माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। तपस्या के प्रथम चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया फिर बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है।
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र (Mata Brahmacharini Mantra): माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के लिए यह मंत्र है-
★
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ ★ पूजा में उपयोगी वस्तु: भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार आदि की वृद्धि होती है।
Ganpati Shadakshar Mantra गणपति षडाक्षर मंत्र 108 times
Ganpati Shadakshar Mantra गणपति षडाक्षर मंत्र ★ यह मंत्रराज साधको को अभीष्ट देता है ।
मंत्रोच्चारण
★ वक्रतुण्डाय हुम् ★
3/22/2023 • 12 minutes, 3 seconds
Navratri 1 Ma ShailPutri Mantra माँ शैलपुत्री मंत्र
Navratri 1 Ma ShailPutri Mantra माँ शैलपुत्री मंत्र ★ नवरात्र के प्रथम दिन माता के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है | शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है | यह मां दुर्गा का पहला स्वरूप माना गया है | नंदी नामक वृषभ पर सवार शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है| ★ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ ★
3/22/2023 • 35 seconds
Durga Stuti by Shri Krishna श्रीकृष्ण कृत दुर्गा स्तुति
Durga Stuti by Shri Krishna श्रीकृष्ण कृत दुर्गा स्तुति ★ त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त अनुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वंयया सम्मोहितं जगत्। ययामुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वांछिता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥
★
माँ दुर्गा की इस स्तुति में भगवान द्वारिकाधीश कहते हैं कि हे दुर्गा, तुम ही विश्वजननी हो, तुम ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो।
Shri Shivaye Namastubhyam श्री शिवाय नमस्तुभ्यं 108 times
Shri Shivaye Namastubhyam श्री शिवाय नमस्तुभ्यं 108 times •
अर्थात: हे श्री शिव आपको मेरा नमस्कार है। •
मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की 108 मोती की माला का उपयोग करे. और इस मंत्र का 108 बार उच्चारण करे। यदि आप इस मंत्र का जाप दिन में 108 बार करते है तो यह बहुत अच्छा माना जाता है क्यूंकि इससे आपको 1 लाख 8 हजार महामृत्युंजय मंत्र का लाभ प्राप्त होता है। यह मंत्र इतना प्रभावशाली है कि इसे एक हजार महामृत्युंजय मंत्र के बराबर बताया गया है। यदि आप एक बार श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का जाप करते है तो आपको एक हजार महामृत्युंजय मंत्र का लाभ मिलता है। इस मंत्र का जाप करने से आपको सुख, समृद्धि, शांति, धन लाभ आदि की प्राप्ति होती है। यह एक मंत्र आपका जीवन बदलने के लिए काफी है। इस मंत्र के जाप से मन शांत एवं प्रफुल्लित रहता है। शिव जी के इस मंत्र का जाप करने से सम्पूर्ण रोगो का विनाश होता है। इस मंत्र के जाप से शिव जी स्वयं आपकी मनोकामना को पूर्ण करते है। आपके बिगड़े काम बन जाते है।
3/20/2023 • 14 minutes, 37 seconds
Balaji (Mehndipur) Chalisa बालाजी चालीसा
Balaji (Mehndipur) Chalisa बालाजी चालीसा ■
Balaji (Mehndipur) Chalisa बालाजी चालीसा ■
यूं तो प्रत्येक माह में आने वाला प्रत्येक मंगलवार खास होता है परंतु कहा जाता है ज्येष्ठ माह में आने वाले मंगलवार अधिक महत्व रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो इसी माह में हनुमान जी की प्रभु श्रीराम से पहली मुलाकात ज्येष्ठ माह में ही हुई थी। जानते हैं हनुमान जी के बाला जी स्वरूप से जुड़ी चालीसा, जिसका पाठ आपको दिलाएगा हर कष्ट से मुक्ति। ★
।। दोहा।।
★
श्री गुरु चरण चितलाय के धरें ध्यान हनुमान ।
बालाजी चालीसा लिखे “ओम” स्नेही कल्याण ।।
विश्व विदित वर दानी संकट हरण हनुमान ।
मेंहदीपुर में प्रगट भये बालाजी भगवान ।।
★
।।चौपाई।।
★ जय हनुमान बालाजी देवा । प्रगट भये यहां तीनों देवा ।।
प्रेतराज भैरव बलवाना । कोतवाल कप्तानी हनुमाना ।।
मेंहदीपुर अवतार लिया है । भक्तों का उद्धार किया है ।।
बालरूप प्रगटे हैं यहां पर । संकट वाले आते जहां पर ।।
डाकिनी शाकिनी अरु जिंदनीं । मशान चुड़ैल भूत भूतनीं ।।
जाके भय ते सब भग जाते । स्याने भोपे यहां घबराते ।।
चौकी बंधन सब कट जाते । दूत मिले आनंद मनाते ।।
सच्चा है दरबार तिहारा । शरण पड़े सुख पावे भारा ।।
रूप तेज बल अतुलित धामा । सन्मुख जिनके सिय रामा ।।
कनक मुकुट मणि तेज प्रकाशा । सबकी होवत पूर्ण आशा ।।
महंत गणेशपुरी गुणीले । भये सुसेवक राम रंगीले ।।
अद्भुत कला दिखाई कैसी । कलयुग ज्योति जलाई जैसी ।।
ऊंची ध्वजा पताका नभ में । स्वर्ण कलश है उन्नत जग में ।।
धर्म सत्य का डंका बाजे । सियाराम जय शंकर राजे ।।
आन फिराया मुगदर घोटा । भूत जिंद पर पड़ते सोटा ।।
राम लक्ष्मन सिय हृदय कल्याणा । बाल रूप प्रगटे हनुमाना ।।
जय हनुमंत हठीले देवा । पुरी परिवार करत है सेवा ।।
लड्डू चूरमा मिसरी मेवा । अर्जी दरखास्त लगाऊ देवा ।।
दया करे सब विधि बालाजी । संकट हरण प्रगटे बालाजी ।।
जय बाबा की जन जन उचारे । कोटिक जन तेरे आए द्वारे ।।
बाल समय रवि भक्षहि लीन्हा । तिमिर मय जग कीन्हो तीन्हा ।।
देवन विनती की अति भारी । छांड़ दियो रवि कष्ट निहारी ।।
लांघि उदधि सिया सुधि लाए । लक्ष्मण हित संजीवन लाए ।।
रामानुज प्राण दिवाकर । शंकर सुवन मां अंजनी चाकर ।।
केसरी नंदन दुख भव भंजन । रामानंद सदा सुख संदन ।।
सिया राम के प्राण पियारे । जय बाबा की भक्त ऊचारे ।।
संकट दुख भंजन भगवाना । दया करहु हे कृपा निधाना ।।
सुमर बाल रूप कल्याणा करे मनोरथ पूर्ण कामा ।।
अष्ट सिद्धि नव निधि दातारी । भक्त जन आवे बहु भारी ।।
मेवा अरु मिष्टान प्रवीना । भेंट चढ़ावें धनि अरु दीना ।।
नृत्य करे नित न्यारे न्यारे । रिद्धि सिद्धियाँ जाके द्वारे ।।
अर्जी का आदर मिलते ही । भैरव भूत पकड़ते तबही ।।
कोतवाल कप्तान कृपाणी । प्रेतराज संकट कल्याणी ।।
चौकी बंधन कटते भाई । जो जन करते हैं सेवकाई ।।
रामदास बाल भगवंता । मेंहदीपुर प्रगटे हनुमंता ।।
जो जन बालाजी में आते । जन्म जन्म के पाप नशाते ।।
जल पावन लेकर घर जाते । निर्मल हो आनंद मनाते ।।
क्रूर कठिन संकट भग जावे । सत्य धर्म पथ राह दिखावें ।।
जो सत पाठ करे चालीसा । तापर प्रसन्न होय बागीसा ।।
कल्याण स्नेही । स्नेह से गावे । सुख समृद्धि रिद्धि सिद्धि पावे ।।
।।दोहा।।
मंद बुद्धि मम जानके, क्षमा करो गुणखान ।
संकट मोचन क्षमहु मम, “ओम” स्नेही कल्याणा ।।
3/20/2023 • 8 minutes, 38 seconds
Durga Mantra दुर्गा मन्त्र
Durga Mantra दुर्गा मन्त्र ◆ सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते
◆ अर्थः शुभ कार्यों में सर्वाधिक शुभ करने वाली मंगलदायिनी, (भक्त के) सभी पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) साधने वाली तथा उसे शरण देने वाली, गौर वर्ण तथा तीन नेत्रों वाली हे नारायणी! आपको हमारा नमन।
3/20/2023 • 58 seconds
Saraswati Stuti सरस्वती स्तुति
Saraswati Stuti by 'Satyam' Subhash Mittal सरस्वती स्तुति (रचयिता- 'सत्यम' सुभाष मित्तल) ★ हे भगवति मा शारदे, सिर पर रखदो हाथ।
वरद हस्त से आपके, झुका रहे यह माथ।।
झुका रहे यह माथ, ध्यान में तुझको लाऊं ।
ऐसी दो सुर शक्ति, गीत तेरा नित गाऊँ।।
दो वह विद्या ज्ञान, अंत मे पाऊँ सदगति ।
रहू सदा मैं मुक्त भारती, मा हे भगवति।।
सुर की देवी सुरसती, मन में भरो उजास ।
दीप ज्ञान का मन जला, कर दो काव्य प्रकाश।।
कर दो काव्य प्रकाश, मनुज हित होवे सिरजन।
जग कल्याणी भाव , भरा हो मेरा चिन्तन ।।
सत्यम् करो सहाय , निवार बुराई उर की।
मति में करो निवास , मात हे देवी सुर की।।
Ganesh Shadakshar Mantra Vidhaan गणेश षडाक्षर मंत्र विधान
Ganesh Shadakshar Mantra Vidhaan गणेश षडाक्षर मंत्र विधान ◆ भगवान गणेश का उत्तम मंत्र जो षडाक्षर है । जिन के
ऋषि भार्गव है | इस मंत्र की साधना अवश्य करनी चाहिए | इस मंत्र के विधान में विनियोग और ध्यान का प्रावधान है । "वक्रतुण्डाय हुं " ◆ बेहद लाभकारी है. इस मंत्र का जाप करने से आपके किसी कार्य में रुकावट नहीं आती है.
विनियोगः
ॐ अस्य श्री गणेश मंत्रस्य भार्गव ऋषिरनुष्टुप छन्दः विघ्नेशो देवता वं बीजं यं शक्तिर्ममाभिष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
गणेश ध्यानः
ॐ उद्यद्दिनेश्वर रुचिं निजपद्महस्तैः पाशांकुशाऽभयवरान दधतं गजास्यां ।
रक्तांबरं सकलदुःखहरं गणेशं
ध्यायेत प्रसन्नमखिलाभरणाभीरामं ||
ध्यान करने के बाद षडाक्षर मंत्र का आरम्भ करे ।
षडक्षर मंत्र
गणेशस्य मनुन्वक्षे सर्वाभीष्टप्रदायकान | जलं (व) चक्री (क) वह्नि (र) युतः कर्णेद्वाढ़या च कामिका (तुं) || दारको (ड) दीर्घसंयुक्तो (आ) वायुः (य) कवच (हु) पश्चिमः
षडक्षरोमंत्रराजो भजतामिष्टसिद्धिदः || साधको को समस्त अभीष्ट देने वाले गणेशजी का यह उत्तम मंत्र है । जल (व्) वह्नि के साथ चक्री (क्र) कर्णेन्दु के साथ कामिका (तुं) दीर्घसंयुक्त दारक (डा) वायु (य) तथा अंतिम चरण में कवच (हुम्) इस तरह से यह मंत्रराज साधको को अभीष्ट देता है।
मंत्रोच्चारण
★ ॐ वक्रतुण्डाय हुम् ★
Legal Victory Mantra न्यायिक विजय मन्त्र ★ मुकदमे में विजय पाने के लिए
कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामले में विजय के लिए नीचे दिये गये भगवान शिव के मंत्र को 36 बार जपें। ◆
।। ॐ क्रीं नम: शिवाय क्रीं ॐ।। ◆
3/14/2023 • 7 minutes, 21 seconds
Ganpati Mantra गणपति मन्त्र- ॐ गं गणपतये नमः 108 times
Ganpati Mantra गणपति मन्त्र ■ ॐ गं गणपतये नमः ■
3/14/2023 • 13 minutes, 58 seconds
Kalyan Mandir Stotra कल्याण मन्दिर स्तोत्र (fast recitation)
Kalyan Mandir Stotra कल्याण मन्दिर स्तोत्र (fast recitation)
3/14/2023 • 9 minutes, 23 seconds
Vishwavasu Gandharva Mantra विश्वावसु गंधर्व मंत्र
Vishwavasu Gandharva Mantra विश्वावसु गंधर्व मंत्र • यदि किसी अविवाहित जातक को विवाह होने में बार-बार बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो तो नित्य प्रातः स्नान कर सात अंजुली जलं ''विश्वावसु'' गंधर्व को अर्पित करें और निम्न मंत्र का 108 बार मन ही मन जप करें। ध्यान रहे कि इसे गुप्त रखें। अपने परिजनों के अतिरिक्त किसी को भी इस बात का आभास न होने पाए कि विवाह के उद्देश्य से जपानुष्ठान किया जा रहा है। सायंकाल में भी एक माला जप मानसिक रूप में किया जाए। ऐसा करने से एक माह में सुंदर, सुशील और सुयोग्य कन्या से विवाह निश्चित हो सकता है।
मंत्र :
ॐ विश्वावसुर्नामगं धर्वो कन्यानामधिपतिः।
स्वरूपां सालंकृतां कन्या देहि मे नमस्तस्मै॥
विश्वावस्वे स्वाहा॥''
इस प्रकार से विश्वावसु नामक गंधर्व को सात अंजुली जल अर्पित करके उपरोक्त मंत्र/विद्या का जप करने से एक माह के अंदर अलंकारों से सुसज्जित श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार :
पानीयस्यान्जलीन सप्त दत्वा, विद्यामिमां जपेत्।
सालंकारां वरां कन्यां, लभते मास मात्रतः॥
3/13/2023 • 1 minute, 52 seconds
Sheetla Devi Vandana Mantra शीतला देवी वन्दना मन्त्र
Sheetla Devi Vandana Mantra शीतला देवी वन्दना मन्त्र ■ हिंदू धर्म के विविध पर्व-त्योहारों को मनाने के पीछे वैज्ञानिक सोच व तत्व-दर्शन निहित है। होली के एक सप्ताह बाद मनाए जाने वाले शीतलाष्टमी त्योहार पर शीतला माता का पूजन कर व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि माता के पूजन से चेचक, खसरा जैसे संक्रामक रोगों से मुक्ति मिलती है। चूंकि ऋतु-परिवर्तन के दौरान इस समय संक्रामक रोगों के प्रकोप की काफी आशंका रहती है। इसलिए इन रोगों से बचाव के लिए श्रद्धालु शीतला अष्टमी के दिन माता का विधि पूर्वक पूजन करते हैं, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहे।
शीतला माता की महत्ता के विषय में स्कंद पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें उल्लेख है कि शीतला देवी का वाहन गर्दभ है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किये हैं। इनका प्रतीकात्मक महत्व है। आशय यह है कि चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है। झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम की पत्तियां फोड़ों को सड़ने नहीं देतीं। रोगी को ठंडा जल अच्छा लगता है, अतः कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं।
इस मंत्र से शीतला माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ★‘वन्देहं शीतला देवीं रासभस्थां दिगम्बराम। मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम॥’ ★ अर्थात गर्दभ पर विराजमान दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से स्पष्ट है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी (झाड़ू) होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
3/13/2023 • 2 minutes, 32 seconds
Sarv Kasht Haran Bhairav Stotram सर्व कष्ट हरण भैरव स्तोत्रम् by BVM
Sarv Kasht Haran Bhairav Stotram सर्व कष्ट हरण भैरव स्तोत्रम् BVM • श्री भैरव स्तोत्रम् एक बहुत ही दुर्लभ और अमोघ स्तोत्र हैं। इसके नित्य पाठ करने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं। भैरव, भगवान शिव का ही स्वरूप हैं। इनकी कृपा से जातक के जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता हैं। उसकी जन्मपत्री में यदि कोई दोष भी हो तो उसका भी निवारण हो जाता हैं। सुख-शांति समृद्धि-यश-बल और आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
•
श्रीगणेशाय नमः
श्री उमामहेश्वराभ्यां नमः ।
श्रीगुरवे नमः ।
श्रीभैरवाय नमः ॥
•
ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरं
लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् डमरुध्वनिशङ्खं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ॥ १॥
चर्चितसिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरं किङ्किणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्परसावं पुण्यभरम् करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तसुकेशं पापहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ २
कलिमलसंहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीघ्रकरं
कलुषं शमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगन्तं शुद्धतरम् गतिनिन्दितकेशं नर्तनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ३ ॥
कठिनस्तनकुम्भं सुकृतं सुलभं कालीडिम्भं खड्गधरं वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् । तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेशं कष्टहरम् ॥ ४ ॥
ललिताननचन्द्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरं सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् । वरदाभयहारं तरलिततारं क्षुद्रविदारं तुष्टिकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ५॥
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भ्रष्टमलं शरणागतपालं मृगमदभालं सञ्जितकालं स्वेष्टबलम् पदनूपूरसिञ्जं त्रिनयनकञ्जं गुणिजनरञ्जन कुष्टहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ६ ॥
मर्दयितुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदं रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मतिदम् । कुटिलभ्रुकुटीकं ज्वरधननीकं विसरन्धीकं प्रेमभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ७ ॥
परिनिर्जितकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशं बहुमद्यपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।
कलयन्तमशेषं भृतजनदेशं नृत्यसुरेशं वीरेशं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ •
Shiv Anand Tandav Stotram शिव आनंद तांडव स्तोत्रम्
Shiv Anand Tandav Stotram शिव आनंद तांडव स्तोत्रम् ■ सभी कलाकारों को तथा नर्तको को इस मंत्र का पठन करना चाहिए। इस मन्त्र से कला साधना में सफलता प्राप्ति होती है।
★ सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः|
★
हे नटराज आप ही अपने तांडव द्वारा सृष्टि की रचना करने वाले हैं| हे नटराज राज आपको नमन है|
★
हे आद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः|
★
हे शंकर आप ही परं पिता एवं आदि गुरु हैं. हे नटराज राज आपको नमन है|
★
गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्मांडना
नित होत नाद प्रचंडना नटराज राज नमो नमः|
★
हे शिव, ये संपूर्ण विश्व आपके मृदंग के ध्वनि द्वारा ही संचालित होता है| इस संसार में व्याप्त प्रत्येक ध्वनि के श्रोत आप हे हैं| हे नटराज राज आपको नमन है |
★
शिर ज्ञान गंगा चंद्र चिद ब्रह्म ज्योति ललाट मां
विष नाग माला कंठ मां नटराज राज नमो नमः|
★
हे नटराज आप ज्ञान रूपी चंद्र एवं गंगा को धारण करने वाले हैं, आपका ललाट से दिव्या ज्योति का स्रोत है| हे नटराज राज आप विषधारी नाग को गले में धारण करते हैं| आपको नमन है|
★
तवशक्ति वामे स्थिता हे चन्द्रिका अपराजिता |
चहु वेद गाएं संहिता नटराज राज नमो नमः|
★
हे शिव (माता) शक्ति आपके अर्धांगिनी हैं, हे चंद्रमौलेश्वर आप अजय हैं. चार वेदा आपकी ही सहिंता का गान करते हैं. हे नटराज राज आपको नमन है |
3/12/2023 • 1 minute, 52 seconds
Shri Navgrah Chalisa श्री नवग्रह चालीसा
Shri Navgrah Chalisa श्री नवग्रह चालीसा ■ अगर आपके जन्म कुंडली में किसी तरह से ग्रहों से जुडी परेशानी है तो आप नवग्रह शांति पाठ करा सकते हैं लेकिन हर कोई इतना सामर्थ्य नहीं रखता की वो ब्राह्मणों को बुलाकर शान्ति पाठ करा सके। इसलिए नवग्रह चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है। नवग्रहों की शांति के लिए ये बेहद अच्छा उपाय है। अगर आप इस चालीसा का लगातार तीन महीने तक पाठ करते हैं तो किसी भी काम में आ रही रुकावटें टल जाएंगी और आपके काम बिना किसी बाधाओं के हो सकेंगे।
◆
॥ दोहा ॥
◆
श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय ।
नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय ॥
जय जय रवि शशि सोम,
बुध जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह, करहुं अनुग्रह आज ॥
◆
॥ चौपाई ॥
◆
॥ श्री सूर्य स्तुति ॥
◆
प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा,
करहुं कृपा जनि जानि अनाथा ।
हे आदित्य दिवाकर भानू,
मैं मति मन्द महा अज्ञानू ।
अब निज जन कहं हरहु कलेषा,
दिनकर द्वादश रूप दिनेशा ।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर,
अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर ।
◆
॥ श्री चन्द्र स्तुति ॥
◆
शशि मयंक रजनीपति स्वामी,
चन्द्र कलानिधि नमो नमामि ।
राकापति हिमांशु राकेशा,
प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा ।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर,
शीत रश्मि औषधि निशाकर ।
तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा,
शरण शरण जन हरहुं कलेशा ।
◆
॥ श्री मंगल स्तुति ॥
◆
जय जय जय मंगल सुखदाता,
लोहित भौमादिक विख्याता ।
अंगारक कुज रुज ऋणहारी,
करहुं दया यही विनय हमारी ।
हे महिसुत छितिसुत सुखराशी,
लोहितांग जय जन अघनाशी ।
अगम अमंगल अब हर लीजै,
सकल मनोरथ पूरण कीजै ।
◆
॥ श्री बुध स्तुति ॥
◆
जय शशि नन्दन बुध महाराजा,
करहु सकल जन कहं शुभ काजा ।
दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना,
कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा ।
हे तारासुत रोहिणी नन्दन,
चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन ।
पूजहिं आस दास कहुं स्वामी,
प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी ।
◆
॥ श्री बृहस्पति स्तुति ॥
◆
जयति जयति जय श्री गुरुदेवा,
करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा ।
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी,
इन्द्र पुरोहित विद्यादानी । वाचस्पति बागीश उदारा,
जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा ।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा,
करहुं सकल विधि पूरण कामा ।
◆
॥ श्री शुक्र स्तुति ॥
◆
शुक्र देव पद तल जल जाता,
दास निरन्तन ध्यान लगाता ।
हे उशना भार्गव भृगु नन्दन,
दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन ।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी,
हरहुं नेष्ट ग्रह करहुं सुखारी ।
तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा,
नर शरीर के तुमही राजा ।
◆
॥ श्री शनि स्तुति ॥
◆
जय श्री शनिदेव रवि नन्दन,
जय कृष्णो सौरी जगवन्दन ।
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा,
वप्र आदि कोणस्थ ललामा ।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा,
क्षण महं करत रंक क्षण राजा ।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला,
हरहुं विपत्ति छाया के लाला ।
◆
॥ श्री राहु स्तुति ॥
◆
जय जय राहु गगन प्रविसइया,
तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया ।
रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा,
शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा ।
सैहिंकेय तुम निशाचर राजा,
अर्धकाय जग राखहु लाजा ।
यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु,
सदा शान्ति और सुख उपजावहु ।
◆
॥ श्री केतु स्तुति ॥
◆
जय श्री केतु कठिन दुखहारी,
करहु सुजन हित मंगलकारी ।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला,
घोर रौद्रतन अघमन काला ।
शिखी तारिका ग्रह बलवान,
महा प्रताप न तेज ठिकाना ।
वाहन मीन महा शुभकारी,
दीजै शान्ति दया उर धारी ।
◆
॥ नवग्रह शांति फल ॥
◆
तीरथराज प्रयाग सुपासा,
बसै राम के सुन्दर दासा ।
ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी,
दुर्वासाश्रम जन दुख हारी ।
नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु,
जन तन कष्ट उतारण सेतू ।
जो नित पाठ करै चित लावै,
सब सुख भोगि परम पद पावै ॥
◆
॥ दोहा ॥
धन्य नवग्रह देव प्रभु,
महिमा अगम अपार ।
चित नव मंगल मोद गृह,
जगत जनन सुखद्वार ॥
यह चालीसा नवोग्रह,
विरचित सुन्दरदास ।
पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख,
सर्वानन्द हुलास ॥
◆ ॥ इति श्री नवग्रह चालीसा ॥ ◆
Sarva Rog haari Parshwanath Mantra सर्वरोगहारी पार्श्वनाथ मन्त्र ★ ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय एहि एहि भगवती दह दह हन हन चूर्णय चूर्णय भंज भंज कंड कंड मद्र्दय मद्र्दय हम्ल्यू आवेशय २ हूँ फट् स्वाहा ★ इस मंत्र का ४००० पुष्पों से जाप्य करने से सर्वरोग नष्ट हो जाते हैं।
3/11/2023 • 44 seconds
Shri Shiv Chalisa श्री शिव चालीसा
Shri Shiv Chalisa श्री शिव चालीसा ★
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥3॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई ॥कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥ जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥ मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई ॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी ॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥ अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥ शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं ॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥ जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥ ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी ॥ पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥ धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे ॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा । तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥ मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥ ★
3/11/2023 • 8 minutes, 9 seconds
Putra Prapti Surya Mantra पुत्रप्राप्ति सूर्य मन्त्र 11 times
Putra Prapti Surya Mantra पुत्रप्राप्ति सूर्य मन्त्र 11 times: पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए ★ ऊँ भास्कराय पुत्रं देहि महातेजसे धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात्।।
★
3/11/2023 • 2 minutes, 15 seconds
Khatu Shyam Gayatri Mantra खाटू श्याम गायत्री मंत्र 3 times
Jain Mahamrityunjay Mantra जैन महामृत्युंजय मंत्र 9 times
जैन महामृत्युंजय मंत्र ■ ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं | ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ॐ हूं णमो आइरियाणं,
ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रः णमो लोए सव्वसाहूणं, मम सर्व ग्रहारिष्टान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
■ (विधि दीप जलाकर धूप देते हुए नैष्ठिक रहकर इस मंत्र का स्वयं जाप करें या अन्य द्वारा करावें | यदि अन्य व्यक्ति जाप करे तो 'मम' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जोड ़ लें जिसके लिए जाप करना है।) इस मंत्र का सवा लाख जाप करने से ग्रह-बाधा दूर हो जाती है। कम से कम इस मंत्र का 31 हजार जाप करना चाहिये | जाप के अनन्तर दशांश आहुति देकर हवन भी करें।
3/11/2023 • 6 minutes, 42 seconds
Parvati Vallabh Ashtakam पार्वतीवल्लभ अष्टकम्
Parvati Vallabh Ashtakam पार्वतीवल्लभ अष्टकम् • पार्वती वल्लभ अष्टकम देवी पार्वती के पति के रूप में भगवान शिव की प्रार्थना है • नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १ ॥
सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २ ॥
श्मशानं शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३ ॥
फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्म चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४ ॥
शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा फालचन्द्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५ ॥
करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६ ॥
उदासं सुदासं सुकैलासवासं
धरानिर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजाहेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७ ॥
मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजैस्सम्पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालं महेशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८ ॥
सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम्
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९ ॥ •
इति श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं पार्वतीवल्लभाष्टकम् ॥
Shri Dakshin Kali Mantra श्री दक्षिण काली मन्त्र • काली पूजा के सभी मंत्रों में निम्नलिखित 22 अक्षर वाले मंत्र को सबसे प्रभावी माना गया
है। ■ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा। ■ जप के कुछ समय बाद आपको बीच में ध्वनि शब्द, स्पर्श या भय की अनुभूति हो सकती है! कभी ध्यान में अथवा प्रत्यक्ष महाकाली के दर्शन जिनका स्वरूप अत्यंत दुबला शरीर काली लाल उभरी आँख कृष्ण नील वर्ण दुर्गन्धता युक्त वातावरण और भयंकर नाद सुनाई पड़ सकता है (ये अनुभव प्रत्येक का एक जैसा नही ं होता) अतः बिन घबराये माँ से प्रार्थना करके जप करें सफलता अवश्य मिलेगी
Shri Ganesh Chalisa श्री गणेश चालीसा ◆ **श्री गणेश चालीसा***
जय गणपति सदगुण सदन,कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करन, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू,मंगल भरण करण शुभः काजू।
जय गजबदन सदन सुखदाता,विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥
वक्रतुंडा शुची शुन्दा सुहावना,तिलका त्रिपुन्दा भाल मन भावन।
राजता मणि मुक्ताना उर माला,स्वर्ण मुकुता शिरा नयन विशाला॥
पुस्तक पानी कुथार त्रिशूलं,मोदक भोग सुगन्धित फूलं।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित,चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिव सुवन शादानना भ्राता,गौरी लालन विश्व-विख्याता।
रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे,मूषका वाहन सोहत द्वारे॥
कहूं जन्मा शुभ कथा तुम्हारी,अति शुची पावन मंगलकारी।
एक समय गिरिराज कुमारी,पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा,तब पहुँच्यो तुम धरी द्विजा रूपा।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी,बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्ना हवाई तुम वरा दीन्हा,मातु पुत्र हित जो टाप कीन्हा।
मिलही पुत्र तुही, बुद्धि विशाला,बिना गर्भा धारण यही काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना,पूजित प्रथम रूप भगवाना।
असा कही अंतर्ध्याना रूप हवाई,पालना पर बालक स्वरूप हवाई॥
बनिशिशुरुदंजबहितुम थाना,लखी मुख सुख नहीं गौरी समाना।
सकल मगन सुखा मंगल गावहीं,नाभा ते सुरन सुमन वर्शावाहीं॥
शम्भू उमा बहुदान लुतावाहीं,सुरा मुनिजन सुत देखन आवहिं।
लखी अति आनंद मंगल साजा,देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गाणी शनि मन माहीं,बालक देखन चाहत नाहीं।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो,उत्सव मोरा न शनि तुही भायो॥
कहना लगे शनि मन सकुचाई,का करिहौ शिशु मोहि दिखायी।
नहीं विश्वास उमा उर भयू,शनि सों बालक देखन कह्यौ॥
पदताहीं शनि द्रिगाकोना प्रकाशा,बालक सिरा उडी गयो आकाशा।
गिरजा गिरी विकला हवाई धरणी,सो दुख दशा गयो नहीं वरनी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा,शनि कीन्हों लखी सुत को नाशा।
तुरत गरुडा चढी विष्णु सिधाए,काटी चक्र सो गजशिरा लाये॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो,प्राण मंत्र पढ़ी शंकर दारयो।
नाम’गणेशा’शम्भुताबकीन्हे,प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा, पृथ्वी कर प्रदक्षिना लीन्हा।
चले शदानना भरमि भुलाई, रचे बैठी तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धारा लीन्हें, तिनके सात प्रदक्षिना कीन्हें।
धनि गणेशा कही शिव हिये हरष्यो, नाभा ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हारी महिमा बुद्धि बढाई, शेष सहसा मुख सके न गई।
मैं मति हीन मलीना दुखारी, करहूँ कौन विधि विनय तुम्हारी॥
भजता ‘रामसुन्दर’ प्रभुदासा, जगा प्रयागा ककरा दुर्वासा।
अब प्रभु दया दीना पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कुछा दीजै॥
ll दोहा ll
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठा कर्रे धरा ध्यान; नीता नव मंगल ग्रह बसे, लहे जगत सनमाना।
सम्बन्ध अपना सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेशा; पूर्ण चालीसा भयो, मंगला मूर्ती गणेशा॥ ◆
3/6/2023 • 8 minutes, 44 seconds
Tibetan Meditation Mantra OM SO HUM तिब्बती ध्यान मन्त्र ॐ सो हुं
Tibetan Meditation Mantra OM SO HUM तिब्बती ध्यान मन्त्र ★ ॐ सो हुं ★ OM SO HUM Mantra Benefits and Meaning
So Hum is derived from Sanskrit and literally means “I am That” . it means identifying oneself with the universe or ultimate reality. As we meditate on this, we realise that we are all one, we have all come from one Infinite Source, and a part (Ansh) of that infinite source is present in all of us. We are all connected.
“You are the same as I am” OM is the sound of universe. Om Soham ~ I am the universe, I am part of it, I am connected to that Infinite source.
Its not just a mantra which we should understand, its a technique and just chanting ★ Om So Hum, Om So Hum ★ for 10-15 mins daily can relax the breathing and balance our inner energy flow.
Just few minutes of meditating along with this magical mantra can bring calm and so much positivity inside and out.
3/6/2023 • 16 minutes, 28 seconds
Navnath Namaskar Stotra नवनाथ नमस्कार स्तोत्र
Navnath Namaskar Stotra नवनाथ नमस्कार स्तोत्र
★
आदि नाथ ॐकार शिव, ज्योति रूप वन्दामि । उदयनाथ जी पार्वती, पृथिवी रूप नमामि ॥ सत्यनाथ ब्रह्मा नमो नमो नमो जल रूप नमो नाथ संतोष जी, विष्णु तेज स्वरूप ॥ नमो शेष धरणीधर, अचल अचम्भे नाथ नमो नभोमय गणपति, गजकर्णस्थल नाथ ॥ नमामि चौरंगीनाथ जी, चन्द्र वनस्पति रूप | नमामि मत्स्येन्द्र नाथ जी, माया रूप अनूप ॥ अलख निरंजन नमो नमो श्री शिव गोरक्ष नाथ | नमन करे नवनाथ को होवे सभी सनाथ ॥ ॥ सदाशिव गोरक्षनाथ की जय ॥
3/5/2023 • 2 minutes, 4 seconds
Guru Gayatri Mantra गुरु गायत्री मन्त्र
Guru Gayatri Mantra गुरु गायत्री मन्त्र ◆ ॐ गुरुदेवाय विद्महे
परब्रह्माय धीमहि ।
तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥ ◆
3/5/2023 • 55 seconds
Kalyan Mandir Stotra कल्याण मन्दिर स्तोत्र (Sanskrit)
Kalyan Mandir Stotra कल्याण मन्दिर स्तोत्र (Sanskrit)
3/5/2023 • 27 minutes, 27 seconds
Saptapadi Mantra सप्तपदी मंत्र
Saptapadi Mantra सप्तपदी मंत्र
Saptapadi is the most important rite of a Hindu marriage ceremony. The word, Saptapadi means "Seven steps". After tying the Mangalsutra, the newlywed couple vow seven promises of marriage walking around the holy fire, that is called Saptapadi. Saptapadi is referred to as Saat Phere. After the seventh promise, the couple become husband and wife.
सप्तपदी एक हिंदू विवाह समारोह का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। शब्द, सप्तपदी का अर्थ है "सात चरण"। मंगलसूत्र बांधने के बाद, नवविवाहित जोड़े पवित्र अग्नि के चारों ओर घूमते हुए विवाह के सात वचन लेते हैं, जिसे सप्तपदी कहा जाता है। सप्तपदी को सात फेरे कहा जाता है। सातवें वादे के बाद यह जोड़ा पति-पत्नी बन जाता है।
ॐ इषे एकपदी भव
Let us take our first step together for strength. आओ हम अपना पहला चरण दृढ़ता के लिए रखें।
ॐ ऊर्जे द्विपदी भव
Our second step for an energetic life. दूसरा चरण ऊर्जावान जीवन के लिए
ॐ रायस्पोषाय त्रिपदी भव
Third step for prosperity. तीसरा चरण समृद्धि के लिए।
ॐ मायोभवाय चतुष्पदी भव
Fourth step for happiness. चौथा कदम सौभाग्य के लिए।
ॐ प्रजाभ्यः पञ्चपदी भव
Fifth step for our children पांचवां कदम हमारे बच्चों के लिए
ॐ ऋतुभ्यः षट्पदी भव
Sixth step for all the seasons to come. छठा कदम आने वाली सभी ऋतुओं के लिए।
ॐ सखे सप्तपदी भव
Seventh step for being friends forever. सातवां कदम सदैव मित्र के रूप में रहने के लिए।
3/3/2023 • 2 minutes, 13 seconds
Holika Dahan Pujan Vidhi होलिका दहन पूजन विधि
Holika Dahan Pujan Vidhi होलिका दहन पूजन विधि
शुभ मुहूर्त में देशकाल एंव नाम गोत्र उच्चारण पूर्वक
"मम सकुटुम्बस्य ढुण्ढा राक्षसीप्रीत्यर्थे तत्पीड़ापरिहारार्थम् होलिका पूजनं च अहं करिष्ये।"
इस मंत्र से संकल्प करें तत्पश्चात ध्यान मंत्र से ध्यान करें-
'असृक्याभयसंत्रस्त्रैः कृत्वा त्वं होलिवालिशैः ।
तस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव ।।'
तत्पश्चात
दीप मंत्र-
'दीपयाम्यद्यतेघोरे चिति राक्षसि सप्तमे ।
हिताय सर्व जगताय पीतये पार्वतीपतेः ॥'
से यथाविधि पूजन करें। पूजन कर के
'अनेन अर्चनेन होलिकाधिष्ठातृदेवता प्रीयन्तां नमम् ।।' बोलते हुए जल अर्पित करें, फिर प्रज्जवलित होलिका की 3 बार ’ॐ होलिकायै नमः'
मंत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करें।
दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। यह त्योहार नई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है।
फिर दूसरे दिन होलिकाभस्म धारण मंत्र-
'वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्राणा शंकरेण च
अतस्त्वं पाहि नो देवि विभूतिः भूतिदा भव ।।'
इस मंत्र को पढ़कर भस्म को मस्तक, सीने व नाभि में लगाएं तथा घर के हर कोने में थोड़ी से छिड़क दें। ऐसा करने से घर में शुद्ध वातावरण रहेगा एवं सुख-समृद्धि बनी रहेगी।
3/3/2023 • 3 minutes, 1 second
Holika Pujan Mantra with Hindi Meaning होलिका पूजन मंत्र हिन्दी अर्थ सहित 3 times
Holika Pujan Mantra with Hindi Meaning होलिका पूजन मंत्र हिन्दी अर्थ सहित 3 times ◆ अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्। ◆ का उच्चारण करते हुए तीन परिक्रमा करें। इस मंत्र का अर्थ है - होलिका की अग्नि में ईर्ष्या, द्वेश, कष्ट भस्म हों। असत्य पर सत्य का प्रहार और विनाशकारी शक्तियों का नाश हो । निंद्य न बचे। घर-घर में सुख, समृद्धि, आनंद के नव पुष्प पल्लवित हों।
Pranayam Gayatri Mantra प्राणायाम गायत्री मंत्र 3 times
Pranayam Gayatri Mantra प्राणायाम गायत्री मंत्र ◆ ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः
ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ॥ ◆
Om Bhuuh Om Bhuvah Om Svah
Om Mahah Om Janah Om Tapah Om Satyam
Om Tat-Savitur-Varennyam Bhargo Devasya Dhiimahi
Dhiyo Yo Nah Pracodayaat |
Om Aapo Jyotii Raso[a-A]mrtam Brahma Bhuur-Bhuvah Svar-Om || ◆
Meaning:
1: Om, (I meditate on the) Bhu Loka (Physical Plane, Consciousness of the Physical Plane),
Om, (I meditate on the) Bhuvar Loka (Antariksha or Intermediate Space, Consciousness of the Prana),
Om, (I meditate on the) Swar Loka (Swarga, Heaven, Consciousness of the beginning of the Divine Mind),
(The above have relatively grosser manifestations to start the meditation; Then the meditation goes to subtler levels)
2: Om, (I meditate on the) Mahar Loka (Great, Mighty, Still subtler Plane felt as All-Pervading Consciousness),
Om, (I meditate on the) Janar Loka (Generating, Still subtler Plane felt as All-Creating Consciousness),
Om, (I meditate on the) Tapo Loka (Filled with Tejas, Still subtler Plane felt as filled with Divine Tejas or Illumination of Shakti),
Om, (I meditate on the) Satya Loka (Absolute Truth, Most subtle Plane merging with the Consciousness of Brahman),
3: Om, on that Savitur (Divine Illumination) which is most Adorable (Varenyam) and which is of the nature of Divine Effulgence (Bhargo Devasya), I meditate,
4: May that Divine Intelligence (Dhiyah) Awaken (Pracodyat) our (Spiritual Consciousness),
5: Om, that Divine Consciousness which is:
Apah (All-Pervading),
Jyoti (Divine Effulgence),
Rasa (Divine Essence),
Amritam (Immortal and Nectar-like Blissful),
Brahma (Sacchidananda Brahman ) ...
... (has manifested in grosser forms as) Bhu Loka (Physical Plane), Bhuvar Loka (Antariksha or Intermediate Space) and Swar Loka (Swarga or Heaven), ...
... (but which is) Om (in essence).
Shri Sai Stotra श्री साईं स्तोत्र ◆ श्री साईं स्तोत्र के पाठ से न केवल मन शांत होगा अपितु इससे आपके संकट भी दूर होंगे। श्री साईं स्तोत्र के पाठ से शत्रु संकट, धन संकट, रोग आदि सब दूर होता है। संतान और वैवाहिक जीवन में सुख आता है। ◆ जय जय साईनाथा शुभ तव गाथा प्रकट ब्रह्म श्री संता ।
जय करुणसागर सब गुण आगर अलख-असीम अनंता ॥….(1)
जय सर्वज्ञानी अंतर्यामी अच्युत-अनूप-महंता ।
जय सिद्धिविनायक शुभफलदायक पालक जगत नियंता ॥….(2)
जय सृष्टि रचयिता धारणकर्ता सर्वश्रेष्ठ अभियंता ।
जय सर्वव्यापी परम प्रतापी प्रेम-पयोधि प्रशांता ॥….(3)
जय सहज कृपाला दीन दयाला प्रणतपाल भगवंता ।
जय सच्चिदानंदा प्रभु गोविंदा हिय कोमल अत्यंता ॥….(4)
जय जय अविनाशी मशिद निवासी परम पवित्र पुनीता ।
जय जनहिताकारी मुनिमनहारी सर्वसुलभ धीमंता ॥….(5)
जय जय शुभकारक अधमउद्धारक अतुलनीय बलवंता ।
जय कृपानिधाना सुह्रदसुजाना लोभ-मोह-मद हन्ता ॥….(6)
जय अहम निवारक चित्तसुधारक शुद्ध ह्रदय श्रीकांता ।
जय अजर-अजन्मा शुभ गुण धर्मा ध्यानलीन अति शांता ॥….(7)
जय नाथ निराला ह्रदय विशाला निरासक्त गुणवंता ।
जय वृति नियामक तृप्ति प्रदायक स्वयं सदगुरु दत्ता ॥….(8)
जय जय त्रिपुरारी कृष्ण मुरारी जय जय जय हनुमन्ता ।
जय साई भिखारी अति अनुरागी व्यापित सकल दिगंता ॥….(9)
गाऊँ तव लीला मधुर रसीला बोधपूर्ण वृतांता ।
बोलूँ कर जोड़ी स्तुति तोरी सुनहुँ प्रार्थना संता ॥….(10)
जय जय सन्यासी हरहूँ उदासी प्रेम देहुँ जीवंता ।
जय जय श्री साई अति प्रिय माई करुणा करहुँ तुरन्ता ॥….(11)
॥ ◆ ऊँ श्री साई ॥
◆
Shiv Apradh Kshamapan Stotra शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र
Shiv Apradh Kshamapan Stotra/शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र
◆
आदौ कर्मप्रसंगत् कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां विण्मूत्रामेध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदा: ।
यघद्वै तत्र दुखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं
क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।1।।
बाल्ये दुखातिरेको मललुलितवपु: स्तन्यपाने पिपासा नो शक्तश्चेन्द्रियेभ्यो भवगुणजनिता जन्तवो मां तुदन्ति ।
नानारोगादिदुखाद्रुदनपरवश: शंकरं न स्मरामि।
क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो।2।।
प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरै: पंचभिर्मर्मसंधौ दष्टो नष्टो विवेक: सुतधनयुवतिस्वादसौख्ये निषण्ण: ।
शैवीचिंताविहीनं मम ह्रदयमहो मानगर्वाधिरुढ़ं ।
क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।3।।
वार्द्धक्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापै: पापै रोगैर्व़ियोगैस्त्वनवसितवपु: प्रौढिहीनं च दीनम् ।
मिथ्यामोहाभिलाषैर्भ्रमति मम मनो धूर्जटेध्र्यानशून्यं । क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।4।।
नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्मार्गे सुसारे ।
नास्था धर्मे विचार: श्रवणमननयो: किं निदिध्यासितव्यं । क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।5।।
स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाह्रतं गांतोयं पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खण्डबिल्वीदलानि ।
नानीता पदमाला सरसि विकसिता गंधपुष्पे त्वदर्थं । क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।6।।
दुग्धैर्मध्वाज्ययुक्तैर्दधिसितसहितै: स्नापितं नैव लिंग नो लिप्तं चंदनाधै: कनकविरचितै: पूजितं न प्रसूनै: ।
धूपै: कर्पूरदीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारै: ।
क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।7।।
ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचुरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हुतवहवदने नार्पितं बीजमंत्रै: ।
नो तप्तं गांगतीरे व्रतजपनियमै रूद्रजाप्यैर्न वेदै: ।
क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।8।।
स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुण्डले सूक्ष्ममार्गे शान्ते स्वान्ते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरुपे पराख्ये ।
लिंगजे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शंकरं न स्मरामि ।
क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ।।9।।
नग्नो नि:संशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहान्धकारो नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्ट: कदाचित् ।
उन्मन्यावस्थया त्वां विगतकलिमलं शंकरं न स्मरामि । क्षन्तव्यो मेऽपराध: शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम् ।।10।।
चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे सर्पैर्भूषितकण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे ।
दन्तित्वक्कृतसुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे हरे मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमखिलामन्यैस्तु किं कर्मभि: ।।11।।
किं वानेन धनेन वाजिकरिभि: प्राप्तेन राज्येन किं किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम् ।
ज्ञात्वैतत्क्षणभंगुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरत: स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज भज श्रीपार्वतीवल्लभम् ।।12।।
आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं प्रत्यायान्ति गता: पुनर्न दिवसा: कालो जगद्भक्षक: ।
लक्ष्मीस्तोयतरंगभंगचपला विद्युच्चलं जीवितं तस्मान्मां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना ।।13।।
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्ध श्रीमहादेव शम्भो ।।14।।
2/26/2023 • 11 minutes, 12 seconds
Shri Adinath Japya Mantra श्री आदिनाथ जाप्य मन्त्र
Shri Adinath Japya Mantra श्री आदिनाथ जाप्य मन्त्र ★ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय नम:। ★ इस मंत्र को १०८ बार पढ़ते हुए पुष्प या लवंग चढ़ावें।
2/26/2023 • 24 minutes, 6 seconds
Sarv Kamna Siddhi Stotra सर्व कामना सिद्धि स्तोत्र
Saraswati Gayatri Mantra सरस्वती गायत्री मन्त्र ★ ॐ ऐं वाग्देव्यै विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।।
★
अर्थ : मुझे वाणी की देवी का ध्यान करने दो। हे भगवान ब्रह्मा की पत्नी, मुझे उच्च बुद्धि प्रदान करें, और देवी वाणी मेरे मन को प्रकाशित करें।
Tithi Shodashi (Pakhwara) Paațh तिथि षोडशी (पखवाड़ा) पाठ •
बानी एक नमो सदा, एक दरब आकाश |
एक धर्म अधर्म दरब, 'पड़िवा' शुद्धि प्रकाश ||१|| 'दोज' दुभेद सिद्ध संसार, संसारी त्रस थावर धार | स्व-पर दया दोनों मन धरो, राग-दोष तजि समता करो ||२|| 'तीज' त्रिपात्र - दान नित भजो, तीन-काल सामायिक सजो | व्यय उत्पाद - ध्रौव्य पद साध, मन वच-तन थिर होय समाध ||३|| 'चौथ' चार-विधि दान विचार, चारहि आराधना संभार | मैत्री आदि भावना चार, चार बंधसों भित्र निहार || ४ || पाँचें' पंच-लब्धि लहि जीव, भज परमेष्ठी पंच सदीव |
पाँच भेट स्वाध्याय बखान पाँचों पैताले पहचान ||५|| छठ' छ: लेश्या के परिनाम, पूजा आदि करो षट्-काम | पुद्गल के जानो षट्-भेद, छहों काल लखि के सुख वेद ||६|| सातैं सात नरकतें डरो, सातों खेत धन-जन सों भरो | सातों नय समझो गुणवंत, सात-तत्त्व सरधा करि संत ||७|| 'आठ' आठ दरस के अंग, ज्ञान आठ-विधि गहो अभंग | आठ भेद पूजा जिनराय, आठ योग कीजै मन लाय ||८|| 'नौमी' शील बाड़ि नौ पाल, प्रायश्चित नौ-भेद संभाल | नौ क्षायिक गुण मन में राख, नौ कषाय की तज अभिलाख || ९|| 'दशमी' दश पुगल-परजाय, दशों बंधहर चेतनराय | जनमत दश-अतिशय जिनराज, दशविध-परिग्रह सों क्या काज ||१०|| ग्यारस' ग्यारह भाव समाज, सब अहमिंदर ग्यारह राज | ग्यारह लोक सुरलोक मँझार, ग्यारह अंग पढ़े मुनि सार ||११|| 'बारस' बारह विधि उपयोग, बारह प्रकृति-दोष का रोग | बारह चक्रवर्ति लख लेहु, बारह अविरत को तजि देहु ||१२ || तेरस' तेरह श्रावक थान, तेरह भेद मनुष पहचान |
तेरह राग प्रकृति सब निंद, तेरह भाव अयोग जिनंद ||१३ || 'चौदश' चौदह-पूरव जान, चौदह बाहिज-अंग बखान | चौदह अंतर परिग्रह डार, चौदह जीवसमास विचार ||१४ || मावस सम पंद्रह-परमाद, करम-भूमि पंदरह अनाद | पंच-शरीर पंदरह रूप, पंदरह प्रकृति हरै मुनि - भूप ||१५|| 'पूरनमासी' सोलह-ध्यान, सोलह-स्वर्ग कहे भगवान् | सोलह कषाय-राहु घटाय, सोलह-कला-सम भावना भाय ||१६|| सब चर्चा की चर्चा एक, आतम आतम पर-पर टेक | लाख कोटि ग्रंथन को सार, भेदज्ञान अरु दया विचार || १७ || गुण-विलास सब तिथि कही, है परमारथरूप | पढ़े- सुने जो मन धरे, उपजे ज्ञान अनूप ||१८||
2/25/2023 • 6 minutes, 49 seconds
Jagdambika Chetna Mantra जगदम्बिका चेतना मन्त्र 108 times
Jagdambika Mantra जगदम्बिका मन्त्र ■ • ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः • इस मंत्र का जप करने से मनुष्य के अन्दर देवत्व का उदय होने लगता है तथा उसकी पूर्ण कुंडलिनी चेतना में स्पंदन होने लगता है। मनुष्य इस मंत्र का जितना जाप करता जाता है, उसकी चेतना उतनी ही जाग्रत् होती चली जाती है और वह प्रकृति की उतनी ही नजदीकी महसूस करने लगता है। अनुभूतियां बढ़ती जाती हैं।
मंत्र की 8 विशेषताएं
1. यह मंत्र माता आदिशक्ति जगत् जननी भगवती दुर्गा जी का पूर्ण चेतना मंत्र है।
2. यह पूर्ण उत्कीलित है। कोई भी व्यक्ति इसका जाप कर सकता है।
3. इसका जाप शुद्धता-अशुद्धता, किसी भी स्थिति में मानसिक रूप से किया जा सकता है।
4. यह मंत्र माता भगवती दुर्गा जी की प्रीति व कृपा प्राप्त करने में पूर्ण सहायक है। 5. इसका जाप एक आसन में बैठकर शुद्धता से करने पर कई गुना फल प्राप्त होता है।
6. इसका सवा लाख जप कर लेने पर इसकी ऊर्जा पूर्णता से कार्य करने लगती है।
7. इस मंत्र के 24 लाख जप करने वाले के शरीर की शक्ति (चेतना) जाग्रत् होने लगती है। अनेक रुके कार्य स्वाभाविक गति से सम्पन्न होने लगते हैं।
8. इस मंत्र के 24 लाख के 24 अनुष्ठान पूर्ण करने पर यह पूर्ण सिद्ध हो जाता है। फिर किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए यदि मंत्र का जाप करके कामना की जाए, तो वह पूर्ण होता है।
Durlabh Kuber Mantra दुर्लभ कुबेर मंत्र • कुबेर धन के अधिपति यानि धन के राजा हैं। पृथ्वीलोक की समस्त धन संपदा का एकमात्र उन्हें ही स्वामी बनाया गया है। कुबेर भगवान शिव के परमप्रिय सेवक भी हैं। धन के अधिपति होने के कारण इन्हें मंत्र साधना द्वारा प्रसन्न करने का विधान बताया गया है। कुबेर मंत्र को दक्षिण की और मुख करके ही सिद्ध किया जाता है। दुर्लभ कुबेर मंत्र इस प्रकार है- मंत्र ◆ ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः। ◆ अकस्मात धन लाभ देता है यह कुबेर मंत्र।
2/21/2023 • 33 minutes, 7 seconds
Shiva Raksha Stotram शिव रक्षा स्तोत्रम्
Shiva Raksha Stotram शिव रक्षा स्तोत्रम् ★ चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्यसाधनम् ॥ १ ॥
गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षांपठेन्नरः ॥ २ ॥ गंगाधरः शिरः पातु फालमधेन्दुशेखरः नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषणः ॥ ३ ॥
घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः । जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरं शितिकन्धरः ॥ ४ ॥
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ ५ ॥
हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः । नाभिं मृत्युंजयः पातु कटिं व्याघ्राजिनाम्बरः ॥ ६ ॥
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत सलः । ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥ ७ ॥
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फी पातु गणाधिपः । चरणौ करुणासिन्धुः सर्वांगानि सदाशिवः ॥ ८ ॥
एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायूज्यमाप्न यात् ॥ ९ ॥ ग्रहभूतपिशाचाद्याः त्रैलोक्ये विचरन्ति ये । दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ॥ १०॥
अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः । भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ॥ ११ ॥
★
2/21/2023 • 3 minutes, 36 seconds
Shri Bhaktamar Vidhan (Complete) श्री भक्तामर विधान (सम्पूर्ण)
Shri Bhaktamar Vidhan श्री भक्तामर विधान ■ • अपनी समस्या/चिंता/समस्या की पहचान करने के बाद, संबंधित श्लोक और समस्या से जुड़े मंत्र का जाप शुरू करने से पहले इसके बारे में सोचें।
• ताम्र / सोने का चढ़ाया हुआ यंत्र अपने सामने रखें और जाप करते समय उस पर ध्यान केंद्रित करें। सामने किताब में से श्लोक और मंत्र का जाप करें।
• रिद्धि (108 बार) के साथ मंत्र के साथ 108 बार मंत्र के साथ 27 बार जप करें जब तक कि आप अपने भीतर इसका कंपन महसूस न करें।
वैसे जितना हो सके उतना जप करें।
• हालांकि, मंत्र का जाप कभी भी किया जा सकता है, लेकिन मंत्रों का जाप सुबह 4:00-7:00 बजे के बीच किया जाना चाहिए, क्योंकि यह समय उपचार के लिए सबसे प्रभावी साबित होता है।
सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए जप 21 दिनों तक लगातार होना चाहिए।
• इसके अलावा,
बेहतर परिणाम के लिए कम से कम 21 दिनों तक बिना नमक (दूध, चीनी, गेहूं, आदि) के भोजन की सलाह दी जाती है। (बिना नमक वाला भोजन रोगी या मंत्र जाप करने वाला व्यक्ति भी ग्रहण कर सकता है
1. मंगलाचरण
2. स्थापना
3. अष्टक
4. भक्तामर स्तोत्र अर्घ्यावली
5. ऋद्धि अर्घ्य
6. जाप्य मन्त्र- ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय नम:।
इस मंत्र को १०८ बार पढ़ते हुए पुष्प या लवंग चढ़ावें।
7. जयमाला
Bhaktamar Vidhan Manglacharan भक्तामर विधान मंगलाचरण ★ जय जय प्रथम तीर्थेश की मैं वंदना करूँ।
जय जय प्रभो वृषभेश की मैं अर्चना करूँ।।
जय जय जगत जिनेश से अभ्यर्थना करूँ।
मैं कर्मशत्रु जीत के मुक्त्यंगना वरूँ।।१।।
इस कर्मभूमि में प्रथम अवतार लिया था।
षट्कर्म बताकर जगत् उद्धार किया था।।
स्वयमेव तो भव भोग से विरक्त हो गए।
शाश्वत निजात्म ध्यान में निमग्न हो गए।।२।।
उनका ही यशोगान आज भक्त कर रहे।
स्तोत्र के माध्यम से कंठ शुद्ध कर रहे।।
आचार्य मानतुंग की अमर हुई कृती।
जिस पाठ भक्तामर से की आदीश संस्तुती।।३।।
राजा ने बेड़ियों में मुनी को जकड़ दिया।
मुनिवर ने तभी आदिनाथ संस्तवन किया।।
कलिकाल में भी वैâसा चमत्कार हुआ था।
जिनदेव की भक्ती से बेड़ा पार हुआ था।।४।।
स्वयमेव बेड़ियों से मुक्त देखकर सभी।
आश्चर्यचकित हो गए राजा प्रजा सभी।।
नृप ने तभी मुनिवर से क्षमायाचना किया।
मुनिवर ने भक्तामर का सार भी बता दिया।।५।।
यह देशना मिली सदा जिनदेव को भजो।
सम्यक्त्व को धारण करो मिथ्यात्व को तजो।।
तब लोहशृंखला भी पुष्पहार बनेगी।
जिनभक्ति ही निजज्ञान का भंडार भरेगी।।६।।
पूजा हो भक्तामर की बड़े भक्तिभाव से।
करते अखण्ड पाठ भी समकित प्रभाव से।।
माहात्म्य भक्तामर का आज भी प्रसिद्ध है।
श्रद्धा से जो पढ़ ले इसे सब कार्यसिद्ध हैं।।७।।
★
।। इति मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। ★
2/21/2023 • 4 minutes, 4 seconds
Buddhi Vikas Mantra बुद्धि विकास मन्त्र
Buddhi Vikas Mantra बुद्धि विकास मन्त्र ★ ॐ अरवचन धीं स्वाहा।
★
विधि- तीनों संध्याओं में १०८ बार स्मरण करने से महान बुद्धिमान हो जाता है।
Kuber Mantra कुबेर मन्त्र ◆ ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ ◆ यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का अमोघ मंत्र है। कुबेर के मन्त्र का जाप दक्षिण की ओर मुख करके ही करना चाहिए। इस मंत्र का तीन माह तक रोज 108 बार जप करें। जप करते समय अपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्मी कौड़ी) रखें। तीन माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर इस कौड़ी को अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। कहते हैं कि ऐसा करने पर कुबेर देव की कृपा से आपकी तिजोरी कभी खाली नहीं होगी। हमेशा उसमें धन भरा रहेगा।
2/17/2023 • 28 minutes, 58 seconds
Hanuman Divya Mantra हनुमान दिव्य मन्त्र
Hanuman Divya Mantra हनुमान दिव्य मन्त्र ★ “ ॐ नमो भगवते अंजनिपुत्राय उज्जयिनीनिवासिने उरुतरपराक्रमाय श्रीरामदूताय लंकापुरीदहनाय भयक्षराक्षससंहार कारिणे हुं फट्।”
★
रुद्रावतार हनुमानजी के इस दिव्य मंत्र को सिद्ध करने हेतु दुर्गाजी या हनुमानजी के ऐसे प्राचीन मन्दिर की आवश्यकता है जो निर्जन स्थान पर बना हुआ हो। ऐसे मन्दिर में यमनियमपूर्वक प्रारम्भिक पूजन करते हुए दस हजार जप नित्य 11 दिनों तक रात्रिकाल में सम्पन्न करें। तत्पश्चात् दशांश हवन करें। तिल को पीसकर उक्त मंत्र द्वारा अभिमंत्रित कर उसे एक पल मात्रा में ग्रहण करने और भस्म का मार्जन करने वाला साधक भविष्यवक्ता बन जाता है। अर्थात् वह साधक किसी भी व्यक्ति के आगामी जीवन में होने वाली समस्त घटनाओं की जानकारी दे सकता है। शर्करामिश्रित जल को मंत्र से 11 बार अभिमंत्रित कर उसका पान करने से हनुमानजी स्वप्नावस्था में साधक को सम्पूर्ण घटनाओं का ज्ञान करा देते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य विकट समस्याओं के निवारण हेतु भी यह महामंत्र प्रभावशाली है।
Punyavardhak Parmanand Stotra पुण्यवर्धक परमानन्द स्त्रोत्र ◆
परमानन्द-संयुक्तं, निर्विकारं निरामयम्।
ध्यानहीना न पश्यन्ति, निजदेहे व्यवस्थितम् ॥ १॥
अनन्तसुखसम्पन्नं, ज्ञानामृतपयोधरम्।
अनन्तवीर्यसम्पन्नं, दर्शनं परमात्मन: ॥ २॥
निर्विकारं निराबाधं, सर्वसङ्गविवर्जितम्।
परमानन्दसम्पन्नं, शुद्धचैतन्यलक्षणम्॥ ३॥
उत्तमा स्वात्मचिन्ता स्यात् देहचिन्ता च मध्यमा।
अधमा कामचिन्ता स्यात्,परचिन्ताऽधमाधमा॥ ४॥
निर्विकल्प समुत्पन्नं, ज्ञानमेव सुधारसम्।
विवेकमञ्जलिं कृत्वा, तं पिबंति तपस्विन:॥ ५॥
सदानन्दमयं जीवं, यो जानाति स पण्डित:।
स सेवते निजात्मानं, परमानन्दकारणम्॥ ६॥
नलिन्याच्च यथा नीरं, भिन्नं तिष्ठति सर्वदा।
सोऽयमात्मा स्वभावेन, देहे तिष्ठति निर्मल:॥ ७॥
द्रव्यकर्ममलैर्मुक्तं भावकर्मविवर्जितम्।
नोकर्मरहितं सिद्धं निश्चयेन चिदात्मकम्॥ ८॥
आनन्दं ब्रह्मणो रूपं, निजदेहे व्यवस्थितम्।
ध्यानहीना न पश्यन्ति,जात्यन्धा इव भास्करम्॥ ९॥
सद्ध्यानं क्रियते भव्यैर्मनो येन विलीयते।
तत्क्षणं दृश्यते शुद्धं, चिच्चमत्कारलक्षणम्॥ १०॥
ये ध्यानशीला मुनय: प्रधानास्ते दु:खहीना नियमाद्भवन्ति।
सम्प्राप्य शीघ्रं परमात्मतत्त्वं, व्रजन्ति मोक्षं क्षणमेकमेव॥ ११॥
आनन्दरूपं परमात्मतत्त्वं, समस्तसंकल्पविकल्पमुक्तम्।
स्वभावलीना निवसन्ति नित्यं, जानाति योगी स्वयमेव तत्त्वम्॥१२॥
चिदानन्दमयं शुद्धं, निराकारं निरामयम्।
अनन्तसुखसम्पन्नं सर्वसङ्गविवर्जितम्॥ १३॥
लोकमात्रप्रमाणोऽयं, निश्चये न हि संशय:।
व्यवहारे तनुमात्र: कथित: परमेश्वरै:॥ १४॥
यत्क्षणं दृश्यते शुद्धं तत्क्षणं गतविभ्रम:।
स्वस्थचित्त: स्थिरीभूत्वा, निर्विकल्पसमाधिना॥१५॥
स एव परमं ब्रह्म, स एव जिनपुङ्गव:।
स एव परमं तत्त्वं, स एव परमो गुरु : ॥ १६॥
स एव परमं ज्योति:, स एव परमं तप:।
स एव परमं ध्यानं, स एव परमात्मक:॥ १७॥
स एव सर्वकल्याणं, स एव सुखभाजनम्।
स एव शुद्धचिद्रूपं, स एव परम: शिव:॥ १८॥
स एव परमानन्द:, स एव सुखदायक:।
स एव परमज्ञानं, स एव गुणसागर: ॥ १९॥
परमाल्हादसम्पन्नं, रागद्वेषविवर्जितम्।
सोऽहं तं देहमध्येषु यो जानाति स पण्डित:॥ २०॥
आकाररहितं शुद्धं, स्वस्वरूपे व्यवस्थितम्।
सिद्धमष्टगुणोपेतं, निर्विकारं निरञ्जनम्॥ २१॥
तत्सद्दर्शनं निजात्मानं, प्रकाशाय महीयसे।
सहजानन्दचैतन्यं, यो जानाति स पण्डित:॥ २२॥
पाषाणेषु यथा हेम, दुग्धमध्ये यथा घृतम्।
तिलमध्ये यथा तैलं, देहमध्ये तथा शिव:॥ २३॥
काष्ठमध्ये यथा वह्नि:, शक्तिरूपेण तिष्ठति।
अयमात्मा शरीरेषु, यो जानाति स पण्डित:॥२४॥
◆
2/16/2023 • 9 minutes, 12 seconds
Dhan Prapti Mantra धनप्राप्ति मन्त्र 108 times
Dhan Prapti Mantra धनप्राप्ति मन्त्र ■ यदि आप अपने घर को धन-धान्य से भरना चाहते हैं तो स्फटिक की माला से ★ पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ★ मंत्र का जाप करें। रोजाना सुबह इस मंत्र के जाप से आपके घर में धन का भंडार बढ़ने लगेगा।
2/13/2023 • 28 minutes, 31 seconds
Lavanya Vardhak Mantra लावण्य वर्धक मन्त्र
Lavanya Vardhak Mantra लावण्य वर्धक मन्त्र ★ ॐ रक्ते विरक्त रक्त वाते हुँ फट् स्वाहा। ★ इस मंत्र से स्त्रियों की या पुरुषों की लावण्य बढ़ जाती है व कुरूपता भी दूर हो जाती है।
Durga Saptashati Siddh Samput Mantra दुर्गा सप्तशती सिद्ध सम्पुट मन्त्र
Durga Saptashati Siddh Samput Mantra दुर्गा सप्तशती सिद्ध सम्पुट मन्त्र ■ देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूर्त्या ।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
■ अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।
Satyam Vad Mantra सत्यम् वद मन्त्र 21 times ★ ॐ ह्रीं सः सूर्याय असत्यं सत्य वद-वद स्वाहा। ★ किसी भी व्यक्ति को सच बोलने के लिए - अभ्यासी को सूर्य मंत्र का 21 बार जाप करना है और फिर अपना हाथ उस व्यक्ति के माथे पर रखना है जिसे वह सच्चाई से बुलवाना चाहता है। यह सरल विधि लक्षित व्यक्ति को सच बोलने के लिए कहा जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं ।
What is Panchak पंचक क्या है • ज्योतिष में पंचक को अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों का योग माना जाता है। नक्षत्रों के मेल से बनने वाले विशेष योग को पंचक कहा जाता है। जब चन्द्रमा, कुंभ और मीन राशि पर रहता है, तब उस समय को पंचक कहते हैं।
इसी तरह घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती) होते हैं, उन्हे पंचक कहा जाता है।
पंचक के प्रभाव से घनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है। शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते हैं। पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है। उत्तराभाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है। रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।
प्राचीन ज्योतिष में मान्यता है कि पंचक में कुछ कार्य विशेष नहीं किए जाने चाहिएं।
पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि ईंधन एकत्रित नहीं करना चाहिए, इससे अग्नि का भय रहता है।
पंचक में किसी की मृत्यु होने से और पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से उस कुटुंब या निकटजनों में पांच मृत्यु और हो जाती है।
पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है। इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
* पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का मत है। इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
* मान्यता है कि पंचक में पलंग बनवाना भी बड़े संकट को न्यौता देना है।
समाधान : यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं।
यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें।
यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी आवश्य जलाएं।
इसी तरह यदि पंचक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें।
अंत में यह कि यदि पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं।
ऐसा करने से पंचक दोष दूर हो जाता है।
1/27/2023 • 3 minutes, 36 seconds
Shri Khatu Shyam Stuti श्री खाटू श्याम स्तुति
Shri Khatu Shyam Stuti श्री खाटू श्याम स्तुति ★ हाथ जोड़ विनती करूँ सुणियों चित्त लगाय, दास आ गयो शरण में रखियो इसकी लाज, धन्य ढूंढारो देश हैं खाटू नगर सुजान, अनुपम छवि श्री श्याम की दर्शन से कल्याण ।।
श्याम श्याम तो मैं रटू श्याम है जीवन प्राण, श्याम भक्त जग में बड़े उनको करूँ प्रणाम, खाटू नगर के बीच में बण्यो आपको धाम, फाल्गुन शुक्ला मेला भरे जय जय बाबा श्याम ।।
फाल्गुन शुक्ला द्वादशी उत्सव भारी होय, बाबा के दरबार से खाली जाये न कोय, उमा पति लक्ष्मी पति सीता पति श्री राम, लज्जा सब की रखियो खाटू के बाबा श्याम।।
पान सुपारी इलायची इत्तर सुगंध भरपूर, सब भक्तो की विनती दर्शन देवो हुजूर, आलू सिंह तो प्रेम से धरे श्याम को ध्यान, श्याम भक्त पावे सदा श्याम कृपा से मान ।। हाथ जोड़ विनती करूँ सुणियों चित्त लगाय, दास आ गयो शरण में रखियो इसकी लाज, धन्य ढूंढारो हैं खाटू नगर सुजान, अनुपम छवि श्री श्याम की दर्शन से कल्याण |
बोलिये हारे के सहारे की जय। लीले के असवार की जय। खाटू नरेश की जय । ★
1/27/2023 • 3 minutes, 43 seconds
Isht Prarthna इष्ट प्रार्थना
Isht Prarthna इष्ट प्रार्थना ■ भावना दिन रात मेरी, सब सुखी संसार हो ।
सत्य संयम शील का, व्यवहार हर घर बार हो।।
धर्म का परचार हो, अरु देश का उद्धार हो ।
और ये उजड़ा हुआ, भारत चमन गुलजार हो ।।
ज्ञान के अभ्यास से, जीवों का पूर्ण विकास हो ।
धर्मं के परचार से, हिंसा का जग से ह्रास हो ।।
शांति अरु आनंद का, हर एक घर में वास हो ।
वीर वाणी पर सभी, संसार का विश्वास हो ।।
रॊग अरु भय शोक होवें, दूर सब परमात्मा ।
कर सके कल्याण ज्योति, सब जगत की आत्मा ।।
1/27/2023 • 2 minutes, 10 seconds
Bhaktamar Stotra With Hindi Meaning भक्तामर स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
Bhaktamar Stotra With Hindi Meaning भक्तामर स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
24 Tirthankara Vandan 24 तीर्थंकर वंदन
• बे गौरा बे सावंला, बे हरिया बे लाल ।
सौलहकाय कंचन सम, ते वंदन हूँ त्रिकाल ॥
आदि प्रभु की भक्ति से, मनुज बने भगवान ।
आत्मिक सुख उसको मिले, वंदन बारम्बार ॥
अन्तरंग बहिरंग को त्यागकर, किये शुद्ध आचार । अजितनाथ भगवान् को, वंदन बारम्बार ॥
जिन संभव के भक्तजन, पावें मोक्ष का द्वार ।
शीघ्र हरो मम दुःख प्रभु, वंदन बारम्बार ॥
आनंदित प्रभु अभिनन्दन, चतुर्थ तीर्थ करतार ।
किया नाम सार्थक सदा, वंदन बारम्बार ॥
विश्वतत्व के अर्थ सहित, किया कर्म संहार ।
सुमति, सुमति के दायक हो, वंदन बारम्बार ॥
मोहकर्म को नाश कर, गुण अनंत के धार ।
तीर्थंकर श्री पद्मप्रभु, वंदन बारम्बार ॥
काम क्रोध का नाशकर, पायो केवल ज्ञान ।
श्री सुपार्श्व जिनराज को, वंदन बारम्बार ॥
इन्द्रो द्वारा सेवित हो, निर्मल कीर्ति धार ।
रक्षक अष्टम चंद्रप्रभु, वंदन बारम्बार ॥
पुष्पदंत जिनराज के, तन में दिव्य प्रकाश ।
तीर्थ नवम के श्रीपति, वंदन बारम्बार ॥
जो जन की पीड़ा हरे, करे कुपथ का नाश ।
शीतल शीतलता करे, वंदन बारम्बार ॥
श्री श्रेयांस जिनराजवरा, देवे मोक्ष विधान ।
भव्य जीव तव चरण रहे, वंदन बारम्बार ॥
जो कुमार्ग का नाशकर, उज्जवल तीर्थ महान ।
वासुपूज्य जिनराज को, वंदन बारम्बार ॥
विमल विमलमति दायक हो, निर्मल कर संसार ।
त्रयोदश तीर्थ के हो करता, वंदन बारम्बार ॥
मिथ्यातम का नाश किया, जीत लिया संसार ।
अनंत प्रभु सम सूर्य श्री, वंदन बारम्बार ॥
धर्ममार्ग को छोड़कर, जावें नर्क के द्वार ।
धर्मनाथ उद्धार करें, वंदन बारम्बार ॥
इतिभिति को नाश करे, शांतिनाथ भगवान् ।
तिन पदों के धारी श्री, वंदन बारम्बार ॥
कुन्थु-कुन्थु के पालक हो, ख्याति अति विशाल ।
चक्रवर्ती पद मिला तुम्हे, वंदन बारम्बार ॥
पापी शत्रु को नाश कर, कामदेव पद धार ।
अरनाथ (अरहनाथ) जिनेन्द्र को, वंदन बारम्बार ॥
मोह मल्ल को नाश कर, काटा भाव का पाश ।
हे प्रसिद्ध मल्लि प्रभु, वंदन बारम्बार ॥
भव सागर से पार करे, मुनिसुव्रत महाराज ।
सुव्रत व्रत के दायक हो, वंदन बारम्बार ॥
कर्म रूपी शत्रु सभी, नम्र हुए तव द्वार ।
नमिनाथ के चरण में, वंदन बारम्बार ॥
कोटि सूर्य तव तेज हैं, यादव कुल सरताज ।
चक्रोत्तम श्री नेमीप्रभु, वंदन बारम्बार ॥
कमठनाद को दूर किया, हैं धरणेन्द्र महान ।
श्री पारस उपसर्गपति, वंदन बारम्बार ॥
वर्तमान के अन्तिम शासक, वर्द्धमान जिनराज ।
नित अर्चन तेरी करू, वंदन बारम्बार ॥
"रयणसागर" विनवे प्रभु, चौबीसों जिनराज ।
भवसागर से पार करो, वंदन बारम्बार ॥
1/24/2023 • 9 minutes, 25 seconds
Shri Bajrang Baan Paath श्री बजरंग बाण पाठ
Shri Bajrang Baan Paath श्री बजरंग बाण पाठ ■
दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
दोहा :
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
■
1/23/2023 • 7 minutes, 1 second
Tibetan Kayakalp Mantra तिब्बती कायाकल्प मन्त्र 108 times
Tibetan Kayakalpa Mantra तिब्बती Tibetan Kayakalp Mantra तिब्बती कायाकल्प मन्त्र ◆ Tibetan Mantra For Transformation
Kayakalp Tantra
पूर्ण रूप से यौवनवान बनने की मंत्र साधना
◆
Kayakalp simply means to transform your physical, mental & spiritual health into higher dimensions of energy. Kayakalp not only transforms your body as a whole but it also changes the values & attitude about life. Kayakalp makes you stronger in all spheres of life. Kayakalp can be done in various ways as suggested in our 'Spiritual Texts'. It can be done by Ayurvedic practices, Alchemist practices, Parad Vigyan & Mantra Sadhna. This Mantra Sadhna is a rare Tibetan sadhna. ◆
Lit an oil lamp and stand on a yellow asan.
The mantra can only be chanted while standing.
The Kayakalp sadhna is of 11 days and a sadhak must chant 108 malas in 11 days.
After completion of mantra, One can energize a glass of water by chanting 11 malas of this mantra & can give it to any patient suffering from acute diseases.
Kayakalp mantra can also remove any deformity in your physical appearance like squint eyes.
Kayakalp mantra can make any person devoid of energy into a highly energetic person.
Mantra
"Om Hum Hum Hum Haing Haing Haing Hroong Hroong Hroong Hum Hum Hum Phat"
★ ॐ हुं हुं हुं ह्रैं ह्रैं ह्रैं ह्रौं ह्रौं ह्रौं हुं हुं हुं फट ★
1/23/2023 • 42 minutes, 42 seconds
Mahakali Stuti महाकाली स्तुति
■ Mahakali Stuti महाकाली स्तुति ■
चतुर्भुजां कृष्णवर्णां मुंडमाला विभूषिताम्,
खडग च दक्षिणो पाणौ विभ्रतीन्दीवर-द वयम्।
द्यां लिखंती जटायैकां विभतीशिरसाद्वयीम्,
मुंडमाला धरां शीर्ष ग्रीवायामय चापराम्।।
वक्ष का नाग हारं च विभ्रतीं रक्तलोचनां,
कृष्ण वस्त्रधरां कट्यां व्याघ्राजिन समन्विताम्।
वामपदं शव हृदि संस्थाप्य दक्षिण पदम्,
विलसद् सिंह पृष्ठे तु लेलिहानासव पिबम्।।
सट्टहासा महाघोरा रावै मुक्ता सुभीषणा।।
Sankatmochan Stuti संकटमोचन स्तुति ★
बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब, छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीश यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सो कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगिसु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।
आनि संजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
★
।। दोहा ।।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।। ◆
Ramlala Stuti रामलला स्तुति ★ भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभा सिंधु खरारी॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा॥
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥
श्रीरामचंद्र भगवान की जय, सिया वर रामचंद्र की जय।। ★
1/21/2023 • 4 minutes, 23 seconds
Sudershan Meru Vandana सुदर्शन मेरु वंदना
Sudershan Meru Vandana सुदर्शन मेरु वंदना ★
|।मंगलाचरण।। णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ।
★
।। सुदर्शन मेरु वंदना ।। ■
तीर्थंकरस्नपननीरपवित्रजातः,
तुङ्गो स्ति यस्त्रिभुवने निखिलाद्रितो॰पि । देवेन्द्रदानवनरेन्द्रखगेन्द्रवंद्यः, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि ।।१ ।।
यो भद्रसालवननंदनसौमनस्यैः, भातीह पांडुकवनेन च शाश्वतोपि।
चैत्यालयान् प्रतिवनं चतुरोविधत्ते, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि ।।२।।
जन्माभिषेकविधये जिनबालकानाम्, वंद्याः सदा यतिवरैरपि पांडुकाद्याः ।
धत्ते विदिक्षु महनीयशिलाश्चतसृः, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि ।।३।।
योगीश्वराः प्रतिदिनं विहरन्ति यत्र, शान्त्यैषिणः समरसैकपिपासवश्च ।
ते चारणदर्धिसफलं खलु कुर्वते*त्र, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि ।।४।।
ये प्रीतितो गिरिवरं सततं स्तुवन्ति, वंदन्त एव च परोक्षमपीह भक्त्या।
ते प्राप्नुवंति किल 'ज्ञानमिंत' श्रियं हि, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।५ । ।
■
-हिन्दी-
■
जो तीर्थंकर के न्हवन जल से पवित्र है, तीनों लोकों में सब पर्वतों से ऊँचा है और जो देवेन्द्र, असुरेन्द्र नरेन्द्र तथा विद्याधर इंद्रों से वंद्य है, उस श्री सुदर्शन मेरु को मैं सतत नमन करता हूँ ||१||
जो शाश्वत होकर भी भद्रसाल नंदन, सौमनस और पाण्डुकवन से शोभित हो रहा है और जो प्रत्येक वन की चारों दिशाओं में जिन मंदिर को धारण कर रहा है, उस श्री सुदर्शन मेरु को मैं सतत नमन करता हूँ।।२ ।।
तीर्थंकर बालकों की जन्माभिषेक विधि के लिए जो पाण्डुक आदि शिलाएं हैं वे मुनिवरों से भी वंद्य हैं। जो पर्वत पाण्डुकवन में विदिशाओं में पूज्य ऐसी चार शिलाओं को धारण किये हुए हैं, उस श्री सुदर्शनमेरु को मैं सतत नमन करता हूँ।।३।।
जहाँ पर शांति की इच्छा करने वाले और समतारूपी एक अमृतरस पान के इच्छुक योगीश्वर महामुनि हमेशा विहार करते रहते हैं और वे वहाँ जाकर अपनी आकाश गमन चारण-ऋद्धि को निश्चित ही सफल कर लेते हैं, उस श्री सुदर्शनमेरु को मैं सतत नमन करता हूँ।।४ ।।
जो प्रीति से इस गिरिराज की सतत स्तुति करते हैं और यहाँ पर परोक्ष में ही भक्ति से वंदना करते हैं, वे निश्चित ही ज्ञान से सहित ऐसी ''ज्ञानमती' लक्ष्मी को प्राप्त कर लेते हैं, ऐसे उस श्री सुदर्शनमेरु को मैं सतत नमन करता हूँ ।।५।।
1/21/2023 • 3 minutes, 40 seconds
Yajurveda Shanti Mantra यजुर्वेद शांति मन्त्र
Yajurveda Shanti Mantra यजुर्वेद शांति मन्त्र ★ शांति पाठ या “शांति मंत्र” वेदों तथा उपनिषदों में पाए जाने वाली शांति प्रार्थनाएं हैं। आम तौर पर उन्हें धार्मिक अनुष्ठानों और प्रवचनों की शुरुआत और अंत में सुनाया जाता है। इससे उच्चारण करने वाले व्यक्ति को शांति की अनुभूति होती है और उनके आस-पास का वातावरण सहज हो जाता है।
★ ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
— यजुर्वेद
★ हिन्दी रूपांतरण:
शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में,
अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में,
सकल विश्व में अवचेतन में!
शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन, नगर, ग्राम और भवन में
जीवमात्र के तन, मन और जगत के हो कण कण में,
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।
1/20/2023 • 2 minutes, 44 seconds
Chandogya Shanti Paath चंदोग्य शांति पाठ
Chandogya Shanti Paath चंदोग्य शांति पाठ ★
केना और चंदोग्य उपनिषद ◆
ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः
श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि।
सर्वम् ब्रह्मोपनिषदम् माऽहं ब्रह्म
निराकुर्यां मा मा ब्रह्म
निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणम् मेऽस्तु।
तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते
मयि सन्तु ते मयि सन्तु।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ★ ओम! मेरे अंग, वाणी, प्राणवायु, नेत्र, कान, बल
और समस्त इन्द्रियाँ पूर्ण विकसित हों।
उपनिषदों द्वारा जो कुछ भी प्रकट किया गया है वह ब्रह्म है।
क्या मैं
ब्रह्म को कभी अस्वीकार नहीं कर सकता : ब्रह्म मुझे कभी अस्वीकार न करे।
(ब्राह्मण से) कोई इनकार न हो;
मेरी तरफ से कोई धोखा न हो।
उपनिषदों द्वारा प्रतिष्ठित सभी धर्म मुझमें चमकें।
जो स्वयं को जानने के इच्छुक हैं, वे मुझमें चमकें!
ओम! शांति! शांति! शांति!
1/20/2023 • 1 minute, 57 seconds
Mandukya Shanti Paath मांडूक्य शांति पाठ
Mandukya Shanti Paath मांडूक्य शांति पाठ ★ मुंडका, मांडूक्य और प्राण उपनिषद
★ ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवाः।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ंसस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितम् यदायुः।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ★ अर्थ :
हे देवता , हम अपने कानों से वही सुनें जो शुभ है , हे पूज्य देव, क्या हम अपनी आँखों से देख सकते हैं कि क्या शुभ है , भावना, अंगों के साथ स्थिर और शरीर प्रार्थना (शुभ को सुनने और देखने के कारण) द्वारा आवंटित जीवनकाल व्यतीत करें। इंद्र जिनकी महिमा महान है, हम पर कल्याण करें , पूषन जो सर्वज्ञ हैं, हमें कल्याण प्रदान करें , तारक्षय जो सुरक्षा का एक चक्र है , हम पर कल्याण प्रदान करें , बृहस्पति (भी) हम पर कल्याण प्रदान करें , ॐ शांति: , शांति: , शांति: ।
Shri Ram Dhyan Mantra श्रीराम ध्यान मन्त्र ★
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥ -- ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम, लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम ! श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !
★ श्री राम का यह ध्यान मंत्र बहुत ही चमत्कारिक मंत्र है ! दैनिक पूजा में इसका जप करने से इसका प्रभाव जीवन में धीरे धीरे अनुभव होने लगता है । यह जीवन में दीर्घकालिक समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है ! यह भविष्य में आने बाले बड़े संकटों से निजात दिलाता है ! कहा जाता है कि अगर गृह क्लेश रहता हो तो भी इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
1/19/2023 • 1 minute, 12 seconds
Shri Krishna Keelak श्री कृष्ण कीलक
श्री कृष्ण कीलक
◆
ॐ गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।
क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।
विद्रावय महा-शत्रून्, जल-स्थल-गतान् प्रभो !
ममाभीष्ट-वरं देहि, श्रीमत्-कमल-लोचन !।।
भवाम्बुधेः पाहि पाहि, प्राण-नाथ, कृपा-कर !
हर त्वं सर्व-पापानि, वांछा-कल्प-तरोर्मम।।
जले रक्ष स्थले रक्ष, रक्ष मां भव-सागरात्।
कूष्माण्डान् भूत-गणान्, चूर्णय त्वं महा-भयम्।।
शंख-स्वनेन शत्रूणां, हृदयानि विकम्पय।
देहि देहि महा-भूति, सर्व-सम्पत्-करं परम्।।
वंशी-मोहन-मायेश, गोपी-चित्त-प्रसादक !
ज्वरं दाहं मनो दाहं, बन्ध बन्धनजं भयम्।।
निष्पीडय सद्यः सदा, गदा-धर गदाऽग्रजः !
इति श्रीगोपिका-कान्तं, कीलकं परि-कीर्तितम्।
यः पठेत् निशि वा पंच, मनोऽभिलषितं भवेत्।
सकृत् वा पंचवारं वा, यः पठेत् तु चतुष्पथे।।
शत्रवः तस्य विच्छिनाः, स्थान-भ्रष्टा पलायिनः।
दरिद्रा भिक्षुरूपेण, क्लिश्यन्ते नात्र संशयः।।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा।।
◆
विशेष – एक बार माता पार्वती कृष्ण बनी तथा श्री शिवजी माँ राधा बने। उन्हीं पार्वती रूप कृष्ण की उपासना हेतु उक्त ‘कृष्ण-कीलक’ की रचना हुई।
यदि रात्रि में घर पर इसके 5 पाठ करें, तो मनोकामना पूरी होगी। दुष्ट लोग यदि दुःख देते हों, तो सूर्यास्त के बाद चैराहे पर एक या पाँच पाठ करे, तो शत्रु विच्छिन होकर दरिद्रता एवं व्याधि से पीड़ित होकर भाग जायेगें।
1/16/2023 • 3 minutes, 30 seconds
Daimoku ~Group Chanting of Nam Myoho Renge Kyo
● Daimoku ● ~ Group Chanting of ◆ Nam Myoho Renge Kyo ◆
Uttarayan Mantra उत्तरायण मन्त्र ★ नमस्ते देवदेवेश सहसकिरणोज्ज्वल: । लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ: ।।
भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः । विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे ।।
★
अर्थात् ‘"हे देवदेवेश ! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं । हे कोणवल्लभ ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है । विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है ।"
1/14/2023 • 1 minute, 21 seconds
Makar Sankranti Puja मकर संक्रांति पूजा
1- मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले पानी में तिल या तिल का तेल डालकर स्नान करना चाहिए ।
2- इस दिन यज्ञ करें जिसमें 1- गायत्री महामन्त्र 11 times- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।। 2- सूर्य गायत्री मन्त्र 11 times - ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात् ।। 3- महामृत्युंजय मन्त्र 5 times - ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।। से तिल और गुड़ की आहुति दें ।
3- यदि यज्ञ की व्यवस्था न हो तो गैस जला कर उस पर तवा रख कर गर्म करें, फ़िर मन्त्र पढ़ते हुए यज्ञ की आहुति तवे पर डाल दें । यज्ञ के बाद गैस बन्द कर दें और उस यज्ञ प्रसाद को तुलसी या किसी पौधे के गमले में डाल दें ।
4- 21 बार सूर्य गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते हुए भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं ।
5- मकर संक्रांति के दिन पीला या श्वेत वस्त्र अवश्य पहनें ।
6- आहार में पहला नाश्ता दिन में तिल और गुड़ का प्रसाद लें । इस दिन घर में खिचड़ी चावल और उड़द की दाल की बना भोजन करना अत्यधिक शुभ माना जाता हैं ।
7- इस दिन यदि सम्भव हो तो सुबह गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर कमर तक जल के बीच में खड़े हो सूर्यदेव को तांबे के पात्र में जल, तिल-गुड़ मिलाकर अर्घ्य अवश्य दें ।
Makar Sankranti Wishing Mantra मकर संक्रांति शुभेच्छा मन्त्र ★ भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते ।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये ॥
★ (जैसे सूर्य का तेज मकर संक्रमण के बाद बढ़ जाता है वैसे ही आपका तेज (यश, आयु:, कीर्ति) भी बढ़ता जाए, ऐसी मेरी मनोकामना है । It is my wish that your glory (name, age, fame) should also increase just as the glory of the Sun increases after Capricorn transition.
Pavmaan Abhayaroh Mantra पवमान अभयारोह मन्त्र ◆ ॐ असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्माऽमृतं गमय ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
◆
अर्थ:
इसका अर्थ है, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
1/13/2023 • 34 seconds
Navgrah Mantra नवग्रह मंत्र
Navgrah Mantra नवग्रह मंत्र ★ ऊँ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।। ★ ज्योतिष के जानकार कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्र सम्पूर्ण आधार सौरमंडल में स्थित सभी 9 ग्रह होते हैं। ज्योतिष के अनुसार सौर मंडल में सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, राहू और केतु आदि कुल नवग्रह है। कहा जाता है कि ये सभी नवग्रह मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी करने में सक्ष्म होते हैं। हर रोज इनके मंत्र का जप करने से सभी बाधाओं से मुक्ति मिलने के साथ एक साथ सैकड़ों मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
इस नवग्रह मंत्र का हर रोज 108 बार लगातार 40 दिनों तक करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और जपकर्ता की सभी कामनाएं पूरी कर देता है।
1/13/2023 • 1 minute, 48 seconds
Taittiriya Shanti Paath तैत्तिरीय शांति पाठ
Taittiriya Shanti Paath तैत्तिरीय शांति पाठ ★
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः।
शं नो भवत्वर्यमा।
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः।
शं नो विष्णुरुरुक्रमः।
नमो ब्रह्मणे।
नमस्ते वायो।
त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वामेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि।
ॠतं वदिष्यामि।
सत्यं वदिष्यामि।
तन्मामवतु।
तद्वक्तारमवतु।
अवतु माम्।
अवतु वक्तारम्।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ★ ॐ मित्रा हम पर कृपा करें।
वरुण हमारे लिए मंगलमय हों।
आर्यमन हम पर प्रसन्न रहें।
इंद्र और बृहस्पति हमारे लिए आनंदमय हों।
भगवान विष्णु, लंबी प्रगति के, हमारे लिए आनंदित रहें।
ब्रह्म को नमस्कार।
आपको नमस्कार, हे वायु।
आप, वास्तव में, तत्काल ब्रह्म हैं।
केवल तुमको ही मैं प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूँगा।
मैं तुम्हें धार्मिकता कहूंगा। मैं तुम्हें सच कहूंगा।
वह मेरी रक्षा करें।
वह पढ़नेवाले* की रक्षा करें।
वह मेरी रक्षा करें।
वह पढ़नेवाले की रक्षा करे।
ओम, शांति, शांति, शांति! [
1/13/2023 • 1 minute, 16 seconds
Namokar Maha Mantra णमोकार महामन्त्र
जैन धर्मावलंबियों की मान्यतानुसार मूल मंत्र ●णमोकार महामंत्र● है।
इसी से सभी मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। एक णमोकार महामंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए।
◆पहली श्वास में- णमो अरिहंताणं- उच्छवास में- णमो सिद्धाणं*
*दूसरी श्वास में- णमो आयरियाणं- उच्छवास में- णमो उव्ज्झायाणं*
*तीसरी श्वास में- णमो लोए उच्छवास में- सव्वसाहूणं*
◆
णमोकार मंत्र में 35 अक्षर हैं। णमो- नमन कौन करेगा? नमन् वही करेगा, जो अपने अहंकार का विसर्जन करेगा। णमोकार मंत्र में 5 बार नमन् होता है अर्थात 5 बार अहंकार का विसर्जन होता है। णमोकार महामंत्र बीजाक्षरों (68) की वजह से विलक्षण है, अलौकिक है, अद्भुत है, सार्वलौकिक है। The Navkar Mantra (literally, "Nine Line Mantra") is a central mantra in Jainism. The initial 5 lines consist of salutations to various sanctified souls, and the latter 4 lines are explanatory in nature, highlighting the benefits and greatness of this mantra.
Namo Arihantânam - I bow to the Arihantâs (Conquerors). Namo Siddhânam - I bow to the Siddhâs (Liberated Souls). Namo Âyariyânam - I bow to the Âchâryas (Preceptors or Spiritual Leaders). Namo Uvajjhâyanam - I bow to the Upadhyâya (Teachers). Namo Loe Savva Sahûnam - I bow to all the Sadhûs in the world (Saints or Sages). Eso Panch Namokkaro,
Savva Pâvappanâsano,
Mangalanam Cha Savvesim,
Padhamam Havai Mangalam. This fivefold salutation (mantra) destroys all sins
and of all auspicious mantras, (it) is the foremost auspicious one.
1/12/2023 • 1 minute, 22 seconds
Sri Gan Nayak Ashtakam श्री गणनायकाष्टकम्
Sri Gan Nayak Ashtakam श्री गणनायकाष्टकम् ◆ एकदन्तं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम् । लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
मौञ्जी कृष्णाजिनधरं नागयज्ञोपवीतिनम् । बालेन्दुशकलं मौलिं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
२ ॥
चित्ररत्नविचित्राङ्गचित्रमालाविभूषितम् । कामरूपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ३ ॥
गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम् ।
पाशाङ्कुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ४
॥ मूषकोत्तममारुह्य देवासुरमहाहवे । योद्धुकामं महावीर्यं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ५
यक्षकिन्नरगन्धर्वसिद्धविद्याधरैस्सदा । स्तूयमानं महाबाहुं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ६
अम्बिकाहृदयानन्दं मातृभिः परिवेष्टितम् । भक्तप्रियं मदोन्मत्तं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ७
•सर्वविघ्नहरं देवं सर्वविघ्नविवर्जितम् । सर्वसिद्धिप्रदातारं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ८
गणाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत्सततं नरः । सिद्ध्यन्ति सर्वकार्याणि विद्यावान् धनवान् भवेत् ॥ ९ ॥
◆
इति श्री गणानायकाष्टकम् । ◆
1/12/2023 • 3 minutes, 37 seconds
Agastya Ashtakam अगस्त्याष्टकम्
Agastya Ashtakam अगस्त्याष्टकम् ◆ अद्य मे सफलं जन्म चाद्य मे सफलं तपः । अद्य मे सफलं ज्ञानं शंभो त्वत्पाददर्शनात् ॥
१॥
कृतार्थोऽहं कृतार्थोऽहं कृतार्थोऽहं महेश्वर । अद्य ते पादपद्मस्य दर्शनाद्भक्तवत्सल ॥ २ ॥
शिवश्शंभुः शिवश्शंभुः शिवश्शंभुः
शिवश्शिवः । इति व्याहरतो नित्यं दिनान्यायान्तु यान्तु मे ॥
३॥
शिवे भक्तिश्शिवे भक्तिश्शिवे भक्तिर्भवेभवे । सदा भूयात्सदा भूयात्सदा भूयात्सुनिश्चला ॥
४ ॥
अजन्म मरणं यस्य महादेवान्यदैवतम् । माजनिष्यत मद्वंशे जातो वा द्राग्विपद्यताम् ॥
५॥
जातस्य जायमानस्य गर्भस्थस्याऽपि देहिनः । माभून्मम कुले जन्म यस्य शंभुर्नदैवतम् ॥ ६
वयं धन्या वयं धन्या वयं धन्या जगत्त्रये । आदिदेवो महादेवो यदस्मत्कुलदैवतम् ॥ ७ ॥
हर शंभो महादेव विश्वेशामरवल्लभ ।
शिवशङ्कर सर्वात्मन्नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते ॥
८॥
अगस्त्याष्टकमेतत्तु यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ ९ ॥
◆
इत्यगस्त्याष्टकम्
◆
1/12/2023 • 3 minutes, 23 seconds
Mangalkari Mantra मंगलकारी मन्त्र
Mangalkari Mantra मंगलकारी मन्त्र ■ करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।
■ अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।
1/12/2023 • 18 seconds
Jai Jinendra Bolo जय जिनेंद्र बोलो
Jai Jinendra Bolo जय जिनेंद्र बोलो
- बिपिनचंद्र चौगुले, पुणे
• प्रातःकाल जो आँख खुले, तो जय जिनेंद्र बोलो।
प्रेम से जब कोई भी मिले, तो जय जिनेंद्र बोलो ॥ धृ ॥
एक महान धर्म के हम सब है अनुयायी।
जैसे कल्पवृक्ष की छाया, अनुपम सुखदायी ।।
चाहो गर वह फूले फले, तो जय जिनेंद्र बोलो ॥ 1 ॥
अणुव्रतों के मार्ग पे हमको, सदैव चलना है।
दया क्षमा के भाव से, सब जीवों से मिलना है ।। आत्मशुद्धि को पाना हो, तो जय जिनेंद्र बोलो ॥ 2 ॥ कर्मों के बंधों में सारा जीवन बंधा है, मुक्ति के मार्ग में अपने कर्मही बाधा है । मोक्ष प्राप्ति गर करनी हो, तो जय जिनेंद्र बोलो ॥ 3 ॥ सतकृत्यों को करके करना रत्नत्रय की कामना,
जिनप्रभु के चरणों में तुम सदा करो अर्चना । जीवन को करना हो सफल, तो जय जिनेंद्र बोलो ॥ 4 ॥ दिन के आखिर में बैठो तुम सामायिक करने,
धर्म ध्यान से अपने सारे पापों को हरने । नींद से पलकें जब बोझल हो, तो जय जिनेंद्र बोलो ॥ 5 ॥
•
1/11/2023 • 4 minutes, 35 seconds
Pati Prem Mantra पति प्रेम मन्त्र 108 times
Pati Prem Mantra पति प्रेम मन्त्र ★ "ऊँ नमो महायक्षिण्ये मम पतिं में वश्यं कुरु कुरु स्वाहा" ★ इस मंत्र की 10 माला जप करने तथा दशांश हवन, तर्पण, मार्जन करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। इसके बाद किसी भी मिठाई को इस मंत्र से सात बार अभिमंत्रित कर अपने पति को खिला दें । ऐसा लगातार 21 दिन तक करें। इससे पति आपके वश में हो जाएंगे तथा वह अपने जीवन में कभी किसी अन्य स्त्री की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखेंगे।
1/10/2023 • 10 minutes, 5 seconds
Pauranik Rahu Mantra पौराणिक राहु मन्त्र
राहु का पौराणिक मंत्र ~
ॐ अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम.
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।
1/9/2023 • 20 seconds
Maha Mrityunjay Mantra महामृत्युंजय मंत्र 5 times
Maha Mrityunjay Mantra महामृत्युंजय मंत्र 5 times • ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ •
मंत्र का अर्थ
•
हम त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं, जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है, वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
1/9/2023 • 1 minute, 40 seconds
Chatushloki Bhagwat चतुःश्लोकी भागवत
चतुःश्लोकी भागवत भगवान् विष्णु द्वारा ब्रह्माजी को दिया गया उपदेश है, जो तत्त्वज्ञान का बोध कराता है। ३ से ६ श्लोक मूल चतुःश्लोकी भागवत है। इसे कण्ठस्थ करके नित्य पठन करने से भगवद्ज्ञान में रुचि होने लगती है
•
श्रीभगवानुवाच
•
ज्ञानं परमगुह्यं मे यद्विज्ञानसमन्वितम् ।
सरहस्यं तदंग च गृहाण गदितं मया ।।1।।
अर्थ – श्रीभगवान बोले – (हे चतुरानन!) मेरा जो ज्ञान परम गोप्य है, विज्ञान (अनुभव) से युक्त है और भक्ति के सहित है उसको और उसके साधन को मैं कहता हूँ, सुनो।
यावानहं यथाभावो यद्रूपगुणकर्मक:।
तथैव तत्त्वविज्ञानमस्तु ते मदनुग्रहात् ।।2।।
अर्थ – मेरे जितने स्वरुप हैं, जिस प्रकार मेरी सत्ता है और जो मेरे रूप, गुण, कर्म हैं, मेरी कृपा से तुम उसी प्रकार तत्त्व का विज्ञान हो।
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद्यत्सदसत्परम् ।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम् ।।3।।
अर्थ – श्री भगवान कहते हैं - सृष्टि के आरम्भ होने से पहले केवल मैं ही था, सत्य भी मैं था और असत्य भी मैं था, मेरे अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं था। सृष्टि का अन्त होने के बाद भी केवल मैं ही रहता हूँ, यह चर-अचर सृष्टि स्वरूप केवल मैं हूँ और जो कुछ इस सृष्टि में दिव्य रूप से स्थिति है वह भी मैं हूँ, प्रलय होने के बाद जो कुछ बचा रहता है वह भी मै ही होता हूँ।
ऋतेSर्थें यत्प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो मायां यथाSSभासो यथा तम:।।4।।
अर्थ – जिसके कारण आत्मा में वास्तविक अर्थ के न रहते हुए भी उसकी प्रतीति हो और अर्थ के रहते हुए भी उसकी प्रतीति न हो, उसी को मेरी माया जानो, जैसे आभास (एक चन्द्रमा में दो चन्द्रमा का भ्रमात्मक ज्ञान) और जैसे राहु (राहु जैसे ग्रह मण्डलों में स्थित होकर भी नहीं दिखाई पड़ता)।
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम् ।।5।।
अर्थ – जिस प्रकार पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) संसार की छोटी या बड़ी सभी वस्तुओं में स्थित होते हुए भी उनसे अलग रहते हैं, उसी प्रकार मैं आत्म स्वरूप में सभी में स्थित होते हुए भी सभी से अलग रहता हूँ।
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा।।6।।
अर्थ – आत्म-तत्त्व को जानने की इच्छा रखने वालों के लिए केवल इतना ही जानने योग्य है कि सृष्टि के आरम्भ से सृष्टि के अन्त तक तीनों लोक (स्वर्गलोक, मृत्युलोक, नरकलोक) और तीनों काल (भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल) में सदैव एक समान रहता है, वही आत्म-तत्त्व है।
एतन्मत् समातिष्ठ परमेण समाधिना।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति कर्हिचित् ।।7।।
अर्थ – चित्त की परम एकाग्रता से इस मत का अनुष्ठान करें, कल्प की विविध सृष्टियों में आपको कभी भी कर्तापन का अभिमान न होगा।
॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥
• इति श्रीमद्भागवते महापुराणेsष्टादशसाहस्त्रयां संहितायां वैयासिक्यां द्वितीयस्कन्धे भगवद् ब्रह्मसंवादे चतु:श्लोकी भागवतं समाप्तम् ।
1/8/2023 • 6 minutes, 53 seconds
Shri Shankheshwar Parshvanath Mantra श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मन्त्र
Shri Shankheshwar Parshvanath Mantra श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मन्त्र ★ ॐ ह्रीं श्री धरणेन्द्रपद्मावती परिपूजिताय श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ★
1/8/2023 • 20 seconds
Shri Shankheshwar Parshvanath Stuti श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुति
Shri Shankheshwar Parshvanath Stuti श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुति ◆
जेना स्मरण थी जीवन ना संकट बधा दूरे टले,
जेना स्मरण थी मन तणा वांछित सहु आवी मले,
जेना स्मरण थी आधि ने व्याधि उपाधी ना टके,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमुं... १
विघ्नो तणा वादल भले चोमेर घेराई जता,
आपत्तिना कंटक भले चौमेर वेराई जता,
विश्वास छे जस नामथी ए दूर फेंकाई जता,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमुं...२
त्रण कालमा, त्रण भुवनमा विख्यात महिमा जेहनो,
अद्भुत छे देदार जेहना दर्शनीय आ देहनो,
लाखों करोड़ों सूर्य पण जस आंगणे झांखा पडे,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमुं.... ३
धरणेन्द्रने पद्मावती जेनी सदा सेवा करे,
भक्तो तणा वांछित सघला भक्तिथी पुरा करे,
इन्द्रो नरेन्द्रोने मुनिन्द्रो जाप करता जेहनो,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमां प्रेमे नम .... ४
जेना प्रभावे जगतना जीवो बधा सुख पामता,
जेना नवणथी जाधवो ना रोग दूरे भागता,
जेना चरणना स्पर्शने निशदिन भक्तो झंखता,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमुं.... ५
बे काने कुण्डल जेहना माथे मुगट विराजतो,
आंखो महि करूणा अने निज हैये हार विराजतों,
दर्शन प्रभुनुं पामी मननो मोरलो मुज नाचतो,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमुं.... ६
ॐ ह्रीं पदोने जोडी ने शंखेश्वरा ने जे जपे,
धर्णेन्द्र-पद्मावती सहित शंखेश्वरा ने जे जपे,
जन्मो जन्म ना पापने सहु अन्तरायो तस टूटे
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमुं.... ७
कलिकालमा हाजरा हजूर देवों तणा ए देव जे
भक्तों तणी भव भावठों ने भांगनारा देव जे,
मुक्ति किरणनी ज्योत ने प्रगटावनारा देव जे
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणमा प्रेमे नमु ... ८ ◆
Sri Subrahmanya Aksharamalika Stotram श्री सुब्रह्मण्याक्षरमालिका स्तोत्रम्
Sri Subrahmanya Aksharamalika Stotram श्री सुब्रह्मण्याक्षरमालिका स्तोत्रम्
1/7/2023 • 11 minutes, 45 seconds
Rin Vimochan Ganesha Stotram ऋण विमोचन गणेश स्तोत्रम्
Rin Vimochan Ganesha Stotram ऋण विमोचन गणेश स्तोत्रम् ◆ सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक्पूजितः फलसिद्धये सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ १ ॥
त्रिपुरस्यवधात्पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ २ ॥
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ ३ ॥
महिषस्यवधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ ४ ॥
तारकस्य वधात्पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ ५ ॥
भास्करेण गणेशोहि पूजितश्च विशुद्धये सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ ६ ॥ शशिना कान्तिवृद्ध्यर्थं पूजितो गणनायकः सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ ७ ॥
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ ८ ॥
इदं ऋणहरं स्तोत्रं तीव्रदारिद्र्यनाशनं एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः ॥ ९ ॥
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर समतां व्रजेत् पठन्तोऽयं महामन्त्रः सार्थ पञ्चदशाक्षरः ॥
१० ॥
श्री गणेशं ऋणं छिन्दि वरेण्यं हुं नमः फट् इमं मन्त्रं पठेदन्ते ततश्च शुचिभावनः ॥ ११ ॥ एकविम्शति सङ्ख्याभिः पुरश्चरणमीरितं सहस्रवर्तन सम्यक् षण्मासं प्रियतां व्रजेत् ॥
१२ ॥
बृहस्पति समो ज्ञाने धने धनपतिर्भवेत् अस्यैवायुत सङ्ख्याभिः पुरश्चरण मीरितः ॥
१३ ॥
लक्षमावर्तनात् सम्यग्वाञ्छितं फलमाप्नुयात् भूत प्रेत पिशाचानां नाशनं स्मृतिमात्रतः ॥
१४ ॥
इति श्रीकृष्णयामल तन्त्रे उमा महेश्वर संवादे ऋणहर्तृ गणेश स्तोत्रं समाप्तम् ॥ ◆
1/7/2023 • 5 minutes, 5 seconds
Sri Ekdant stotram श्री एकदन्त स्तोत्रम्
Sri Ekdant stotram श्री एकदन्त स्तोत्रम् ★ मदासुरं सुशान्तं वै दृष्ट्वा विष्णुमुखाः सुराः । भृग्वादयश्च मुनय एकदन्तं समाययुः ॥ १ ॥ प्रणम्य तं प्रपूज्यादौ पुनस्तं नेमुरादरात् । तुष्टुवुर्हर्षसम्युक्ता एकदन्तं गणेश्वरम् ॥ २ ॥
देवर्षय ऊचुः ◆
सदात्मरूपं सकलादिभूत
-ममायिनं सोऽहमचिन्त्यबोधम् अनादिमध्यान्तविहीनमेकं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ३ ॥
अनन्तचिद्रूपमयं गणेशं ह्यभेदभेदादिविहीनमाद्यम् । हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ४ ॥ विश्वादिभूतं हृदि योगिनां वै प्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम् । सदा निरालम्ब-समाधिगम्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ५ ॥
स्वबिम्बभावेन विलासयुक्तं
बिन्दुस्वरूपा रचिता स्वमाया । तस्यां स्ववीर्यं प्रददाति यो वै तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ६ ॥
त्वदीय-वीर्येण समस्तभूता
माया तया संरचितं च विश्वम् । नादात्मकं ह्यात्मतया प्रतीतं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ७ ॥
त्वदीय- सत्ताधरमेकदन्तं
गणेशमेकं त्रयबोधितारम् । सेवन्त आपूर्यमजं त्रिसंस्था स्तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ८ ॥
ततस्त्वया प्रेरित एव नाद तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ९ ॥
स्तेनेदमेवं रचितं जगद्वै ।
आनन्दरूपं समभावसंस्थं
तदेव विश्वं कृपया तवैव सम्भूतमाद्यं तमसा विभातम् । अनेकरूपं ह्यजमेकभूतं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १० ॥
ततस्त्वया प्रेरितमेव तेन
सृष्टं सुसूक्ष्मं जगदेकसंस्थम् । सत्त्वात्मकं श्वेतमनन्तमाद्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ११ ॥
तदेव स्वप्नं तपसा गणेशं
संसिद्धिरूपं विविधं बभूव ।
सदेकरूपं कृपया तवाऽपि तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १२ ॥
सम्प्रेरितं तच्च त्वया हृदिस्थं
तथा सुदृष्टं जगदंशरूपम्
तेनैव जाग्रन्मयमप्रमेयं
तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १३ ॥
जाग्रत्स्वरूपं रजसा विभातं
विलोकितं तत्कृपया तथैव । तदा विभिन्नं भवदेकरूपं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १४ ॥
एवं च सृष्ट्वा प्रकृतिस्वभावा त्तदन्तरे त्वं च विभासि नित्यम् ।
बुद्धिप्रदाता गणनाथ एक
स्तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १५ ॥
त्वदाज्ञया भान्ति ग्रहाश्च सर्वे
नक्षत्ररूपाणि विभान्ति खे वै ।
आधारहीनानि त्वया धृतानि
तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १६ ॥ त्वदाज्ञया सृष्टिकरो विधाता
त्वदाज्ञया पालक एव विष्णुः । त्वदाज्ञया संहरको हरोऽपि तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १७ ॥
यदाज्ञया भूर्जलमध्यसंस्था
यदाज्ञयाऽपः प्रवहन्ति नद्यः ।
सीमां सदा रक्षति वै समुद्र
स्तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १८ ॥
यदाज्ञया देवगणो दिविस्थो
ददाति वै कर्मफलानि नित्यम् ।
यदाज्ञया शैलगणोऽचलो वै
तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १९ ॥ यदाज्ञया शेष इलाधरो वै
यदाज्ञया मोहकरश्च कामः ।
यदाज्ञया कालधरोऽर्यमा च तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ २० ॥
यदाज्ञया वाति विभाति वायु र्यदाज्ञयाऽग्निर्जठरादिसंस्थः ।
यदाज्ञया वै सचराचरं च
तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ २१ ॥
सर्वान्तरे संस्थितमेकगूढं
यदाज्ञया सर्वमिदं विभाति । अनन्तरूपं हृदि बोधकं वै तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ २२ ॥
यं योगिनो योगबलेन साध्यं कुर्वन्ति तं कः स्तवनेन स्तौति । अतः प्रमाणेन सुसिद्धिदोऽस्तु तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ २३ ॥
गृत्सप्तद उवाच ◆
एवं स्तुत्वा च प्रह्लाद देवाः समुनयश्च वै । तूष्णीं भावं प्रपद्यैव ननृतुर्हर्षसम्युताः ॥ २४
स तानुवाच प्रीतात्मा ह्येकदन्तः स्तवेन वै । जगाद तान्महाभागान्देवर्षीन्भक्तवत्सलः ॥ २५ ॥
एकदन्त उवाच
◆
प्रसन्नोऽस्मि च स्तोत्रेण सुराः सर्षिगणाः किल
शृणु त्वं वरदोऽहं वो दास्यामि मनसीप्सितम्
॥ २६ ॥
भवत्कृतं मदीयं वै स्तोत्रम् प्रीतिप्रदं मम | भविष्यति न सन्देहः सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥
२७ ॥
यं यमिच्छति तं तं वै दास्यामि स्तोत्र पाठतः । पुत्रपौत्रादिकं सर्वं लभते धनधान्यकम् ॥ २८
गजाश्वादिकमत्यन्तं राज्यभोगं लभेद्ध्रुवम् । भुक्तिं मुक्तिं च योगं वै लभते शान्तिदायकम् ॥ २९ ॥
मारणोच्चाटनादीनि राज्यबन्धादिकं च यत् । पठतां शृण्वतां नृणां भवेच्च बन्धहीनता ॥
३० || एकविंशतिवारं च श्लोकांश्चैवैकविंशतिम् । पठते नित्यमेवं च दिनानि त्वेकविंशतिम् ॥
३१ ॥
न तस्य दुर्लभं किञ्चित्त्रिषु लोकेषु वै भवेत् । असाध्यं साधयेन्मर्त्यः सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
३२ ॥
नित्यं यः पठते स्तोत्रम् ब्रह्मभूतः स वै नरः । तस्य दर्शनतः सर्वे देवाः पूता भवन्ति वै ॥ ३३ एवं तस्य वचः श्रुत्वा प्रहृष्टा देवतर्षयः ।
ऊचुः करपुटाः सर्वे भक्तियुक्ता गजाननम् ॥
३४ ॥
इती श्री एकदन्तस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
1/6/2023 • 16 minutes, 4 seconds
Kuber Dhan Prapti Mantra कुबेर धनप्राप्ति मन्त्र 11 times
कुबेर धन प्राप्ति मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
धन प्राप्ति की कामना करने वाले साधकों को कुबेर जी का यह मंत्र जपना चाहिये। इसके नियमित जप से साधक को अचानक धन की प्राप्ति होती है।
1/6/2023 • 2 minutes, 44 seconds
Shiv Panchakshar Stotra शिव पंचाक्षर स्तोत्र
अगर पापों से मुक्ति की इच्छा मन में हैं तो शिवजी जी कृपा पाने के लिए शिव के सौंदर्य व उनकी महिमा का गुणगान करने वाला पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ लयबद्धता के साथ करने से सभी कष्टों का नाश हो जाता है ।
पंचाक्षर स्त्रोत
1- नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ।।
2- मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै मकाराय नम: शिवाय ।।
3- शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नम: शिवाय ।।
4- वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय ।।
5- यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नम: शिवाय ।।
6- पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।
Vaidik Chandra Mantra वैदिक चन्द्र मन्त्र ■ ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय।
इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
■
1/2/2023 • 48 seconds
Vaidik Surya Mantra वैदिक सूर्य मन्त्र
Vaidik Surya Mantra वैदिक सूर्य मन्त्र~ वैदिक काल से ग्रहों की अनुकूलता के प्रयास किए जाते रहे हैं। यजुर्वेद में 9 ग्रहों की प्रसन्नता के लिए उनका आह्वान किया गया है। यह मंत्र चमत्कारी रूप से प्रभावशाली हैं। ■
सूर्य मन्त्र - ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ■
Sarva Kalyan Kamna Prayer सर्व कल्याण कामना प्रार्थमा
Sarva Kalyan Kamna Prayer सर्व कल्याण कामना प्रार्थमा • सर्वेषां स्वस्ति भवतु । सर्वेषां शान्तिर्भवतु ।
सर्वेषां पूर्नं भवतु । सर्वेषां मड्गलं भवतु ॥
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
Lyrics in English:
Sarveshaam Svastir Bhavatu
Sarveshaam Shaantir Bhavatu,
Sarveshaam Purnam Bhavatu
Sarveshaam Mangalam Bhavatu.
Sarve Bhavantu Sukhinah,
Sarve Santu Niramayaah.
Sarve Bhardrani Pashyantu,
Maa Kashchit Duhkhabhahg Bhavet.
Meaning:
May good befall all,
May there be peace for all,
May all be fit for perfection, and
May all experience that which is auspicious.
May all be happy. May all be healthy.
May all experience what is good and
let no one suffer
1/1/2023 • 42 seconds
New Year Greeting Mantra नववर्ष शुभेच्छा मन्त्र
New Year Greeting Mantra नववर्ष शुभेच्छा मन्त्र ★ सूर्य संवेदना पुष्पे, दीप्ति
कारुण्यगंधने।
लब्ध्वा शुभं नववर्षेऽस्मिन। कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्॥ ★ Sürya samvedna puspe, dipti kārunyagandhane labdhvä navavarşe'smina
subham
॥ kuryātsarvasya mangalam
As the sun gives light, the sensation gives birth to compassion, and the flowers always spread their fragrance. The same way, may our new year be a pleasant one for us every day, every moment.
जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसी तरह आने वाला हमारा यह नूतन वर्ष आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
12/30/2022 • 1 minute, 27 seconds
Nidra Stambhan Mantra निद्रा स्तम्भन मन्त्र
Nidra Stambhan Mantra निद्रा स्तम्भन मन्त्र ★ ॐ नमो भगवते रुद्राय निद्रां स्तंभय ठः ठः ठः । ★
विधि-मंत्र को सिद्ध करके भटकटैया व मुलैठी को पीसकर सूंघने से स्तंभन होता है। मंत्र
सिद्ध करके ही यह क्रिया करनी चाहिये।
Nidra Mantra निद्रा मन्त्र ◆ ॐ निल नित्याने निल स्वाहा। विधि - इस मंत्र को आंख पर हाथ रख 108 बार पढ़े तो निद्रा आवे।
◆
12/27/2022 • 7 minutes, 29 seconds
Shiv Namaskar Mantra शिव नमस्कार मन्त्र
शिव नमस्कार मंत्र
◆ पूजा प्रारंभ करने से पहले इस मंत्र का उच्चारण करें। ● 'नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्र्हणोधपतिब्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।। ●
12/27/2022 • 1 minute, 3 seconds
Shri Bhaktamar Stotra श्री भक्तामर स्तोत्र (संस्कृत)
Shri Bhaktamar Stotra (Sanskrit) श्री भक्तामर स्तोत्र
क्लेशनाशक मंत्र ★ ॐ श्रीकृष्णाय शरणं मम। या कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥ ★ मंत्र प्रभाव : इस मंत्र का नित्य जप करने से कलह और क्लेशों का अंत होकर परिवार में खुशियां वापस लौट आती हैं।
12/25/2022 • 4 minutes, 54 seconds
Samadhi Bhavna समाधि भावना
Samadhi Bhavna समाधि भावना ★
दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ए भाऊ, देहांत के समय में, तुमको न भूल जाऊँ । टेक।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ, समता का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊँ ।१
त्यागूँ आहार पानी, औषध विचार अवसर, टूटे नियम न कोई, दृढ़ता हृदय में लाऊँ ।२।
जागें नहीं कषाएँ, नहीं वेदना सतावे, तुमसे ही लौ लगी हो, दुध्ध्यान को भगाऊँ ।३।
आत्म स्वरूप अथवा, आराधना विचारों, अरहंत सिद्ध साधु, रटना यही लगाऊँ ।४।
धरमात्मा निकट हों, चर्चा धरम सुनावें, वे सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊँ ।५।
जीने की हो न वाँछा, मरने की हो न ख्वाहिश, परिवार मित्र जन से, मैं मोह को हटाऊँ ।६।
भोगे जो भोग पहिले, उनका न होवे सुमिरन, मैं राज्य संपदा या, पद इंद्र का न चाहूँ।७।
रत्नत्रय का पालन, हो अंत में समाधि, 'शिवराम' प्रार्थना यह, जीवन सफल बनाऊँ ।८। ★
Virya Stambhan Mantra वीर्य स्तम्भन का शाबर मंत्र~
यह मंत्र स्वतः सिद्ध है तथापि किसी शुभ काल में इस मंत्र की पांच या सात मालाओ का जप कर लेना उत्तम रहता है. मंत्र इस प्रकार है ★ ॥
काचा पिंड, पिंड में कोठा। कोठा में दस द्वार, बहत्तर हजार नाड़ी, नाड़ी में रस रस में बिन्द। बिन्द को थामे गुरु गोरख भाजे, लुना जोगिनी चाखे। हनुमान की पूंछ बढ़ी वैसे ही बिन्द बढ़ो, सुख भयो। ॐ नमो इति महारानी तेरी लाख लाख आन ★
12/25/2022 • 47 seconds
Hanuman 12 Naam Stotra हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र
Hanuman 12 Naam Stotra हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र ★ हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥ उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः । स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत् ॥
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ॥ ★
12/23/2022 • 1 minute, 41 seconds
Prashnottari Mantra प्रश्नोत्तरी मन्त्र 216 times
Prashnottari Mantra प्रश्नोत्तरी मन्त्र ★ ॐ किरी किरी स्वाहा ★
Procedure :-
Start the sadhana at night 12 PM.
If can then take a bath before the sadhana begins.
Close the door and windows of your room and put lock inside.
Take off all your clothes and get completely naked.
Sit on your bed facing North.
Pray to the Deity for the sadhana to be successful.
Chant the mantra for 2 rosaries (216 times) using Rudraksha rosary.
After chanting, ask your question clearly to the Deity on mind.
Then sleep naked itself.
In the night, you will get the answer for your question.
Try this for a week if the result is not attained.
If the answer is not received even after 1 week then if you wish, continue chanting until you are successful.
ॐ किरी किरी स्वाहा ||
प्रक्रिया: -
रात्रि 12 बजे साधना प्रारंभ करें। साधना शुरू होने से पहले स्नान कर सकते हैं।
अपने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लें और अंदर ताला लगा दें। अपने सभी कपड़े उतारो और पूरी तरह से नग्न हो जाओ।
अपने बिस्तर पर उत्तर की ओर मुंह करके बैठें।
साधना सफल हो इसके लिए देवता से प्रार्थना करें। रुद्राक्ष की माला से 2 माला (216 बार) मंत्र का जप करें।
जप के बाद, अपने प्रश्न को स्पष्ट रूप से देवता से पूछें। इसके बाद खुद नग्न होकर सोएं।
रात में, आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिलेगा।
एक सप्ताह के लिए यह प्रयास करें यदि परिणाम प्राप्त नहीं होता है।
* यदि 1 सप्ताह के बाद भी जवाब नहीं मिलता है, तो यदि आप चाहें, तब तक जप जारी रखें जब तक आप सफल न हों।
12/23/2022 • 13 minutes, 43 seconds
Mangal Chandika Stotram मंगल चंडिका स्तोत्रम्
Mangal Chandika Stotram मंगल चंडिका स्तोत्रम् ★
स्वयं भगवान् शिव ने इस स्तोत्र की महिमा का बखान किया है । जिन लोगो की कुंडली में मंगली दोष है। उन लोगो के विवाह एवं कार्य में बाधाए मंगल ग्रह के कारण बनती हो तो यह स्तोत्र उनको चमत्कारिक लाभ प्रदान करता है ।
प्रायः मंगल दोष के कारण पुरुष एवं स्त्री दोनों के विवाह में भी अड़चन बनी रहती है । उनके लिये यह स्तोत्र अत्यंत लाभदायी है । यह प्रयोग मंगली लोगो को मंगल की वजह से उनके विवाह, काम-धंधे में आ रही रूकावटो को दूर कर देता है ।
मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व पूज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रूं फट् स्वाहा ।।
देवी भागवत् के अनुसार अन्य मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा ।।
।। श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् ।।
ध्यान
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः ॥
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः ।
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः ।
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् ॥
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् । सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् ॥ श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् । वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् ॥
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषतम् ।
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् ॥ ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् ।
जगद्धात्री च दात्री च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् ॥
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे ॥
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने ।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः ॥
शंकर उवाच
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके ।
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके ॥
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके ।
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके ।
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले ।
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये ॥
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते ।
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् ॥
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले ।
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनः ॥
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् ।
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे ॥
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् । प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः ॥
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः ।
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् ॥
॥ इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
उक्त स्तोत्र को मंगलवार के दिन से शुरू करे एवं माँ मंगल चंडिका का धयान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है ।
1. उपरोक्त दोनों में से किसी एक मंत्र का मन ही मन १०८ बार जप करे तथा स्तोत्र का ११ बार उच्च स्वर से श्रद्धा पूर्वक प्रेम सहित पाठ करे ।
2. ऐसा आठ मंगलवार को करे । आठवे मंगलवार को किसी भी सुहागिन स्त्री को लाल ब्लाउज, लाल रिब्बन, लाल चूड़ी, कुमकुम, लाल सिंदूर, पान- सुपारी, हल्दी, स्वादिष्ट फल, फूल आदि देकर संतुष्ट करे | अगर कुंवारी कन्या या पुरुष इस प्रयोग को कर रहे है तो वो अंजुली भर कर चने भी सुहागिन स्त्री को दे, ऐसा करने से उनका मंगल दोष शांत हो जायेगा |
3. इस प्रयोग में व्रत रहने की आवश्यकता नहीं है अगर आप शाम को न कर सके तो सुबह कर सकते है । यह अनुभूत प्रयोग है और आठ सप्ताह में ही चमत्कारिक रूप से शादी-विवाह की समस्या, धन की समस्या, व्यापार की समस्या, गृह कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है.
2. उक्त स्त्रोत को मंगलवार के दिन से शुरू करे एवं माँ मंगल चंडिका का धयान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है।
12/22/2022 • 5 minutes, 34 seconds
Saubhagya Prapti Mantra सौभाग्य प्राप्ति मन्त्र 108 times
Saubhagya Prapti Mantra सौभाग्य प्राप्ति मन्त्र ★ ॐ इरि मेरि किरि मेरि गिरि मेरि, पिरि मेरि सिरि मेरि हरि मेरि आयरिय मेरि स्वाहाः।
★
विधि- मंत्र को संध्या में ७ दिन तक १०८ बार जपें तो सौभाग्य की प्राप्ति होतो है।
Namokar Mahamantra (short form) णमोकार महामन्त्र (लघुस्वरूप) 9 times
मंत्र जब विस्तार से लिखा जाता है, तो उसका ज्यादा जाप करना कठिन हो जाता है.
"णमोकार महामन्त्र" 68 अक्षर का है.
इसका लघु स्वरुप है:
"अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः ॥"
जो कि केवल 15 अक्षर का है और आज सभी महापूजन और आरती शुरू करने से पहले इसे बोला जाता है.
12/22/2022 • 1 minute, 41 seconds
Ganpati Bappa Mantra गणपति बप्पा मन्त्र
Ganpati Bappa Mantra गणपति बप्पा मन्त्र ■ ॐ गं गणपतये नमो नमः। श्री सिद्धिविनायक नमो नमः ॥ अष्टविनायक नमो नमः। गणपती बाप्पा मोरया॥
ॐ गं गणपतये नमो नमः। श्री सिद्धिविनायक नमो नमः ॥ अष्टविनायक नमो नमः। मंगल मूर्ती मोरया॥
ऊँ गं गणपतये नमो नमः।। श्री सिद्धिविनायक नमो नमः ॥ अष्टविनायक नमो नमः। गणपती बाप्पा मोरया॥
ऊँ गं गणपतये नमो नमः। श्री सिद्धिविनायक नमो नमः ॥ अष्टविनायक नमो नमः। मंगल मूर्ती मोरया॥
ऊँ गं गणपतये नमो नमः। श्री सिद्धिविनायक नमो नमः॥ ■
12/20/2022 • 3 minutes, 21 seconds
Jinvar Prarthna जिनवर प्रार्थना
Jinvar Prarthna जिनवर प्रार्थना ■ પ્રમુ રિસમ સુર સંપદા, પ્રમુ રિસમ ાયનિu. પ્રભુ વરિરાની વામણ. સન પવારા રિદ્ધા भावे जिनकर पूजीए, आवे दीजे दान,
हे प्रभु! आनंद दाता, ज्ञान हमको दिजीये शीध् सारे दुर्ुणो को. दुर हमसे किजीये। लिवे हमको शरण में, हम सदाधारी बने. ब्रहचारी धर्म रक्षक, वीर व्रत धारी बने।
जे दृष्टी प्रभु दर्शन करे, आवे दृष्टी ने पण धन्य छे. जेजभ जिनकर ने स्तवे. ते जीम ने पण धन्य छे। पीये गुदा वाणी सुपा. ते कयुम ने धन्य हे,
तुज नाम मंत्र विशद परे, ते हदयने पण धन्य छे I॥8 ॥ दया सिधु दया सिपु. दया करे दया करने. मने आ जंजीरोमांधी, हवे जल्दी छूट करने। नी आ ताप सहेवातो, अभूकी कर्मी ज्वाला. वरसावी प्रेमनी पारा, हदयनी आग बुझावजे। 11911
વ તારા હિત માં વાસક્ય ના ઘરમાં મર્યા. हे नाव तारा नयनमां करुणा तणा अमृत अर्या। वीतराम तारी मीठी मीठी वाणीमां आटू अर्या, तेथी ज तारा चर बालक वनी आवी चढया। ॥६॥
Pradakshina Dohe प्रदक्षिणा दोहे • परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा करते समय बोलने के दोहे •
अनादि काल से चार गति रूप संसार में परीभ्रमण करती आत्मा के भव भ्रमणा को टालने परमात्मा के चारों और प्रदक्षिणा दी जाती है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी रत्नत्रयी की प्राप्ति के लिए परमात्मा की 3 प्रदक्षिणा की जाती है ।
प्रदक्षिणा देते समय प्रदक्षिणा के दोहे बोले । दोहे मंद स्वर में, गंभीर अवाज में सम्यग दर्शन ज्ञान चारित्र की प्राप्ति के लिये बोलने चाहिएं । •
१. काल अनादि अनंत थी भव भ्रमण नो नहीं पार,
ते भव भ्रमणा निवारवा प्रदक्षिणा देउं त्रण वार ॥१॥
भमतिमां भमता थकां भव भावठ दूर पलाय,
दर्शन ज्ञान चारित्र रुप प्रदक्षिणा त्रण देवाय ॥२॥
२. जन्ममरणादि भय टले, सीझे जो दर्शन काज,
रत्नत्रयी प्राप्ति भणी दर्शन करो जिनराज ॥३॥
ज्ञान बड़ा संसार में ज्ञान परमसुख हेत,
ज्ञान विना जग जीवडा न लहे तत्त्व संकेत ॥४॥
३. चय ते संचय कर्म नो रिक्त करे वली जेह,
चारित्र नाम निर्युक्ते कां वंदो ते गुणगेह ॥५॥
दर्शन ज्ञान चारित्र ए रत्नत्रय निरधार,
त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे भवदुःख भंजनहार ॥६॥
Anisht Nivaran Bhairav Mantra अनिष्ट निवारण भैरव मन्त्र ◆ वाद विवाद से बचने का मुक्ति मंत्र ◆
अगर बीते साल अगर आप किसी भी तरह के मुकदमे या वाद विवाद फंसे हैं, तो इस साल श्री भैरव जी की उपासना करें। तथा हर रविवार को इनके मंदिर जाकर इन्हें नारियल या किसी भी सफ़ेद मिष्ठान का भोग लगाएं। इसके अतिरिक्त रोज शाम को नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करें। इससे आप जल्द ही अपने मुकद्दर को चमका पाएंगे यानि आपको हर तरह के बाद विवाद से छुटकारा मिलेगा तथा अगर कोई जातक किसी भी तरह के मुकदमे में अटका हो तो वह उससे भी बाहर निकल आता है।
मत्र है ◆ "ॐ भं भैरवाय अनिष्टनिवारणाय स्वाहा." ◆
Meditation Mantra ध्यान मन्त्र 108 times
"ॐ मणि पद्मे हुं" ~
मूल रूप से तिब्बती बौद्धों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक पारंपरिक ध्यान मंत्र है। यह तनाव और चिंता को कम करने के लिए दयालु ऊर्जा के चैनल की तरह काम करता है।
मंत्र के लिखित रूप को पढ़ने से भी यही प्रभाव पड़ता है। तो, इस ध्यान मंत्र को अपनी जेब में और अपने दिमाग में रखें।
Gauri Mantra गौरी मन्त्र ★‘हे गौरि ! शंकरार्धांगि ! यथा त्वं शंकरप्रिया ।
तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकान्तां सुदुर्लभाम्।
★
अर्थात हे गौरी, शंकर की अर्धांगिनी ! जिस प्रकार तुम शंकर की प्रिया हो,
उसी प्रकार हे कल्याणी ! मुझ कन्या को दुर्लभ वर प्रदान करो■|
■यह देवी पार्वती का मंत्र है जिसमें भगवती पार्वती से यह प्रार्थना की जाती है की जैसे वह भगवान् शंकर को प्रिय हैं वैसा ही सुदुर्लभ मनोवांछित वर वह हमें प्रदान करें और आशीर्वाद प्रदान करें | जो कन्या इस पार्वती मंत्र का एकाग्रचित्त से 108 बार पाठ करती है, उसे शीघ्र ही भगवती देवी मनोवांछित वर प्रदान करती है और उसके विवाह में आने वाली सभी अडचनें और बाधाएं दूर हो जाती हैं |
How To Chant Gauri Mantra For A Desired Husband
इस मंत्र साधना को किसी भी शुभ दिन या मंगलवार से शुरू किया जा सकता है |
स्नानादि से निवृत हो कर प्रातः लाल रंग के वस्त्र पहन कर लाल आसन पर सुखासन में बैठें|
माँ गौरी को लाल रंग के पुष्प से पूजा करें |
प्राण संस्कारित कात्यायिनी यंत्र पर धूप और दीप जलायें |
मनोवांछित पति की कामना के लिए संकल्प करें और लाल मूंगे की माला से प्रतिदिन इस मंत्र का 108 बार जाप करें |
यह जाप आप 21 दिन तक करें और अंतिम दिन 7 कन्यायों को भेंट प्रदान करें |
आप इस साधना को 3 या 4 बार कर सकती हैं जब तक सफलता प्राप्त न हो |
12/13/2022 • 33 minutes, 7 seconds
Trailokya Mohan Sri Kaamkala Kali Kavacham त्रैलोक्य मोहन श्री कामकला काली कवचम्
Totakashtakam तोटकाष्टकम् ◆ विदिताखिल शास्त्र सुधा जलधे
महितोपनिषत्-कथितार्थ निधे ।
हृदये कलये विमलं चरणं
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 1 ॥
करुणा वरुणालय पालय मां
भवसागर दुःख विदून हृदम् ।
रचयाखिल दर्शन तत्त्वविदं
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 2 ॥
भवता जनता सुहिता भविता
निजबोध विचारण चारुमते ।
कलयेश्वर जीव विवेक विदं
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 3 ॥
भव ऎव भवानिति मॆ नितरां
समजायत चेतसि कौतुकिता ।
मम वारय मोह महाजलधिं
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 4 ॥
सुकृतेऽधिकृते बहुधा भवतो
भविता समदर्शन लालसता ।
अति दीनमिमं परिपालय मां
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 5 ॥
जगतीमवितुं कलिताकृतयो
विचरन्ति महामाह सच्छलतः ।
अहिमांशुरिवात्र विभासि गुरो
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 6 ॥
गुरुपुङ्गव पुङ्गवकेतन ते
समतामयतां न हि कोऽपि सुधीः ।
शरणागत वत्सल तत्त्वनिधे
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 7 ॥
विदिता न मया विशदैक कला
न च किञ्चन काञ्चनमस्ति गुरो ।
दृतमेव विधेहि कृपां सहजां
भव शङ्कर देशिक मे शरणम् ॥ 8 ॥
◆
12/13/2022 • 3 minutes, 54 seconds
Shri Suktam श्री सूक्तम्
Shri Suktam श्री सूक्तम् ■ संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो लक्ष्मी की कृपा से सुख समृद्धि और सफलता की कामना न करता हो । राजा, रंक, छोटे बड़े सभी चाहते हैं कि लक्ष्मी सदा उनके घर में निवास करें, और व्यक्ति धन की प्राप्ति के लिए प्रयत्न भी करता है । ऋग्वेद में माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए ‘श्री-सूक्त’ के पाठ और मन्त्रों के जप तथा मन्त्रों से हवन करने पर मनचाही मनोकामना पूरी होने की बात कही हैं । अगर कोई दिवाली के दिन अमावस्या की रात में इस समय श्री सूक्त का पाठ और मंत्रों से जप करता है उसकी इच्छाएं पूरी होकर ही रहती हैं ।
श्री-सूक्त में पन्द्रह ऋचाएं हैं, माहात्म्य सहित सोलह ऋचाएं मानी गयी हैं क्योंकि किसी भी स्तोत्र का बिना माहात्म्य के पाठ करने से फल प्राप्ति नहीं होती । नीचे दिये श्री सूक्त के मंत्रों से ऋग्वेद के अनुसार दिवाली की रात में 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच- 108 कमल के पुष्प या 108 कमल गट्टे के दाने को गाय के घी में डूबाकर बेलपत्र, पलाश एवं आम की समिधायों से प्रज्वलित यज्ञ में आहुति देने एवं श्रद्धापूर्वक लक्ष्मी जी का षोडषोपचार पूजन करने से व्यक्ति वर्तमान से लकेर आने वाले सात जन्मों तक निर्धन नहीं हो सकता हैं ।
★
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ।। ★
अर्थात- कमल के समान मुख वाली! कमलदल पर अपने चरणकमल रखने वाली! कमल में प्रीती रखने वाली! कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाली! सारे संसार के लिए प्रिय! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करने वाली! आप अपने चरणकमल को मेरे हृदय में स्थापित करें ।
★
।। अथ श्री-सूक्त मंत्र पाठ ।।
1- ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।
2- तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।
3- अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिन
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।
4- कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
5- चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।
6- आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।
7- उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।
8- क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।
9- गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
10- मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।
11- कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।
12- आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।
13- आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।
14- आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।
15- तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।
16- य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत् ।।
।। इति समाप्ति ।।
★
12/12/2022 • 7 minutes, 54 seconds
Shri Shani 108 Namavali श्री शनि अष्टोत्तरशत नामावली
Bhairav Kavach भैरव कवच • भैरव कवच भगवान की कृपा प्राप्त करने का और अपने शरीर की तथा अपने घर की सुरक्षा करने का अमोघ अस्त्र है। इस का प्रतिदिन पाठ करे और परिणाम स्वयं देखे कितना प्रभावशाली है यह-
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः ।
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ॥
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ॥
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ॥
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ।
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ॥
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ।
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ॥
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु ।
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ॥
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ॥
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ।
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ॥
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ॥
•
यह स्तोत्र शीघ्र ही फल देने लग जाता है। यदि निरंतरता से जाप किया जाये तो मनोवांछित कामना पूर्ण होती है और मनुष्य के सभी रोग भी दूर हो जाते है साथ ही सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होने लगती है|
12/6/2022 • 3 minutes, 10 seconds
Shri Narmadashtakam Stotra श्री नर्मदाष्टकम् स्तोत्र
Shri Narmadashtakam Stotra श्री नर्मदाष्टकम् स्तोत्र ◆ त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
1- सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम।
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम।।
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
2- त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम।
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं।।
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
3- महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं।
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम।।
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
4- गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा।
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा।।
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
5- अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं।
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम।।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
6- सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै।
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:।।
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
7- अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं।
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं।।
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
8- अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे।
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे।।
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
9- इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा।
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा।।
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम।
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे। त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ◆
Saraswati Mantra सरस्वती मन्त्र • इस मंत्र का जाप धन और ज्ञान की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
• ॐ अर्हं मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयंकारी वद वद वाग्वादिनी सरस्वती ऐं ह्रीं नमः स्वाहा।।
•
Om Arham Mukha Kamal Vasini Papatma Kshayamkari Vad Vad Vagvadini Saraswati Aim Hreem Namah Swaha | •
Invoke Goddess Lakshmi's Blessings with ■ Shreem Brzee■ the Ultimate Wealth Mantra. Listening and reciting this mantra daily, attracts Name, Fame and Money.
■ Shreem Brzee is a powerful mantra loaded with meaning. Shreem is the seed sound of Lakshmi. Brzee is not a traditional mantra you'd find in ancient texts, but that doesn't detract from its meaning and power. Brh means to grow. The Zzz sound you hear is one of the five hissing sibilants in the Vedic language (ssss). It's combined with the “I” (eee) sound, the ruling principle of Vishnu's maya. Shreem Brzee invokes Laksmi and Vishnu together, So you are invoking Vishnu's energy from the base of the spine and up to the head center with the sound brzee. The “I” (eee) vowel actually is associated with the left eye. Shreem contains all five elements in order of creation. The supreme bliss Shreem Brzee together allows you to invoke the Divine couples archetypical energy for making things grow in your life.
Shiv Natraj Stuti शिव नटराज स्तुति ■ सत सृष्टि तांडव रचयिता । नटराज राज नमो नमः।। हे आद्य गुरु शंकर पिता । नटराज राज नमो नमः ।।
गंभीर नाद मृदंगना । धबके उरे ब्रह्माडना । नित होत नाद प्रचंडना । नटराज राज नमो नमः
।।
शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा । चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां । विषनाग माला कंठ मां । नटराज राज नमो नमः
।।
तवशक्ति वामांगे स्थिता । हे चंद्रिका अपराजिता । चहु वेद गाए संहिता
।
नटराज राज नमोः
नम:।। नटराज राज नमोः नम: ।। नटराज राज नमोः नम:।।
11/29/2022 • 2 minutes, 20 seconds
Daily Prayer Shloka नित्य प्रार्थना श्लोक
नित्य प्रार्थना श्लोक ~ ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम देव देवः।।’
11/29/2022 • 41 seconds
Kalyan Alochna (Prakrit) कल्याणालोचना (प्राकृत)
Kalyan Alochna (In Prakrit Language) कल्याणालोचना (प्राकृत Bhasha)
11/29/2022 • 18 minutes, 51 seconds
Sapt Sarita Mantra सप्त सरिता मन्त्र
Sapt Sarita Mantra सप्त सरिता मन्त्र ★भगवान की पूजा विधि में सात नदियों की पूजा के कल श में आकर बैठने की प्रार्थना भी की जाती है।
★ गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
★
अर्थात् हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी नदियों! इस जल में आप सभी पधारिये ।
■ Adityadi Navgrah Stotram.आदित्यादि नवग्रह स्तोत्रम् ■
|| ॐ श्री गणेशाय नमः
||
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् |
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् || १ ||
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् |
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् || २ ||
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् || ३ ||
प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् |
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् || ४ ||
देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् |
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || ५ ||
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् || ६ ||
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् || ७ ||
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् || ८ ||
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् |
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् || ९ ||
इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः |
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति || १० ||
नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् || ११ ||
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः |
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः || १२ ||
★
|| इति श्री वेद व्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ||
★
11/28/2022 • 4 minutes, 53 seconds
Sri Rangnathashtakam श्री रङ्गनाथाष्टकम्
Sri Rangnathashtakam श्री रङ्गनाथाष्टकम् ★ आनन्दरूपे निजबोधरूपे ब्रह्मस्वरूपे श्रुतिमूर्तिरूपे ।
शशाङ्करूपे रमणीयरूपे श्रीरङ्गरूपे रमतां मनो मे ॥१॥ कावेरितीरे करुणाविलोले मन्दारमूले धृतचारुकेले ।
दैत्यान्तकालेऽखिललोकलीले श्रीरङ्गलीले रमतां मनो मे ॥२॥ लक्ष्मीनिवासे जगतां निवासे हृत्पद्मवासे रविबिम्बवासे ।
कृपानिवासे गुणबृन्दवासे श्रीरङ्गवासे रमतां मनो मे ॥३॥ ब्रह्मादिवन्द्ये जगदेकवन्द्ये मुकुन्दवन्द्ये सुरनाथवन्द्ये ।
व्यासादिवन्द्ये सनकादिवन्द्ये श्रीरङ्गवन्द्ये रमतां मनो मे ॥४॥ ब्रह्माधिराजे गरुडाधिराजे वैकुण्ठराजे सुरराजराजे ।
त्रैलोक्यराजेऽखिललोकराजे श्रीरङ्गराजे रमतां मनो मे ॥५॥ अमोघमुद्रे परिपूर्णनिद्रे श्रीयोगनिद्रे ससमुद्रनिद्रे ।
श्रितैकभद्रे जगदेकनिद्रे श्रीरङ्गभद्रे रमतां मनो मे ॥६॥ सचित्रशायी भुजगेन्द्रशायी नन्दाङ्कशायी कमलाङ्कशायी ।
क्षीराब्धिशायी वटपत्रशायी श्रीरङ्गशायी रमतां मनो मे ॥७॥ इदं हि रङ्गं त्यजतामिहाङ्गं पुनर्न चाङ्गं यदि चाङ्गमेति ।
पाणौ रथाङ्गं चरणेऽम्बु गाङ्गं याने विहङ्गं शयने भुजङ्गम् ॥८॥ रङ्गनाथाष्टकम्पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
सर्वान् कामानवाप्नोति रङ्गिसायुज्यमाप्नुयात् ॥९॥
11/28/2022 • 5 minutes, 5 seconds
Shiv Padadi Keshant Varnan Stotram शिवपादादि केशान्त वर्णन स्तोत्रम्
Shiv Padadi Keshant Varnan Stotram शिवपादादि केशान्त वर्णन स्तोत्रम्
11/28/2022 • 37 minutes, 19 seconds
Stree Akarshan Mantra स्त्री आकर्षण मन्त्र
Stree Akarshan Mantra स्त्री आकर्षण मन्त्र ★
इस मंत्र का प्रयोग गुरूवार के दिन से आरंभ करे। गुरूवार के दिन शाम के समय घर का एक स्थान चुन लें। उस स्थान पर आसन लगाकर बैठ जाएं। एक डिब्बी में थोडा नमक लें। डिब्बी से ढक्कन हटा दे और एक मंत्र का उच्चारण करें....
★ "ॐ भगवती भग भाग दायिनी देव दत्तीं मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ★
मंत्र में देव दत्तीं शब्द के दौरान मनचाही स्त्री का नाम लें।
एक मंत्र का उच्चारण करके डिब्बी में नमक की तरफ फूंक मारें। ऐसा 7 बार मंत्र पढ़ कर 7 बार फूंक मारें। सात बार डिब्बी के नमक को अभिमंत्रित करने के बाद इस डिब्बी को बंदकर किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें। अब इस मंत्र के जाप से यह नमक अभिमंत्रित हो चुका है ।
लगातार 29 दिन तक 7 बार इस मंत्र को अभिमंत्रित करते रहें। जिस समय पहली बार यह प्रयोग करे उसे जारी रखें, एक दिन भी तोड़े नहीं । 29 दिन बाद इस नमक को मनचाही स्त्री को धोखे से खिला दें। नमक खाने के बाद वह महिला आपकी ओर आकर्षित होने लगेगी। वह वशीभूत होकर खुद व खुद चली आएगी। जिस महिला को आप पसंद करते हैं उस पर प्रभाव होना शुरू हो जाएगा। इस मंत्र के सकारात्मक प्रभाव है जिससे कारण आपको मनचाहा जीवनसाथी मिलेगा और जो बाधा होगी वो भी दूर हो जाएगी।
11/28/2022 • 2 minutes, 3 seconds
ॐ Om, The Eternal Divine Mantra Jaap 108 times (1 Mala) ॐ कार मन्त्र जाप
ॐ (ओम्)
यह ध्वनि पांचो परमेष्ठी नामों के पहले अक्षर मिलाने पर बनती है। यथा अरहन्त का पहिला अक्षर 'अ', अशरीरी (सिद्ध) का 'अ', आचार्य का 'आ', उपाध्याय का 'उ', तथा मुनि (साधु) का 'म्', इस
प्रकार
अ+अ+आ+उ+म् = ॐ
(यह 'ओउम्' भी लिखा पाया जाता है जो कि अशुद्ध है।) 'ॐ' का निरंतर जाप करने से आंतरिक और बाह्य विकारों का भी निदान होता है। दिमाग शांत होता है और बहुत-सी शारीरिक तकलीफें दूर होती हैं। इसके नियमित जाप से व्यक्ति के प्रभामंडल में वृद्धि होती है।
आइए जानें कैसे करें 'ॐ' का जाप...
* किसी शांत जगह का चुनाव करें।
* यदि सुबह जल्दी उठकर जाप कर पाएं तो बहुत अच्छा। यदि ऐसा संभव न हो, तो रात को सोने से पहले इसका जाप करें।
* ॐ का जाप करने के लिए किसी भगवान की मूर्ति, चित्र, धूप, अगरबत्ती या दीये की जरूरत नहीं होती है।
* यदि खुली जगह जैसे कोई मैदान, छत या बगीचा न हो तो कमरे में ही इसका जाप करें।
* साफ जगह पर जमीन पर आसन बिछाकर जाप करें। पलंग या सोफे पर बैठकर जाप न करें।
* 'ॐ' का उच्चारण तेज आवाज में करें।
* उच्चारण खत्म करने के बाद 2 मिनट के लिए ध्यान लगाएं और फिर उठ जाएं।
* इस मंत्र के नियमित जाप से तनाव से पूरी तरह मुक्ति मिलती है।
* जाप के दौरान टीवी, म्यूजिक सिस्टम आदि बंद कर दें। कोशिश करें कि जाप के दौरान शोर न हो।
* साफ आसन पर पद्मासन बैठें और आंखें बंद कर पेट से आवाज निकालते हुए जोर से ॐ का उच्चारण करें। ॐ को जितना लंबा खींच सकें, खींचें। सांस भर जाने पर रुकें और फिर यही प्रक्रिया दोहराएं।
11/26/2022 • 20 minutes, 29 seconds
Sri Subramanya Bhujangam श्री सुब्रह्मण्य भुजङ्गम्
Subramanya Bhujangam श्री सुब्रह्मण्य भुजङ्गम् ◆ सदा बालरूपाऽपि विघ्नाद्रिहन्त्री
महादन्तिवक्त्राऽपि पञ्चास्यमान्या।
विधीन्द्रादिमृग्या गणेशाभिधा मे
विधत्तां श्रियं काऽपि कल्याणमूर्तिः॥१॥ न जानामि शब्दं न जानामि चार्थं
न जानामि पद्यं न जानामि गद्यम्।
चिदेका षडास्या हृदि द्योतते मे
मुखान्निःसरन्ते गिरश्चापि चित्रम्॥२॥ मयूराधिरूढं महावाक्यगूढं
मनोहारिदेहं महच्चित्तगेहम्।
महीदेवदेवं महावेदभावं महादेवबालं भजे लोकपालम्॥३॥ यदा संनिधानं गता मानवा मे
भवाम्भोधिपारं गतास्ते तदैव।
इति व्यञ्जयन्सिन्धुतीरे य आस्ते
तमीडे पवित्रं पराशक्तिपुत्रम्॥४॥ यथाब्धेस्तरङ्गा लयं यन्ति तुङ्गाः
तथैवापदः सन्निधौ सेवतां मे।
इतीवोर्मिपंक्तीर्नृणां दर्शयन्तं
सदा भावये हृत्सरोजे गुहं तम्॥५॥ गिरौ मन्निवासे नरा येऽधिरूढाः
तदा पर्वते राजते तेऽधिरूढाः।
इतीव ब्रुवन्गन्धशैलाधिरूढाः
स देवो मुदे मे सदा षण्मुखोऽस्तु॥६॥महाम्भोधितीरे महापापचोरे
मुनीन्द्रानुकूले सुगन्धाख्यशैले।
गुहायां वसन्तं स्वभासा लसन्तं
जनार्ति हरन्तं श्रयामो गुहं तम्॥७॥ लसत्स्वर्णगेहे नृणां कामदोहे
सुमस्तोमसंछत्रमाणिक्यमञ्चे।
समुद्यत्सहस्रार्कतुल्यप्रकाशं
सदा भावये कार्तिकेयं सुरेशम्॥८॥ रणद्धंसके मञ्जुलेऽत्यन्तशोणे
मनोहारिलावण्यपीयूषपूर्णे
मनःषट्पदो मे भवक्लेशतप्तः
सदा मोदतां स्कन्द ते पादपद्मे॥९॥ सुवर्णाभदिव्याम्बरैर्भासमानां
क्वणत्किङ्किणीमेखलाशोभमानाम्।
लसद्धेमपट्टेन विद्योतमानां
कटिं भावये स्कन्द ते दीप्यमानाम्॥१०॥ पुलिन्देशकन्याघनाभोगतुङ्ग_
स्तनालिङ्गनासक्तकाश्मीररागम् ।
नमस्यामहं तारकारे तवोरः
स्वभक्तावने सर्वदा सानुरागम्॥११॥ विधौ क्ऌप्तदण्डान् स्वलीलाधृताण्डान्
निरस्तेभशुण्डान् द्विषत्कालदण्डान्।
हतेन्द्रारिषण्डाञ्जगत्त्राणशौण्डान्
सदा ते प्रचण्डान् श्रये बाहुदण्डान्॥१२॥ सदा शारदाः षण्मृगाङ्का यदि स्युः
समुद्यन्त एव स्थिताश्चेत्समन्तात्।
सदा पूर्णबिम्बाः कलङ्कैश्च हीनाः
तदा त्वन्मुखानां ब्रुवे स्कन्द साम्यम्॥१३॥ स्फुरन्मन्दहासैः सहंसानि चञ्चत्
कटाक्षावलीभृङ्गसंघोज्ज्वलानि।
सुधास्यन्दिबिम्बाधरणीशसूनो
तवालोकये षण्मुखाम्भोरुहाणि॥१४॥ विशालेषु कर्णान्तदीर्घेष्वजस्रं
दयास्यन्दिषु द्वादशस्वीक्षणेषु।
मयीषत्कटाक्षः सकृत्पातितश्चेद्
भवेत्ते दयाशील का नाम हानिः॥१५॥ सुताङ्गोद्भवो मेऽसि जीवेति षड्धा
जपन्मन्त्रमीशो मुदा जिघ्रते यान्।
जगद्भारभृद्भ्यो जगन्नाथ तेभ्यः
किरीटोज्ज्वलेभ्यो नमो मस्तकेभ्यः॥१६॥ स्फुरद्रत्नकेयूरहाराभिरामः
चलत्कुण्डलश्रीलसद्गण्डभागः।
कटौ पीतवास करे चारुशक्ति
पुरस्तान्ममास्तां पुरारेस्तनूज॥१७॥ इहायाहि वत्सेति हस्तान्प्रसार्या_
ह्वयत्यादशच्छङ्करे मातुरङ्कात्।
समुत्पत्य तातं श्रयन्तं कुमारं
हराश्लिष्टगात्रं भजे बालमूर्तिम्॥१८॥ कुमारेशसूनो गुह स्कन्द सेना_
पते शक्तिपाणे मयूराधिरूढ।
पुलिन्दात्मजाकान्त भक्तार्तिहारिन्
प्रभो तारकारे सदा रक्ष मां त्वम्॥१९॥ प्रशान्तेन्द्रिये नष्टसंज्ञे विचेष्टे
कफोद्गारिवक्त्रे भयोत्कम्पिगात्रे।
प्रयाणोन्मुखे मय्यनाथे तदानीं
द्रुतं मे दयालो भवाग्रे गुह त्वम्॥२०॥ कृतान्तस्य दूतेषु चण्डेषु कोपाद्
दहच्छिन्द्धि भिन्द्धीति मां तर्जयत्सु।
मयूरं समारुह्य मा भैरिति त्वं
पुरः शक्तिपाणिर्ममायाहि शीघ्रम्॥२१॥ प्रणम्यासकृत्पादयोस्ते पतित्वा
प्रसाद्य प्रभो प्रार्थयेऽनेकवारम्।
न वक्तुं क्षमोऽहं तदानीं कृपाब्धे
न कार्यान्तकाले मनागप्युपेक्षा॥२२॥ सहस्राण्डभोक्ता त्वया शूरनामा
हतस्तारकः सिंहवक्त्रश्च दैत्यः।
ममान्तर्हृदिस्थं मनःक्लेशमेकं
न हंसि प्रभो किं करोमि क्व यामि॥२३॥ अहं सर्वदा दुःखभारावसन्नो
भवान्दीनबन्धुस्त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिरोधं सदा क्ऌप्तबाधं
ममाधिं द्रुतं नाशयोमासुत त्वम्॥२४॥
अपस्मारकुष्टक्षयार्शः प्रमेह_
ज्वरोन्मादगुल्मादिरोगा महान्तः।
पिशाचाश्च सर्वे भवत्पत्रभूतिं
विलोक्य क्षणात्तारकारे द्रवन्ते॥२५॥ दृशि स्कन्दमूर्तिः श्रुतौ स्कन्दकीर्तिः
मुखे मे पवित्रं सदा तच्चरित्रम्।
करे तस्य कृत्यं वपुस्तस्य भृत्यं
गुहे सन्तु लीना ममाशेषभावाः॥२६॥ मुनीनामुताहो नृणां भक्तिभाजां
अभीष्टप्रदाः सन्ति सर्वत्र देवाः।
नृणामन्त्यजानामपि स्वार्थदाने
गुहाद्देवमन्यं न जाने न जाने॥२७॥ कलत्रं सुता बन्धुवर्गः पशुर्वा
नरो वाथ नारि गृहे ये मदीयाः।
यजन्तो नमन्तः स्तुवन्तो भवन्तं
स्मरन्तश्च ते सन्तु सर्वे कुमार॥२८॥ मृगाः पक्षिणो दंशका ये च दुष्टाः
तथा व्याधयो बाधका ये मदङ्गे।
भवच्छक्तितीक्ष्णाग्रभिन्नाः सुदूरे
विनश्यन्तु ते चूर्णितक्रौञ्चशौल॥२९॥ जनित्री पिता च स्वपुत्रापराधं
सहेते न किं देवसेनाधिनाथ।
अहं चातिबालो भवान् लोकतातः
क्षमस्वापराधं समस्तं महेश॥३०॥ नमः केकिने शक्तये चापि तुभ्यं
नमश्छाग तुभ्यं नमः कुक्कुटाय ।
नमः सिन्धवे सिन्धुदेशाय तुभ्यं
पुनः स्कन्दमूर्ते नमस्ते नमोऽस्तु॥३१॥ ★
11/26/2022 • 16 minutes, 55 seconds
Birthday Wishing Mantra शुभ जन्मदिन मन्त्र
Birthday Wishing Mantra शुभ जन्मदिन मन्त्र ★ शुभजन्मदिनं तुभ्यम् । शुभजन्मदिने तव हे ।
सकलं मधुरं भूयात् ।
शुभजन्मदिनं तुभ्यम् ।
शुभजन्मदिने तव हे ।
सकलं सफलं भूयात् ।
सकलं च शुभं भूयात् ।
Happy Birthday To You.... On this Happy Birthday of yours, we pray. O dear! May sweetness be added to your life! Happy Birthday To You.... On this Happy Birthday of yours, we pray, O dear! May you be endowed with all success! May all be brilliant for you! Happy Birthday To You....!!
Windfall Gains Mantra आकस्मिक धन प्राप्ति मंत्र- "ॐ ह्लीं श्रीं क्लीं नमः द्रवः"। मृगशिरा नक्षत्र में कुशा के आसन पर बैठकर किसी सरिता के तट पर श्रद्धा पूर्वक 21 दिन में एक लाख बार मंत्र जप करने से अनायास धन प्राप्ति होती है
Aishwarya Prapti Mantra ऐश्वर्य प्राप्ति मन्त्र 108 times
Aishwarya Prapti Mantra ऐश्वर्य प्राप्ति मन्त्र ■ धन प्राप्ति का चमत्कारिक लक्ष्मी मंत्र ,” आर्थिक संपन्नता के लिए किसी भी माह के प्रथम शुक्रवार से यह प्रयोग आरंभ करें और नियमित 3 शुक्रवार को यह उपाय करें।
प्रत्येक दिन नित्य क्रम से स्नानोंपरांत अपने घर के पूजा स्थान में घी का दीपक जलाकर मां लक्ष्मी को मिश्री और खीर का भोग लगाएं। निम्न मंत्र का मात्र 108 बार जप करें।
* चमत्कारिक लक्ष्मी मंत्र : ★ ॐ श्रीं श्रीये नम:
★
* तत्पश्चात 7 वर्ष की आयु से कम की कन्याओं को श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं। भोजन में खीर और मिश्री जरूर खिलाएं। ऐसा करने से मां लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होगीं। आपकी आर्थिक परेशानी खत्म होगी।
Mangaldayak Mantra मंगलदायक मन्त्र ★ॐ ह्रीं वरे सुवरे असिआउसा नमः स्वाहा | ★ (एकान्त में प्रतिदिन 108 बार धूप के साथ, शुद्ध भावपूर्वक जपें | )
11/20/2022 • 18 minutes, 18 seconds
Sri Rudram Chamak Prashnah श्री रुद्रं - चमकप्रश्नः
Sri Rudram Chamak Prashnah श्री रुद्रं चमकप्रश्नः • ॐ अग्ना॑विष्णो स॒जोष॑से॒माव॑र्धन्तु वां॒ गिरः॑ । द्यु॒म्नैर्वाजे॑भि॒राग॑तम् । वाज॑श्च मे प्रस॒वश्च॑ मे॒ प्रय॑तिश्च मे॒ प्रसि॑तिश्च मे धी॒तिश्च॑ मे क्रतु॑श्च मे॒ स्वर॑श्च मे॒ श्लोक॑श्च मे श्रा॒वश्च॑ मे॒ श्रुति॑श्च मे॒ ज्योति॑श्च मे॒ सुव॑श्च मे प्रा॒णश्च॑ मेऽपा॒नश्च॑ मे व्या॒नश्च॒ मेऽसु॑श्च मे चि॒त्तं च॑ म॒ आधी॑तं च मे॒ वाक्च॑ मे॒ मन॑श्च मे॒ चक्षु॑श्च मे॒ श्रोत्रं॑ च मे॒ दक्ष॑श्च मे॒ बलं॑ च म॒ ओज॑श्च मे॒ सह॑श्च म॒ आयु॑श्च मे ज॒रा च॑ म आ॒त्मा च॑ मे त॒नूश्च॑ मे॒ शर्म॑ च मे॒ वर्म॑ च॒ मेऽङ्गा॑नि च मे॒ऽस्थानि॑ च मे॒ परूग्ं॑षि च मे॒ शरी॑राणि च मे ॥ 1 ॥
जैष्ठ्यं॑ च म॒ आधि॑पत्यं च मे म॒न्युश्च॑ मे॒ भाम॑श्च॒ मेऽम॑श्च॒ मेऽम्भ॑श्च मे जे॒मा च॑ मे महि॒मा च॑ मे वरि॒मा च॑ मे प्रथि॒मा च॑ मे व॒र्ष्मा च॑ मे द्राघु॒या च॑ मे वृ॒द्धं च॑ मे॒ वृद्धि॑श्च मे स॒त्यं च॑ मे श्र॒द्धा च॑ मे॒ जग॑च्च मे॒ धनं॑ च मे॒ वश॑श्च मे॒ त्विषि॑श्च मे क्री॒डा च॑ मे॒ मोद॑श्च मे जा॒तं च॑ मे जनि॒ष्यमा॑णं च मे सू॒क्तं च॑ मे सुकृ॒तं च॑ मे वि॒त्तं च॑ मे॒ वेद्यं॑ च मे भू॒तं च॑ मे भवि॒ष्यच्च॑ मे सु॒गं च॑ मे सु॒पथं॑ च म ऋ॒द्धं च॑ म ऋद्धि॑श्च मे क्लु॒प्तं च॑ मे॒ क्लुप्ति॑श्च मे म॒तिश्च॑ मे सुम॒तिश्च॑ मे ॥ 2 ॥
शं च॑ मे॒ मय॑श्च मे प्रि॒यं च॑ मेऽनुका॒मश्च॑ मे॒ काम॑श्च मे सौमनस॒श्च॑ मे भ॒द्रं च॑ मे॒ श्रेय॑श्च मे॒ वस्य॑श्च मे॒ यश॑श्च मे॒ भग॑श्च मे॒ द्रवि॑णं च मे य॒न्ता च॑ मे ध॒र्ता च॑ मे॒ क्षेम॑श्च मे॒ धृति॑श्च मे॒ विश्वं॑ च मे॒ मह॑श्च मे सं॒विँच्च॑ मे॒ ज्ञात्रं॑ च मे॒ सूश्च॑ मे प्र॒सूश्च॑ मे॒ सीरं॑ च मे ल॒यश्च॑ म ऋ॒तं च॑ मे॒ऽमृतं॑ च मेऽय॒क्ष्मं च॒ मेऽना॑मयच्च मे जी॒वातु॑श्च मे दीर्घायु॒त्वं च॑ मेऽनमि॒त्रं च॒ मेऽभ॑यं च मे सु॒गं च॑ मे॒ शय॑नं च मे सू॒षा च॑ मे सु॒दिनं॑ च मे ॥ 3 ॥
ऊर्क्च॑ मे सू॒नृता॑ च मे॒ पय॑श्च मे॒ रस॑श्च मे घृ॒तं च॑ मे॒ मधु॑ च मे॒ सग्धि॑श्च मे॒ सपी॑तिश्च मे कृ॒षिश्च॑ मे॒ वृष्टि॑श्च मे॒ जैत्रं॑ च म॒ औद्भि॑द्यं च मे र॒यिश्च॑ मे॒ राय॑श्च मे पु॒ष्टं च मे॒ पुष्टि॑श्च मे वि॒भु च॑ मे प्र॒भु च॑ मे ब॒हु च॑ मे॒ भूय॑श्च मे पू॒र्णं च॑ मे पू॒र्णत॑रं च॒ मेऽक्षि॑तिश्च मे॒ कूय॑वाश्च॒ मेऽन्नं॑ च॒ मेऽक्षु॑च्च मे व्री॒हय॑श्च मे॒ यवा᳚श्च मे॒ माषा᳚श्च मे॒ तिला᳚श्च मे मु॒द्गाश्च॑ मे ख॒ल्वा᳚श्च मे गो॒धूमा᳚श्च मे म॒सुरा᳚श्च मे प्रि॒यङ्ग॑वश्च॒ मेऽण॑वश्च मे श्या॒माका᳚श्च मे नी॒वारा᳚श्च मे ॥ 4 ॥
अश्मा॑ च मे॒ मृत्ति॑का च मे गि॒रय॑श्च मे॒ पर्व॑ताश्च मे॒ सिक॑ताश्च मे॒ वन॒स्पत॑यश्च मे॒ हिर॑ण्यं च॒ मेऽय॑श्च मे॒ सीसं॑ च॒ मे त्रपु॑श्च मे श्या॒मं च॑ मे लो॒हं च॑ मेऽग्निश्च॑ म आप॑श्च मे वी॒रुध॑श्च म॒ ओष॑धयश्च मे कृष्टप॒च्यं च॑ मेऽकृष्टपच्यं च॑ मे ग्रा॒म्याश्च॑ मे प॒शव॑ आर॒ण्याश्च॑ य॒ज्ञेन॑ कल्पन्तां-विँ॒त्तं च॑ मे॒ वित्ति॑श्च मे भू॒तं च॑ मे॒ भूति॑श्च मे॒ वसु॑ च मे वस॒तिश्च॑ मे॒ कर्म॑ च मे॒ शक्ति॑श्च॒ मेऽर्थ॑श्च म॒ एम॑श्च म इति॑श्च मे॒ गति॑श्च मे ॥ 5 ॥
अ॒ग्निश्च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ सोम॑श्च म॒ इन्द्र॑श्च मे सवि॒ता च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ सर॑स्वती च म॒ इन्द्र॑श्च मे पू॒षा च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ बृह॒स्पति॑श्च म॒ इन्द्र॑श्च मे मि॒त्रश्च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ वरु॑णश्च म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ त्वष्ठा॑ च म॒ इन्द्र॑श्च मे धा॒ता च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ विष्णु॑श्च म॒ इन्द्र॑श्च मेऽश्विनौ॑ च म॒ इन्द्र॑श्च मे म॒रुत॑श्च म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ विश्वे॑ च मे दे॒वा इन्द्र॑श्च मे पृथि॒वी च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मेऽन्तरि॑क्षं च म॒ इन्द्र॑श्च मे द्यौश्च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे॒ दिश॑श्च म॒ इन्द्र॑श्च मे मू॒र्धा च॑ म॒ इन्द्र॑श्च मे प्र॒जाप॑तिश्च म॒ इन्द्र॑श्च मे ॥ 6 ॥
अ॒ग्ं॒शुश्च॑ मे र॒श्मिश्च॒ मेऽदा᳚भ्यश्च॒ मेऽधि॑पतिश्च म उपा॒ग्ं॒शुश्च॑ मेऽन्तर्या॒मश्च॑ म ऐन्द्रवाय॒वश्च॑ मे मैत्रावरु॒णश्च॑ म आश्वि॒नश्च॑ मे प्रतिप्र॒स्थान॑श्च मे शु॒क्रश्च॑ मे म॒न्थी च॑ म आग्रय॒णश्च॑ मे वैश्वदे॒वश्च॑ मे ध्रु॒वश्च॑ मे वैश्वान॒रश्च॑ म ऋतुग्र॒हाश्च॑ मेऽतिग्रा॒ह्या᳚श्च म ऐन्द्रा॒ग्नश्च॑ मे वैश्वदे॒वश्च॑ मे मरुत्व॒तीया᳚श्च मे माहे॒न्द्रश्च॑ म आदि॒त्यश्च॑ मे सावि॒त्रश्च॑ मे सारस्व॒तश्च॑ मे पौ॒ष्णश्च॑ मे पात्नीव॒तश्च॑ मे हारियोज॒नश्च॑ मे ॥ 7 ॥
इ॒ध्मश्च॑ मे ब॒र्हिश्च॑ मे॒ वेदि॑श्च मे॒ दिष्णि॑याश्च मे॒ स्रुच॑श्च मे चम॒साश्च॑ मे॒ ग्रावा॑णश्च मे॒ स्वर॑वश्च म उपर॒वाश्च॑ मेऽधि॒षव॑णे च मे द्रोणकल॒शश्च॑ मे वाय॒व्या॑नि च मे पूत॒भृच्च॑ म आधव॒नीय॑श्च म॒ आग्नी᳚ध्रं च मे हवि॒र्धानं॑ च मे गृ॒हाश्च॑ मे॒ सद॑श्च मे पुरो॒डाशा᳚श्च मे पच॒ताश्च॑ मेऽवभृथश्च॑ मे स्वगाका॒रश्च॑ मे ॥ 8 ॥
अ॒ग्निश्च॑ मे घ॒र्मश्च॑ मे॒ऽर्कश्च॑ मे॒ सूर्य॑श्च मे प्रा॒णश्च॑
11/19/2022 • 18 minutes, 11 seconds
Batuk Bhairav Stotra बटुक भैरव स्तोत्र
Batuk Bhairav Stotra बटुक भैरव स्तोत्र ◆ जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है। खास तौर पर भैरव अष्टमी के दिन या किसी भी शनिवार को श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करें, तो निश्चित ही आपके सारे कार्य सफल और सार्थक हो जाएंगे, साथ ही आप अपने व्यापार व्यवसाय और जीवन में आने वाली समस्या, विघ्न, बाधा, शत्रु, कोर्ट कचहरी, और मुकदमे में पूर्ण सफलता प्राप्त करेंगे:
●
भैरव ध्यान
●
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि वक्त्रम्। दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः ॥ दीप्ताकारं विशद वदनं, सुप्रसन्नं त्रिनेत्रम्। हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल दण्डौ दधानम् ॥ ● मानसिक पूजन करे
●
शूल दण्डौ दधानम् ॥
ॐ लं पृथ्वी तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः ।
ॐ हं आकाश तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण- बटुक भैरव-प्रीतये
समर्पयामि नमः
ॐ यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण बटुक भैरव-प्रीतये
घ्रापयामि नमः ।
ॐ रं अग्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण बटुक भैरव-प्रीतये
निवेदयामि नमः ।
ॐ सं सर्व तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण बटुक भैरव-प्रीतये
समर्पयामि नमः । ◆ ॐ भैरवो भूत-नाथश्च भूतात्मा भूत-भावनः क्षेत्रज्ञः क्षेत्र पालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥ श्मशान वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत् रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः ॥ कंकालः कालः शमनः, कला-काष्ठा तनुः कविः । त्रि-नेत्री बहु-नेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः ॥ शूल-पाणिः खड्ग पाणिः, कंकाली धूम्रलोचनः । अभीरुभैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी पतिः ॥ धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान् । नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत् ।। कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः । त्रिनेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत् त्रिवृत्त तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग वर धारकः ॥ भूताध्यक्ष पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु- लोचनः ॥ प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर प्रिय बान्धवः । अष्ट मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान चक्षुस्तपो-मयः ॥ अष्टाधारः षडाधारः, सर्प युक्तः शिखी सखः । भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ॥ कपाल धारी मुण्डी च नाग यज्ञोपवीत वान्। जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ॥ शुद्द नीलाञ्जन प्रख्य- देहः मुण्ड विभूषणः । बलि भुग्बलि भुड्- नाथो, बालोबाल पराक्रम ॥ सर्वापत् तारणो दुर्गो, दुष्ट भूत- निषेवितः । कामीकला निधिः कान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी ॥
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो माया मन्त्रौषधी मयः । सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः प्रभ- विष्णुरितीव हि ॥ ● फल-श्रुति ●
अष्टोत्तर शतं नाम्नां,
मया ते कथितं देवि,
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट शतमुत्तमम् ।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा ॥ न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद् । पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः ॥ मारी भये राज-भये, तथा
चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये ॥ बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य धीः सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्
●
क्षमा प्रार्थना ● आवाहन न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजा कर्म न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥ मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर। मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥ ◆
11/19/2022 • 9 minutes, 11 seconds
Mantra to lead Happy Married Life सुखी दाम्पत्य जीवन मन्त्र 108 times
Mantra to lead Happy Married Life सुखी दाम्पत्य जीवन मन्त्र ■ अगर आप अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनायें रखना चाहते हैं तो उसके लिए आज एक थाली या केले का पत्ता लीजिये और उस थाली या पत्ते पर रोली से एक त्रिकोण का निशान बनाएं अब उस त्रिकोण के निशान के आगे एक दीपक जलाएं और उसके बीच में 900 ग्राम मसूर की दाल और सात खड़ी, यानि साबुत लाल मिर्च रखें। उसके बाद 108 बार ये मंत्र पढ़ें - ★अग्ने सखस्य बोधि नः' ★ मंत्र जाप के बाद सारी सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दें
11/19/2022 • 11 minutes, 12 seconds
Ravi Vrat Japya Mantra रविव्रत जाप्य मंत्र 108 times
Ravi Vrat Japya Mantra रविव्रत जाप्य मंत्र ◆ ॐ ह्रीं नमो भगवते चिन्तामणि-पार्श्वनाथ सप्तफण-मंडिताय श्री धरणेन्द्र-पद्मावती सेविताय
मम ऋद्धिं सिद्धिं वृद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा |◆
11/19/2022 • 39 minutes, 2 seconds
Utpanna Ekadashi Mantra उत्पन्ना एकादशी मंत्र
Utpanna Ekadashi Mantra उत्पन्ना एकादशी मंत्र ◆ सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर ्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।। ◆
ॐ जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो ।
कुण्डलपुर अवतारी,चांदनपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो॥
सिध्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी ।
बाल ब्रह्मचारी व्रत, पाल्यो तप धारी ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी ।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
जग में पाठ अहिंसा, आप ही विस्तारयो ।
हिंसा पाप मिटा कर, सुधर्म परिचारियो ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो..॥
अमर चंद को सपना, तुमने परभू दीना ।
मंदिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी ।
एक ग्राम नित दीनो, सेवा हित यह भी ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
जल में भिन्न कमल जो, घर में बाल यति ।
राज पाठ सब त्यागे, ममता मोह हती ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
भूमंडल चांदनपुर, मंदिर मध्य लसे ।
शांत जिनिश्वर मूरत, दर्शन पाप लसे ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवे ।
धन सुत्त सब कुछ पावे, संकट मिट जावे ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
निशदिन प्रभु मंदिर में, जगमग ज्योत जरे ।
हम सेवक चरणों में, आनंद मूँद भरे ॥
॥ॐ जय महावीर प्रभो...॥
ॐ जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो ।
कुण्डलपुर अवतारी, चांदनपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो ॥
Om Namah Shivay ॐ नमः शिवाय 21 टाइम्सq ★ ॐ नमः शिवाय मंत्र का क्या महत्व है?
मंत्र आपको अपने स्रोत पर वापस लाते हैं। मंत्रों के जप या श्रवण से कंपन उत्पन्न होता है; सकारात्मक, जीवन उत्थान ऊर्जा, और सार्वभौमिक हैं। ओम नमः शिवाय सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक है। इस मंत्र का जाप करने से आपके शरीर में ऊर्जा का निर्माण होता है और वातावरण भी शुद्ध होता है। हजारों सालों से लोग इस मंत्र का जाप करते आ रहे हैं।
नमाशिवाय ये पांच शब्दांश पांच तत्वों (संस्कृत में पंच भूत के रूप में जाने जाते हैं) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और ईथर को इंगित करते हैं। पांच तत्व मानव शरीर सहित सृष्टि में हर चीज के निर्माण खंड हैं, और भगवान शिव इन पांच तत्वों के स्वामी हैं। जबकि 'ओम' ब्रह्मांड की ध्वनि है। 'ओम' का अर्थ हैं शांति और प्रेम | इसलिए वातावरण में पांच तत्वों के सामंजस्य के लिए 'ओम नमः शिवाय' का जाप किया जाता है। जब पांचों तत्वों में शांति, प्रेम और सद्भाव होता है, तब आनंद होता है और न केवल आपके भीतर, बल्कि आपके रों ओर भी आनंद होता है। • ॐ नमः शिवाय मंत्र के जाप के लाभ
• ओम नमः शिवाय सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यह एक स्ट्रेस बस्टर भी है, जो आपको आराम करने और आराम करने में मदद करता है।
• नियमित जप से अशांत मन स्थिर और शांत हो जाता है।
• ओम नमः शिवाय आपको अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण पाने में मदद करता है। यह अंततः आपको अपने मन को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
• ओम नमः शिवाय आपको जीवन में दिशा और उद्देश्य की भावना देता है।
• नौ ग्रह और 27 नक्षत्र हैं। चूँकि शिव तत्व पीठासीन ऊर्जा है और ग्रहों को भी नियंत्रित करता है, ओम नमः शिवाय का जाप कुछ हद तक अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
Sammohan Mantra सम्मोहन मन्त्र 108 times (1 mala) ◆ अगर आप चाहते है कि सब आपसे खुश रहें। आपका काम आसानी से हो जाए तो इसके लिए आपको इस मंत्र का प्रयोग करना चाहिए। मंत्र इस तरह है ★ ॐ सं सम्मोहनाय ह्रीं ह्रीं ॐ फट्।
★
मंत्र विधि ~
इस मंत्र को पढ़ने की प्रक्रिया शुक्रवार की रात से शुरू करें। मंत्र पढ़ते समय आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर हो। सम्मोहन के लिए उस व्यक्ति का चित्र अपने सामने रखे जिससे आप काम निकलवाना चाहते हैं। इस मंत्र की रोजाना 11 माला जपें।
11/16/2022 • 14 minutes, 36 seconds
Swadha Stotram With Hindi Meaning स्वधा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित
Swadha Stotram With Hindi Meaning स्वधा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित • स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नर:।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत्।।1।।
अर्थ – ब्रह्मा जी बोले – ‘स्वधा’ शब्द के उच्चारण से मानव तीर्थ स्नायी हो जाता है. वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर वाजपेय यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है.
स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत्।
श्राद्धस्य फलमाप्नोति कालस्य तर्पणस्य च।।2।।
अर्थ – स्वधा, स्वधा, स्वधा – इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण किया जाए तो श्राद्ध, काल और तर्पण के फल पुरुष को प्राप्त हो जाते हैं.
श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं य: श्रृणोति समाहित:।
लभेच्छ्राद्धशतानां च पुण्यमेव न संशय:।।3।।
अर्थ – श्राद्ध के अवसर पर जो पुरुष सावधान होकर स्वधा देवी के स्तोत्र का श्रवण करता है, वह सौ श्राद्धों का पुण्य पा लेता है, इसमें संशय नहीं है.
स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
प्रियां विनीतां स लभेत्साध्वीं पुत्रं गुणान्वितम्।।4।।
अर्थ – जो मानव स्वधा, स्वधा, स्वधा – इस पवित्र नाम का त्रिकाल सन्ध्या समय पाठ करता है, उसे विनीत, पतिव्रता एवं प्रिय पत्नी प्राप्त होती है तथा सद्गुण संपन्न पुत्र का लाभ होता है.
पितृणां प्राणतुल्या त्वं द्विजजीवनरूपिणी।
श्राद्धाधिष्ठातृदेवी च श्राद्धादीनां फलप्रदा।।5।।
अर्थ – देवि! तुम पितरों के लिए प्राणतुल्य और ब्राह्मणों के लिए जीवनस्वरूपिणी हो. तुम्हें श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है. तुम्हारी ही कृपा से श्राद्ध और तर्पण आदि के फल मिलते हैं.
बहिर्गच्छ मन्मनस: पितृणां तुष्टिहेतवे।
सम्प्रीतये द्विजातीनां गृहिणां वृद्धिहेतवे।।6।।
अर्थ – तुम पितरों की तुष्टि, द्विजातियों की प्रीति तथा गृहस्थों की अभिवृद्धि के लिए मुझ ब्रह्मा के मन से निकलकर बाहर जाओ.
नित्या त्वं नित्यस्वरूपासि गुणरूपासि सुव्रते।
आविर्भावस्तिरोभाव: सृष्टौ च प्रलये तव।।7।।
अर्थ – सुव्रते! तुम नित्य हो, तुम्हारा विग्रह नित्य और गुणमय है. तुम सृष्टि के समय प्रकट होती हो और प्रलयकाल में तुम्हारा तिरोभाव हो जाता है.
ऊँ स्वस्तिश्च नम: स्वाहा स्वधा त्वं दक्षिणा तथा।
निरूपिताश्चतुर्वेदे षट् प्रशस्ताश्च कर्मिणाम्।।8।।
अर्थ – तुम ऊँ, नम:, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा एवं दक्षिणा हो. चारों वेदों द्वारा तुम्हारे इन छ: स्वरूपों का निरूपण किया गया है, कर्मकाण्डी लोगों में इन छहों की मान्यता है.
पुरासीस्त्वं स्वधागोपी गोलोके राधिकासखी।
धृतोरसि स्वधात्मानं कृतं तेन स्वधा स्मृता।।9।।
अर्थ – हे देवि! तुम पहले गोलोक में ‘स्वधा’ नाम की गोपी थी और राधिका की सखी थी, भगवान कृष्ण ने अपने वक्ष: स्थल पर तुम्हें धारण किया इसी कारण तुम ‘स्वधा’ नाम से जानी गई.
इत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके च संसदि।
तस्थौ च सहसा सद्य: स्वधा साविर्बभूव ह।।10।।
अर्थ – इस प्रकार देवी स्वधा की महिमा गाकर ब्रह्मा जी अपनी सभा में विराजमान हो गए. इतने में सहसा भगवती स्वधा उनके सामने प्रकट हो गई.
तदा पितृभ्य: प्रददौ तामेव कमलाननाम्।
तां सम्प्राप्य ययुस्ते च पितरश्च प्रहर्षिता:।।11।।
अर्थ – तब पितामह ने उन कमलनयनी देवी को पितरों के प्रति समर्पण कर दिया. उन देवी की प्राप्ति से पितर अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने लोक को चले गए.
स्वधास्तोत्रमिदं पुण्यं य: श्रृणोति समाहित:।
स स्नात: सर्वतीर्थेषु वेदपाठफलं लभेत्।।12।।
अर्थ – यह भगवती स्वधा का पुनीत स्तोत्र है. जो पुरुष समाहित चित्त से इस स्तोत्र का श्रवण करता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान कर लिया और वह वेद पाठ का फल प्राप्त कर लेता है.
।।इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे ब्रह्माकृतं स्वधास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
विशेष – पितृ पक्ष श्राद्ध के दिनों में इस स्वधा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. यदि पूरा स्तोत्र समयाभाव के कारण नहीं पढ़ पाते हैं तब केवल तीन बार स्वधा, स्वधा, स्वधा बोलने से ही सौ श्राद्धों के समान पुण्य फल मिलता है.
11/15/2022 • 8 minutes, 26 seconds
Santikaram Stotra संतिकरम् स्तोत्र
Santikaram Stotra संतिकरम् स्तोत्र ★
संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जय-सिरीइ दायारं।
समरामि भत्तपालग-निव्वाणी-गरुड-कयसेवं....1.
ॐ सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संति-सामि-पायाणं।
झ्रौ स्वाहा-मंतेणं, सव्वासिव-दुरिअ-हरणाणं....2.
ॐ संति-नमुक्कारो, खेलोसहि-माइ-लद्धि-पत्ताणं।
सौँ ह्रीँ नमो सव्वो-सहि-पत्ताणं च देइ सिरिं....3.
वाणी तिहुअण-सामिणी, सिरिदेवी जक्खराय गणिपिडगा।
गह-दिसिपाल-सुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिण-भत्ते....4.
रक्खंतु मम रोहिणी, पन्नत्ती वज्ज-सिंखला य सया।
वज्जंकुसी चक्केसरी,नरदत्ता काली महाकाली. .5.
गोरी तह गंधारी, महजाला-माणवी अ वइरुट्टा।
अच्छुत्ता माणसिआ, महा-माणसिआ उ देवीओ 6.
जक्खा गोमुह-महजक्ख, तिमुह-जक्खेस तुंबरू कुसुमो।
मायंग-विजय-अजिया, बंभो मणुओ सुरकुमारो 7.
छम्मुह पयाल किन्नर, गरुलो गंधव्व तह य जक्खिंदो।
कूबर वरुणो भिउडी, गोमेहो पास-मायंगा। 8.
देवीओ चक्केसरी, अजिआ दुरिआरि काली महाकाली।
अच्चुअ संता जाला, सुतारया-सोअ सिरिवच्छा 9.
चंडा विजयंकुसी पन्नइत्ति निव्वाणी अच्चुआ धरणी।
वइरुट्ट-च्छुत्त-गंधारी, अंब पउमावई सिद्धा 10.
इअ तित्थ-रक्खण-रया, अन्नेवि सुरासुरी य चउहा वि।
वंतर-जोइणी-पमुहा, कुणंतु रक्खं सया अम्हं..11.
एवं सुदिट्ठि-सुरगण-सहिओ संघस्स संति जिणचंदो।
मज्झ वि करेउ रक्खं, मुणिसुंदर-सूरि-थुअ-महिमा 12.
इअ संतिनाह-सम्म-दिट्ठि-रक्खं सरइ तिकालं जो।
सव्वोवद्दव-रहिओ, स लहइ सुह संपयं परमं 13.
तवगच्छ गयण-दिणयर-जुगवर-सिरि-सोमसुंदर-गुरूणं।
सुपसाय-लद्ध-गणहर-विज्जा-सिद्धी भणइ सीसो। 14.
★
श्री मुनिसुंदरसूरिश्र्वरजी म.सा.ने संतिकरं स्तोत्र की रचना देलवाड़ा में की थी।
स्तोत्र के स्मरण से मन को शांति मिलती है और उपद्रवों का नाश होता है।
11/15/2022 • 5 minutes, 29 seconds
VanchhaPurti Surya Mantra वाञ्छा पूर्ति सूर्य मन्त्र
Bhishma Krit Krishna Stuti with Hindi Meaning | भीष्म कृत कृष्ण स्तुति हिन्दी अर्थ सहित
Bhishma Krit Krishna Stuti with Hindi Meaning | भीष्म कृत कृष्ण स्तुति हिन्दी अर्थ सहित ★ भीष्म पितामह जी की स्तुति में ४ (चार) चीजें प्रमुख हैं।
१) इति
२) मति (बुद्धि)
३) रति (प्रेम)
४) गति।
भीष्म पितामह का तात्पर्य है
इति अर्थात यह मेरी अंतिम स्तुति है।
मति अर्थात मेरी सीमित बुद्धि के अनुसार है।
रति अर्थात मुझे अपने ही प्रेम है। तथा मेरी गति भी आप में ही हो।
ऐसी मेरी प्रार्थना स्वीकार करें।
इति
यह स्तुति 'इति' से शुरू होती है। जिसका अर्थ होता हैं अंत। मानो भीष्म पितामह जी कहते हैं कि हे प्रभु ! अब तक मेरी स्तुतियां पूरी थीं या नही थी वो आप जान लेकिन यह मेरी अंतिम स्तुति हैं। इसके बाद मैं आपकी स्तुति नहीं कर पाऊँगा। मेरी बेटी मति (बुद्धि) है, जिसका विवाह आपसे करना
चाहता हूं।
भीष्म पितामह जी ने कहा कि मेरी एक बेटी है। मैं चाहता हूँ कि उसका विवाह आपके साथ हो। श्री कृष्ण कहते हैं- बाबा! मैंने तो सुना था आप आजीवन ब्रह्मचारी रहे हैं। फिर आपकी बेटी कहाँ से आ गई? भीष्म जी कहते हैं कि कान्हा! मेरी बेटी ओर कोई नहीं बल्कि मेरी बुद्धि है। आप उससे विवाह कर लो। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी ये बेटी और किसी के साथ ब्याही जाये। आपके चरणों में मेरी मति (बुद्धि) समर्पित है।
रति
भीष्म जी कहते हैं- “प्रभु मेरी अगर कहीं रति (प्रेम) हो तो केवल और केवल आप में हो। क्योंकि केवल आपसे ही प्रेम सार्थक हैं। इसे सादर स्वीकारें प्रभु !” गति
अंत में भीष्म पितामह जी कहते हैं- “प्रभु! मेरी गति भी आप में ही होनी चाहिए। मेरा अंत समय हैं। इसलिए मैं चाहता हूँ की आपके श्री चरणों में मेरी गति हो जाये। आप ही एकमात्र मेरे आश्रय हैं।
और जो इन तीनों (इति, मति और रति) आपको सौंप देगा । मैं जानता हूँ कि हे प्रभु! आप उसकी सद्गति ही
करेंगे।" • इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा भगवति सात्वत पुङ्गवे विभूम्नि । स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहर्तुं प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाहः ॥१॥
त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं रविकरगौरवराम्बरं दधाने ।
वपुरलककुलावृताननाब्जं विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ॥२ ॥
युधि तुरगरजोविधूम्रविष्वक्कचलुलितश्रमवार्यलंकृतास्ये मम निशितशरैर्विभिद्यमानत्वचि विलसत्कवचेऽस्तु कृष्ण आत्मा ॥३॥
सपदि सखिवचो निशम्य मध्ये निजपरयोर्बलयो रथं निवेश्य । स्थितवति परसैनिकायुरक्ष्णा हृतवति पार्थ सखे रतिर्ममास्तु ॥४॥
व्यवहित पृथनामुखं निरीक्ष्य स्वजनवधाद्विमुखस्य दोषबुद्ध्या।
कुमतिमहरदात्मविद्यया यश्चरणरतिः परमस्य तस्य मेऽस्तु ॥५॥
स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञा मृतमधिकर्तुमवप्लुतो रथस्थः । धृतरथचरणोऽभ्ययाच्चलत्गुः हरिरिव हन्तुमिभं गतोत्तरीयः ॥६॥
शितविशिखहतोविशीर्णदंशः क्षतजपरिप्लुत आततायिनो मे ।
प्रसभमभिससार मद्वधार्थं स भवतु मे भगवान् गतिर्मुकुन्दः ॥७॥ विजयरथकुटुम्ब आत्ततोत्रे धृतहयरश्मिनि तच्छ्रियेक्षणीये।
भगवति रतिरस्तु मे मुमूर्षोः यमिह निरीक्ष्य हताः गताः सरूपम् ॥८॥ ललित गति विलास वल्गुहास प्रणय निरीक्षण कल्पितोरुमानाः । कृतमनुकृतवत्य उन्मदान्धाः प्रकृतिमगन् किल यस्य गोपवध्वः ॥९॥ मुनिगणनृपवर्यसंकुलेऽन्तः सदसि युधिष्ठिरराजसूय एषाम् ।
अर्हणमुपपेद ईक्षणीयो मम दृशि गोचर एष आविरात्मा ॥१०॥ तमिममहमजं शरीरभाजां हृदिहृदि धिष्टितमात्मकल्पितानाम् ।
प्रतिदृशमिव नैकधाऽर्कमेकं समधिगतोऽस्मि विधूतभेदमोहः ॥११॥ ★
Windfall Gains Mantra आकस्मिक धनप्राप्ति मन्त्र 108 times
Windfall Gains Mantra आकस्मिक धनप्राप्ति मन्त्र ◆ ।। ॐ नमो वीर बेताल आकस्मिक धन सिद्धी देहि देहि
नमः ।। ◆ किसी भी शुक्रवार की रात्रि को यह प्रयोग का शुभारंभ करें | दाहिने हाथ में आकस्मिक धन प्राप्ति गुटिका लेकर प्रार्थना करें की मैं यह प्रयोग आकस्मिक लाभ हेतु कर रहा हूँ |
फिर उस गुटिका को सामने रख कर उसके सामने तेल का दीपक जलाएं और वेताल मंत्र का 51000 जाप 51 दिनों में पूर्ण कर लें उससे यह मंत्र और गुटिका सिद्ध हो जाएगी ।
फिर जब भी आपको धन की आकस्मिक आवश्यकता हो तो 1 माला इस वेताल मंत्र की जप करें और गुटिका अपने गले में धारण कर लें | इसके बाद ही आप कोई अपना निर्णय लें |
इस प्रयोग को करने के पश्चात आपकी सफलता की दर बढ़ जाएगी |
Veer Vaitaal Darshan Mantra वीर वैताल दर्शन मन्त्र 108 times
Veer Vaitaal Darshan Mantra वीर वैताल दर्शन मन्त्र 108 times ★ ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं वीर सिद्धिम दर्शय दर्शय फट ★ १५ माला मंत्र जप करें यह ५ दिन की साधना है |
11/11/2022 • 16 minutes, 52 seconds
Trailokya Mandal Vidhan Mantra त्रैलोक्य मंडल विधान मन्त्र 108 times
Akalank Stotra अकलंक स्तोत्र • त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषयं सालोक-मालोकितम्, साक्षाद्येन यथा स्वयं करतले रेखात्रयं साङ्गुलि रागद्वेषभया-मयान्तकजरालोलत्व-लोभादयो,
नालं यत्पद-लंघनाय स महादेवो मया वन्द्यते ॥१॥ दग्धं येन पुरत्रयं शरभुवा तीव्रार्चिषा वह्निना, यो वा नृत्यति मत्तवत् पितृवने यस्यात्मजो वा गुहः । सोऽयं किं मम शंकरी भयतृषारोषार्तिमोह-क्षयं, कृत्वा यः स तु सर्ववित्तनुभृतां क्षेमंकरः शंकरः ॥२॥ यत्नाद्येन विदारितं कररुहैः दैत्येन्द्रवक्षःस्थलं, सारथ्येन-धनञ्जयस्य समरे यो मारयत्कौरवान् । नासौ विष्णुरनेककालविषयं यञ्ज्ञानमव्याहतं,
विश्वं व्याप्य विजृम्भते स तु महाविष्णुः सदेष्टो मम ॥३॥ उर्वश्या-मुदपादिरागबहुलं चेतो यदीयं पुनः, पात्रीदण्डकमण्डलु-प्रभृतयो यस्याकृतार्थस्थितिं । आविर्भावयितुं भवन्ति सकथं ब्रह्माभवेन्मादृशां, क्षुत्तृष्णाश्रमरागरोगरहितो ब्रह्माकृतार्थोऽस्तु नः ॥४॥ यो जग्ध्वा पिसितं समत्स्यकवलम् जीवं च शून्यं वदन्, कर्त्ता कर्मफलं न भुक्तं इति यो वक्ता सबुद्धः कथम् । यज्ञानं क्षणवर्तिवस्तुसकलं ज्ञातुं न शक्तं सदा, यो जानन्-युगपज्जगत्त्रयमिदं साक्षात् स बुद्धो मम ॥५॥ ईशः किं छिन्नलिंगो यदि विगतभयः शूलपाणिः कथं स्यात्, नाथ किं भैक्ष्यचारी यतिरिति स कथं सांगनः सात्मजश्च आर्द्राजः किन्त्वजन्मा सकलविदिति किं वेत्ति नात्मान्तरायं, संक्षेपात्सम्यगुक्तं पशुपतिमपशुः कोऽत्र धीमानुपास्ते ॥६॥ ब्रह्मा चर्माक्षसूत्री सुरयुवतिरसावेशविभ्रांतचेताः, शम्भुः खट्वांगधारी गिरिपतितनया-पांगलीलानुविद्धः । विष्णुश्चक्राधियः सन् दुहितरमगमद् गोपनाथस्य मोहादर्हन् विध्वस्त-रागोजितसकलभयः कोऽयमेष्वाप्तनाथः ॥७॥ एको नृत्यति विप्रसार्य ककुभां चक्रे सहस्रं, भुजानेकः शेषभुजंगभोगशयने व्यादाय निद्रायते द्रष्टुं चारुतिलोत्तमामुखमगादेकश्चतुर्वक्त्रतामेते, मुक्तिपथं वदन्ति विदुषामित्येतदत्यद्भुतम् ॥८॥ यो विश्वं वेदवेद्यं जननजलनिधे-भंगिनः पारदृश्वा, पौर्वापर्य विरुद्धं वचन-मनुपमं निष्कलंकं यदीयम् । तं वन्दे साधुवन्द्यं सकलगुणनिधिं ध्वस्तदोषद्विषन्तं, बुद्धं वा वर्द्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा ॥ ९ ॥ ब्रह्मा चर्माक्षसूत्री सुरयुवतिरसावेशविभ्रांतचेताः, शम्भुः खट्वांगधारी गिरिपतितनया-पांगलीलानुविद्धः । विष्णुश्चक्राधियः सन् दुहितरमगमद् गोपनाथस्य मोहादर्हन् विध्वस्त-रागोजितसकलभयः कोऽयमेष्वाप्तनाथः ॥७॥ एको नृत्यति विप्रसार्य ककुभां चक्रे सहस्रं, भुजानेकः शेषभुजंगभोगशयने व्यादाय निद्रायते द्रष्टुं चारुतिलोत्तमामुखमगादेकश्चतुर्वक्त्रतामेते, मुक्तिपथं वदन्ति विदुषामित्येतदत्यद्भुतम् ॥८॥ यो विश्वं वेदवेद्यं जननजलनिधे-भंगिनः पारदृश्वा, पौर्वापर्य विरुद्धं वचन-मनुपमं निष्कलंकं यदीयम् । तं वन्दे साधुवन्द्यं सकलगुणनिधिं ध्वस्तदोषद्विषन्तं, बुद्धं वा वर्द्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा ॥ ९ ॥ माया नास्ति जटाकपाल-मुकुटं चन्द्रो न मूर्द्धावली, खट्वांगं च वासुकिर्न च धनुः शूलं न चोग्रं मुखं । काम यस्य न कामिनी न च वषो गीतं न नृत्यं पुन:, सोऽस्मान् पातु निरञ्जनो जिनपतिः सर्वत्रसूक्ष्मः शिवः ॥ १० ॥ नो ब्रह्मांकितभूतलं न च हरे शम्भोर्न मुद्रांकितं, नो चन्द्रार्ककरांकितं सुरपतेर्वज्रांकितं नैव च षड्वक्त्रांकितबौद्धदेवहुतभुग्यक्षोरगैर्नांकितं, नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्रमुद्रांकितम् ॥११॥ मौञ्जी- दण्ड- कमण्डलुप्रभृतयो नो लाञ्छनं ब्रह्मणो, रुद्रस्यापि जटाकपालमुकुटं कौपीन-खट्वांगना । विष्णोश्चक्र-गदादि-शंखमतुलं बुद्धस्य रक्ताम्बरं, नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्रमुद्रांकितम् ॥१२॥ नाहंकारवशीकृतेन मनसा न द्वेषिणे- केवलम्, नैरात्म्यं प्रतिपद्य नश्यति जने कारुण्यबुद्धया मया । राज्ञः श्रीहिमशीतलस्य सदसि प्रायो विदग्धात्मनः, बौद्धोघान्सकलान् विजित्यसघटः पादेन विस्फालितः ॥१३॥ खट्वांगं नैव हस्ते न च हृदि रचिता लम्बते मुण्डमाला, भस्मांगं नैव शूलं न च गिरिदुहिता नैव हस्ते कपालं । चन्द्रार्द्ध नैव मूर्धन्यपि वृषगमनं नैव कण्ठे फणीन्द्रः, तं वन्दे त्यक्तदोषं भवभयमथनं चेश्वरं देवदेवम् ॥१४॥ कि वाद्योभगवान् मेयमहिमा देवोऽकलंकः कलौ, काले यो जनतासुधर्मनिहितो देवोऽकलंको जिनः । यस्य स्फारविवेकमुद्रलहरी जाले प्रमेयाकुला, निर्मग्ना तनुतेतरां भगवती ताराशिरः कम्पनम् ॥१५॥ सातारा खलु देवता भगवतीं मन्यापि मन्यामहे, षण्मासावधि जाड्यसांख्यमगमद् भट्टाकलंकप्रभोः । वाक्कल्लोलपरम्पराभिरमते नूनं मनो मज्जनं, व्यापारं सहते स्म विस्मितमतिः सन्ताडितेतस्ततः ॥१६॥ •
11/10/2022 • 12 minutes, 35 seconds
Sundar Kaand Paath (Complete) सुंदर कांड पाठ (सम्पूर्ण)
Sundar Kaand Paath (Complete) सुंदर कांड पाठ (सम्पूर्ण) ■ “सुन्दर कांड” (Sundar Kand) में हनुमान जी का यशोगान किया गया है। जहाँ सम्पूर्ण रामायण में श्री राम के सूंदर स्वरुप, उनके जीवन काल, स्वभाव, आदर्शों का गुण गान किया गया है वहीँ सुन्दरकांड एक ऐसा भाग है जो सिर्फ हनुमान जी की वीरता का बखान करता है । सुन्दर कांड हनुमान जी पर केंद्रित सबसे पुरानी रचना है। ऐसा माना जाता है के सुन्दरकाण्ड के पाठ से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती। यह भी माना जाता है कि जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो, तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।
11/10/2022 • 1 hour, 20 minutes, 47 seconds
Mandalsa Stotram मंदालसा स्तोत्रम्
Mandalsa Stotram मंदालसा स्तोत्रम् • सिद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि, संसारमाया परिवर्जितोऽसि
शरीरभिन्नस्त्यज सर्व चेष्टां, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र! ॥१॥ अन्वयार्थ मन्दालसा अपने पुत्र कुन्दकुन्द को लोरी सुनाती हुई कहती है कि हे पुत्र ! तुम सिद्ध हो, तुम बुद्ध हो, केवलज्ञानमय हो, निरंजन अर्थात् सर्व कर्ममल से रहित हो, संसार की मोह-माया से रहित हो, इस शरीर से सर्वथा भिन्न हो, अतः सभी चेष्टाओं का परित्याग करो। हे पुत्र! मन्दालसा के वाक्य को सेवन कर अर्थात् हृद्य में धारण कर। यहाँ पर कुन्दकुन्द की माँ अपने पुत्र को जन्म से ही लोरी सुनाकर उसे शुद्धात्म द्रव्य का स्मरण कराती है, अतः यह कथन शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा है जो उपादेय है।
ज्ञाताऽसि दृष्टाऽसि परमात्म-रूपी, अखण्ड-रूपोऽसि जितेन्द्रियस्त्वं त्यज मानमुद्रां, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र ! ॥
२॥
अन्वयार्थ : हे पुत्र! तुम ज्ञाता हो, दृष्टा हो, जो रूप परमात्मा का है तुम भी उसी रूप हो, अखण्ड हो,
गुणों के आलय हो अर्थात् अनन्त गुणों से युक्त हो, तुम जितेन्द्रिय हो, अत: तुम मानमुद्रा को छोड़ो, मानव पर्याय
की प्राप्ति के समय सर्वप्रथम मान कषाय ही उदय में आती है उस कषाय से युक्त मुद्रा के त्याग के लिए माँ ने
उपदेश दिया है। हे पुत्र ! मन्दालसा के इन वाक्यों को हृदय में धारण करो।
शान्तोऽसि दान्तोऽसि विनाशहीनः, सिद्धस्वरूपोऽसि पुत्र!
कलंकमुक्तः ।
ज्योतिस्वरूपोऽसि विमुञ्च मायां मन्दालसा वाक्यमुपास्व
113 11
अन्वयार्थ : माँ मन्दालसा अपने पुत्र कुन्दकुन्द को उसके स्वरूप का बोध कराती हुई उपदेश करती है कि हे पुत्र ! तुम शान्त हो अर्थात् राग-द्वेष से रहित हो, तुम इन्द्रियों का दमन करने वाले हो, आत्म-स्वरूपी होने के कारण अविनाशी हो, सिद्ध स्वरूपी हो, कर्म रूपी कलंक से रहित हो, अखण्ड केवलज्ञान रूपी ज्योति स्वरूप हो, अत: हे पुत्र! तुम माया को छोड़ो। मन्दालसा के इन वाक्यों को हृदय में धारण करो ।
एकोऽसि मुक्तोऽसि चिदात्मकोऽसि, चिद्रुपभावोऽसि चिरंतनोऽसि अलक्ष्यभावो जहि देहमोहं, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र ! ॥४॥
अन्वयार्थ : माँ मन्दालसा लोरी गाती हुई अपने पुत्र कुन्दकुन्द को कहती है कि हे पुत्र ! तुम एक हो, सांसारिक बन्धनों से स्वभावतः मुक्त हो, चैतन्य स्वरूपी हो, चैतन्य स्वभावी आत्मा के स्वभावरूप हो, अनादि अनन्त हो, अलक्ष्यभाव रूप हो, अतः हे पुत्र! शरीर के साथ मोह परिणाम को छोड़ो। हे पुत्र ! मन्दालसा के इन वाक्यों को हृदय में धारण करो । निष्काम-धामासि विकर्मरूपा, रत्नत्रयात्मासि परं पवित्रम् वेत्तासि चेतोऽसि विमुंच कामं, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र! ॥ अन्वयार्थ : जहाँ कोई कामनायें नहीं हैं ऐसे मोक्ष रूपी धाम के निवासी हो, द्रव्यकर्म तज्जन्य
५॥
भावकर्म एवं नोकर्म आदि सम्पूर्ण कर्मकाण्ड से रहित हो, रत्नत्रमय आत्मा हो, शक्ति की अपेक्षा केवलज्ञानमय
हो, चेतन हो, अतः हे पुत्र ! सांसारिक इच्छाओं व एन्द्रियक सुखों को छोड़ो। मन्दालसा के इन वाक्यों को हृदय में
धारण करो ।
प्रमादमुक्तोऽसि सुनिर्मलोऽसि, अनन्तबोधादि-चतुष्टयोऽसि। ब्रह्मासि रक्ष स्वचिदात्मरूपं, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र ! ||६||
अन्वयार्थ : अपने पुत्र को शुद्धात्मा के प्रति इंगित करती हुई कुन्दकुन्द की माँ मन्दालसा लोरी के
रूप में फिर कहती है- तुम प्रमाद रहित हो, क्योंकि प्रमाद कषाय जन्य है, सुनिर्मल अर्थात् अष्टकर्मों से रहित
सहजबुद्ध हो, चार घातिया कर्मों के अभाव में होने वाले अनन्त ज्ञान दर्शन सुख वीर्यरूप चतुष्टयों से युक्त हो,
तुम ब्रह्म तथा शुद्धात्मा हो, अतः हे पुत्र! अपने चैतन्यस्वभावी शुद्ध स्वरूप की रक्षा कर माँ मदालसा के इन
वाक्यों को अपने हृदय में सदैव धारण करो । कैवल्यभावोऽसि निवृत्तयोगी, निरामयी ज्ञात समस्त-तत्त्वम् । परात्मवृत्तिस्स्मर चित्स्वरूपं, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र! ॥
७॥
अन्वयार्थ : तुम कैवल्यभाव रूप है, योगों से रहित हो, जन्म-मरण जरा आदि रोगों से रहित होने के कारण निरामय हो, समस्त तत्वों के जाता हो, सर्वश्रेष्ठ निजात्म तत्त्व में विचरण करने वाले हो, हे पुत्र! अपने चैतन्य स्वरूपी आत्मा का स्मरण करो हे पुत्र माँ मन्दालसा के इन वाक्यों को सदैव अपने हृदय में धारण करो ।
चैतन्यरूपोऽसि विमुक्तभावो भावाविकर्माऽसि समग्रवेदी । ध्यायप्रकामं परमात्मरूपं, मन्दालसा वाक्यमुपास्व पुत्र ! ॥८॥
इत्यष्टकैर्या पुरतस्तनूजम्, विबोधनार्थ नरनारिपूज्यम् । प्रावृज्य भीताभवभोगभावात्, स्वकैस्तदाऽसौ सुगतिं प्रपेदे ॥९॥ इत्यष्टकं पापपराङ्मुखो यो, मन्दालसायाः भणति प्रमोदात् ।
स सद्गतिं श्रीशुभचन्द्रमासि, संप्राप्य निर्वाण गतिं प्रपेदे ॥१०॥
Namokar Mahamantra Jaap णमोकार महामन्त्र जाप 1 Mala
जैन धर्मावलंबियों की मान्यतानुसार मूल मंत्र ●णमोकार महामंत्र● है। इसी से सभी मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। एक णमोकार महामंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए। ◆पहली श्वास में- णमो अरिहंताणं- उच्छवास में- णमो सिद्धाणं* *दूसरी श्वास में- णमो आयरियाणं- उच्छवास में- णमो उव्ज्झायाणं* *तीसरी श्वास में- णमो लोए उच्छवास में- सव्वसाहूणं* ◆ णमोकार मंत्र में 35 अक्षर हैं। णमो- नमन कौन करेगा? नमन् वही करेगा, जो अपने अहंकार का विसर्जन करेगा। णमोकार मंत्र में 5 बार नमन् होता है अर्थात 5 बार अहंकार का विसर्जन होता है। णमोकार महामंत्र बीजाक्षरों (68) की वजह से विलक्षण है, अलौकिक है, अद्भुत है, सार्वलौकिक है।
णमोकार मंत्र का अर्थ:
अरिहंतो को नमस्कार
सिद्धो को नमस्कार
आचायों को नमस्कार
उपाध्यायों को नमस्कार
सर्व साधुओं को नमस्कार
ये पाँच परमेष्ठी है। इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है। यह संसार में सबसे उत्तम मंत्र है।
11/9/2022 • 36 minutes, 5 seconds
Jain Siddh Bhatti (Prakrit) जैन सिद्ध भत्ति (प्राकृत)
Jain Siddh Bhatti (Prakrit) जैन सिद्ध भत्ति (प्राकृत) ★ अट्ठविहकम्ममुक्के, अगुण अणोवमे सिद्धे । अट्ठमपुढविणिविट्टे, णिट्ठियकज्जे य वंदिमो णिच्चं । ॥ १ ॥ तित्थयरेदरसिद्धे, जलथल आयासणिव्वुदे सिद्धे ।
अंतयडेदरसिद्धे, उक्कस्सजहण्णमज्झियोगाहे ।। २ ।। उडमहतिरियलोए, छव्विहकाले य णिव्वुदे सिद्धे ।
उवसग्गणिरुवसग्गे, दीवोदहिणिव्वुदे य वंदामि ।।३।। पच्छायडेय सिद्धे, दुग्गतिगचदुणाण पंचचदुरजमे । परिपडिदा परिपडिदे, संजमसम्मत्तणाणमादीहिं ।। ४ ।।
साहरणासाहरणे, समुग्घादेदरे य णिव्वादे ।
ठिद पलियंक णिसण्णो, विगयमले परपणाणगे वंदे ।। ५ ।। पुंवेदं वेदंता, जे पुरिसा खवगसेढिमारूढा । सेसोदयेण वि तहा, झाणुवजुत्ता य ते हु सिज्झंति ।।६।। पत्तेयसयंबुद्धा, बोहियबुद्धा य होंति ते सिद्धा।
पत्तेयं पत्तेयं, समयं समयं पडिवदामि सदा ।।७।। पण णव दु अट्ठवीसा, चउ तियणवदि य दोण्णि पंचेव । वावण्णहीणविसया, पर्याड विणासेण होंति ते सिद्धा ।।८।। अइसयमव्वाबाहं, सोक्खमणंतं अणोवमं परमं ।
इंदियविसयातीदं, अप्पत्तं अच्चयं च ते पत्ता । । ९ ।। लोगग्गमत्थयत्था, चरमसरीरेण ते हु किंचूणा । गयसित्थमूसगन्भे, जारिस आयार तारिसायारा ।।१०।। जरमरणजम्मरहिया, ते सिद्धा मम सुभत्तिजुत्तस्स | दिंतु वरणाणलाहं, बुहयण परियत्थणं परमसुद्धं । । ११ ।। किच्चा काउस्सग्गं, चतुरट्ठयदोषविरहियं
सुपरिसुद्धं । अइभत्तिसंपउत्तो, जो वंदइ लहु लहइ परमसुहं । । १२ ।। ★ अंचलिका
★
इच्छामि भंते सिद्धिभत्तिकाउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाणसम्मदंसण सम्पचारित्तजुत्ताणं, अट्ठविहकम्मविप्पमुक्काणं, अट्ठगुणसंपण्णाणं, उडलोयमत्थयम्मि पथविवाणं, तव सिद्धायणं, संजमसिद्धाणं, अतीताणागदवट्टमाणकालत्तयसिद्धाणं, सव्वसिद्धाणं, णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं । ★
11/9/2022 • 5 minutes, 28 seconds
Kalash Prarthana कलश प्रार्थना
Kalash Prarthana ।। कलश प्रार्थना ॥
★
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठै रुद्र समाश्रितः । मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणा स्मृताः ।। १ । कुक्षौ तु साशुः सवै, सप्त्वीपा वसुन्धश। ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ।। २।। अँगश्च सहिताः सर्वे, कलशन्तु समाप्रिताः । अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति पुष्टिकरी सदा ।। ३ ।। त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः । शिवः खयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।। ४ ।।
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः संपैतृका । त्वयि तिष्ठन्ति सवैऽपि, यतः कामफलप्रदाः ।। ५ ।।
त्वत्प्रसादादिमं यजञं, कर्तुमिहे जलोद्भव । सान्जिध्यं कुरू मे देव, प्रसन्जो भव सर्वेदा ।। ६ ।। ★
11/9/2022 • 2 minutes, 12 seconds
Kartik Purnima Shiv Mantra कार्तिक पूर्णिमा शिव मन्त्र 108 times
Shri Chandraprabhu Chalisa श्री चन्द्रप्रभु चालीसा
Shri Chandraprabhu Chalisa श्री चन्द्रप्रभु चालीसा
11/8/2022 • 8 minutes, 5 seconds
Bal Kaand Paath (Complete) बाल कांड पाठ (सम ्पूर्ण)
Bal Kaand Paath (Complete) बाल कांड पाठ (सम्पूर्ण) ★
‘रामायण’ के प्रथम भाग को "बालकाण्ड" के नाम से जाना जाता है। इस भाग में लगभग दो हजार दो सौ अस्सी श्लोक हैं। इस भाग का संक्षिप्त वर्णन देवर्षि नारद ने महर्षि वाल्मीकि को सुनाया था। बालकाण्ड के प्रथम सर्ग आदिकाव्य में माँ निषाद तथा दूसरे सर्ग में क्रौंचमिथुन की विवेचना की गई है। तीसरे व चौथे सर्ग में रामायण, रामायण की रचना तथा लव-कुश प्रसंग का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त दशरथ का यज्ञ, पुत्रों (राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न) का जन्म, राम व लक्ष्मण की विद्या, राक्षसों-वध, सीता विवाह आदि का विस्तार पूर्वक विवरण मिलता है।
★ बालकाण्ड का लाभ (Benefits of Balkand)
बालकाण्डे तु सर्गाणां कथिता सप्तसप्तति:।
श्लोकानां द्वे सहस्त्रे च साशीति शतकद्वयम्॥
रामायण की पूरी कहानी की रूपरेखा यहीं से शुरु होती है। धार्मिक दृष्टि से रामायण के बालकाण्ड अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ करने से समस्त पीड़ा व दुखों से मुक्ति मिलती है।
11/8/2022 • 10 hours, 36 minutes, 54 seconds
Siddh Bhakti सिद्ध-भक्तिः
Siddh Bhakti सिद्ध-भक्तिः ◆ ◆
11/8/2022 • 5 minutes, 45 seconds
SIddhChakra Vidhaan Japya Mantra स िद्धचक्र विधान जाप्य मंत्र 108 times
Pratima Prakṣhaal Vidhi Paaṭh प्रतिमा प्रक्षाल विधि पाठ • (दोहा)
परिणामों की स्वच्छता, के निमित्त जिनबिम्ब | इसीलिए मैं निरखता, इनमें निज प्रतिबिम्ब || पंच- प्रभू के चरण में, वंदन करूँ त्रिकाल | निर्मल जल से कर रहा, प्रतिमा का प्रक्षाल || अथ पौर्वाह्निक देववंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं
भावपूजा
स्तवन वंदनासमेतं श्री पंचमहागुरुभक्तिपूर्वकं कायोत्सर्गं
करोम्यहम् । (नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ें) (छप्पय)
तीन लोक के कृत्रिम औ अकृत्रिम सारे जिनबिम्बों को नित प्रति अगणित नमन हमारे || श्रीजिनवर की अन्तर्मुख छवि उर में धारूँ | जिन में निज का, निज में जिन प्रतिबिम्ब निहारूँ || मैं करूँ आज संकल्प शुभ, जिन-प्रतिमा प्रक्षाल का | यह भाव सुमन अर्पण करूँ, फल चाहूँ गुणमाल का || ॐ ह्रीं प्रक्षाल-प्रतिज्ञायै पुष्पांजलिं क्षिपामि । (प्रक्षाल की प्रतिज्ञा हेतु पुष्प क्षेपण करें) (रोला)
अंतरंग बहिरंग सुलक्ष्मी से जो शोभित | जिनकी मंगलवाणी पर है त्रिभुवन मोहित || वर सेवा से क्षय मोहादि-विपत्ति |
हे जिन! 'श्री' लिख पाऊँगा निज-गुण सम्पत्ति || (अभिषेक थाल की चौकी पर केशर से 'श्री' लिखें) (दोहा)
अंतर्मुख मुद्रा सहित, शोभित श्री जिनराज | प्रतिमा प्रक्षालन करूँ, धरूँ पीठ यह आज || ॐ ह्रीं श्री पीठ स्थापनं करोमि । (प्रक्षाल हेतु थाल स्थापित करें ) (रोला)
भक्ति-रत्न से जड़ित आज मंगल सिंहासन | भेद ज्ञान जल से क्षालित भावों का आसन || स्वागत है जिनराज तुम्हारा सिंहासन पर |
हे जिनदेव! पधारो श्रद्धा के आसन पर || ॐ ह्रीं श्री धर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्निह सिंहासने तिष्ठ! तिष्ठ! (प्रदक्षिणा देकर अभिषेक - थाल में जिनबिम्ब विराजमान करें) क्षीरोदधि के जल से भरे कलश ले आया |
दृग सुख वीरज ज्ञान स्वरूपी आतम पाया ||
मंगल-कलश विराजित करता हूँ जिनराजा | परिणामों के प्रक्षालन से सुधरें काजा || ॐ ह्रीं अर्हं कलश-स्थापनं करोमि । (चारों कोनों में निर्मल जल से भरे कलश स्थापित करें, व स्नपन-पीठ स्थित जिन-प्रतिमा को अर्घ्य चढ़ायें) जल-फल आठों द्रव्य मिलाकर अर्घ्य बनाया | अष्ट- अंग-युत मानो सम्यग्दर्शन पाया || श्रीजिनवर के चरणों में यह अर्घ्य समर्पित | करूँ आज रागादि विकारी भाव विसर्जित || ॐ ह्रीं श्री स्नपनपीठस्थिताय जिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (चारों कोनों के इंद्र विनय सहित दोनों हाथों में जल कलश ले प्रतिमाजी के शिर पर धारा करते हुए गावें) मैं रागादि विभावों से कलुषित हे जिनवर | और आप परिपूर्ण वीतरागी हो प्रभुवर || कैसे हो प्रक्षाल जगत के अघ-क्षालक का | क्या दरिद्र होगा पालक! त्रिभुवन- पालक का || भक्ति-भाव के निर्मल जल से अघ मल धोता | है किसका अभिषेक ! भ्रान्त-चित खाता गोता || नाथ! भक्तिवश जिन-बिम्बों का करूँ न्हवन आज करूँ साक्षात् जिनेश्वर का पृच्छन मैं || (दोहा)
क्षीरोदधि-सम नीर से करूँ बिम्ब प्रक्षाल | श्री जिनवर की भक्ति से जानूँ निज पर चाल || तीर्थंकर का हवन शुभ सुरपति करें महान् | पंचमेरु भी हो गए महातीर्थ सुखदान || करता हूँ शुभ- भाव से प्रतिमा का अभिषेक | बचूँ शुभाशुभ भाव से यही कामना एक || ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं कृपालसन्तं वृषभादिमहावीरपर्यन्तं चतुर्विंशति तीर्थंकर-परमदेवम् आद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे उत्तमें नगरे मासानामुत्तमे मासे, उत्तमें पक्षे, उत्तमें दिने मुन्यार्यिका श्रावक श्राविकाणां सकलकर्म- क्षयार्थं पवित्रतर- जलेन जिनमभिषेचयामि । (चारों कलशों से अभिषेक करें, वादित्र-नाद करावें एवं जय-जय शब्दोच्चारण करें) (दोहा)
जिन संस्पर्शित नीर यह, गन्धोदक गुणखान | मस्तक पर धारूँ सदा, बनूँ स्वयं भगवान् || (गंधोदक केवल मस्तक पर लगायें, अन्य किसी अंग में लगाना आस्रव का कारण होने से वर्जित है) जल-फलादि वसु द्रव्य ले, मैं पूजूँ जिनराज | हुआ बिम्ब- अभिषेक अब, पाऊँ निज-पद-राज || ॐ ह्रीं श्री अभिषेकांन्ते वृषभादिवीरान्तेभ्यो अर्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री जिनवर का धवल यश, त्रिभुवन में है व्याप्त | शांति करें मम चित्त में, हे! परमेश्वर आप्त || (रोला)
जिन प्रतिमा पर अमृत सम जल-कण अतिशोभित | आत्म-गगन में गुण अनंत तारे भवि मोहित || हो अभेद का लक्ष्य भेद का करता वर्जन | शुद्ध वस्त्र से जल कण का करता परिमार्जन || (प्रतिमा को शुद्ध-वस्त्र से पोंछें) (दोहा)
श्रीजिनवर की भक्ति से दूर होय भव-भार |
उर-सिंहासन थापिये, प्रिय चैतन्य-कुमार || (वेदिका-स्थित कमलासन पर नया स्वस्तिक बनाएं) (प्रतिमाजी को कमलासन पर विराजमान कर, निम्न छन्द बोलकर अर्घ्य चढ़ायें) जल गन्धादिक द्रव्य से, पूजूँ श्री जिनराज | पूर्ण अर्घ्य अर्पित करूँ, पाऊँ चेतनराज || ॐ ह्रीं श्री वेदिका-पीठस्थितजिनाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
11/6/2022 • 18 minutes, 16 seconds
Mahavidya Kavach महाविद्या कवच
Mahavidya Kavach महाविद्या कवच • कवच (Mahavidya Kavach) पाठ के लिए स्नानदि से परिशुद्ध होकर पूजा स्थान में पीले आसन पर बैठें। सामने पूज्य गुरुदेव का आकर्षक चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप की कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो।
सामने अगरबत्ती जला लें, दीपक हो सके तो घी या तेल किसी का भी जला सकते है। सम्बन्धित महाविद्या (Mahavidya Kavach) के पूजन चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप कि कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो। • श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम्।
आद्दाया महाविद्या: सर्वाभीष्ट फलप्रदम् ।।1।।
कवचस्य ऋषिर्देवि। सदाशिव इतिरित:,
छन्दोंऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता।
धर्मार्थ काममोक्षाणां विनियोगस्य साधने।।2।।
ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि।
रमा बीजं सदा पातु नाभौ गुह् च पादये:।।3।।
ललाटे सुन्दरी पातु उग्रा मां कण्ठ देशत:।
भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी।।4।।
पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा।
उत्तरे वैष्णवी पातु चन्द्राणी पश्चिमेऽवतु।।5।।
महेश्वरी च आग्नेय्यां नैऋत्ये कमला तथा।
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा ईशकेऽवतु।।6।।
इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत्।
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।।7।। • कवच का भावार्थ:
हे देवि। मैं महाविद्या कवच का व्याख्यान कर रहा हूं। जो सर्वसिद्धिदायक तथा सभी इच्छित फल को प्रदान करने वाला है। इस कवच का पाठ निश्चित सिद्धिदायक है, यह महाविद्या कवच अति उत्कृष्ट एवं प्रचण्ड शक्ति युक्त है।’’ ।।1।।
कवच पाठ से पूर्व दाहिने हाथ में जल लेकर कवच से सम्बन्धित ऋषि, देवता आदि का संकीर्तन आवश्यक होता है, यह प्रतिज्ञा वाक्य कहलाता है। इस महाविद्या कवच के सदाशिव ऋषि हैं, अनुष्टुप छन्द है, महाविद्या देवता है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्ति इस कवच पाठ से प्राप्तव्य विषय है।।2।।
‘ऐं’ बीज अर्थात् भगवती मातंगी मेरे सिर की, काम बीज ‘क्लीं, अर्थात्, भगवती काली हृदय की, तथा रमा बीज ‘श्रीं’ अर्थात् भगवती महालक्ष्मी मेरी नाभि, गुह्य प्रदेश और पैरों की रक्षा करें।।3।।
त्रिपुर सुन्दरी मेरी मस्तक की उग्रा छिन्नमस्ता मेरे कण्ठ की, भगवती काली समस्त शरीर की तथा त्रिपुर भैरवी गुह्य प्रदेश की रक्षा करें ।।4।।
पूर्व दिशा में वाराही, दक्षिण में ब्रह्माणी उत्तर में वैष्णवी पश्चिम दिशा में चन्द्राणी, पूर्व और दक्षिण का मध्य भाग अग्नि कोण होता है उसमें भगवती माहेश्वरी मेरी रक्षा करें।
दक्षिण और पश्चिम का मध्य नैऋत्य है, उसमें देवी कमला, पश्चिम और उत्तर का मध्य भाग वायव्य होता है उसमें कुमारी, उत्तर और पूर्व का मध्य ईशान दिशा है, उसमें महाशक्ति चामुण्डा मेरी रक्षा करें। इस कवच को बिना जाने जो मनुष्य महाविद्या मंत्र जपता है, उसे सहस्त्रों वर्षों में भी फल प्राप्त नहीं होता।।5,6,7।। •
Dev Prabodhini Ekadashi Mantra देव प्रबोधिनी एकादशी मन्त्र
Dev Prabodhini Ekadashi Mantra देव प्रबोधिनी एकादशी मन्त्र ◆ देव प्रबोधिनी एकादशी जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है, के दिन कुछ मंत्रों का जाप कर भगवान विष्णु को निद्रा से उठाया जाता है. मान्यता है कि देव प्रबोधन मंत्र से दिव्य तत्वों की जागृति होती है। ★
देव प्रबोधन मंत्र
★ ब्रह्मेन्द्ररुदाग्नि कुबेर सूर्यसोमादिभिर्वन्दित वंदनीय,
बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।
उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।
उत्थिते चेष्टते सर्वमुक्तिष्ठोक्तिष्ठ माधव॥
★
अर्थात- अर्थात- ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य, सोम आदि से वंदनीय, हे जगन्निवास, देवताओं के स्वामी, आप मंत्र के प्रभाव से सुखपूर्वक उठें। हे गोविंद! आप जग जाइए। आप निद्रा का त्याग कर उठ जाइए। हे जगन्नाथ! आपके सोते रहने से यह सम्पूर्ण जगत सोता रहेगा। आपके उठने पर सभी लोग कार्यों में प्रवृत्त हो जाएंगे। हे माधव! उठ जाइए।
11/3/2022 • 1 minute, 46 seconds
Ath Athai Rasa अथ अठाई रासा
Ath Athai Rasa अथ अठाई रासा • प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार || टेक |
जम्बूद्वीप सुहावणो, लख-योजन विस्तार ||
भरतक्षेत्र दक्षिण-दिशा, पोदनपुर तहँ सार |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१||
विद्यापति विद्याधरी, सोमा राणी राय |
समकित पालें मन-वचे, धर्म सुनें अधिकाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२||
चारणमुनि तहाँ पारणे, आये राजा गेह |
सोमाराणी आहार दे, पुण्य बढ़ो अति गेह |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||३||
ताहि समय नभ-देवता, चाले जात विमान |
जय-जय शब्द भयो घनो, मुनिवर पूछ्यो ज्ञान |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||४||
मुनिवर बोले रानि सुन, नंदीश्वर की जात्र |
जे नर करहिं स्वभाव सों, ते पावें शिवकांत |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||५||
ऐसो वच राणी सुन्यो, मन में भयो आनंद |
नंदीश्वर-पूजा करें, ध्यावें आदि जिनंद |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||६||
कार्तिक फागुन साढ़ में, पालें मन-वच-काय |
आठ-दिवस पूजा करें, तीन भवांतर थाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||७||विद्यापति सुन चालियो, रच्यो विमान अनूप |
रानी बरजे राय को, तुम हो मानुष-भूप |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||८||
मानुषोत्तर लंघे नहीं, मानुष जेती जात |
जिनवाणी निश्चय कही, तीन-भुवन विख्यात |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||९|| पर विद्यापति ना सुनि, चल्यो नंदीश्वर-द्वीप |
मानुषोत्र-गिरसों मिलो, जाय विमान महीप |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१०||
मानुषोत्र की भेंट तें, परो धरनि खिर भार |
विद्यापति-भव चूरियो, देव भयो सुरसार |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||११||
द्वीप-नंदीश्वर छिनक में, पूजा वसु-विध ठान |
करी सु मन-वच-काय से, माल लई कर मान |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१२||
आनंद सों घर आइयो, नंदीश्वर कर जात्र |
विद्यापति को रूप धर, राणी सों कहे बात |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१३||
राणी बोली सुन राजा, यह तो कबहुँ न होय |
जिनवाणी मिथ्या नहीं, निश्चय मन में सोय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१४||
नंदीश्वर की माल ले, राय दिखाई आय |
अब तू साँचों जान मोहि, पूजन कर बहु भाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१५||
रानी फिर ता सों कहे, नर-भव परसे नाहिं |
पश्चिम सूरज-उदय हुए, जिनवाणी शुचि ताहि |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१६||
रानी सों नृप फिर कही, बावन-भवन जिनाल |
तेरह-तेरह मैं वंदे, पूजन करि तत्काल |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१७||
जयमाला तहँ मो मिली, आयो हूँ तुझ पास |
अब तू मिथ्या मान मत, कर मेरो विश्वास |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१८||
पूरब-दक्षिण में वंदे, पश्चिम-उत्तर जान |
मैं मिथ्या नहिं भाषहूँ, श्रीजिनवर की आन |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||१९||
हे रानी तें सच कही, जिनवानी शुभ-सार |
ढाई द्वीप न लंघई, मानुष-भव विस्तार |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२०||
विद्यापति तें सुर भयो, रूप धरो शुभ सोय |
रानी की स्तुति करी, निश्चय समकित तोय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२१||
देव कह्यो अब रानि सुन, मानुषोत्र मिलो जाय |
तहँ तें चय मैं सुर भयो, पूजे नंदीश्वर पाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२२||
एक भवांतर मो रह्यो, जिनशासन परमान |
मिथ्याती माने नहीं, श्रावक निश्चय आन |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२३||
सुर-चय नर हथनापुरी, राज कियो भरपूर |
परिग्रह-तजि संयम लियो, कर्म-महागिर चूर |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२४||
केवलज्ञान उपाय कर, मोक्ष गये मुनिराय |
शाश्वत-सुख विलसे जहाँ, जामन-मरन मिटाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२५||
अब रानी की सुन कथा, संयम लीनो धार |
तपकर चयकर सुर भयी, विलसे सुख विस्तार |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२६||
गजपुर नगरी अवतरो, राज करे बहु भाय |
सोलहकारण भाइयो, धर्म सुन्यो अधिकाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२७||
मुनि संघाटक आइयो, माली सार जनाय |
राजा वंद्यो भाव सों, पुण्य बढ़्यो अधिकाय |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२८||
राजा मन वैरागियो, संयम लीनो सार |
आठ सहस नृप साथ ले, यह संसार-असार |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||२९||
केवलज्ञान उपाय के, दोय-सहस निर्वान |
दोय-सहस सुख स्वर्ग के, भोगे भोग सुथान |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||३०|| चार-सहस भूलोक में, हंडे बहु-संसार |
काल पाय शिवपुर गये, उत्तम-धर्म विचार |
प्राणी वरत अठाई जे करें, ते पावें भव-पार ||३१||
11/3/2022 • 18 minutes, 17 seconds
Siddhi Vinayak Mantra सिद्धि विनायक मन्त्र
Siddhi Vinayak Mantra सिद्धि विनायक मन्त्र • यह सिद्धि विनायक मंत्र भगवान गणेश के सबसे प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है। यह मंत्र हर प्रयास में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है। मंत्र स्मृति और एकाग्रता को बढ़ाता है। मंत्र आपको शत्रुओं पर विजय पाने की शक्ति देता है। मंत्र धन और सुख के साथ बहुतायत प्राप्त करने में मदद करता है।
•
ॐ नमो सिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकर्त्रे:
सर्वविघनप्रशम्नाय सर्वराज्य वश्यकर्णाय सर्वजन
सर्वस्त्री पुरुष आकर्षणाय श्री ॐ स्वाहा।
• अर्थ : हे ज्ञान और सुख के देवता, केवल आप ही प्रयास और हर संभव प्रयास करते हैं; आप सभी बाधाओं को हल करने वाले हैं और आपने ब्रह्मांड के हर प्राणी को मंत्रमुग्ध कर दिया है, आप सभी महिलाओं और सभी पुरुषों के भगवान हैं।
11/3/2022 • 1 minute, 41 seconds
Shri Stotram श्री स्तोत्रम्
Shri Stotram श्री स्तोत्रम्
◆ पुष्कर उवाच
◆
राज्यलक्ष्मीस्थिरत्वाय यथेन्द्रेण पुरा श्रियः।
स्तुतिः कृता तथा राजा जयार्थं स्तुतिमाचरेत् । जननीमब्धिसम्भवाम् यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च ◆
इन्द्र उवाच ◆ नमस्ते सर्वलोकानां
श्रियमुन्निन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं
लोकपावनि
संध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा
सरस्वती ॥
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च
आत्मविद्या च देवि त्वं
विमुक्तिफलदायिनी
आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता
दण्डनीतिस्त्वमेव च
सौम्या सौम्यं जगद्रूपं त्वयैतद्देवी
पूरितम् ॥
का त्वन्या त्वामृते देवि सर्वयज्ञमयं
वपुः।
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं
गदाभृतः ॥
त्वया देवि परित्यक्तं सफलं
भुवनत्रयम्।
विनष्टप्रायमभवत्वयेदानीं समेधिताम्॥
दाराः पुत्रस्तथा गारं सहद्धान्यधनादिकम्। भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम्। शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षयः सुखम्
देवि त्वददृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न
दुर्लभम्
त्वमम्बा सर्वभूतानां देवदेवो हरिः
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्व्याप्तं चराचरम्
मानं कोषं तथा कोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम्।
मा शरीरं कलत्रं च त्ययेथाः सर्वपावनि
।। मा पुत्रान्मा सुहृद्वर्गान्मा पशुन्मा
विभूषणम् त्यजेथा मम देवस्य
विष्णोर्वक्षःस्थलालये ॥ सत्येन समशौचाभ्यां तथा शिलादिभिर्गुणैः।
त्यज्यन्ते नराः सद्यः सन्त्यक्ताः ये त्वयामले
त्वयाऽवलोकिताः सद्यः शिलाद्यैरखिलैर्गुणैः।
कुलैश्वर्यैश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा
अपि ॥
स श्लाघ्यः सगुणी धन्यः सकुलीनः स सशूरः स च विक्रान्तो यस्त्वया देवी
बुद्धिमान्
वीक्षितः ॥ सद्योवैगण्यमायान्ति शीलाद्याः
सकला गुणाः।
पराङ्गमुखी जगद्धात्री यस्य त्वं
विष्णुवल्ल्भे ॥
न ते वर्णयितुं शक्ता गुणज्जिह्वाऽपि
प्रसीद देवि पद्माक्षिनास्माम्स्त्याक्षी:
कदाचन ॥
पुष्कर उवाच
एवं स्तुता ददौ श्रीश्च वरमिन्द्राय
चेप्सितम्
सुस्थिरत्वं च राज्यस्य सङ्ग्रामविजयादिकम् ॥ स्वस्तोत्रपाठश्रवणकर्तॄणां
भुक्तिमुक्तिदम् श्रीस्तोत्रं सततं तस्मात्पठेच्च
शृणुयान्नरः॥
11/3/2022 • 6 minutes, 56 seconds
Rishi Mandal Japya Mantra ऋषिमण्डल जाप्य मंत्र 108 times
Rishi Mandal Japya Mantra ऋषिमण्डल जाप्य मंत्र ◆ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रूं ह्रं ह्रैं ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा सम्यग्दर्शन- ज्ञान
चारित्रेभ्यो ह्रीं नमः ◆
11/2/2022 • 40 minutes, 16 seconds
Kanya Prapti Mantra कन्या प्राप्ति मन्त्र 108 times
Kanya Prapti Mantra कन्या प्राप्ति मन्त्र ★ ॐ विश्वावसु नाम गंधर्व कन्या नामाधिपति सरूपा सलक्षान्त देहि में नमस्तस्मै विश्वावसवे स्वाहा।
★
विधि-७ अंजुलि जल लेकर मंत्र स्मरण करें। १००० जाप कीजे फिर नित्य १०८ बार पढ़ें। १ माह में कन्या अवश्य प्राप्त होय।
11/2/2022 • 35 minutes, 51 seconds
Ek Shloki Bhagwat एकश्लोकी भागवत
Ek Shloki Bhagwat एकश्लोकी भागवत ★
आदौ देवकी देव गर्भजननं, गोपी गृहे वद्र्धनम्।
माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।।
कंसच्छेदनं कौरवादिहननं, कुंतीसुपाजालनम्।
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्ण: दामोदरं वासुदेवं हरे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकी नायकं रामचन्द्रम भजे ★
भावार्थ:
मथुरा में राजा कंस के बंदीगृह में भगवान विष्णु का श्री कृष्ण के रुप में माता देवकी के गर्भ से अवतार हुआ। देव लीला से पिता वासुदेव ने उन्हें गोकुल पहुंचाया। कंस ने मृत्यु श्री कृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजा । भगवान श्री कृष्ण ने उसका अंत कर दिया। यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार को चूर कर गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठाकर गोकुल वासियों की रक्षा की। बाद में मथुरा आकर भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर दिया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरव वंश का नाश हुआ। पाण्डवों की रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता के माध्यम से कर्म का संदेश जगत को दिया। अंत में प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का लीला संवरण हुआ।
11/2/2022 • 2 minutes, 32 seconds
Mantras for Welfare of the World लोक कल्याण मन्त्र
Mantras for Welfare of the World ◆ Lok Kalyan Mantras लोक कल्याण मन्त्र
11/2/2022 • 15 minutes, 27 seconds
Manonukul Patni Prapti Mantra मनोनुकूल पत्नी प्राप्ति मंत्र 11 times
Manonukul Patni Prapti Mantra मनोनुकूल पत्नी प्राप्ति मंत्र • यदि किसी के विवाह में देरी हो रही है तो उसे रोज इस मंत्र का जाप सुबह करना चाहिए। मंत्र जाप से पहले स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए और इसके बाद जाप करना चाहिए। •
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।। •
इस मंत्र का जाप प्रतिदिन 11 बार करना चाहिए। यह मंत्र सिर्फ पुरुषों को करना चाहिए। इस मंत्र के निरंतर जाप से मनोनुकूल कन्या के साथ विवाह शीघ्र ही हो जाता है।
11/1/2022 • 4 minutes, 12 seconds
Nirvaan Shatkam निर्वाण षट्कम् (आदि शंकराचार्य)
Nirvaan Shatkam निर्वाण षट्कम् (आदि शंकराचार्य) ■ मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं। ■
10/31/2022 • 3 minutes, 42 seconds
Panch Parmeshthi Vandan पंचपरमेष्ठी वन्दन
Panch Parmeshthi Vandan पंचपरमेष्ठी वन्दन ★ अरिहंताणं णमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ॥ १ ॥
सिद्धाणं णमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो |
मंगलाणं च सव्वेसि, बीयं हवइ मंगलं ॥ २ ॥
आयरियाणं णमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि, तइयं हवइ मंगलं ॥ ३ ॥
उवज्झायाणं णमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो |
मंगलाणं च सव्वेसि, चउत्थं हवइ मंगलं ॥ ४ ॥ साहूणं णमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसि, पंचमं हवइ मंगलं ॥ ५ ॥ एसो पंचणमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो | मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ॥ ६ ॥ ★
10/30/2022 • 2 minutes, 55 seconds
Vyapar Vriddhi Surya Mantra व्यापार वृद्धि सूर्य मन्त्र 108 times
Chhath Puja Mantra छठ पूजा मन्त्र ■ ॐ घृणि सूर्याय नमः ■ सूर्य को जल देते समय निम्न मंत्र का जाप करें। सूर्य देव और छठी मैया के पूजा के समय आपकी जो भी मनोकामनाएं हों, उसे उनके समक्ष व्यक्त कर दें।
Vyapar Vridhi Mantra 108 times व्यापार वृद्धि मंत्र
व्यापार व्यवसाय में वृद्धि के लिए प्रतिदिन जाप करें ◆ ॐ घृणि: सूर्य आदिव्योम ◆
10/29/2022 • 13 minutes, 10 seconds
Surya Gayatri Mantra सूर्य गायत्री मन्त्र
Surya Gayatri Mantra सूर्य गायत्री मन्त्र ★ ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात् । ★ सूर्य गायत्री मंत्र के पाठ जाप या 24000 मंत्र के पुनश्चरण से आत्मशुद्धि, आत्म-सम्मान, मन की शांति होती हैं । आने वाली विपत्ति टलती हैं, शरीर में नये रोग जन्म लेने से थम जाते हैं । रोग आगे फैलते नहीं, कष्ट शरीर का कम होने लगता हैं।
Surya Aradhna Mantra सूर्य आराधना मन्त्र ★ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।★
10/28/2022 • 1 minute, 4 seconds
Surya Arghya Mantra सूर्य अर्घ्य मन्त्र
Surya Arghya Mantra सूर्य अर्घ्य मन्त्र ■ सूर्य को जल देते समय ◆ ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा◆ मंत्र का जाप करें। सूर्य देव और छठी मैया के पूजा के समय आपकी जो भी मनोकामनाएं हों, उसे उनके समक्ष व्यक् त कर दें।
10/28/2022 • 1 minute, 2 seconds
Govardhan Aarti गोवर्धन आरती
Govardhan Aarti गोवर्धन आरती ■ श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,
तेरी झाँकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।
करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ■
10/25/2022 • 2 minutes, 36 seconds
Govardhan Puja गोवर्धन पूजा
Govardhan Puja गोवर्धन पूजा ◆ गोवर्धन पूजा मंत्र ◆
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।
◆ गोवर्धन आरती ◆
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
त ेरी सात कोस की परिकम्मा,
और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,
तेरी झाँकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।
करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। श्री गोवर्धन महाराज ◆
Mahavir Nirvaan Laadu Arghya Mantra महावीर निर्वाण लाडू अर्घ्य मन्त्र ◆ ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्यां मोक्ष मंगल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामिति स्वाहा।
◆
इसके पश्चात लड्डू अर्पित करें।
भगवान महावीर स्वामी को अधिक से अधिक लड्डू अर्पित करें एवं पूजन के पश्चात अपने सगे संबंधियों एवं मित्रों के अधिक से अधिक घरों पर वितरित करें। दीपावली के दिन दीये जलाकर व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं घर को आलौकित करें।
Narak Chaturdashi Morning Mantra नरक चतुर्दशी प्रातःकाल मन्त्र ★ कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल 'अपामार्ग' और 'चकबक' को स्नान के समय मस्तक पर घुमाना चाहिए। इससे नरक के भय का नाश होता है।
प्रार्थना मंत्र: सितालोष्ठसमायुक्तं संकण्टकदलान्वितम्। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः ।।
मंत्र का अर्थ: हे अपामार्ग! मैं कांटों और पत्तों सहित तुम्हें अपने मस्तक पर बार-बार घुमा रहा हूं। तुम मेरे
पाप हर लो। ■ स्नान के पश्चात् 'यम' के चौदह (14) नामों का तीन-तीन बार उच्चारण करके जल-दान करना चाहिए। जल-अञ्जलि हेतु यमराज के 14 नाम: ★ ॐ यमाय नमः, ॐ धर्मराजाय नमः, ॐ मृत्यवे नमः, ॐ अन्तकाय नमः, ॐ वैवस्वताय नमः, ॐ कालाय नमः, ॐ सर्वभूतक्षयाय नम:, ॐ औदुम्बराय नमः, ॐ दध्राय नमः, ॐ नीलाय नमः, ॐ परमेष्ठिने नमः, ॐ वृकोदराय नमः, ॐ चित्राय नम:, ॐ चित्रगुप्ताय नमः। ★
10/22/2022 • 6 minutes, 1 second
Lamp Lighting Mantra दीप प्रज्ज्वलन मन्त्र
Lamp Lighting Mantra दीप प्रज्ज्वलन मन्त्र ■ शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
■
Shubham Karoti Kalyaannam-Aarogyam Dhana-Sampadaam |
Shatru-Buddhi-Vinaashaaya Diipa-Jyotir-Namostute ||
Diipa-Jyotih Para-Brahma Diipa-Jyotir-Janaardanah |
Diipo Haratu Me Paapam Diipa-Jyotir-Namostute ||
■ Meaning:
1: (Salutations to the Light of the Lamp) Which Brings Auspiciousness, Health and Prosperity,
2: Which Destroys Inimical Feelings; Salutations to the Light of the Lamp.
Meaning:
3: (Salutations to the Light of the Lamp) The Light of the Lamp represents the Supreme Brahman, the Light of the Lamp represents Janardhana (Sri Vishnu),
4: Let the Light of the Lamp Remove My Sins; Salutations to the Light of the Lamp.
Narak Chaturdashi Deepak Mantra नरक चतुर्दशी दीपक मन्त्र ◆ नरक चौदस के दिन
सायं 4 बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में अपना मुख करके घर के मुख्य द्वार पर रखें तथा
◆ 'दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया। चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये।'
◆
मंत्र का जाप करें
10/21/2022 • 51 seconds
Lakshmi Siddhi Mantra लक्ष्मी सिद्धि मन्त्र
Lakshmi Siddhi Mantra लक्ष्मी सिद्धि मन्त्र ★ॐ पहिनी पक्षनेत्री पक्षमना लक्ष्मी दायिनी
वाच्छा
भूत-प्रेत सर्वशत्रु हारिणी दुर्जन मोहिनी रिद्धि सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा ।
★ इस मंत्र को 108 बार पढ़कर गुगल गोरोचन छाल-छबीला कपूर काचरी, चंदन चूरा आदि सामग्री मिलाकर लक्ष्मी को सिद्ध करते है ।
10/20/2022 • 34 minutes, 52 seconds
Shri Nakoda Maha Bhairav Stotram श्री नाकोड़ा महाभैरव स्तोत्रम्
Shri Nakoda Maha Bhairav Stotram श्री नाकोड़ा महाभैरव स्तोत्रम् •
ॐ संकटमोचन महाभैरव सर्व शक्ति प्रभावतः ।
प्रत्यक्ष दर्शनं देहि, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ १ ॥
महाभैरव -ज्ञानेन्द्र पद्मां, पार्श्वनाथस्य सेवकाः ।
सर्व विघ्नं हरो देव, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ २ ॥
योगक्षेमं पुष्टिकरं, लोकानां मोद रंजनम् ।
सर्व देवमयो देवं, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ ३ ॥
क्षेत्रपाल चतुर्हस्तं पिनाकी भुज पात्रकम् ।
वामे डमरूं त्रिशूलम्, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ ४ ॥
माणिक्य मुकुटा हारैः, नाग यज्ञो पवितितम् ।
वाजन्ते घग्घरुपादौ, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ ५ ॥
हुंकारे हां घोष नादैर्भूत प्रेत पलायन ।
श्वान वाहनं रक्तवर्णं, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ ६ ॥
ॐ क्षां क्षीं क्षू मूल मन्त्रैर्मेनोवांछितं पूरकम् ।
नेवैद्य श्रीफलैः तुष्टम्, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ ७ ॥
जिनधर्मे सदा लीनं, सौभाग्य सुख सम्पदम् ।
संघ रक्षां कुरु देव, नाकोड़ा महाभैरवम् ॥ ८ ॥
प्रतिदिनं पठेन्नित्यं, संकटमोचन भैरव स्तोत्रम्
प्राप्नुयाद्वाञ्छितं सोऽथ वसंतविजयोऽपिच ॥ ९ ॥ •
Dhanteras (Dhanvantari) Mantra धनतेरस (धन्वंतरी) मन्त्र ■ धनतेरस पर भगवान धनवंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके लिए आप सबसे पहले उनकी तस्वीर स्थापित करें। फिर आचमनी से जल लेकर तीन बार आचमन करें। तस्वीर पर गंगाजल छिड़ककर रोली और अक्षत से टीका करें और इसके बाद वस्त्र या फिर कलावा भगवान को अर्पित करें। गणपति प्रथम पूजनीय हैं इसलिए सबसे पहले ● गणपति मंत्र ● बोलकर उनको ध्यान करें और धनतेरस की पूजा शूरू करें। अब हाथ में फूल और अक्षत लेकर भगवान धनवंतरि का ध्यान करें और प्रणाम करते हुए ये दोनों उन्हें अर्पित कर दें। इसके साथ ही ◆ ॐ श्री धनवंतरै नम: ◆ मंत्र का जप करें। इसके बाद देसी घी के दीपक से उनकी आरती करें।
इस मंत्र द्वारा भगवान धनवंतरि को प्रणाम कर महिमा का गुणगान करें…
★ ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये, अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणा।। त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपाय, श्रीधन्वतंरीस्वरुपाय श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः ।।
★
10/19/2022 • 57 seconds
Dhanvantri Stotram धन्वन्तरि स्तोत्रम्
Dhanvantri Stotram धन्वन्तरि स्तोत्रम् ■ धन तेरस पर धन प्राप्ति के अनेक उपाय बताए जाते हैं लेकिन सभी उपायों से बढ़कर है धन और आरोग्य के देवता धन्वंतरि का पावन स्तोत्र। इस स्तोत्र के बिना अधूरी रहती है धनतेरस की पूजा....प्रस्तुत है धन्वंतरि स्तोत्र •
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम ॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं
कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥ ■ ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥ •
10/19/2022 • 2 minutes, 17 seconds
Swaha Stotram स्वाहा स्तोत्रम्
Swaha Stotram स्वाहा स्तोत्रम् ◆ स्वाहा देवी के यह सोलह नाम बहुत चमत्कारिक
जिनके स्मरण से सरवकुछ समर्थ हो जाता है। संतान प्राप्ति के लिए यह रामबाण है इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है। अग्निनारायण की दो पत्निया है स्वाहा और स्वधा देवी |
• स्वाहां मन्त्राङ्गभूतां च मन्त्रसिद्धिस्वरूपिणीम् ।
सिद्धां च सिद्धिदां नृणां कर्मणां फलदां भजे ।।
• अर्थ-‘देवी स्वाहा मन्त्रों की अंगभूता होने से परम पवित्र हैं। ये मन्त्र सिद्धिस्वरूपिणी हैं। सिद्ध एवं सिद्धिदायिनी हैं तथा मनुष्यों को उनके सम्पूर्ण कर्मों का फल देने वाली हैं। मैं उनका भजन करता हूँ।’ ◆
स्वाहा ऽऽद्या प्रकृतेरंशा मन्त्रतन्त्राङ्गरूपिणी।
मन्त्राणां फलदात्री च धात्री च जगतां सती ।।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धा च सिद्धिदा सर्वदा नृणाम् ।
हुताशदाहिकाशक्तिस्तत्प्राणाधिकरूपिणी ।।
संसारसाररूपा च घोरसंसारतारिणी ।
देवजीवनरूपा च देवपोषणकारिणी ।।
षोडशैतानि नामानि यः पठेद्भक्तिसंयुतः ।
सर्वसिद्धिर्भवेत्तस्य चेह लोके परत्र च ।।
नाङ्गहीनो भवेत्तस्य सर्वकर्मसु शोभनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रमभार्य्यो लभते प्रियाम् ।।
★
10/18/2022 • 2 minutes, 12 seconds
Nav Devta Pujan नव देवता पूजन
Nav Devta Pujan नव देवता पूजन ■ यह नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी ॥1॥ ही श्री अर्त्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य यालयेभ्यो जन्म, जरा, मृत्यु विनाशनाय जलं निर्व. स्वाहा। चंदन अर्चा को लाए, संसार ताप नश जाए। नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी॥2॥ ॐ हीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्व. स्वाहा। अक्षत ये धवल चढ़ायें, अक्षय पद हम भी पाएँ नव देवी पूजा भाई, इस जग में मंगलदायी॥3॥ 4. ॐ हीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्व, स्वाहा। यह पुष्प चढ़ाने लाए, मम् कामरोग नश जाएँ। नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी I4॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा। चरु चढ़ा रहे मनहारी, है क्षुधा रोग परिहारी नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी।॥5॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैन्य चैत्यालयेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्व स्वाहा।
पावन यह दीप जलाए, मम मोह तिमिर नश जाए। नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी॥S॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैय चैत्यालयेध्यो महा मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्व स्वाहा। अग्नी में धूप जलाएँ, हम आठों कर्म नशाएँ। नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी ॥I7॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्व, स्वाहा। फल ताजे यहाँ चढ़ाएँ, अब मोक्ष सुफल को पाएँ। नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी॥8॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो मोक्ठफल प्राप्ताये फलं निर्व. स्वाहा।
यह अर्घ्य चढ़ाते भाई जो है अनर्ध्य पददायी नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी ॥9॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्योभ्यो अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्य निर्व. स्वाहा।। दोहा- शांती धारा से मिले, मन में शांति अपार। अतः आपके पद युगल, देते शांती धार॥
।। शांतये शांति धारा ।। दोहा- पुष्पांजलि के हेतु यह, पावन लाए फूल। कर्मों से मुक्ती मिले, शिव पद हो अनुकूल॥
।। दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
10/18/2022 • 4 minutes, 28 seconds
Nav Devta Sthapna Mantra नव देवता स्थापना मंत्र
Nav Devta Sthapna Mantra नव देवता स्थापना मंत्र◆ नवदेवता पूजन
- स्थापना
◆
अर्हन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय, सर्वसाधु जग में पावन जैन धर्म जिनचैत्य जिनालय, जैनागम का आह्वानन्। ● ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योंपाध्याय सर्वसाधु जिन धर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। ●
10/18/2022 • 47 seconds
Abhishek Jal Shuddhi Mantra अभिषेक जल शुद्धि मन्त्र
Shreshtha Jeevan Mantra श्रेष्ठ जीवन मन्त्र ■ सुखी और श्रेष्ठ जीवन के लिए शास्त्रों में कई नियम और परंपराएं बताई गई हैं। इन नियमों और परंपराओं का पालन करने पर अक्षय पुण्य के साथ ही धन-संपत्ति की प्राप्त होती है, भाग्य से संबंधित बाधाएं दूर हो सकती हैं। यहां जानिए एक श्लोक जिसमें 6 ऐसे काम बताए गए हैं, जिन्हें करने से आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है…
★
विष्णुरेकादशी गीता तुलसी विप्रधेनव:।
असारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी।।
★
इस श्लोक में 6 बातें बताई गई हैं, जिनका ध्यान दैनिक जीवन में रखने पर सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो सकती हैं।
◆
1. भगवान विष्णु का पूजन करना
◆ भगवान विष्णु परमात्मा के तीन स्वरूपों में से एक जगत के पालक माने गए हैं। श्रीहरि ऐश्वर्य, सुख-समृद्धि और शांति के स्वामी भी हैं। विष्णु अवतारों की पूजा करने पर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, सब कुछ प्राप्त हो सकता है।
◆ 2. एकादशी व्रत करना
◆ इस श्लोक में दूसरी बात बताई गई है एकादशी व्रत। ये व्रत भगवान विष्णु को ही समर्पित है। हिन्दी पंचांग के अनुसार हर माह में 2 एकादशियां आती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। दोनों ही पक्षों की एकादशी पर व्रत करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। आज भी जो लोग सही विधि और नियमों का पालन करते हुए एकादशी व्रत करते हैं, उनके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
◆3. तुलसी की देखभाल करना
◆ घर में तुलसी होना शुभ और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, ये बात विज्ञान भी मान चुका है। तुलसी की महक से वातावरण के सूक्ष्म हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। घर के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। साथ ही, तुलसी की देखभाल करने और पूजन करने से देवी लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
◆ 4. श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करना ◆
मान्यता है कि श्रीमद् भागवत गीता भगवान श्रीकृष्ण का ही साक्षात् ज्ञानस्वरूप है। जो लोग नियमित रूप से गीता का या गीता के श्लोकों का पाठ करते हैं, वे भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं। गीता पाठ के साथ ही इस ग्रंथ में दी गई शिक्षाओं का पालन भी दैनिक जीवन में करना चाहिए। जो भी शुभ काम करें, भगवान का ध्यान करते हुए करें, सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
◆ 5. ब्राह्मण का सम्मान करना
◆ पुरानी मान्यताओं के अनुसार ब्राह्मण सदैव आदरणीय माने गए हैं। जो लोग इनका अपमान करते हैं, वे जीवन में दुख प्राप्त करते हैं। ब्राह्मण ही भगवान और भक्त के बीच की अहम कड़ी है। ब्राह्मण ही सही विधि से पूजन आदि कर्म करवाते हैं। शास्त्रों का ज्ञान प्रसारित करते हैं। दुखों को दूर करने और सुखी जीवन प्राप्त करने के उपाय बताते हैं। अत: ब्राह्मणों का सदैव सम्मान करना चाहिए।
◆
6. गाय की सेवा करना◆
इस श्लोक में गौ यानी गाय का भी महत्व बताया गया है। जिन घरों में गाय होती है, वहां सभी देवी-देवता वास करते हैं। गाय से प्राप्त होने वाले दूध, मूत्र और गोबर पवित्र और स्वास्थ्यवर्धक हैं। ये बात विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से केंसर जैसी गंभीर बीमारी में भी राहत मिल सकती है। यदि गाय का पालन नहीं कर सकते हैं तो किसी गौशाला में अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार धन का दान किया जा सकता है।
10/17/2022 • 5 minutes, 19 seconds
Aanjaneya 108 Naam Stotram आञ्जनेय अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
Jin Sahasranaam Vidhan जिन सहस्रनाम विधान by Acharya Vishad Sagar Ji Maharaj जिन सहस्रनाम विधान (आचार्य विशदसागर जी महाराज कृत)
10/17/2022 • 1 hour, 20 minutes, 44 seconds
Ahoi Ashtami Santaan Prapti Mantra अहोई अष्टमी सन्तान प्राप्ति मन्त्र 108 times
Ahoi Ashtami Santaan Prapti Mantra अहोई अष्टमी सन्तान प्राप्ति मन्त्र ★
कुछ दंपति जो संतान प्राप्ति के सभी उपायों से थक चुके है उनको अहोई अष्टमी के दिन से 45 दिनों तक लगातार गणपति की मूर्ति पर बिल्व पत्र (बेलपत्र) चढ़ाना चाहिए और हर दिन
★ ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः ★
मंत्र का 11 माला जप करना चाहिए।
इससे उनकी संतान प्राप्ति की मनोकामना
जल्द ही पूरी हो जाती है। ★
10/16/2022 • 13 minutes, 18 seconds
Kaamkala Kali Gayatri Mantra कामकला काली गायत्री मंत्र
Kaamkala Kali Gayatri Mantra कामकला काली गायत्री मंत्र • ॐ अनंगकुलायै विद्महे मदनातुरायै धीमहि तन्नोः कामकला काली प्रचोदयात्।
•
10/15/2022 • 1 minute, 1 second
Indra Krit Shri Ram Stotra इंद्र कृत श्री राम स्तोत्र
Padmavati Sarv Siddhi Mantra पद्मावती सर्वसिद्धि मंत्र
Padmavati Sarv Siddhi Mantra पद्मावती सर्वसिद्धि मंत्र • ॐ नमो भगवती पद्मावत्यै ॐ ह्रीं श्रीं पूर्वाय, दक्षिणाय पश्चिमाय उत्तराय अन्नपूर्णास्ति सर्वं मम वश्यं करोति स्वाहा।'
•
यह प्राकृत मंत्र है, यद्यपि संस्कृत में है फिर भी प्राकृत की श्रेणी में ही आता है, इसलिए इसके ऋषि, छंद, न्यास आदि नहीं हैं। इसे करने के लिए पुनश्चरण करने का निर्देश भी नहीं है।
•
विधि - प्रात:काल शय्या त्यागने के पश्चात हाथ में पीली सरसों लेकर इस मंत्र को 108 बार पढ़ें और इन सरसों के दानों को कमरे में, घर के आंगन आदि में चारों दिशाओं में बिखेर दें। कमरे का आशय उस कमरे से है जिसमें सोए थे और जहां यह प्रयोग किया गया था। इन सरसों के दानों का यह विचार न करें कि बाद में ये पैरों में आएंगे क्योंकि प्रयोग करने के बाद ये निर्माल्य की तरह हो जाते हैं। हां, इतनी अधिक मात्रा में भी न हों कि प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि में आते रहें।
10/13/2022 • 47 minutes, 49 seconds
Vaidik Navgrah Shanti Mantra वैदिक नवग्रह शांति मन्त्र
Vaidik Navgrah Shanti Mantra वैदिक नवग्रह शांति मन्त्र ◆ वैदिक काल से ग्रहों की अनुकूलता के प्रयास किए जाते रहे हैं। यजुर्वेद में 9 ग्रहों की प्रसन्नता के लिए उनका आह्वान किया गया है। यह मंत्र चमत्कारी रूप से प्रभावशाली हैं। प्रस्तुत है नवग्रहों के लिए विलक्षण वैदिक मंत्र-
सूर्य - ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।।●
चन्द्र - ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
◆
मंगल - ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। ●
बुध - ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। ●
बृहस्पति - ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। ●
शुक्र - ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। ●
शनि - ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। ●
राहु - ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। ●
केतु - ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। ◆
10/13/2022 • 5 minutes, 6 seconds
Snake Bite Mantra सर्पविष निवारण मन्त्र
Snake Bite Mantra सर्पविष निवारण मन्त्र ★ ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा ★ का जाप करने से सर्पविष दूर होता है।
Karva Chauth Chandra Darshan Mantra करवा चौथ चंद्र दर्शन मन्त्र
Karva Chauth Chandra Darshan Mantra करवा चौथ चंद्र दर्शन मन्त्र ■ करवा चौथ के दिन रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पूरे मन और श्रद्धा से 3 बार जप करें। ■ सौम्यरूप महाभाग मंत्रराज द्विजोत्तम, मम पूर्वकृतं पापं औषधीश क्षमस्व मे। ■ इस मंत्र का अर्थ होता है मन को शीतलता पहुंचाने वाले, सौम्य स्वभाव वाले ब्राह्मणों में श्रेष्ठ, सभी मंत्रों एवं औषधियों के स्वामी चंद्रमा मेरे द्वारा प ूर्व के जन्मों में किए गए पापों को क्षमा करें। मेरे परिवार में सुख शांति का वास हो। पूजा समापन में चंद्रदेव से पूजा-पाठ के दौरान जाने-अंजाने हुई त्रुटियों की भी क्षमा प्रार्थना करें।
10/12/2022 • 1 minute, 12 seconds
Shiv Manas Stuti शिव मानस स्तुति
Shiv Manas Stuti शिव मानस स्तुति
★ 1- रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम् मृग मदामोदांकितम् चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम् गृह्यताम्॥
2- सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र घृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु।।
3- छत्रं चामर योर्युगं व्यंजनकं चादर्शकं निर्मलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥
4- आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥
5- कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं
वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥
☰ आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी इस शिव स्तुति की रचना, आज भी इसके पाठ से तुरंत होते चमत्का  शंकराचार्य रचित्र शिव मानस स्तुति इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से कल्पना में ही भगवान शिव का विशेष पूजन समपन्न हो जाता है। शिव जी की समस्त स्तुतियों में इस स्तुति को श्रेष्ठ व प्रथम स्थान प्राप्त है। इसका पाठ हिंदी अर्थ सहित करने का महत्व अधिक माना जाता है। ★ ★ अर्थ- मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप ग्रहण कीजिए।  ★ अर्थ- मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें। ★ ★ अर्थ- हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपकी प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें। ★  ★ अर्थ- हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है। ★ ★ अर्थ- हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।
Chandra Gayatri Mantra चंद्र गायत्री मंत्र 3 times
Chandra Gayatri Mantra चंद्र गायत्री मंत्र • ॐ अमृतंगाय विद्महे, कलारुपाय धीमहि, तन्नो सोम प्रचोदयात् ।। •
10/9/2022 • 54 seconds
Sharad Purnima Lakshmi Mantra शरद पूर्णिमा लक्ष्मी मंत्र 21 times
Sharad Purnima Lakshmi Mantra शरद पूर्णिमा लक्ष्मी मंत्र • जो लोग मां लक्ष्मी से सौभाग्य का आशीष पाना चाहते हैं उन्हें शरद पूर्णिमा को • "पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे।" • मंत्र का 21 बार जप करना चाहिए। इससे संतान की भी प्राप्ति होगी। जाप 51 अथवा 108 बार भी कर सकते हैं।
Sharad Purnima Gopi Krishna Mantra शरद पूर्णिमा गोपीकृष्ण मन्त्र ◆ कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने गोपियों संग रास रचाया था। इसमें हर गोपी के साथ एक कृष्ण नाच रहे थे। गोपियों को लगता रहा कि कान्हा बस उनके साथ ही थिरक रहे हैं। अत: इस रात गोपीकृष्ण मंत्र का पाठ करने का महत्व है। ◆
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री' ◆
10/9/2022 • 25 seconds
Sharad Purnima Shiv Mantra शरद पूर्णिमा शिव मन्त्र
Sharad Purnima Shiv Mantra शरद पूर्णिमा शिव मन्त्र शरद पूर्णिमा पर भगवान शिव की इस मंत्र से पूजा करें -
शिवलिंग का जल स्नान कराने के बाद पंचोपचार पूजा यानी सफेद चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, आंकडे के फूल व मिठाई का भोग लगाकर इस आसान शिव मंत्र का ध्यान कर जीवन में शुभ-लाभ की कामना करें -
यह शिव मंत्र मृत्युभय, दरिद्रता व हानि से रक्षा करने वाला भी माना गया है
■
पंचवक्त्र: कराग्रै: स्वैर्दशभिश्चैव धारयन्। अभयं प्रसादं शक्तिं शूलं खट्वाङ्गमीश्वरः।। दक्षैः करैर्वामकैश्च भुजंग चाक्षसूत्रकम्। डमरुकं नीलोत्पलं बीजपूरकमुक्तमम्।।
■
10/9/2022 • 41 seconds
Mantra to acquire new asset नई वस्तु पाने का मन्त्र
Mantra to acquire new asset नई वस्तु पाने का मन्त्र ★ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सम्भवनाथाय नमः । ★
10/8/2022 • 16 minutes, 10 seconds
Shri Radhayah Parihar Stotram श्री राधायाः परिहारस्तोत्रम्
Shri Radhayah Parihar Stotram श्री राधायाः परिहारस्तोत्रम्
◆
त्वं देवी जगतां माता विष्णुमाया सनातनी ।
कृष्णप्राणाधिदेवी च कृष्णप्राणाधिका शुभा ॥ १ ॥
कृष्णप्रेममयी शक्तिः कृष्णसौभाग्यरुपिणी ।
कृष्णभक्तिप्रदे राधे नमस्ते मङगलप्रदे ॥ २ ॥
अद्य मे सफलं जन्म जीवनं सार्थकं मम ।
पूजितासि मया सा च या श्रीकृष्णेन पूजिता ॥ ३ ॥
कृष्णवक्षसि या राधा सर्वसौभाग्यसंयुता ।
रासे रासेश्र्वरीरुपा वृन्दा वृन्दावने वने ॥ ४ ॥
कृष्णप्रिया च गोलोके तुलसी कानने तु या ।
चम्पावती कृष्णसंगे क्रीडा चम्पककानने ॥ ५ ॥
चन्द्रावली चन्द्रवने शतश्रृंङगे सतीति च ।
विरजादर्पहन्त्री च विरजातटकानने ॥ ६ ॥
पद्मावती पद्मवने कृष्णा कृष्णसरोवरे ।
भद्रा कुञ्जकुटीरे च काम्या च काम्यके वने ॥ ७ ॥
वैकुण्ठे च महालक्ष्मीर्वाणी नारायणोरसि ।
क्षीरोदे सिन्धुकन्या च मर्त्ये लक्ष्मीर्हरिप्रिया ॥ ८ ॥
सर्वस्वर्गे स्वर्गलक्ष्मीर्देवदुःखविनाशिनी ।
सनातनी विष्णुमाया दुर्गा शंकरवक्षसि ॥ ९ ॥
सावित्री वेदमाता च कलया ब्रह्मवक्षसि ।
कलया धर्मपत्नी त्वं नरनारायणप्रसूः ॥ १० ॥
कलया तुलसी त्वं च गङगा भुवनपावनी ।
लोमकुपोद्भवा गोप्यः कलांशा रोहिणी रतिः ॥ ११ ॥
कलाकलांशरुपा च शतरुपा शची दितिः ।
अदितिर्देवमाता च त्वत्कलांशा हरिप्रिया ॥ १२ ॥
देव्यश्र्च मुनिपत्न्यश्र्च त्वत्कलाकलया शुभे ।
कृष्णभक्तिं कृष्णदास्यं देहि मे कृष्णपूजिते ॥ १३ ॥
एवं कृत्वा परीहारं स्तुत्वा च कवचं पठेत् ।
पुरा कृतं स्तोत्रमेतद् भक्तिदास्यप्रदं शुभम् ॥ १४ ॥ ◆
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते श्रीराधायाः परीहारस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
Mahalakshmi Praseed Mantra महालक्ष्मी प्रसीद मन्त्र 11 times
Mahalakshmi Praseed Mantra महालक्ष्मी प्रसीद मन्त्र ★ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः॥ ★ अक्षय तृतीया के दिन से हर रोज अगर आप इस मंत्र का जप करते हैं तो आपका सारा कर्ज उतर जाएगा। आप पर हमेशा मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहेगी। घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहेगी। मान्यता है कि कमलगट्टे की माला से प्रतिदिन इस मंत्र का जाप करने ऋणों का बोझ उतर जाता है और मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहती है।
Tirupathi Balaji Mantra तिरुपति बालाजी मन्त्र ■ ॐ वेंकटेश्वरा गोविंदा, श्रीमन नारायण संकटहरणा तिरुमलि तिरुपति वास मुकुन्दा, जय बालाजी नमोस्तुते।■
10/1/2022 • 32 seconds
Tantrokt Navagrah Kavach तंत्रोक्त नवग्रह कवच
Tantrokt Navagrah Kavach तंत्रोक्त नवग्रह कवच :
मानव शरीर में ही सभी ग्रह, नक्षत्र, राशि एवं लोक इत्यादि स्थित हैं और ग्रह चिकित्सा को पूर्ण रूप से समझने के पूर्व यह जान लेना रोचक होगा कि शरीर के किस अंग में कौन सा ग्रह, राशि, नक्षत्र स्थित है। इस प्रकार इनके समान्वित प्रभाव से शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न होने वाले रोगों को भी जाना जा सकता है, शरीर की क्रियाओं को तीव्रमान भी किया जा सकता है, उदाहरण स्वरूप सूर्य की स्थिति नाभि चक्र में, चन्द्रमा बिन्दु चक्र में, मंगल नेत्र में, बुध हृदय में, गुरु उदर में, शुक्र वीर्य में, शनि नाभि में, राहु मुख में एवं केतु का स्थान दोनों हाथ एवं पैरों में, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माना गया है। इसी प्रकार सभी 12 राशियों एवं नक्षत्रों (Navagraha Kavach) की भी शरीर में स्थिति निर्धारित की गई है।
गोचर में जब ग्रह नक्षत्र अपना प्रभाव दिखाते हैं तो शरीर के उस अंग विशेष पर प्रभाव पड़ता ही है। व्यक्ति अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में किसी न किसी ग्रह से ग्रसित अथवा न्यूनाधिक रूप से पीड़ित होता ही है और फिर वह निर्णय नहीं कर पाता कि वह किस ग्रह की शांति (Navagraha Kavach) करे अथवा किस ग्रह की उपासना करे, अपने आप को निरोग करें और फिर ऐसे में ज्योतिषियों के पास चक्कर काटने की बाध्यता हो जाती है।
इसका एक सरल उपाय तंत्रोक्त नवग्रह निवारण प्रयोग है, जिसके द्वारा व्यक्ति, नव ग्रहों की संयुक्त पूजन कर अपने जीवन में सम्पूर्ण रूप से अनुकूलता प्राप्त कर सकता है और उसे एक-एक ग्रह की अलग-अलग पूजा विधान समझाने की आवश्यकता नहीं रहती। इस नवग्रह कवच का पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है, अशुभ ग्रहों की बाधा शांत होने से शुभ ग्रह अपना प्रभाव देते हैं, जिससे विपत्तियों का नाश होता है और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
ॐ अस्य जगन्मंगल-कारक ग्रह- कवचस्य श्री भैरव ऋषि: अनुष्टुप छन्द: श्री सूर्यादि-ग्रहा: देवता: सर्व-कामार्थ-संसिद्धयै पठै विनियोग:।
तंत्रोक्त नवग्रह कवच:
ॐ ह्रीं ह्रीं सौ:में शिर: पातु श्रीसूर्य ग्रह-पति: ।
ॐ घौं सौं औं मे मुखं पातु श्री चन्द्रो ग्रहराजक: ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां स: करौ पातु ग्रह-सेनापति: कुज: पायादथ ।
ॐ ह्रौं ह्रौं सौं: पदौज्ञो नृपबालक: ।
ॐ त्रौं त्रौं त्रौं स: कटिं पातु पातुपायादमर- पूजित: ।
ॐ ह्रों ह्रीं सौ: दैत्य-पूज्यो हृदयं परिरक्षतु ।
ॐ शौं शौं स: पातु नाभिं में ग्रह प्रेष्यं शनैश्चर: ।
ॐ छौं छौं स: कण्ठ देशं श्री राहुदेव मर्दक: ।
ॐ फौं फां फौं स: शिखो पातु सर्वांगमभितोवतु ।
ग्रहाशतचैते भोग देहा नित्यास्तु स्फुटित- ग्रहा: ।
एतदशांश – सम्भूता: पान्तु नित्यं तु दुर्जनात् ।
अक्षयं कवचं पुण्यं सूर्यादि-ग्रह-देवतम् ।
पठेद्वा पाठयेद् वापि धारयेद् यो जन: शुचि: ।
स सिद्धिं प्रप्युयादिष्टां दुर्लभां त्रिदशैसतु याम् ।
तव स्नेहवशादुक्तं जगमंगल कारकम् ।
ग्रहयन्त्रान्वितंकृत्वाभीष्टमक्षयमाप्नुयात ।
नवग्रह कवच सम्पूर्णं
Durga 32 Naam Mala Stotra दुर्गा द्वात्रिंशनाम माला स्तोत्र
Durga 32 Naam Mala Stotra दुर्गा द्वात्रिंशनाम माला स्तोत्र ★ ॐ दुर्गा दुर्गार्ति शमनी दुर्गापद्विनिवारिणी ।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्ग साधिनी दुर्गनाशिनी ॥
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा ।
दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ||
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी ।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ॥
दुर्गम ज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यान भासिनी |
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थ स्वरूपिणी ॥
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।
दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ॥
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ।
नामावलिमीमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः ||
पठेत सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः
॥ श्री दुर्गार्पणं अस्तु ॥ "जो मनुष्य मुझ दुर्गा की इस नाममाला का पाठ करता है, वह निसन्देह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाएगा" - यह देवी का वचन है।
यह स्तोत्र शत्रु से मुक्ति पाने का शक्तिशाली स्तोत्र है । धन व्यापार में हानि , कर्ज़ में डूबा, अपनी बुरे व्यसनों से छुटकारा पाने के लिये, अथवा रोग से मुक्ति पाने के लिए, राहु के कुप्रभाव से बाहर आने के लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभदायी है । यह स्तोत्र स्वयंसिद्ध है । इसे सिद्ध करने की, स्थान शुद्धि की आवश्यकता नही है । नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति के लिए भी इस स्तोत्र से लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।
Shiv Manas Stuti with Hindi meaning शिव मानस स्तुति हिंदी अर्थ सहित (आदि शंकराचार्य)
Shiv Manas Stuti शिव मानस स्तुति ◆ आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी इस शिव स्तुति की रचना। आज भी इसके पाठ से तुरंत होते हैं चमत्कार।
शंकराचार्य रचित शिव मानस स्तुति-
इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से कल्पना में ही भगवान शिव का विशेष पूजन सम्पन्न हो जाता है। शिव जी की समस्त स्तुतियों में इस स्तुति को श्रेष्ठ व प्रथम स्थान प्राप्त है। इसका पाठ हिंदी अर्थ सहित करने का महत्व सर्वाधिक माना जाता है।
★
1- रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम् मृग मदामोदांकितम् चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम् गृह्यताम्॥
★
अर्थ- मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप ग्रहण कीजिए।
2- सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र घृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु।।
★ अर्थ- मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें। ★
3- छत्रं चामर योर्युगं व्यंजनकं चादर्शकं निर्मलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥ ★
अर्थ- हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपकी प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।
★
4- आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥
★
अर्थ- हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।
★
5- कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥
★
अर्थ- हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।
9/26/2022 • 9 minutes, 53 seconds
Shri Buddhi Stotra श्री बुद्धि स्तोत्र
Shri Buddhi Stotra श्री बुद्धि स्तोत्र ◆
कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हततेजसम् ।
गुरुशापात्स्मृतिभ्रष्टं विद्दाहीनं च दुःखितम् ॥ १ ॥
ज्ञानं देहि स्मृतिं विद्दां शक्तिं शिष्यप्रबोधिनीम् ।
ग्रंथकर्तृत्वशक्तिं च सुशिष्यं सुप्रतिष्ठितम् ॥ २ ॥
प्रतिभां सतसभायां च विचार क्षमतां शुभाम् ।
लुप्तं सर्वं दैवयोगान्नवीभूतं पुनः कुरु ॥ ३ ॥
यथांकुरं भस्मनि च करोति देवता पुनः ।
ब्रह्मस्वरुपा परमा ज्योतीरुपा सनातनी ॥ ४ ॥
सर्व विद्दाधिदेवी या तस्यै वाण्यै नमोनमः ।
विसर्गबिंदुमात्रासु यदधिष्ठानमेव च ॥ ५ ॥
तदधिष्ठात्री या देवी तस्यै नित्यै नमोनमः ।
व्याख्यास्वरुपा सा देवी व्याख्याधिष्ठातृरुपिणी ॥ ६ ॥
यया विनाप्रसंख्यावान संख्यां कर्तुं न शक्यते ।
कालसंख्यारुपा या तस्यै देव्यै नमोनमः ॥ ७ ॥
भ्रमसिद्धान्तरुपा या तस्यै देव्यै नमोनमः ।
स्मृतिशक्ति ज्ञानशक्ति बुद्धिशक्ति स्वरुपिणी ॥ ८ ॥
प्रतिभा कल्पनाशक्तिर्या च तस्यै नमोनमः ।
सनत्कुमारो ब्रह्माणं ज्ञानं पप्रच्छ यत्र वै ॥ ९ ॥
बभूव मूकवन्सोपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः ।
तदा जगाम भगवानात्मा श्रीकृष्ण ईश्र्वरः ॥ १० ॥
उवाच स च तां स्तौहि वाणिमिष्टां प्रजापते ।
स च तुष्टाव तां ब्रह्मा चाज्ञया परमात्मनः ॥ ११ ॥
चकार तत्प्रसादेन तदा सिद्धान्तमुत्तमम् ।
यदाप्यनंतं पप्रच्छ ज्ञानमेकं वसुंधरा ॥ १२ ॥
बभूव मूकवत्सोपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः ।
तदा तां च तुष्टाव संत्रस्त कश्यपाज्ञया ॥ १३ ॥
ततश्र्चकार सिद्धान्तं निर्मलं भ्रमभंजनम् ।
व्यासः पुराणसूत्रं च पप्रच्छ वाल्मीकिं यदा ॥ १४ ॥
मौनीभूतश्र्च सस्मार तामेव जगदंबिकाम् ।
तदा चकार सिद्धान्तं तद्वरेण मुनीश्र्वरः ॥ १५ ॥
संप्राप्य निर्मलं ज्ञानं भ्रमांधध्वंसदीपकम् ।
पुराणसूत्रं श्रुत्वा च व्यासः कृष्णकलोद् भवः ॥ १६ ॥
तां शिवां वेद दध्यौ च शतवर्षं च पुष्करे ।
तदा त्वतो वरं प्राप्य सत्कवींद्रो बभूव ह ॥ १७ ॥
तदा वेदविभागं च पुराणं च चकार सः ।
यदा महेन्द्रः पप्रच्छ तत्वज्ञानं सदाशिवम् ॥ १८ ॥
क्षणं तामेव संचिंत्य तस्मै ज्ञानं ददौ विभुः ।
पप्रच्छ शब्दशास्त्रं च महेंद्रश्च बृहस्पतिम् ॥ १९ ॥
दिव्यं वर्षसहस्रं च सा त्वां दध्यौ च पुष्करे ।
तदा त्वत्तो वरं प्राप्य दिव्यंवर्षसहस्रकम् ॥ २० ॥
उवाच शब्दशास्त्रं च तदर्थं च सुरेश्र्वरम् ।
अध्यापिताश्च ये शिष्या यैरधीतं मुनीश्वरैः ॥ २१ ॥
ते च तां परिसंचिंत्य प्रवर्तते सुरेश्वरीम् ।
त्वं संस्तुता पूजिता च मुनीद्रैर्मुनिमानवैः ॥ २२ ॥
दैत्येंद्रैश्चसुरैश्र्चापि ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः ।
जडीभूतः सहस्रास्यः पंचवक्त्रश्चतुर्मुखः ॥ २३ ॥
यां स्तौतुं किमहं स्तौमि तामेकास्येन मानव: ।
इत्युक्त्वा याज्ञवल्क्यच भक्तिनम्रात्मकंधरः ॥ २४ ॥
प्रणनाम निराहारो रुरोद च मुहुर्मुहुः ।
ज्योतीरुपा महामाया तेन दृष्टाप्युवाच तम् ॥ २५ ॥
सुकवींद्रो भवेत्युक्वा वैकुंठं जगाम हे ।
याज्ञवल्क्यकृतं वाणीस्तोत्रमेतस्तु यः पठेत् ॥ २६ ॥
सुकवींद्रो महावाग्मी बृहस्पतिसमो भवेत् ।
महामूर्खश्च दुर्बुद्धिर्वर्षमेकं यदा पठेत् ।
स पंडितश्च मेघावी सुकवींद्रो भवेद् ध्रुवम् ॥ २७ ॥ ॥
इति श्रीयाज्ञवल्क्य विरचितं बुद्धिस्तोत्रम् संपूर्णम् ॥ ◆
Bhagwati Stotram भगवती स्तोत्रम् ◆ जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे। जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे। जय भैरवदेहनिलीनपरे
जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥ जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय
लोकसमस्तकपापहरे। जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्कर शक्रशिरोवनते॥3॥ जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते। जय दुःख दरिद्र विनाशक रे
जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥ जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे। जय व्याधिविनाशिनी मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥ एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं यः पठेन्नियत: शुचिः। गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥ ◆
सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर प्रातः ही
स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें। कुशा या ऊन के आसन पर बैठकर हनुमान जी की मूर्ति या चित्र सामने रखकर पुस्तक में बने यंत्र को ताम्रपत्र पर खुदवाकर मूर्ति के पास रखें और सिन्दूर, चावल, लाल फूल, धूप, घी का दीपक, अगरबत्ती द्वारा पूजन करें। बूंदी के लड्डू का भोग लगायें। पुष्प हाथ में लेकर निम्न श्लोक पढ़ें
★ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, अनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।
★
इसके उपरान्त फूल अर्पण करके हनुमान जी का ध्यान करते हुए श्री हनुमान चालीसा का पाठ करके लाल चन्दन की माला से ★ "हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्" ★ मन्त्र का १०८ बार नित्य प्रति जाप करें।
9/21/2022 • 11 minutes, 36 seconds
Hanumat Shakti Mantra हनुमत शक्ति मन्त्र 108 times
Akarshan Mantra आकर्षण मन्त्र ■
'ॐ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यस्य यस्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा ।'
■
इस मंत्र के जाप से मानसिक और शारीरिक आकर्षण में तीव्रता आ जाती है।
9/17/2022 • 2 minutes, 5 seconds
Maha Mrityunjay Stotra महामृत्युंजय स्तोत्र
Maha Mrityunjay Stotra महामृत्युंजय स्तोत्र◆ मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र ” मृत्युंजय पंचांग में प्रसिद्ध है और यह मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है. इस स्तोत्र द्वारा प्रार्थना करते हुए भक्त के मन में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बन जाता है कि उसने भगवान “रुद्र” का आश्रय ले लिया है और यमराज भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा. यह स्तोत्र 16 पद्यों में वर्णित है और अंतिम 8 पद्यों के अंतिम चरणों में “किं नो मृत्यु: करिष्यति” अर्थात मृत्यु मेरा क्या करेगी, यह अभय वाक्य जुड़ा हुआ है.
महामृत्युंजय स्तोत्र के पाठ से पूर्व निम्न प्रकार से विनियोग करें :-
◆
“ऊँ अस्य श्रीसदाशिवस्तोत्रमन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषि: अनुष्टुप् छन्द:
श्रीसदाशिवो देवता गौरी शक्ति: मम समस्तमृत्युशान्त्यर्थे जपे विनियोग:।”
◆ विनियोग के पश्चात ◆ “ऊँ नम: शिवाय” ◆ मंत्र से करन्यास तथा अंगन्यास करें तथा ध्यान लगाकर मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करें.
◆
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं शिण्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।1।।
पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजव्दयशोभितं भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।2।।
मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं पंकजनासनपद्मलोचनपूजिताड़् घ्रिसरोरुहम्।
देवसिद्धतरंगिणीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।3।।
कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरककुण्डलं वृषवाहनं नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।4।।
यक्षराजसखं भगक्षिहरं भुजंगविभूषणं शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।5।।
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।6।।
भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।7।।
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।8।।
रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।9।।
कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।10।।
नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।11।।
वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।12।।
देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।13।।
अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधारं हरम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।14।।
आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।15।।
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।16।। ◆
Devi Bhujanga Stotram देवी भुजङ्ग स्तोत्रम् • विरिञ्च्यादिभिः पञ्चभिर्लोकपालैः समूढे महानन्दपीठे निषण्णम् ।
धनुर्बाणपाशाङ्कुशप्रोतहस्तं - महस्त्रैपुरं शङ्कराद्वैतमव्यात् ॥ १ ॥
यदन्नादिभिः पञ्चभिः कोशजालैः
शिरःपक्षपुच्छात्मकैरन्तरन्तः ।
निगूढे महायोगपीठे निषण्णं - पुरारेरथान्तःपुरं नौमि नित्यम् ॥ २ ॥ -
विरिञ्चादिरूपैः प्रपञ्चे विहृत्य स्वतन्त्रा यदा स्वात्मविश्रान्तिरेषा ।
तदा मानमातृप्रमेयातिरिक्तं
परानन्दमीडे भवानि त्वदीयम् ॥ ३ ॥
विनोदाय चैतन्यमेकं विभज्य
द्विधा देवि जीवः शिवश्चेति नाम्ना
शिवस्यापि जीवत्वमापादयन्ती पुनर्जीवमेनं शिवं वा करोषि ॥ ४ ॥ समाकुञ्च्य मूलं हृदि न्यस्य वायुं
मनो भ्रूबिलं प्रापयित्वा निवृत्ताः ततः सच्चिदानन्दरूपे पदे ते भवन्त्यम्ब जीवाः शिवत्वेन केचित् ॥ ५ ॥
-- शरीरेऽतिकष्टे रिपौ पुत्रवर्गे - सदाभीतिमूले कलत्रे धने वा न कश्चिद्विरज्यत्यहो देवि चित्रं कथं त्वत्कटाक्षं विना तत्त्वबोधः || ६ |
शरीरे धनेऽपत्यवर्गे कलत्रे
विरक्तस्य सद्देशिकादिष्टबुद्धेः । यदाकस्मिकं ज्योतिरानन्दरूपं
समाधौ भवेत्तत्त्वमस्यम्ब सत्यम् ॥ ७ ॥
मृषान्यो मृषान्यः परो मिश्रमेनं
परः प्राकृतं चापरो बुद्धिमात्रम् प्रपञ्चं मिमीते मुनीनां गणोऽयं तदेतत्त्वमेवेति न त्वां जहीमः ॥ ८ ॥ निवृत्तिः प्रतिष्ठा च विद्या च शान्ति स्तथा शान्त्यतीतेति पञ्चीकृताभिः कलाभिः परे पञ्चविंशात्मिकाभि स्त्वमेकैव सेव्या शिवाभिन्नरूपा ॥ ९ ॥
- अगाधेऽत्र संसारपङ्के निमग्नं कलत्रादिभारेण खिन्नं नितान्तम् । महामोहपाशौघबद्धं चिरान्मां
समुद्धर्तुमम्ब त्वमेकैव शक्ता ॥ १० ॥
समारभ्य मूलं गतो ब्रह्मचक्रं
भवद्दिव्यचक्रेश्वरीधामभाजः ।
महासिद्धिसङ्घातकल्पद्रुमाभा नवाप्याम्ब नादानुपास्ते च योगी ॥ ११ ॥
--
गणेशैर्ग्रहैरम्ब नक्षत्रपङ्क्या तथा योगिनीराशिपीठैरभिन्नम्
महाकालमात्मानमामृश्य लोकं विधत्से कृतिं वा स्थितिं वा महेशि ॥ १२ ॥ लसत्तारहारामतिस्वच्छचेलां -
वहन्तीं करे पुस्तकं चाक्षमालाम्
शरच्चन्द्रकोटिप्रभाभासुरां त्वां - सकृद्भावयन्भारतीवल्लभः स्यात् ॥ १३ ॥
--
समुद्यत्सहस्रार्कबिम्बाभवक्त्रां
स्वभासैव सिन्दूरिताजाण्डकोटिम् धनुर्बाणपाशाङ्कुशान्धारयन्तीं स्मरन्तः स्मरं वापि संमोहयेयुः ॥ १४ ॥ -
मणिस्यूतताटङ्कशोणास्यबिम्बां -
हरित्पट्टवस्त्रां त्वगुल्लासिभूषाम् ।
हृदा भावयंस्तप्तहेमप्रभां त्वां 1
श्रियो नाशयत्यम्ब चाञ्चल्यभावम् ॥ १५ ॥
- महामन्त्रराजान्तबीजं पराख्यं
स्वतो न्यस्तबिन्दु स्वयं न्यस्तहार्दम्
भवद्वक्त्रवक्षोजगुह्याभिधानं - स्वरूपं सकृद्भावयेत्स त्वमेव ॥ १६ ॥ तथान्ये विकल्पेषु निर्विण्णचित्ता स्तदेकं समाधाय बिन्दुत्रयं ते
परानन्दसन्धानसिन्धौ निमग्नाः पुनर्गर्भरन्ध्रं न पश्यन्ति धीराः ॥ १७ ॥
त्वदुन्मेषलीलानुबन्धाधिकारा
न्विरिञ्च्यादिकांस्त्वद्गुणाम्भोधिबिन्दून् भजन्तस्तितीर्षन्ति संसारसिन्धुं शिवे तावकीना सुसम्भावनेयम् ॥ १८ ॥ -
-
कदा वा भवत्पादपोतेन तूर्णं - भवाम्भोधिमुत्तीर्य पूर्णान्तरङ्गः निमज्जन्तमेनं दुराशाविषाब्धौ - समालोक्य लोकं कथं पर्युदास्से ॥ १९ ॥
- कदावा हृषीकाणि साम्यं भजेयुः
कदा वा न शत्रुर्न मित्रं भवानि
कदा वा दुराशाविषूचीविलोपः - -
कदा वा मनो मे समूलं विनश्येत् ॥ २० ॥ नमोवाकमाशास्महे देवि युष्म
त्पदाम्भोजयुग्माय तिग्माय गौरि विरिञ्च्यादिभास्वत्किरीटप्रतोली
प्रदीपायमानप्रभाभास्वराय ॥ २१ ॥
कचे चन्द्ररेखं कुचे तारहारं
करे स्वादुचापं शरे षट्वदौघम्
स्मरामि स्मरारेरभिप्रायमेकं मदाघूर्णनेत्रं मदीयं निधानम् || २२ || -
शरेष्वेव नासा धनुष्वेव जिह्वा
जपापाटले लोचने ते स्वरूपे
त्वगेषा भवच्चन्द्रखण्डे श्रवो -
गुणे ते मनोवृत्तिरम्ब त्वयि स्यात् ॥ २३ ॥
जगत्कर्मधीरान्वचोधूतकीरान् -
कुचन्यस्तहाराङ्गपासिन्धुपूरान् ।
भवाम्भोधिपारान्महापापदूरान् -
भजे वेदसारांशिवप्रेमदारान् ॥ २४ ॥ सुधासिन्धुसारे चिदानन्दनीरे समुत्फुल्लनीपे सुरत्रान्तरीपे ।
मणिव्यूहसाले स्थिते हैमशाले मनोजारिवामे निषण्णं मनो मे ॥ २५ ॥ -
गन्ते विलोला सुगन्धीषुमाला -
प्रपञ्चेन्द्रजाला विपत्सिन्धुकूला
मुनिस्वान्तशाला नमल्लोकपाला - हृदि प्रेमलोलामृतस्वादुलीला ॥ २६ ॥
- जगज्जालमेतत्त्वयैवाम्ब सृष्टं
त्वमेवाद्य यासीन्द्रियैरर्थजालम् त्वमेकैव कर्त्री त्वमेकैव भोक्त्री - न मे पुण्यपापे न मे बन्धमोक्षौ ॥ २७ ॥
-
इति प्रेमभारेण किञ्चिन्मयोक्तं
न बुध्वैव तत्त्वं मदीयं त्वदीयं ।
विनोदाय बालस्य मौर्य्यं हि मात स्तदेतत्प्रलापस्तुतिं मे गृहाण ॥ २८ ॥ •
9/15/2022 • 13 minutes, 49 seconds
Samriddhi Mantra समृद्धि मंत्र
Samriddhi Mantra समृद्धि मंत्र
★ ॐ लक्ष्मी नम: ★
इस मंत्र का जाप कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए। इस मंत्र का जाप करने से मां लक्ष्मी घर में सदैव वास करती हैं और घर में समृद्धि बनी रहती है।
9/15/2022 • 6 minutes, 54 seconds
Pitru Stotra पितृ स्तोत्र
Pitru Stotra पितृ स्तोत्र • अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।। •
Shraadh Mantras Jaap श्राद्ध मंत्रजाप ★ (1) ॐ कुलदेवतायै नमः 21 बार (2)
ॐ कुलदैव्यै नम: 21 बार
(3) ॐ नागदेवतायै नम. 21 बार
(4) ॐ पितृदैवतायै नमः 108 बार
9/11/2022 • 13 minutes, 55 seconds
Pitra Dosh Mukti Mantras पितृदोष मुक्ति मन्त्र (राशिवार)
Pitra Dosh Mukti Mantras पितृदोष मुक्ति मन्त्र (राशिवार) ◆भारतीय ज्योतिष में पितृदोष ( Pitra Dosh ) का बड़ा महत्व है। जिनकी कुंडली में पितृदोष होता है उनको अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना अपने जीवन में करना होता है। इनमे नौकरी से लेकर भाग्य उदय व विवाह में बाधा आती है।
सावन में देवों के देव भगवान शिव की पूजा अर्चना के साथ-साथ द्वापर युग में हुए श्री कृष्ण की आराधना का भी फल मिलता है।
पितृदोष मुक्ति के लिए इन मंत्रों का करें जाप
मेष: ऊं आदित्याय नम:।
वृषभ: ऊं आदिदेव नम:।
मिथुन: ऊं अचला नम:।
कर्क: ऊं अनिरुद्ध नम:।
सिंह: ऊं ज्ञानेश्वर नम:।
कन्या: ऊं धर्माध्यक्ष नम:।
तुला: ऊं सत्यव्त नम:।
वृश्चिक: ऊं पार्थसारथी नम:।
धनु: ऊं बर्धमानय नम:।
मकर: ऊं अक्षरा नम:।
कुंभ: ऊं सहस्राकाश नम:।
मीन: ऊं आदिदेव नम:।
◆
9/11/2022 • 3 minutes, 38 seconds
Pitar Tarpan Mantra पितर तर्पण मन्त्र 108 times
Pitar Tarpan Mantra पितर तर्पण मन्त्र ◆जो जातक पितृ दोष से पीड़ित होते हैं उनके घरों में मांगलिक कार्यों में बाधा आती है और कार्य होते होते अटक जाते हैं। यही वजह है कि अमावस्या के दिन लोग पितृ दोष से मुक्ति के लिए तर्पण और श्राद्ध करते हैं।
पितरों को तर्पण देने से उनकी आत्मा को संतुष्टि मिलती है और आत्मा मुक्त हो जाती है. पितरों को तर्पण देते समय ★'ॐ पितृभ्यो नमः' ★ मंत्र का जाप करें.
9/11/2022 • 8 minutes, 34 seconds
Pitrudosh Nivaran Stotra पितृदोष निवारण स्तोत्र
Pitrudosh Nivaran Stotra पितृदोष निवारण स्तोत्र ★
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायवग्न्यो: नभसस्तथा।
द्यावा पृथिवो व्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपान स्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्य अ ग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।
★
9/10/2022 • 4 minutes, 19 seconds
Kshamapana (Kshamavani) Sutra with meaning in Hindi and English क्षमापना (क्षमावाणी) सूत्र
Kshamapana (Kshamavani) Sutra with meaning in Hindi and English क्षमापना (क्षमावाणी) सूत्र ■ भगवान महावीर ने कहा है ★ खमेमी सखे जीवा (I grant forgiveness to all)
सखे जीवा खमन्तु में (may all living beings grant me forgiveness)
मेटी में सखे भूएस my (friendship is with all living beings)
वेराम माझं न केनाइ (my enemy is totally nonexistent) ★ - अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा मांगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है। क्षमा देने से आप अन्य समस्त जीवों को अभयदान देते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। तब आप संयम और विवेक का अनुसरण करेंगे, आत्मिक शांति अनुभव करेंगे और सभी जीवों और पदार्थों के प्रति मैत्रीभाव रखेंगे। आत्मा तभी शुद्ध रह सकती है, जब वह अपने से बाहर हस्तक्षेप न करे और बाहरी तत्व से विचलित न हो। क्षमा भाव ही इसका मूल मंत्र है।
Sugandh Dashmi Arghya सुगंध दशमी अर्घ्य • पर्व सुगंध दशै दिन जिनवर पूजै अति हरषाई,
सुगंध देह तीर्थंकर पद की पावै शिव सुखदाई।। •
सुगंध दशमी को पर्व भादवा शुक्ल में,
सब इन्द्रादिक देव आय मधि लोक में;
जिन अकृत्रिम धाम धूप खेवै तहां,
हम भी पूजत आह्वान करिकै यहां।।
•
इस अर्घ्य के साथ भगवान को धूप अर्पित की जाती है और इस पर्व को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रतिवर्ष दसलक्षण (पयुर्षण) महापर्व के अंतर्गत आने वाली भाद्रपद शुक्ल दशमी को दिगंबर जैन समाज में सुगंध दशमी का पर्व मनाया जाता है। इसे धूप दशमी, धूप खेवन पर्व भी कहा जाता है। यह व्रत पर्युषण पर्व के छठवें दिन दशमी को मनाया जाता है। इस पर्व के तहत जैन धर्मावलंबी सभी जैन मंदिरों में जाकर श्रीजी के चरणों में धूप अर्पित करते हैं। जिससे वायुमंडल सुगंधित व स्वच्छ हो जाता है। धूप की सुगंध से जिनालय महक उठते है।
सुगंध दशमी व्रत का दिगंबर जैन धर्म में काफी महत्व है और महिलाएं हर वर्ष इस व्रत को करती हैं। धार्मिक व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के सारे अशुभ कर्मों का क्षय होकर पुण्य की प्राप्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सांसारिक दृष्टि से उत्तम शरीर प्राप्त होना भी इस व्रत का फल बताया गया है।
सुगंध दशमी के दिन हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पांच पापों के त्याग रूप व्रत को धारण करते हुए चारों प्रकार के आहार का त्याग, मंदिर में जाकर भगवान की पूजा, स्वाध्याय, धर्मचिंतन-श्रवण, सामयिक आदि में अपना समय व्यतीत करने का महत्व है। इस दिन जैन धर्मावलंबी अपनी-अपनी श्रद्धानुसार कई मंदिरों में अपने शीश नवाकर सुंगध दशमी का पर्व बड़े ही उत्साह और उल्लासपूर्वक मनाते हैं।
सुगंध दशमी के दिन शहरों के समस्त जैन मंदिरों में जाकर 24 तीर्थंकरों को धूप अर्पित करते है तथा भगवान से प्रार्थना करेंगे कि - हे भगवान! इस सुगंध दशमी के दिन, मैं आनंद की तलाश के रूप में अपने नाम में प्रार्थना करता हूं। मैं तीर्थंकरों द्वारा बतलाए मार्ग का पालन करने की प्रार्थना करता हूं, जो ज्ञान और मुक्ति का एहसास कराते हैं। हे भगवान, मैं आपके नाम का ध्यान धरकर मोक्ष प्राप्ति की कामना करता हूं। इस भाव के साथ सभी जैन धर्मावलंबी इस पर्व को बड़े ही उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाते हैं।
9/5/2022 • 1 minute, 2 seconds
Ganesh Visarjan Vidhi गणेश विसर्जन विधि
Ganesh Visarjan Vidhi गणेश विसर्जन विधि ★
गणेश विसर्जन पूजा विधि (Ganesh Visarjan Puja vidhi)
गणेश उत्सव के समय बप्पा की विधि विधान से पूजा की जाती है. उसी प्रकार विसर्जन के दिन गजानन की उपासना करें. इस दिन लाल, पीले रंग के वस्त्र पहनें
पूजा में उनकी पसंदीदा वस्तु जैसे दूर्वा, मोदक, लड्डू, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, हल्दी, नारियल, फूल, इत्र, फल, अर्पित करें. पूजा के समय ॐ श्री विघ्नराजाय नमः। मंत्र का जाप करें
घर या पंडाल जहां गणपति स्थापित किए हो वहां आरती और हवन करें. अब एक पाट पर गंगाजल छिड़कें. उसपर स्वास्तिक बनाकर लाल कपड़ा बिछाएं.
गणपति प्रतिमा और उन्हें अर्पित की सभी सामग्री पाट पर रखें और फिर ढोल, नगाड़ों के साथ झूमते, गाते, गुलाल उड़ाते हुए विसर्जन के लिए निकलेंनदी, तालाब के तप पर विसर्जन से पूर्व दोबारा गणेश जी की कपूर से आरती करें. उनसे गणेश उत्सव के दौरान जाने-अनजाने में हुई गलती की माफी मांगे. अगले वर्ष पुन: पधारने की कामना करें.
गणेश विसर्जन में इस मंत्र का जाप करते हुए सम्मानपूर्वक धीरे-धीरे उन्हें जल में विसर्जित करें.
Ganesh Visarjan mantra गणेश विसर्जन मंत्र
★ ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थाने परमेश्वर। यत्र ब्रह्मादयो देवाः, तत्र गच्छ हुताशन । ★
गणेश जी के साथ उन्हें अर्पित की चीजें सुपारी, पान, लौंग, इलायची और नारियल भी विसर्जित करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार 10 दिन तक गणपति जी की पूजा में जो नारियल रखते हैं उसे फोड़ना नहीं चाहिए.
घर में विसर्जन के लिए बड़े बर्तन का उपयोग करें, उसमें इतना पानी भरें कि प्रतिमा पूरी डूब जाए. इस पानी को बाद में गमले या पवित्र वृक्ष जैसे शमी या आंक के पेड़ में डाल दें.
क्यों जल में करते हैं गणपति विसर्जन?
जल पांच तत्वो में से एक है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश प्रतिमा का जल में विसर्जन करने से गणपति जी पंच तत्वों में सामहित होकर अपने मूल स्वरूप में आ जाता है. जल में विसर्जन होने से भगवान गणेश का साकार रूप निराकार हो जाता है ★
"Yaadein Toh Yaadein Hoti Hain" A poem by Satyavati Jain
"Yaadein Toh Yaadein Hoti Hain" A poem written by my late mother Satyavati Jain ~ Rajat Jain
*यादें तो यादें होती हैं!*
यादें आती रहती है
इसलिये तो वो याद कहलाती है
वो यादें क्या जो भुला दी जाएं
वो तो दुर्घटना होती हैं
याद होगी तो याद आएगी ही
खुशी भी लाएगी और गम भी लाएगी
कुछ पुरानो से ऐसे ही सम्पर्क हो जाता है
इसलिए यादें तो वो ही होती हैं
जो याद आती हैं
पुराने दिनों की याद दिलाती हैं
खुशी भी देती हैं, गम भी देती हैं
यादें ही ज़िन्दगी की थाती हैं
यदि यादें न हों तो इंसान इंसान नही
एक पुतला होगा एक मिट्टी का
जिसको चाहे जिधर रख लो
चाहे वैसे रख लो
~ सत्यवती जैन